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केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा वापस लेना संविधान सम्मत, संविधान पीठ ने शुरू की सुनवाई

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कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने तुष्टिकरण के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थानों को अल्पसंख्यक दर्जा देकर उन्हें भी जम्मू-कश्मीर की तरह बना दिया था। जिस तरह जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर इसे देश की मुख्य धारा से जोड़ा गया ठीक उसी तरह सरकार की मदद से चलने वाले देशभर के शिक्षण संस्थाओं से अल्पसंख्यक दर्जा हटने से वहां दलितों और ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था बहाल हो जाएगी और देश का कानून एकसमान रूप से सभी शिक्षण संस्थानों पर लागू हो जाएगा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक दर्जा वापस लेना संविधान सम्मत था। इसी आधार पर उसने 2016 में यह निर्णय किया था। केंद्र ने कहा कि इसके लिए कानूनी रूप से लड़ने का पूर्ववर्ती यूपीए सरकार का रुख सार्वजनिक हित के खिलाफ और हाशिये पर रह रहे वर्गों के लिए आरक्षण की सार्वजनिक नीति के विपरीत था। 

यूपीए सरकार ने तुष्टिकरण के लिए मामले को उलझाए रखा
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के जटिल सवाल से जुड़ी कई याचिकाओं पर 9 जनवरी से सुनवाई शुरू की। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष केंद्र ने कहा कि यह कहना उचित नहीं है कि सत्ता परिवर्तन के कारण सरकार के रुख में बदलाव आया है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार को कभी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के उस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में अलग अपील दायर नहीं करनी चाहिए थी, जिसमें कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है, न कभी रहा है। यूपीए सरकार ने तुष्टिकरण के लिए इस मामले को उलझाए रखा।

सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ कर रही है सुनवाई
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद शर्मा की संविधान पीठ इसी फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है।

केंद्र ने कहा- एएमयू किसी धर्म विशेष या धार्मिक प्रभुत्व का विश्वविद्यालय नहीं
केंद्र ने कहा कि एएमयू किसी धर्म विशेष या धार्मिक प्रभुत्व का विश्वविद्यालय नहीं है और ना ही हो सकता, क्योंकि राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित कोई विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी लिखित दलीलों में कहा कि विश्वविद्यालय हमेशा से, यहां तक कि आजादी के पहले के कालखंड में भी राष्ट्रीय महत्व का संस्थान रहा है।

केंद्र सरकार ने कहा- एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा वापस लेना संविधान सम्मत
केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, हाईकोर्ट के 2006 के फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने का रुख केंद्रीय विश्वविद्यालयों पर लागू आरक्षण की सार्वजनिक नीति के खिलाफ था।

एएमयू राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान धर्मनिरपेक्षता बनाए रखनी चाहिए
केंद्र सरकार ने कहा, एएमयू राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान है, जिसे धर्मनिरपेक्षता की स्थिति बनाए रखनी चाहिए। पहले राष्ट्र के व्यापक हित की सेवा करनी चाहिए। एएमयू, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की तरह राष्ट्रीय चरित्र का संस्थान है। ऐसा कोई भी विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान नहीं हो सकता। केंद्र ने यह भी कहा, संसद की ओर से राष्ट्रीय महत्व का घोषित कोई अन्य संस्थान अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।

अनुच्छेद 30 में स्थापना और प्रशासन की बात : सीजेआई
सीजेआई ने सुनवाई के दौरान पूछा क‍ि क्‍या कानून यह नहीं है कि आप केवल अपने समुदाय के छात्रों को ही दाखिला दें। आप किसी भी समुदाय के छात्रों को दाखिला सकते हैं। उन्‍होंने कहा क‍ि अनुच्छेद 30 स्थापना और प्रशासन करने की बात करता है, लेकिन प्रशासन का कोई पूर्ण मानक नहीं है, जिसे आपको 100 प्रतिशत प्रशासित करना होगा, यह एक भ्रामक मानक होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2006 में मुस्लिम छात्रों के लिए आरक्षण रद्द की
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने 6 जनवरी 2006 को अदालत के एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। एकल न्यायाधीश ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय की 25 फरवरी, 2005 को जारी अधिसूचना को भी रद्द कर दिया था, जिसमें एएमयू को प्रवेश में मुस्लिम छात्रों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की अनुमति दी गई थी। खंडपीठ ने कहा कि जिन छात्रों को पहले कोटा प्रणाली के तहत प्रवेश दिया गया था और जो एएमयू में पढ़ रहे थे, उन्हें ऐसा करना जारी रहेगा। लेकिन अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि 2006-07 से एएमयू में प्रवेश “सभी के लिए निःशुल्क” होगा।

एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता
साल 2006 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि एएमयू की स्थापना जरूर अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा की गई थी, लेकिन इसे कभी भी प्रशासित नहीं किया गया या समुदाय द्वारा प्रशासित होने का दावा नहीं किया गया था। इस वजह से इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता। तत्कालीन UPA सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हालांकि 2016 में NDA सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि वह UPA सरकार द्वारा दायर अपील को वापस ले रही है। NDA सरकार ने कहा कि UPA सरकार का रुख जनहित के खिलाफ था।

सरकार बदलने से रुख बदला : एमएमयू
एएमयू के वकील राजीव धवन ने कहा कि सत्ता बदलने के कारण केंद्र सरकार के रुख में बदलाव आया है। नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। बदलाव को सही ठहराने के लिए नई सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं लाई गई है।

