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‘वन नेशन वन इलेक्शन’ देश के लिए अच्छा, भारी-भरकम खर्च बचेगा, विकास के कार्य नहीं रुकेंगे, 1967 तक एक साथ होते थे चुनाव

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देश में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर चर्चा तेज हो गई है। केंद्र सरकार ने 1 सितंबर 2023 को वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी गठित की है, जो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में काम करेगी। कमेटी देश में एक साथ चुनाव की संभावनाओं का पता लगाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर देश में एक साथ चुनाव की चर्चा कर चुके हैं। 2014 में तो ये बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा भी रह चुका है। देश में एक साथ चुनाव कराए जाने से अलग-अलग चुनावों में खर्च होने वाली भारी-भरकम राशि बचेगी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। एक साथ चुनाव कराए जाने से प्रशासनिक व्यवस्था सुचारू होगी। चुनाव के दौरान अधिकारी चुनाव ड्यूटी में लगे होते हैं, इससे सामान्य प्रशासनिक काम प्रभावित होते हैं। इसके साथ ही विकास के कार्य प्रभावित नहीं होंगे। देश में साल 1967 तक वन नेशन वन इलेक्शन नीति के आधार पर इलेक्शन करवाए जाते थे। यानि कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक ही साथ होते थे। लेकिन उसके बाद इंदिरा गांधी ने पार्टी के भीतर अंदरूनी बागवत के चलते तानाशाही करके इस परंपरा को तोड़ दिया।

‘एक देश एक चुनाव’- लोकसभा व विधानसभा के चुनाव साथ होंगे
‘एक देश, एक चुनाव’ का आइडिया देश में एक साथ चुनाव कराए जाने से है। इसका मतलब यह है कि पूरे भारत में लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे। दोनों चुनावों के लिए संभवतः वोटिंग भी साथ या फिर आस-पास होगी। वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव सरकार 5 साल का कार्यकाल पूरा होने या फिर विभिन्न कारणों से विधायिका के भंग हो जाने पर अलग-अलग कराए जाते हैं।

देश में 4 बार हो चुके ‘एक देश एक चुनाव’
देश में चार बार लोकसभा चुनाव के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जो 1952, 1957, 1962 और 1967 के लोकसभा चुनाव के साथ हुए हैं। लेकिन उसके बाद आम चुनाव के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने की परंपरा बंद हो गई। तब से मौजूदा समय वाली परंपरा ही चलती आ रही है। लेकिन पुरानी परंपरा को कई बार लागू करने की कोशिश की गई लेकिन किसी भी सरकार को अब तक सफलता नहीं मिल पाई है।

देश का पहला आम चुनाव 1951-1952 के दौरान हुए थे
देश का पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर साल 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच में हुए थे। तब लोकसभा चुनाव के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हुए थे। उस समय लोकसभा की 494 सीटें हुआ करती थीं। पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 365, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को 16, सोश्लिस्ट पार्टी को 12, किसान मजदूर पार्टी को 9, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया को 7, गणतंत्र परिषद को 6, हिंदू महासभा को 4 सीट और निर्दलीयों को 37 सीटों पर जीत हासिल हुई थीं। 1951-52 के आम चुनाव के दौरान जवाहर लाल नेहरू निर्वाचित प्रधानमंत्री बने थे।

साल 1967 तक वन नेशन वन इलेक्शन नीति पर होते थे चुनाव
साल 1967 तक देश में वन नेशन वन इलेक्शन नीति के आधार पर ही इलेक्शन करवाए जाते थे। यानी कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक ही साथ होते थे। हालांकि, बाद में कुछ राज्यों में 1968 और 1969 में चुनाव करवाने पड़े और लोकसभा के चुनाव साल 1970 में हुए। इसके बाद आजतक विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक ही समय पर नहीं हो सके, लेकिन अब केंद्र सरकार फिर से पुरानी नीति को दोहराना चाहती है ताकि बार-बार अलग समय पर चुनाव करवाकर अधिक खर्चे को रोका जा सके।

