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सत्ता लोलुप ममता बनर्जी बंगाल को बना रही है इस्लामिक स्टेट, संदेशखाली में अत्याचार की अंतहीन कहानी

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सत्ता लोलुपता और तुष्टिकरण के कारण टीएमसी के नेताओं ने हिंदुओं पर अत्याचार की हदें पार कर दी है। टीएमसी नेता शाहजहां शेख और उसके गुंडे वर्षों से हिंदुओं पर अत्याचार करते रहे। हिंदुओं की जमीनें छीन ली गई, महिलाओं और बेटियों के साथ बलात्कार किया गया, पुरुषों की बेरहमी से पिटाई की गई। जब वे इसकी शिकायत करने पुलिस के पास जाते तो शिकायत नहीं ली जाती। इस अवर्णनीय अत्याचार की अंतहीन दास्तां है। लेकिन कहते हैं कि हर अत्याचार का एक दिन अंत होता है। आज संदेशखाली उबल रहा है। इसके पीछे एक नाम है शाहजहां शेख। वह मंत्री नहीं है, विधायक नहीं है, वह जिला परिषद का अध्यक्ष है। पूरे इलाके में जगजाहिर है कि शाहजहां के इशारे के बिना संदेशखाली में एक पत्ता भी नहीं हिलता। वामपंथी शासन काल से ही शाहजहां के कारनामे चर्चा में रहे हैं। पिछले दिनों ईडी ने शाहजहां के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट किया उसके बाद से वह फरार है। उसके बाद वहां की हिंदू महिलाओं ने इस अत्याचार के खिलाफ प्रदर्शन किया और संदेशखाली सुर्खियों में आया। 

संदेशखाली में शाहजहां शेख का दबदबा
शाहजहां शेख अभी भी फरार है। कुछ लोग कहते हैं कि शाहजहां संदेशखाली में ही है। कुछ लोग कहते हैं कि शाहजहां ने किसी सुनसान जगह पर शरण ले रखी है। ईडी के वारंट के बाद भी पुलिस के नाक के नीचे से वह फरार हो गया। इससे पता चलता है कि सत्ता पक्ष में उसकी कितनी पैठ है। पश्चिम बंगाल का उत्तर 24 परगना जिले का संदेशखाली पिछले दो महीने से सुर्खियों में है। टीएमसी नेता शाहजहां शेख के ठिकाने पर रेड डालने पहुंचे ईडी के अधिकारियों पर हमले किए गए। केंद्रीय एजेंसी के अधिकारी का सिर फट गया। 5 जनवरी को संदेशखाली की घटना की पूरे देश में सुर्खियां बनी। ईडी ने शाहजहां शेख के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। लुकआउट नोटिस जारी किया, लेकिन वह अब तक फरार है।

शाहजहां शेख और उसके समर्थकों पर संगीन आरोप
स्थानीय महिलाओं ने आरोप लगाया कि उनकी जमीन छीन ली गई। टीएमसी के नेताओं की गांव में रहने वाली महिलाओं और बेटियों पर नजर रहती थी। जो महिलाएं उन्हें अच्छी लगती थीं। वे रात में घर की महिलाओं को पार्टी कार्यालय ले जाया करते थे। उन्हें रात भर रखा जाता था और जब-तक उनका मन नहीं भर जाता। उन्हें नहीं छोड़ा जाता था। यदि महिलाएं नहीं जाती थीं तो सरकारी सेवाएं बंद कर दी जाती थी। अवर्णनीय अत्याचार होता था। जब वह पुलिस के पास गईं तो पुलिस ने शिकायत नहीं ली। बीडीओ कार्यालय जाने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ। स्थानीय महिलाओं ने शाहजहां शेख और उसके समर्थकों पर संगीन आरोप लगाए।

