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Khalistan पर जनमत संग्रह फेल, कनाडा के पीएम ट्रूडो की सिख वोट बैंक की राजनीति को फिर झटका, मुठ्ठीभर लोगों के आने से नहीं चला खालिस्तान समर्थकों का प्रोपेगेंडा, नए नक्शे में दिल्ली भी

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कनाडा के पीएम ट्रूडो की सिख वोट बैंक की राजनीति को फिर एक बार करारा झटका लगा है। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में लंबे समय से प्रतीक्षित भारत विरोधी जनमत संग्रह को आधिकारिक तौर पर विफल घोषित कर दिया गया है। जनमत संग्रह के लंबे-चौड़े दावों के बावजूद इसमें मुठ्ठीभर लोग ही जमा हो पाए। जनमत संग्रह का आयोजित करने वाले भारत में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन एसएफजे ने भारत की राजधानी दिल्ली को खालिस्तान के हिस्से के रूप में शामिल करते हुए एक नया विवादित नक्शा भी जारी किया। खालिस्तानी आतंकवादी पन्नू ने वाशिंगटन डी.सी. में कहा, “यह पंजाब और भारत के बीच एक युद्ध है जिसमें कब्ज़ा करने वाली सेना हिंसा का उपयोग कर रही है, जबकि सिख वोटों का उपयोग कर रहे हैं।”

हरदीप निज्जर को जहां गोली मारी, उसी गुरुद्वारे में किया गया जनमत
कनाडा के जनमत संग्रह के बारे में सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक यह सरे के उसी गुरुद्वारे में पर्याप्त पुलिस तैनाती के बीच आयोजित किया गया था, जहां जून में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। रिपोर्ट के अनुसार कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने दावा करते हुए आरोप लगाया था कि निज्जर की हत्या में भारत की संलिप्तता की संभावना है। वहीं भारत सरकार ने खालिस्तानी उग्रवादी की मौत के आरोपों का दृढ़ता से खंडन किया, जिसे नई दिल्ली ने पहले ही ‘आतंकवादी’ करार दिया था। भारत ने कनाडा से अपने उन दावों के लिए सबूत पेश करने के लिए भी कहा। ऐसा न होने पर राजनयिक को निष्कासित कर दिया था।

जनमत संग्रह में दो हजार से भी कम वोटों के चलते फ्लॉप घोषित
खालिस्तान के लिए सरे में हुए मतदान में 2000 से भी कम लोगों ने शिरकत की। स्थानीय स्रोतों से प्राप्त रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि इस बार पिछले जनमत संग्रह में भाग लेने वाले लोगों का केवल वही समूह सामने आया, जिसमें मुख्य रूप से छात्र प्रतिभागी शामिल थे। इस बार जनमत संग्रह में कोई नया समूह शामिल नहीं हुआ। जनमत संग्रह प्रक्रिया में नई भागीदारी में कमी के चलते इसे फ्लॉप करार दिया गया।इसी साल 10 सितंबर को हुए पिछले जनमत संग्रह में एक लाख से अधिक वोटों का दावा किया गया था, लेकिन वास्तविकता में मतदान महज 2398 वोट था।

देशविरोधी गतिविधियों रोकने के लिए भारत लगातार बना रहा है कनाडा पर दबाव
सरे में निराशाजनक प्रतिक्रिया मिलने के बाद अगले साल एबॉट्सफ़ोर्ड, एडमॉन्टन, कैलगरी और मॉन्ट्रियल में जनमत संग्रह आयोजित करने की चर्चा हो रही है। वहीं कभी-कभी ‘सिख फॉर जस्टिस’ जैसे अलगाववादी संगठन इन अनौपचारिक ‘खालिस्तान जनमत संग्रह’ का आयोजन करते हैं। दूसरी ओर, भारत इस मामले में लंबे समय से कनाडाई सरकार पर दबाव बना रहा है और उनसे अपने देश में स्थित व्यक्तियों और समूहों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों को रोकने का आह्वान किया है, जिन्हें भारतीय कानून के तहत आतंकवादी घोषित किया गया है।

कनाडा में उच्चायुक्त की गिरफ्तारी पर एक लाख डॉलर इनाम देने की घोषणा की
खालिस्तान जनमत संग्रह के दूसरे चरण के समापन पर, कट्टरपंथी सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) समूह ने कनाडा में उच्चायुक्त संजय कुमार वर्मा की गिरफ्तारी पर एक लाख डॉलर इनाम देने की घोषणा की। चरमपंथी समूह वर्मा को सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए जिम्मेदार मानता है। एसएफजे के कानूनी सलाहकार और घोषित आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने आईएएनएस से कहा कि भारत में सिखों के लिए एक अलग मातृभूमि के लिए समर्थन देने के लिए कई लोग सरे के गुरुद्वारे में आए। मतदान के समापन पर सभा द्वारा दो प्रस्ताव पारित किए गए, जिसमें “निज्जर की हत्या की साजिश रचने और निर्देशित करने” के लिए वर्मा की गिरफ्तारी और मुकदमा चलाने की मांग की गई। जनमत संग्रह का आयोजित करने वाले भारत में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन एसएफजे ने भारत की राजधानी दिल्ली को खालिस्तान के हिस्से के रूप में शामिल करते हुए एक नया नक्शा भी जारी किया। पन्‍नू ने वीज़ा रोकने और ओसीआई कार्ड रद्द करने के भारत के हालिया कदमों की भी आलोचना की।