देश में 1967 के बाद टूट गई वन नेशन-वन इलेक्शन की परंपरा
वन नेशन-वन इलेक्शन या एक देश-एक चुनाव का मतलब हुआ कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हों। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

‘एक देश एक चुनाव’ परंपरा को इंदिरा गांधी ने तोड़ा
पहले लोकसभा चुनाव से लेकर साल 1962 तक कांग्रेस पार्टी ने बहुमत हासिल किया और पंडित नेहरू पीएम बनते रहे। साल 1967 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भी वन नेशन, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर ही चुनाव हुए लेकिन पार्टी के अंदरूनी बागवत के चलते साल 1970 में फिर चुनाव कराने पड़े थे क्योंकि पार्टी के पास सरकार चलाने के लिए बहुमत नहीं थे। जिसको देखते हुए इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग करने के लिए सिफारिश कर दी थी। जिसे स्वीकार करते हुए राष्ट्रपति ने संसद भंग कर दी थी। इसके बाद फिर देश में साल 1971 में आम चुनाव हुए, जो समय से पहले था। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी 352 सीटें जीतकर एक बार फिर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गई थी। इसके बाद से ही लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते आ रहे हैं।

एक साथ चुनाव से विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे
दिसंबर 2015 में लॉ कमीशन ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया था कि अगर देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं। इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए सिफारिश की गई थी कि देश में एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए। पिछले कुछ सालों से देखा गया है कि हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं। चुनाव के चलते इन राज्यों में आचार संहिता लागू कर दी जाती है, जिससे उस दौरान लोक कल्याण की नई योजनाओं पर प्रतिबंध लग जाता है। एक साथ चुनाव होने से केंद्र और राज्य की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता सुनिश्चित होगी।

2019 के चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए
2019 के चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे, यह खर्च अगले चुनाव में 80 हजार करोड़ के पार जा सकता है। विधानसभाओं के चुनाव हर छठे महीने होते हैं, इस फैसले के बाद चुनाव 30 महीने बाद होंगे।

12 राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के आसपास आते हैं
करीब 12 राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के आस-पास ही होते हैं, ऐसे में इन राज्यों में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी। लेकिन अन्य राज्यों में या तो कार्यकाल के दौरान ही चुनाव करवाना पड़ें या फिर चुनावों को थोड़ा शिफ्ट करना होगा ताकि उनकी तारीख लोकसभा चुनाव के आसपास ही आ जाए।

भारत को अब एक राष्ट्र एक चुनाव कोड की आवश्यकता
♦ 2019 के आम चुनावों में, भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों से अधिक खर्च किया।
♦ भारत का आम चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा और महंगा चुनाव है।
♦ भारत ने आम चुनाव 2019 में लगभग 8.6 बिलियन डॉलर खर्च किए।
♦ अमेरिका ने 2016 के राष्ट्रपति और कांग्रेस चुनाव में अनुमानित 6.5 बिलियन डॉलर खर्च किए।
♦ 2019 के राष्ट्रीय चुनाव में 60 करोड़ से अधिक लोगों ने अपने मत डाले, जिसमें चुनाव अधिकारियों ने दस लाख से अधिक मतदान केंद्र स्थापित किए।
♦ अप्रैल से मई तक सात सप्ताह के चरणबद्ध मतदान के दौरान लगभग एक करोड़ अधिकारी इसे पूरा करने में शामिल थे।
♦ अधिकारियों के लिए कुल लागत: एक अरब डॉलर से अधिक – या 2014 में खर्च की गई राशि से लगभग दोगुनी।

वन नेशन-वन इलेक्शन से भारी-भरकम खर्च बचेगा 
♦ लगातार चुनाव के कारण रुकने वाले विकास के कार्य नहीं रुकेंगे।
♦ बार-बार चुनाव पर होने वाला भारी-भरकम खर्च बचेगा।
♦ सुरक्षा बलों की तैनाती पर होने वाले खर्च में कमी होगी।
♦ चुनावी भ्रष्टाचार रुकेगा।

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