भारत और नेपाल न सिर्फ पड़ोसी हैं, बल्कि इतिहास, सभ्यता, संस्कृति, परंपरा, भाषा, बोली समेत अनेक तार आपस में जुड़ते हैं। हजारों वर्षों के इस पावन रिश्ते को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यकाल में नई ऊंचाई प्रदान की। लेकिन नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की एक गलत चाल ने दोनों देशों के रिश्तों तो उलझा दिया है। भारत के कुछ हिस्से को अपना होने का दावा करते हुए नेपाल ने एक नक्शा जारी किया है। नक्शे को लेकर नेपाल ने जिस तरह हड़बड़ी में कदम उठाया है, उससे उसपर सवाल उठने लगे हैं और वह खुद अपने जाल में फंसता नजर आ रहा है।
प्रमाण संकलन के लिए 9 सदस्यीय समिति का गठन
दरअसल नेपाल की कैबिनेट ने गुरुवार को अपने दावे से संबंधित प्रमाण जुटाने के लिए एक समिति गठन का फैसला किया। नेपाल सरकार के प्रवक्ता युवराज खतिवडा ने कैबिनेट बैठक का फैसला सुनाते हुए पत्रकार सम्मेलन में कहा कि सरकार ने भारत के साथ सीमा विवाद पर ठोस प्रमाण और दस्तावेज जुटाने के लिए 9 सदस्यों वाली विशेषज्ञों की एक टीम का गठन किया है।
कूटनीतिक मामलों के जानकारों को हुई हैरानी
सरकार के इस फैसले पर कूटनीतिक मामलों के जानकार हैरानी में हैं। नेपाल के जाने माने कूटनीतिक विशेषज्ञ डॉक्टर अरुण सुवेदी ने कहा कि यह आश्चर्य कि बात है कि जो काम पहले करना चाहिए वो काम अब किया जा रहा है। पहले नक्शा प्रकाशित कर फिर संसद में उस पर सरकार संशोधन प्रस्ताव लेकर आई और अब प्रमाण ढूंढने का काम कर रही है। जबकि पहले प्रमाण जमा कर कूटनीतिक वार्ता करनी चाहिए थी।
नेपाल के पास दावे से संबंधित ठोस प्रमाण नहीं
सरकार के इस फैसले से एक बात तो तय हो गई है कि नेपाल अब तक भारत के जिन हिस्सों पर दावा कर रहा था उसका ठोस प्रमाण या दस्तावेज उसके पास नहीं हैं। यानि नेपाल अब तक जो नक्शेबाजी कर रहा था वह बिना किसी सबूत या प्रमाण के ही कर रहा था।
सवालों के घेरे में नेपाल सरकार
नेपाल की ओली सरकार के इस फैसले से कई सवालों के घेरे में आ गई है।
पहला सवाल– जब नेपाल के पास जमीन का दस्तावेज है ही नहीं तो उसने नक्शा निकालने में इतनी जल्दबाजी क्यों की?
दूसरा सवाल– बिना प्रमाण और दस्तावेज के नेपाल ने किसके उकसाने पर यह हरकत की है?
तीसरा सवाल– क्या नेपाल के द्वारा जानबूझकर इस समय सीमा विवाद किसी और को खुश करने और भारत को परेशान किए जाने के भारतीय सेना प्रमुख के आरोप को इससे बल मिला है?
चौथा सवाल– क्या नेपाल की ओली सरकार ने अपनी नाकामी, आंतरिक कलह और डगमगाती सत्ता को बचाने के लिए यह कदम उठाया था?
अपनी सत्ता बचाने के लिए नेपाल के पीएम ओली ने चली चाल
इन सवालों के जवाब तलाशे जा रहे हैं। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि नेपाल में इस समय वामपंथी सरकार है, जिसके प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली है। ओली का भारत विरोधी रुख जगजाहिर है। इसलिए इसमें दो राय नहीं है कि ओली ने सत्ता पर कमजोर होती पकड़ को मजबूत करने के लिए भारत के साथ सीमा विवाद की चाल चली। ओली इस दौरान पार्टी में अपने खिलाफ खड़े लोगों और विपक्षी दलों, दोनों को साथ मिला लिया और इस नक्शे को पारित करने के लिए एकजुटता दिखने लगी। दिलचस्प बात यह है कि एक महीने पहले तक यही विरोधी खेमा ओली से इस्तीफे की मांग कर रहा था।राजनीतिक जानकार इससे अंदाजा लगा रहे हैं कि ओली ने भारत के साथ नक्शे का मुद्दे इतनी आक्रामकता से इसलिए उठाया था, ताकि वह अपनी कुर्सी बचा सकें।
देश-विरोधी होने के डर से विपक्षी दलों ने दिया साथ
जब देश की संसद में संशोधित नक्शा पारित कराने की बात आई तो सभी दलों के लिए एक साथ आने को छोड़कर कोई और विकल्प नहीं बचा था। नक्शे का मुद्दा क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का था। ऐसे में पीएम ओली के इस्तीफे की मांग करने वाला कोई भी शख्स देश-विरोधी हो जाता है। हालांकि, विपक्षी दलों के अंदर के सूत्रों का दावा है कि ओली ने भले ही फिलहाल सबको चुप करा दिया हो, आगे जाकर उन्हें कमजोर आधार का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
नेपाल से मतभेद को तूल नहीं देना चाहता भारत
नेपाल के साथ मतभेद को अपनी तरफ से भारत तूल नहीं देना चाहता। इसलिए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा के आरोपों पर भारत ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है। गुरुवार (11 जून) को नेपाल के आरोपों पर कई सवालों के बावजूद भारतीय विदेश मंत्रालय ने सधी हुई प्रतिक्रिया दी। भारत का ध्यान नेपाल के घटनाक्रम पर है, लेकिन नक्शा विवाद में भारत नेपाल के आखिरी रुख का इंतजार कर रहा है।
भारत नेपाल के साथ संबंधों को महत्व देता है
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, “हमने इन मुद्दों पर अपनी स्थिति पहले ही स्पष्ट कर दी है। भारत नेपाल के साथ अपने सभ्यता, सांस्कृतिक और मैत्रीपूर्ण संबंधों को बहुत महत्व देता है। द्विपक्षीय साझेदारी के तहत भारत ने हाल के वर्षों में नेपाल में मानवीय पहलुओं, विकास और कनेक्टिविटी पर फोकस किया है। भारत ने विभिन्न परियोजनाओं में अपनी सहायता और सहयोग का विस्तार किया है।”
भारत-नेपाल के बीच मतभेद की वजह
भारत के लिपुलेख में मानसरोवर लिंक बनाने को लेकर नेपाल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उसका दावा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिपिंयाधुरा उसके क्षेत्र में आते हैं। नेपाल ने इसके जवाब में अपना नया नक्शा जारी कर दिया जिसमें ये तीनों क्षेत्र उसके अंतर्गत दिखाए गए। इस नक्शे को जब देश की संसद में पारित कराने के लिए संविधान में संशोधन की बात आई तो सभी पार्टियां एक साथ नजर आईं। इस दौरान पीएम केपी शर्मा ओली ने भारत को लेकर सख्त रवैया अपनाए रखा।