एएमयू पहले मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज था
एएमयू की ओर से वकील राजीव धवन ने केंद्र की दलील का विरोध करते हुए कहा कि सरकार विश्वविद्यालय के इतिहास को नजरअंदाज करना चाहती है। उन्होंने कहा कि यह संस्थान पहले मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज था, जिसे बाद में बदलकर एएमएयू किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि एएमयू को बनाने के लिए मुस्लिम समुदाय ने काफी प्रयास किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एएमयू मामले को संविधान पीठ को भेज दिया
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा कई दशकों से कानूनी विवाद में फंसा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी, 2019 को इस मुद्दे को सात जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था। मौजूदा बेंच 2019 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई द्वारा सात जजों की संविधान बेंच को भेजे विवादास्पद मामले पर सुनवाई कर रही है।

अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार
संविधान का अनुच्छेद 30 सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रशासित करने का अधिकार देता है। यह प्रावधान यह गारंटी देकर अल्पसंख्यक समुदायों के विकास को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है कि यह उनके ‘अल्पसंख्यक’ संस्थान होने के आधार पर सहायता देने में भेदभाव नहीं करेगा।

एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का विवाद 57 साल पुराना
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे का विवाद लगभग 57 साल पुराना है और इस पर विभिन्न अदालतों द्वारा कई बार फैसला सुनाया गया है। अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई जारी है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि विश्वविद्यालय के “राष्ट्रीय चरित्र” को देखते हुए इसे किसी खास धर्म का संस्थान नहीं कहा जा सकता।

1961 में सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से इनकार किया
एमएमयू के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का विवाद काफी पुराना है। 1961 में अजीज बाशा नाम के एक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी कि इसे अल्पसंख्यक संस्थान ना माना जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला सुनाया और एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से मना कर दिया लेकिन बाद में 1981 में केंद्र सरकार ने फिर से कानून में संशोधन किए और विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बहाल कर दिया।

मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना 1875 में हुई
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में हुई थी। सत्रहवीं शताब्दी के समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान ने आधुनिक शिक्षा की जरूरत को महसूस करते हुए साल 1875 में एक स्कूल शुरू किया जो बाद में मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज बना।

मोहम्डन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज 1920 में एएमयू बना
एक दिसंबर 1920 को यही कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बन गया। उसी साल 17 दिसंबर को एएमयू का औपचारिक रुप से एक यूनिवर्सिटी के रुप में उद्घाटन किया गया था। भारत में तमाम राज्यों के अलावा अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, सार्क और कई अन्य देशों के भी छात्र यहां पढ़ने आते हैं।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने AMU के लिए दी थी जमीन
साल 1929 में मुरसान रियासत के राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 2 रुपये की लीज पर 90 साल के लिए AMU के लिए जमीन दी थी। अलीगढ़ में जीटी रोड के पास स्थित जमीन पर AMU का सिटी स्कूल शुरू किया गया। लीज की अवधि 2018 में खत्म हो गई थी। 1930 में कांग्रेस नेता जवाहर लाल नेहरू को एक चिट्ठी लिखकर राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा था कि मोहम्मद अली जिन्ना एक जहरीला सांप है, उसे गले मत लगाइए।

एएमयू में एससी, एसटी व ओबीसी को आरक्षण नहीं
देश के अन्य शिक्षण संस्थाओं की तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के छात्रों को आरक्षण नहीं मिलता। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एएमयू में दलित छात्रों को प्रवेश में आरक्षण देने की वकालत की थी। यह अपने आप में अजीब बात है कि केन्द्र सरकार से आर्थिक मदद लेने वाली एएमयू सहित जामिया मिलिया विश्वविद्यालय दलित छात्रों को आरक्षण नहीं देते।

खालसा कॉलेज, दिल्ली में भी अल्पसंख्यकों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित
श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय का हिस्सा है, जिसकी स्थापना 1951 में हुई थी। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति (डीएसजीएमसी) इसका प्रबंधन करती है। खालसा कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर जसविंदर सिंह बताते हैं कि यहां सिख अल्पसंख्यकों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं। बाकी 50 प्रतिशत सीट को जनरल कैटेगरी के लिए रखा गया है।

सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली में 50 प्रतिशत सीट ईसाई अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित
1854 से मौजूदा सेंट स्टीफेंस स्कूल का नाम फरवरी, 1881 में कैम्ब्रिज मिशन ने सेंट स्टीफेंस कॉलेज में बदल दिया। अब ये दिल्ली विश्वविद्यालय का हिस्सा है। सेंट स्टीफेंस कॉलेज में 50 प्रतिशत सीट ईसाई अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं और 50 प्रतिशत ओपन हैं।

साजिश के तहत दलितों का आरक्षण किया बंद
कांग्रेस की सरकारों ने तुष्टिकरण के लिए साजिश के तहत दलितों और ओबीसी समाज का आरक्षण बंद कर दिया। सरकार की मदद से चलने वाले संस्थान आखिर अल्पसंख्यक कैसे हो सकते हैं। भारत में ऐसे ही कई अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान हैं जिनमें उन्हें 50 प्रतिशत आरक्षण है लेकिन बाकी के 50 प्रतिशत सीट में दलितों और पिछड़ों के लिए कोई आरक्षण नहीं है। ये संस्थान अल्पसंख्यक भाषा और धर्म के आधार पर वर्गीकृत हैं।

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