आदिवासी महिलाओं की दास्तान अंदर तक झकझोर देने वाली
बीते कुछ दिनों से पश्चिम बंगाल का संदेशखाली हिंसा की आग में झुलस रहा है। संदेशखाली का पूरा मामला ED की कार्रवाई के बाद लोगों के सामने आया है। काबिले जिक्र है कि पिछले माह 5 जनवरी, 2024 को ED के अधिकारियों ने राशन भ्रष्टाचार मामले में संदेशखाली के सरबेड़िया में तृणमूल नेता शेख शाहजहां से पूछताछ करने पहुंचे हुए थे। तृणमूल के गुंड़ों की मदद से न सिर्फ नेता शाहजहां शेख फरार हो जाने में कामयाब रहा, बल्कि इस दौरान सरकारी अधिकारियों पर भी हमले भी किए गए थे। इसके बाद से ही स्थानीय लोगों ने अपनी आवाज तेज कर दी और खुल कर सामने आ गए। गांव के लोग शेख शाहजहां और उसके सहयोगियों को गिरफ्तार करने की मांग कर रहे हैं और अपनी मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शन में महिलाएं भी शामिल हो रही है।

यौन उत्पीड़न करने वालों की गिरफ्तारी के लिए सड़कों पर उतरीं महिलाएं
संदेशखाली में शुरू हुए बवाल ने धीरे-धीरे विकराल रूप ले लिया। विरोध प्रदर्शन के दौरान महिलाएं लाठी-डंडों और बांस के साथ सड़कों पर उतर आईं। महिलाओं की मांग थी कि तृणमूल के स्थानीय नेता शेख शाहजहां, ब्लॉक अध्यक्ष शिवप्रसाद हाजरा और उनके साथी उत्तम सरदार को गिरफ्तार किया जाए। संदेशखाली की महिलाओं में भयंकर आक्रोश देखने को मिल रहा है। महिलाएं शाहजहां की गिरफ्तारी की मांग करते हुए फिर से सड़कों पर उतर आईं। आरोप है कि शाहजहां ने पार्टी के नाम पर गांव वालों पर लम्बे समय तक जो अत्याचार किया है। ऐसे में महिलाओं की मांग है कि उसे तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए। इस दौरान गांववालों और तृणमूल समर्थक के एक गुट के बीच मारपीट की घटना भी सामने आई थी। जानकारी के मुताबिक, केंद्र द्वारा बंगाल को बकाया फंड से वंचित करने का आरोप लगाकर तृणमूल ने संदेशखाली के त्रिमोहानी बाजार में जनजाति समुदाय के एक वर्ग के साथ एक रैली निकाली थी। इसमें शेख शाहजहां के जयकारे लगाने के बाद ही हंगामा शुरू हुआ था।

बंगाल में सोया हुआ हिंदू जाग चुका
यह स्पष्ट समझ होनी चाहिए कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द का मतलब अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए बहुसंख्यकों के अधिकारों में कटौती करना नहीं है। राम धेनु को रोंग धेनु और आकाशी को आसमानी में बदलने से लेकर टीएमसी को अपनी छद्म-धर्मनिरपेक्ष रणनीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। यह हिंदुओं पर अत्याचार की पराकाष्ठा ही थी बंगाल में आज सोया हुआ हिंदू जाग चुका है और ममता सरकार के काले कारनामे से पर्दा उठ रहा है।

बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी
बंगाल में 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। ममता बनर्जी इनके तुष्टिकरण से ही सत्ता में बनी हुई है और इस्लामी एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। इसके लिए पर्याप्त राजनीतिक प्रोत्साहन मिलता है। कुछ क्षेत्रों में, उदाहरण के लिए, मुर्शिदाबाद का सीमांत क्षेत्र, जहां 63 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम हैं, वहां सभी लोगों पर शरीयत थोपा जा रहा है। अधिकांश राजनीतिक उम्मीदवार, और प्रशासन मुस्लिम है और हिंदुओं के लिए आर्थिक संभावनाएं कम हो गई हैं क्योंकि मुस्लिम गैर-मुसलमानों के स्वामित्व वाले व्यवसायों को समर्थन देने से इनकार करते हैं। कुरान के साथ पोज देना, बुर्का पहनना और वर्तमान टीएमसी सरकार द्वारा इस तरह की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण किया जाता है। ये सब इसलिए किया जाता है कि पूरा मुस्लिम वोट बैंक उनकी झोली में बना रहे। केवल 10 प्रतिशत या उससे अधिक हिंदू के वोट मिल जाए तो वे सत्ता बरकरार रख सकती हैं।

अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति को खारिज करेगा बंगाल
बंगाल ऐतिहासिक रूप से बुद्धिजीवियों की भूमि रही है, जिसने भारत को विद्यासागर से लेकर रवीन्द्र नाथ टैगोर और सुभाष चंद्र बोस जैसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों, शिक्षाविदों और कलाकार दिए है। हालांकि, इन महान लोगों की भूमि में, एक व्यक्ति को सीना चौड़ा करके खड़े होने और जय श्री राम बोलने में सक्षम होना चाहिए। ऐसा करते समय उन्हें जेल जाने का डर नहीं होना चाहिए। जयश्रीराम बोलने पर मुख्यमंत्री द्वारा धमकी दी जाती है। अब हिंदू जाग चुका है और वह दिन दूर नहीं जब कोलकाता की सड़कें जय श्री राम के नारों से गूंज उठेंगी और लोकप्रिय जनादेश छद्म धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति को खारिज कर देगा।

अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने 2015 में ही आशंका व्यक्त की थी कि पश्चिम बंगाल जल्द ही एक इस्लामिक देश बन जाएगा। इस पर एक नजर-

अमेरिकी पत्रकार की रिपोर्ट, पश्चिम बंगाल बन जाएगा इस्लामिक देश !
कभी भारतीय संस्कृति का प्रतीक माने जाने वाले पश्चिम बंगाल की दशा आज क्या हो चुकी है, ये बात तो किसी से छिपी नहीं है। हिंदुओं के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे तो पिछले काफी वक्त से हो रहे हैं। अब तो हालात ये हैं कि त्योहार मनाने तक पर रोक लगाई जानी शुरू हो गई है। प्रदेश में इस घातक परिवर्तन की धमक अमेरिका तक पहुंच गई। मशहूर अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने 2015 में ही ऐसे खुलासे किए थे जो हैरान करने वाले हैं। उन्होंने अपने लेख The Muslim Takeover of West Bengal में आशंका व्यक्त की थी कि पश्चिम बंगाल जल्द ही एक इस्लामिक देश बन जाएगा! 

बंगाल में उठने लगी मुगलिस्तान की मांग
जेनेट लेवी ने दावा किया है कि भारत का एक और विभाजन होगा और वह भी तलवार के दम पर। उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि कश्मीर के बाद पश्चिम बंगाल में अब गृहयुद्ध होगा और अलग देश की मांग की जाएगी। बड़े पैमाने पर हिंदुओं का कत्लेआम होगा और मुगलिस्तान की मांग की जाएगी। उन्होंने यह भी दावा किया है कि यह सब ममता बनर्जी की सहमति से होगा। जेनेट लेवी ने कहा है कि 2013 से पहली बार बंगाल के कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग ‘मुगलिस्तान’ की मांग शुरू कर दी है। इसी साल बंगाल में हुए दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूट लिए गए और कई मंदिरों को भी तोड़ दिया गया। इन दंगों में सरकार द्वारा पुलिस को आदेश दिये गए कि वो दंगाइयों के खिलाफ कुछ ना करें।

बंगाल में बिगड़ गया आबादी का समीकरण
जेनेट लेवी ने इसके लिए कई तथ्य पेश किए हैं और इसके लिए मुख्य जिम्मेदार बंगाल में बिगड़ते जनसांख्यिकीय संतुलन को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने हिंदुओं की घटती और मुस्लिमों की तेजी से बढ़ती आबादी का जिक्र करते हुए देश के एक और विभाजन की तस्वीर प्रस्तुत की है। 