कनाडा में खालिस्तान समर्थकों ने किया पीएम मोदी और तिरंगे का अपमान
जनमत संग्रह का पहला चरण पिछले महीने आयोजित किया गया था, जब प्रधानमंत्री मोदी ने जी 20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में अपने समकक्ष जस्टिन ट्रूडो को कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियों को जारी रखने के बारे में नई दिल्ली की चिंताओं से अवगत कराया था। लेकिन पहला चरण भी बुरी तरह फ्लॉप रहा तो आयोजकों को 29 अक्तूबर को दूसरे चरण की घोषणा करनी पड़ी। एसएफजे के एक प्रवक्ता ने कहा कि पहले और दूसरे चरण के संयुक्त मतदान में खालिस्तानी समर्थकों ने मतदान किया है। उन्होंने दावा का कि 2024 में कनाडाई शहरों एबॉट्सफ़ोर्ड, एडमॉन्टन, कैलगरी, मॉन्ट्रियल में जनमत संग्रह का आयोजन किया जाएगा। निज्जर की मौत के बाद कनाडा में पोस्टर युद्ध छिड़ गया, जिसमें भारतीय राजनयिकों और प्रतिष्ठानों को धमकी दी गई। कई खालिस्तान समर्थकों ने सितंबर के अंत में कनाडाई शहरों वैंकूवर, ओटावा और टोरंटो में भारतीय राजनयिक मिशनों के बाहर रैली की, भारतीय तिरंगे और पीएम मोदी का अपमान किया।

कनाडा में हिंदुओं को धमकी देते हुए भारत वापस जाने की दी धमकी
ऑनलाइन सामने आए वीडियो की एक श्रृंखला में, उन्होंने कनाडा में हिंदुओं को धमकी देते हुए उन्हें भारत वापस जाने के लिए कहा और पीएम मोदी से इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध से सीखने को कहा, ताकि भारत में भी इसी तरह की “प्रतिक्रिया” न हो। ट्रूडो के आरोपों के बाद भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ गया, जिसे भारत ने “बेतुका और प्रेरित” बताते हुए खारिज कर दिया। इस साल की शुरुआत से, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में खालिस्तानी जनमत संग्रह का आह्वान कर रहे हैं, हिंदू मंदिरों और भारतीय मिशनों और प्रतिष्ठानों को भारत-विरोधी भित्तिचित्रों के साथ तोड़-फोड़ कर रहे हैं।खालिस्तान के पहले वायरल हुए नक्शे में राजस्थान के भी 10 जिले
पाकिस्तान के बाद खालिस्तान समर्थकों का गढ़ बन रहे कनाडा में आतंकियों के सरपरस्तों ने खालिस्तान की आग को भड़काने के लिए खालिस्तान का नक्शा वायरल किया है। इस नक्शे में हिंदुस्तान के राज्यों के कई जिले हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि पाकिस्तान के हिस्से वाला पंजाब इसमें शामिल नहीं है, जबकि वो भारत के हिस्से वाले पंजाब से बड़ा है। इसके अलावा खालिस्तान के इस नक्शे में राजस्थान के भी 10 सरहदी जिलों को शामिल किया गया है। लेकिन गहलोत सरकार ने इस पर चुप्पी साधी हुई है और कोई एक्शन अब तक नहीं लिया है। दूसरी ओर नब्बे के दशक में एक भैरोंसिंह शेखावत की सरकार थी, तब खालिस्तानी आतंकियों ने राजस्थान में कांग्रेस के मंत्री के बेटे का अपहरण कर लिया था। तब शेखावत ने न सिर्फ तत्काल टीम का गठन किया, बल्कि मंत्री के बेटे को अपहृर्ताओं से मुक्त कराया और आतंकी को टीम ने एनकाउंटर में मार गिराया था।