उन्होंने तथ्य के साथ दावा किया है किस्वतंत्रता के समय पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 प्रतिशत थी, लेकिन यह घटकर अब महज 8 प्रतिशत हो गई है। जबकि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। इतना ही नहीं कई जिलों में तो यह आबादी 63 प्रतिशत तक है।

उन्होंने दावा किया है कि मुस्लिम संगठित होकर रहते हैं और 27 फीसदी आबादी होते ही इस्लामिक शरिया कानून की मांग करते हुए अलग देश बनाने तक की मांग करने लगते हैं।

अरब देशों के पैसे से चल रहा जिहादी खेल
जेनेट लेवी ने दावा किया है कि इस्लामिक देश बनाने की सूत्रधार ममता बनर्जी बनने जा रही हैं। उन्होंने अपने दावे में तथ्य भी दिए हैं और कहा है कि यह सब अरब देशों की फंडिंग से होने जा रहा है। उन्होंने दावा किया है कि ममता सरकार ने सऊदी अरब से फंड पाने वाले 10 हजार से ज्यादा मदरसों को मान्यता देकर वहां की डिग्री को सरकारी नौकरी के काबिल बना दिया है। सऊदी से पैसा आता है और उन मदरसों में वहाबी कट्टरता की शिक्षा दी जाती है।

मुस्लिमों के लिए अलग अस्पताल-स्कूल
जेनेट लेवी ने दावा किया है कि पूरे बंगाल में मुस्लिम मेडिकल, टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं। इनमें मुस्लिम छात्रों को सस्ती शिक्षा मिलेगी। इसके अलावा कई ऐसे अस्पताल बन रहे हैं, जिनमें सिर्फ मुसलमानों का इलाज होगा। मुसलमान नौजवानों को मुफ्त साइकिल से लेकर लैपटॉप तक बांटने की स्कीमें चल रही हैं। इस बात का पूरा ख्याल रखा जा रहा है कि लैपटॉप केवल मुस्लिम लड़कों को ही मिले, मुस्लिम लड़कियों को नहीं।

हिंदुओं का सरकार द्वारा जारी है बहिष्कार
जेनेट लेवी ने दावा किया है कि हिंदुओं को भगाने के लिए जिन जिलों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, वहां के मुसलमान हिंदू कारोबारियों का बायकॉट करते हैं। मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिंदुओं की दुकानों से सामान तक नहीं खरीदते। यही वजह है कि वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन होना शुरू हो चुका है। कश्मीरी पंडितों की ही तरह यहां भी हिंदुओं को अपने घरों और कारोबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ रहा है। ये वे जिले हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। जेनेट लेवी ने दावा किया है कि बंगाल में बेहद गरीबी में जी रहे लाखों हिंदू परिवारों को कई सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं दिया जाता।

हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करवाएंगे कट्टरपंथी मुसलमान
जेनेट लेवी ने दुनिया भर की कई मिसालें देते हुए दावा किया है कि, मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता और अपराध के मामले बढ़ने लगते हैं। उन्होंने कहा है कि आबादी बढ़ने के साथ ऐसी जगहों पर पहले अलग शरिया कानून की मांग की जाती है और फिर आखिर में ये अलग देश की मांग तक पहुंच जाती है। जेनेट ने इस समस्या के लिए इस्लाम को ही जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने लिखा है कि कुरान में यह संदेश खुलकर दिया गया है कि दुनिया भर में इस्लामिक राज स्थापित हो। जेनेट ने दावा किया है कि हर जगह इस्लाम जबरन धर्म-परिवर्तन या गैर-मुसलमानों की हत्याएं करवाकर फैला है। उन्होंने लिखा है कि 2007 में कोलकाता में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे। ये पहली कोशिश थी जिसमे बंगाल में मुस्लिम संगठनों ने इस्लामी ईशनिंदा (ब्लेसफैमी) कानून की मांग शुरू कर दी थी।