कनाडा में हो रहे भारत विरोधी और खालिस्तान समर्थक प्रदर्शन
केंद्र की मोदी सरकार शुरू से ही आतंकियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए हुए है। केंद्र सरकार ने खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नु को आतंकी घोषित कर रखा है। वो सिक्ख फॉर जस्टिस (एसएफजे) नामक संगठन कनाडा से चलाता है। पन्नु कनाडा में चल रहे भारत विरोधी प्रदर्शनों में कई बार शामिल हो चुका है। वो कई बार सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड कर भारतीयों और भारत सरकार को धमकियां देता है। दो दिन पहले ही पन्नु ने कनाडा में बसे हिन्दुओं को कनाडा छोड़ जाने की धमकी दी है। पन्नु ने ही खालिस्तान नामक देश भारत से अलग करने की मुहिम चलाई हुई है, जिसमें कनाडा में हजारों लोग जुड़े हुए हैं। उन्होंने खालिस्तान देश का अलग ही नक्शा भी जारी किया है। पन्नु को वहां शरण देने के संबंध में भारत सरकार अपनी आपत्ति कनाडा सरकार को दर्ज करवा चुकी है।खालिस्तानी आतंकियों की राजस्थान पर बुरी नजर तो नहीं?
खालिस्तान का ऐसा ही एक नक्शा इन दिनों सोशल मीडिया पर फिर से वायरल है। इस नक्शे में राजस्थान के भी 10 जिलों को शामिल किया गया है। हैरान और परेशान करने वाली बात ये है कि इस पर सरकार ने कई एक्शन नहीं लिया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या खालिस्तान को लेकर चल रही गतिविधियों से राजस्थान को भी सतर्क होने की जरूरत नहीं है। क्या कनाडा और खालिस्तानी गतिविधियों के तार राजस्थान से भी जुड़े हैं? क्या 28 साल पहले की तरह एक बार फिर खालिस्तानी आतंकियों की बुरी नजर राजस्थान पर तो नहीं? राजस्थान की बात करें तो नक्शे में पंजाब से सटे श्रीगंगानगर, अनूपगढ़, बीकानेर, जोधपुर, अलवर, खैरथल, भरतपुर, डीग, बूंदी और कोटा को दिखाया गया है। हालांकि हाल ही में बने अनूपगढ़, खैरथल और डीग जिले को अलग से मेंशन नहीं किया गया है। क्योंकि ये नक्शा कुछ पुराना है, तब ये जिले अस्तित्व में ही नहीं आए थे। खास बात ये है कि 2 साल पहले भी ये नक्शा सामने आया था। अब कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो के खुलकर खालिस्तानियों के समर्थन में आने के कारण खालिस्तान मूवमेंट बढ़ने के बाद एक बार फिर ये नक्शा चर्चा में है। इस नक्शे में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली सहित उत्तरप्रदेश और राजस्थान के हिस्सों को दिखाया गया है।

खालिस्तानियों ने किया मंत्री पुत्र का अपहरण, भैरोसिंह सरकार ने बचाया था
पंजाब का पड़ोसी राज्य होने से राजस्थान में खालिस्तानी आतंक का खतरा पहले भी बना रहा है। वर्ष 1995 में इंदिरा गांधी के करीबी रह चुके केंद्रीय मंत्री और राजस्थान के दिग्गज नेता रामनिवास मिर्धा के बेटे राजेंद्र मिर्धा को खालिस्तानी आतंकियों ने फरवरी 1995 में किडनैप कर लिया था। उन्होंने राजेंद्र मिर्धा को छोड़ने के बदले जनवरी, 1995 में पकड़े गए खालिस्तान समर्थक भुल्लर को छोड़ने की मांग की थी। राजेन्द्र मिर्धा के अपहरण के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत सरकार ने कई टीमें इस केस के लिए गठित कीं। उनमें से एक इंटेलीजेंस टीम में शामिल रहे अफसर हुकुम सिंह के मुताबिक मिर्धा का अपहरण खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) और अन्य 27-28 संगठनों से जुड़े लोगों ने किया था। जयपुर में हुए पुलिस एनकाउंटर में एक खालिस्तान समर्थक नवनीत सिंह कादिया मारा गया और राजेंद्र मिर्धा को सुरक्षित बचा लिया गया। एनकाउंटर में तीन खालिस्तानी समर्थक दया सिंह लाहौरिया, हरनेक सिंह भप और सुमन सूद भागने में कामयाब हो गए।खालिस्तानी नक्शे में पाकिस्तानी पंजाब का जिक्र नहीं
खालिस्तान का जो नक्शा दिखाया गया है, उसमें भारतीय पंजाब से सटे हुए पाकिस्तानी पंजाब का जिक्र तक नहीं है। ये हैरान करने वाला इसलिए है कि क्योंकि पाकिस्तानी पंजाब भारतीय पंजाब से भी करीब 30 प्रतिशत बड़ा है। राजस्थान के जो जिले नक्शे में दिखाए गए हैं, खालिस्तानियों का दावा है कि उनमें खालिस्तान मूवमेंट से सहानुभूति रखने वाले कुछ लोग हैं। राजस्थान के श्रीगंगानगर, अनूपगढ़, बीकानेर, फलोदी, बीकानेर व जोधपुर सरहदी इलाके हैं। इनकी सरहद उत्तर में पंजाब और पश्चिम में पाकिस्तान से सटी हुई है। पाकिस्तान से सटी बार्डर पर अक्सर ड्रग्स व हथियारों की तस्करी के मामले सामने आते रहे हैं। कई बार बीएसएफ ने वहां ड्रोन, प्रशिक्षित कबूतर और बाज जैसे पक्षियों को पकड़ा है जो पाकिस्तान से भारत की तरफ आते हैं।

पहले केवल सरहदी जिले खालिस्तानी नक्शे में थे, अब पांच और शामिल
राजस्थान में पुलिस महानिदेशक रहे बी. एल. सोनी के मुताबिक 1990-92 के बीच पंजाब में खालिस्तानी आतंक चरम पर था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने 15 फरवरी 1992 को एसपी एंटी टेरेरिस्ट ऑपरेशन राजस्थान (कैम्प श्रीगंगानगर) पोस्ट बनाई थी। इसका ऑफिस श्रीगंगानगर में था और इसके पहले एसपी वो खुद थे। उन्होंने भास्कर को बताया कि तब जयपुर से वाहन, संसाधन, फोर्स, हथियार आदि श्रीगंगानगर भेजे गए। बाद में पंजाब में खालिस्तानी आतंक के खात्मे के साथ ही यह पोस्ट और यह कैम्प ऑफिस मर्ज हो गए। इसके बाद राजस्थान में एटीएस (एंटी टेरेरिस्ट स्क्वाएड) बनाई गई। सोनी का कहना है कि खालिस्तानी आतंकी उस दौर में भी राजस्थान के सरहदी जिलों को अपने नक्शे में दिखाते थे। लेकिन अब तो बूंदी, कोटा, जोधपुर, अलवर व भरतपुर जैसे जिलों को खालिस्तान के नक्शे में दिखाया जा रहा है। इन जिलों को उस दौर के खालिस्तानी नक्शे में नहीं दिखाया गया था।

ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री या खालिस्तानी समर्थकों के प्रवक्ता हैं?
दरअसल, खालिस्तान का विवाद में आग में घी का काम कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो के बयान ने किया था। लेकिन यह पीएम नरेन्द्र मोदी का नया भारत है। भारत का अपमान या बदनाम करने वालों को करारा जवाब देकर सबक सिखाने में अब जरा-सी भी देर नहीं होती। यही वजह है कि बारह घंटे के अंदर ही कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को न सिर्फ झुकना पड़ा, बल्कि खालिस्तानी आतंकी पर अपने बयान के लेकर भारत को सफाई भी देनी पड़ी। ट्रूडो को अपनी गलतबयानी पर कहना पड़ा कि उनका मकसद भारत को उकसाने या तनाव बढ़ाने का नहीं, बल्कि निज्जर की हत्या पर भारत से सहयोग मांगना था। ट्रूडो के बयान को लेकर सोशल मीडिया पर लिखा गया कि ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री हैं या फिर खालिस्तानी समर्थकों के प्रवक्ता हैं? इस बीच भारत ने खालिस्तानियों के समर्थन पर कनाडा को करारा जवाब देते हुए कनाडाई उच्चायुक्त कैमरून मैके को 5 दिन में ही देश छोड़ने के लिए कह दिया था।

खालिस्तानी आतंकियों की पनाहगाह बनता जा रहा है कनाडा
कनाडा दरअसल, खालिस्तानियों आतंकियों का गढ़ बनता जा रहा है। गुरपतवंत सिंह पन्नू से लेकर पंजाबी सिंगर सिद्ध मूसेवाला की हत्या का आरोपी गोल्डी बराड़ तक फिलहाल कनाडा में ही पनाह लिए हैं। खासकर गुरपतवंत सिंह पन्नू पिछले दिनों खालिस्तानी गतिविधियों को लेकर खासा चर्चा में रहा है। इसके अलावा गोल्डी बराड़, लखबीर सिंह उर्फ लांडा, चरणजीत सिंह उर्फ रिंकू रंधावा, अर्शदीप सिंह गिल उर्फ अर्श डल्ला, रमनदीप सिंह उर्फ रमन जज, गुरपिंदर सिंह उर्फ बाबा डल्ला और सुखदुल सिंह उर्फ सुखा भी कनाडा में है। कनाडा के राजनेताओं में खालिस्तानियों के प्रति नरम रुख चिंताजनक रूप से बढ़ रहा है। मौजूदा कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे टूडो साल 1984 में कनाडा के पीएम थे और उस वक्त भी उन पर खालिस्तानियों को समर्थन देने का आरोप लगा था और दोनों देशों के संबंध बिगड़े थे।

 

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