भारत की धर्म निरपेक्षता पर उठाये सवाल
1993 में तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और उनको जबरन मुसलमान बनाने के मुद्दे पर किताब ‘लज्जा’ लिखी थी। किताब लिखने के बाद उन्हें कट्टरपंथियों के डर से बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था। वो कोलकाता में ये सोच कर बस गयी थी कि वहां वो सुरक्षित रहेंगी क्योंकि भारत तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वहां विचारों को रखने की स्वतंत्रता भी है।  मगर हैरानी की बात है कि धर्म निरपेक्ष देश भारत में भी मुस्लिमों ने तस्लीमा नसरीन को नफरत की नजर से देखा। भारत में उनका गला काटने तक के फतवे जारी किए गए। देश के अलग-अलग शहरों में कई बार उन पर हमले भी हुए।

आतंक समर्थकों को संसद भेज रही ममता
जेनेट लेवी ने दावा किया है कि ममता ने अब बाकायदा आतंकवाद समर्थकों को संसद में भेजना तक शुरू कर दिया है। जून 2014 में ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नाम के एक कुख्यात जिहादी को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा। हसन इमरान प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का सह-संस्थापक रहा है। हसन इमरान पर आरोप है कि उसने शारदा चिटफंड घोटाले का पैसा बांग्लादेश के जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी तक पहुंचाया, ताकि वो बांग्लादेश में दंगे भड़का सके।

गौरतलब है कि हसन इमरान के खिलाफ एनआईए और सीबीआई की जांच भी चल रही है। दरअसल लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) की रिपोर्ट के मुताबिक कई दंगों और आतंकवादियों को शरण देने में हसन का हाथ रहा है। उसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से रिश्ते होने के आरोप लगते रहे हैं।

जेनेट लेवी के मुताबिक बंगाल का भारत से विभाजन करने की मांग अब जल्द ही उठने लगेगी। इस लेख के जरिये जेनेट ने उन पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है, जो मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहां बसा रहे हैं। उन्होंने दावा किया है कि जल्द ही उन्हें भी इसी सब का सामना करना पडेगा।

ममता बनर्जी के शासनकाल में पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को अपने धार्मिक रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार मनाने तक की स्वतंत्रता नहीं रह गई है। इस पर एक नजर- 

ममता बनर्जी के शासनकाल में पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को अपने धार्मिक रीति-रिवाज, पर्व-त्योहार मनाने तक की स्वतंत्रता नहीं रह गई है। हाल के वर्षों में ममता सरकार ने हिंदुओं के खिलाफ कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे लगता है कि अपने ही देश के भीतर बहुसंख्यकों को अपनी पूजा-पद्धति और संस्कार बचाने के लाले पड़ गए हैं। इसका तात्कालिक और सबसे बड़ा उदाहरण कोलकाता में रामनवमी की पूजा के लिए अनुमति नहीं मिलना है। जी हां, अगर कलकत्ता हाईकोर्ट ने दखल नहीं दिया होता तो इसबार भी (हाल में कई मौकों पर पश्चिम बंगाल में अदालत के आदेश के बाद ही पश्चिम बंगाल में पूजा-विधि संपन्न हो सकी है) दक्षिण कोलकाता में रहने वाले हिंदू रामनवमी की पूजा नहीं कर पाते।

हाईकोर्ट के आदेश से हो सकी रामनवमी की पूजा
सुनने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन ये सच्चाई है कि पश्चिम बंगाल में अब हिंदुओं की पूजा और उपासना की स्वतंत्रता खतरे में पड़ चुकी है। बात-बात में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश के टुकड़े करने की बात करने वालों पर ममता बरसाने वाली पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार हिंदुओं के धार्मिक अनुष्ठानों पर आए दिन रोक लगा रही है। ताजा मामला कोलकाता के दक्षिणी दमदम नगरपालिका का है जहां ‘लेक टाउन रामनवमी पूजा समिति’ने पिछले 22 मार्च को ही पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया था। लेकिन जब राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी तो याचिकाकर्ता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के जज न्यायमूर्ति हरीश टंडन ने नगरपालिका के रवैये पर नाखुशी जताते हुए पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।


मुहर्रम के चलते दुर्गा विसर्जन पर लगाई थी रोक
पिछले शारदीय नवरात्रि की बात है। पंचांग के अनुसार मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए तय समय पर रोक लगाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसलिए उसकी समय-सीमा तय कर दी ताकि उसके अगले दिन मुहर्रम का जुलूस निकालने में कोई दिक्कत न हो। बंगाल के इतिहास में इससे बड़ा काला दिन क्या हो सकता है, क्योंकि दुर्गा पूजा बंगाल की अस्मिता से जुड़ा है, इसमें राज्य की पहचान और सदियों की संस्कृति छिपी है। हैरानी की बात तो ये है कि मुख्यमंत्री ने अपने तुष्टिकरण वाले फैसले का ये कहकर बचाव किया कि वो तो सांप्रदायिक सौहार्द के लिए ऐसा करती हैं।
लेकिन कलकत्ता हाईकोर्ट ने उसबार भी राज्य की मुख्यमंत्री के चेहरे पर से कथित धर्मनिर्पेक्षता का नकाब हटा दिया और जमकर फटकार लगाई थी। जस्टिस दीपांकर दत्‍ता की सिंगल बेंच ने अपने आदेश में कहा था, “राज्‍य सरकार का यह फैसला, साफ दिख रहा है कि बहुसंख्‍यकों की कीमत पर अल्‍पसंख्‍यक वर्ग को खुश करने और पुचकारने वाला है।” कोर्ट ने यहां तक कहा कि, “प्रशासन यह ध्‍यान रख पाने में नाकाम रहा कि इस्‍लाम को मानने वालों के लिए भी मुहर्रम सबसे महत्‍वपूर्ण त्‍योहार नहीं है। राज्‍य सरकार ने लापरवाही से एक समुदाय के प्रति भेदभाव किया है ऐसा करके उन्‍होंने मां दुर्गा की पूजा करने वाले लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण किया।”

मकर संक्रांति की सभा में डाला था अड़ंगा
इसी साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने एक रैली आयोजित की थी। लेकिन सारे नियमों और औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद भी राज्य की सरकार के दबाव में कोलकाता पुलिस इस रैली के लिए अनुमति नहीं दे रही थी। इस रैली को स्वयं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन जी भागवत को संबोधित करना था। लेकिन ममता सरकार को लग रहा था कि अगर रैली के लिए अनुमति दे दी तो उनका मुस्लिम वोट बैंक बिदक जाएगा। यही वजह है कि उसने सारी कानूनी और संवैधानिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर रैली की अनुमति देने से साफ मना कर दिया। ममता बनर्जी सरकार के इस तानाशाही रवैए के खिलाफ कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील दायर की गई और वहां से आदेश मिलने के बाद ही रैली संपन्न हो सकी।

बंगाल सरकार ने पाठ्यक्रम में रामधनु को कर दिया रंगधनु 
भगवान राम के प्रति ममता बनर्जी की घृणा का अंदाजा इस बात से भी जाहिर हो गई, जब तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब ‘अमादेर पोरिबेस’ (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल कर ‘रंगधनु’ कर दिया गया। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया है। दरअसल साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले ‘रामधनु’ का प्रयोग किया था, लेकिन मुस्लिमों को खुश करने के लिए किताब में इसका नाम ‘रामधनु’ से बदलकर ‘रंगधनु’ कर दिया गया।

हिंदुओं के हर पर्व के साथ भेदभाव करती हैं ममता बनर्जी
ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ है कि ममता बनर्जी ने हिंदुओं के साथ भेदभाव किया है। कई ऐसे मौके आए हैं जब उन्होंने अपना मुस्लिम प्रेम जाहिर किया है और हिंदुओं के साथ भेदभाव किया है। सितंबर, 2017 में कलकत्ता हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से ममता बनर्जी का हिंदुओं से नफरत जाहिर होता है। कोर्ट ने तब कहा था,  ”आप दो समुदायों के बीच दरार पैदा क्यों कर रहे हैं। दुर्गा पूजन और मुहर्रम को लेकर राज्य में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है। उन्‍हें साथ रहने दीजिए।”

दशहरे पर शस्त्र जुलूस निकालने की ममता ने नहीं दी थी अनुमति
हिंदू धर्म में दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा रही है। लेकिन मुस्लिम प्रेम में ममता बनर्जी हिंदुओं की धार्मिक आजादी छीनने की हर कोशिस करती रही हैं। सितंबर, 2017 में ममता सरकार ने आदेश दिया कि दशहरा के दिन पश्चिम बंगाल में किसी को भी हथियार के साथ जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी जाएगी। पुलिस प्रशासन को इस पर सख्त निगरानी रखने का निर्देश दिया गया। हालांकि कोर्ट के दखल के बाद ममता बनर्जी की इस कोशिश पर भी पानी फिर गया।

हनुमान जयंती पर निर्दोषों को किया गिरफ्तार, लाठी चार्ज 
11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ममता सरकार से हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम इस आयोजन की अनुमति को लेकर बार-बार पुलिस के पास गए, लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। धार्मिक आस्था के कारण निकाले गए जुलूस पर पुलिस ने बर्बता से लाठीचार्ज किया। इसमें कई लोग घायल हो गए। जुलूस में शामिल होने पर पुलिस ने 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं।

कई गांवों में दुर्गा पूजा पर ममता बनर्जी ने लगा रखी है रोक
10 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश से ये बात साबित होती है ममता बनर्जी ने हिंदुओं को अपने ही देश में बेगाने करने के लिए ठान रखी है।  बीरभूम जिले का कांगलापहाड़ी गांव ममता बनर्जी के दमन का भुक्तभोगी है। गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है। मुसलमान परिवारों ने जिला प्रशासन से लिखित में शिकायत की कि गांव में दुर्गा पूजा होने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है, क्योंकि दुर्गा पूजा में बुतपरस्ती होती है। शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन ने दुर्गा पूजा पर बैन लगा दिया।

हिंदुओं को क्यों निशाना बना रही हैं ममता ?
तमाम घटनाओं को देखने के बाद सवाल उठना स्वभाविक है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की सोच किसी मुस्लिम राष्ट्र के शासक की सोच की तरह क्यों होती जा रही है? क्योंकि भारत का संविधान सबको अपनी मान्यताओं के अनुसार पूजा और उपासना की स्वतंत्रता देता है, फिर पश्चिम बंगाल की सरकार जानबूझकर सिर्फ हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ही क्यों आहत करती है ? मोहतरमा ममता बनर्जी क्या देश विरोधी ताकतों के इशारे पर ऐसे देश तोड़ने वाले हथकंडे अपना रही हैं ? राज्य में बेतहाशा बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या और टीएमसी सरकार की हिंदू विरोधी सोच के बीच
कौन सी खिचड़ी पक रही है?

 

बंगाल का भयावह जनसंख्या समीकरण

  • 1947 में हिंदुस्तान के विभाजन के समय, बांग्ला बोलने वाले मुस्लिमों में कुछ भारत के हिस्से में रह गए और बाकी आज के बांग्लादेश के हिस्से में आए।
  • 1947 में पश्चिम बंगाल में 12 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या थी।
  • अभी राज्य में मुस्लिमों की संख्या बढ़कर 27 प्रतिशत के पार पहुंच गई है।
  • 1947 में आज के बांग्लादेश में 27 प्रतिशत हिंदू थे।
  • आज बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या घटकर 8 प्रतिशत रह गई है।

पश्चिम बंगाल बना ‘देशद्रोहियों’ का अड्डा ?
हाल के वर्षों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसमें देखा गया है कि पश्चिम बंगाल में भारत विरोधी ताकतें बहुत तेजी से सक्रिय हैं। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार को इन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों की भनक नहीं है। वो सबकुछ जानते-समझते हुए भी सच्चाई से आंखें मूंदे हुए है। शायद वो सोच  रही है कि कट्टरपंथी ताकतों पर अगर शिकंजा कसा गया तो उनके हाथ से उनका मुस्लिम वोट बैंक खिसक जाएगा। आंकड़े भी बताते हैं कि राज्य में हिंदुओं की जनसंख्या घटती जा रही है, जबकि मुस्लिमों की जनसंख्या विस्फोटक रूप से बढ़ती जा रही है। आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल धीरे-धीरे जेहादियों का अड्डा बनता जा रहा है, जो देश की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।

तुष्टिकरण के लिए तारिक फतेह का सेमिनार रद्द कर दिया
7 जनवरी 2017 को ‘द सागा ऑफ बलूचिस्तान’विषय पर कोलकाता में सेमिनार आयोजित किया गया था। इस सेमिनार में कई जाने-माने लोगों के साथ पाकिस्तानी मूल के लेखक, चिंतक और विश्लेषक तारिक फतेह को भी बुलाया गया था। लेकिन कट्टरपंथी मुल्ले नाराज न हो जाएं इसीलिए राज्य सरकार के दबाव में आयोजकों ने सेमिनार को ही रद्द कर दिया। दरअसल तारिक फतेह इस्लाम धर्म पर बेबाकी से अपनी राय बताते रहे हैं। लेकिन उनकी ये सच्चाई और सहृदयता कठमुल्लों को पचती नहीं है और वो उनके विरोध में फतबे जारी करते रहते हैं। ऐसे में अपने को मुसलमान से बड़ा मुसलमान साबित करने पर तुलीं मुख्यमंत्री अपने राज्य में तारिक फतेह जैसे बेबाक मुसलमान को अपने विचार की अभिव्यक्ति की अनुमति कैसे दे सकती हैं। ये बात अलग है कि जब यही अभिव्यक्ति की आजादी का नारा देश विरोधी ताकतें उठाती हैं तो दीदी का ममतामयी दिल पसीजने लगता है। लेकिन कोई कठमुल्लों पर सवाल उठाए ,इस बात को वो कैसे हजम कर सकती हैं।

तसलीमा नसरीन के मामले में दोहरा चरित्र
हिंदू विरोध की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी खुद को धर्मनिरपेक्ष गैंग की अगुवा साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती हैं। लेकिन उनकी इस छद्म धर्मनिरपेक्षता की पोल-पट्टी खुद मुस्लिम चिंतक और समाज सुधारक ही खोलते रहे हैं। बांग्लादेशी लेखिका और समाज सुधारक तसलीमा नसरीन ने अपने साथ पश्चिम बंगाल में अपनाए जाते रहे दोहरे मापदंडों पर कई बार गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस्लाम में सुधार की आवाज उठाने के चलते पश्चिम बंगाल के कुछ कठमुल्ले उनकी जान लेने तक का फतवा जारी कर चुके हैं, लेकिन ऐसे मामलों में छद्म धर्मनिरपेक्षा के किसी भी सदस्य की तरह ममता भी चुप्पी साधे रखने में ही भलाई समझती हैं। उस समय सच के लिए आवाज बुलंद करने वाली एक महिला चिंतक के बचाव में दो शब्द बोलने तक की हिम्मत वो नहीं जुटा पातीं। क्योंकि उन्हें पता है कि जो तसलीमा नसरीन के सिर पर इनाम की घोषणा करते हैं, उन्हें खुश रखकर ही तो वो सत्ता में बनी रह सकती हैं। उनकी धर्मनिरपेक्षता तो सिर्फ हिंदुओं के अपमान तक सीमित रह गई है, शायद उन्हें लगता है कि उनकी सियासत मुस्लिमों के प्रति उनकी राजनीतिक दीवानगी पर ही टिकी रह सकती है। 

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