अमेरिका जैसे विकसित देश की बैंकिंग प्रणाली गंभीर संकट का सामना कर रही है। पहले सिलिकॉन वैली बैंक फिर सिग्नेचर बैंक और उसके बाद फर्स्ट रिपब्लिक बैंक पर ताला लग गया। अमेरिका के तीन बड़े बैंक डूब चुके हैं, जिसका कंबाइंड एसेट करीब 530 अरब डॉलर है। इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम पर कितना बड़ा संकट है, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व से भारत की बैंकिंग प्रणाली आज न केवल मजबूत बनी हुई है बल्कि दुनिया के देश इसकी प्रशंसा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जब 2014 में देश की सत्ता संभाली तब उन्हें विरासत में एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट) के बोझ से लदे खस्ताहाल बैंकिंग सिस्टम मिला था। लेकिन पीएम मोदी के दूरदर्शी विजन से आज भारतीय बैंक एनपीए से तो उबर ही रहे हैं साथ ही लगातार मजबूत हो रहे हैं। मोदी सरकार और आरबीआई की तरफ से एनपीए को प्राप्त करने और कम करने के लिए तेजी से उपाय किए गए। फंसे कर्जों का बोझ कम करने के लिए किए गए उपायों से बैंक पिछले नौ साल में 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि की वसूली करने में सफल रहे हैं।
बैंकों ने नौ साल में 10 लाख करोड़ से ज्यादा बकाया वसूले
पिछले नौ साल में मोदी सरकार और आरबीआई की सख्ती के बाद बैंकों ने फंसे हुए कर्ज पर तेजी से काम किया है। फंसे हुए कर्ज का बोझ कम करने के लिए सरकार और रिजर्व बैंक के स्तर पर किए गए उपायों से बैंक पिछले नौ साल में 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि की वसूली करने में सफल रहे हैं। वित्त राज्य मंत्री भागवत किसनराव कराड ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एनपीए की वसूली और उन्हें कम करने के लिए उठाए गए कदमों के जरिये बैंकों ने पिछले नौ साल के दौरान 10,16,617 करोड़ रुपये की कुल वसूली की है।
मार्च, 2023 में एनपीए घटकर 2,66,491 करोड़ रुपये रह गया
आरबीआई का आंकड़ा बताता है कि बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के 20 करोड़ रुपये या उससे अधिक फंसे कर्जों की मात्रा पिछले पांच साल में तेजी से घटी है। वित्त वर्ष 2018-19 के अंत में बकाया एनपीए (NPA) 7,09,907 करोड़ रुपये था लेकिन मार्च, 2023 में यह घटकर 2,66,491 करोड़ रुपये रह गया।
फंसे कर्जों की वसूली के लिए कई उपाय किए गए
कुछ दिनों पहले लोकसभा में वित्त राज्यमंत्री भागवत कराड ने बताया था कि फंसे कर्जों की वसूली के लिए हाल ही में कई संशोधन किए गए हैं। इसी के तहत ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) का क्षेत्राधिकार 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया है। इससे डीआरटी अधिक मूल्य वाले मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकेगी।
बैंक रिकवरी के लिए ट्रिब्यूनल और कोर्ट का सहारा ले रहे
राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में निर्मला सीतारमण ने कहा कि RBI के नियमों के तहत बैंकों ने पैसे को बट्टा खाता में डाला है। बैंक इसे रिकवर करने के लिए ट्रिब्यूनल और कोर्ट का सहारा ले रहे हैं। किसी को माफी नहीं दी जाएगी।
बैंक बट्टे खाते में इस वजह से डालता है पैसा
कर्ज लेने के बाद भी जब कोई कंपनी जानबूझकर पैसे जमा नहीं करती, तो बैंक उसे विलफुल डिफॉल्डर घोषित कर देता है। साथ ही उसके कर्ज के पैसों को बट्टा खाता में डाल देता है। कर्ज के बट्टे खाते में डालने से बैंकों के मुनाफे पर असर होता है। बैंकों को अपना बही खाता क्लीन दिखाना होता है। इस वजह से कई कंपनियों का लोन बट्टे खाते में डाला जाता है। हालांकि, इसकी एक प्रक्रिया है। कई बार लोन लेने वाली कंपनियां दिवाला हो जाती है। कंपनी के मालिक देश छोड़कर चले जाते हैं। ऐसे समय में भी बैंक कर्ज को बट्टे खाते में डाल देता है।
मोदी सरकार ने बैंकिंग सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए कई नीतिगत उपाय किए। इस पर एक नजर-
मोदी सरकार ने नीतिगत सुधार कर बैंकिंग सिस्टम को दुरुस्त किया
मोदी सरकार ने जब 2014 में सत्ता संभाली तो विरासत में कमजोर बैंकिंग का बोझ मिला था। इसमें एनपीए, अटकी हुई आर्थिक परियोजनाएं, औपचारिक बैंकिंग से 50 प्रतिशत भारतीयों का का दूर होना शामिल था। बैंकों के फंसे हुए ऋण को हासिल करने की जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। इसके बाद मोदी सरकार में भारत की अर्थव्यवस्था को उल्लेखनीय बढ़ावा मिला है, इस वृद्धि का बड़ा श्रेय बैंकिंग क्षेत्र को भी जाता है। पीएम मोदी के नेतृत्व में कई नीतिगत सुधार किए गए जिससे भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जो दिक्कतें थी वह दूर हुई है।
जन धन योजना और दिवाला कानून लाया गया
मोदी के कार्यकाल के शुरुआती दो वर्षों में, प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) और दिवाला और दिवालियापन अधिनियम जैसी पहल शुरू की गईं। इनका उद्देश्य बैंकिंग पहुंच का विस्तार करना और संकटग्रस्त ऋणों के समाधान के लिए कानूनी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना था। जन धन योजना ने 99.74 प्रतिशत परिवारों को कवर करते हुए 11.50 करोड़ खाते खोलकर वित्तीय समावेशन के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड हासिल किया। इससे आबादी का एक बड़ा हिस्सा बैंकिंग सेवाओं के दायरे में आ गया, जिससे सार्वजनिक योजनाएं पहुंचाना आसान हो गया।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय महत्वपूर्ण सुधार
मोदी सरकार द्वारा शुरू किया गया अगला प्रमुख सुधार कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय था। मोदी सरकार ने घाटे से निपटने और परिचालन में सुधार के लिए 10 सार्वजनिक बैंकों को 4 में विलय कर दिया, जिनकी संपत्ति 55.8 ट्रिलियन रुपये है, जो भारतीय बैंकिंग उद्योग का 56 प्रतिशत है।
कांग्रेस काल में बढ़ा एनपीए, अब घट रहा
जब भी बैंकों को हुए नुकसान की बात आती है तो आपने ‘NPA’ के बारे में जरूर सुना होगा। एनपीए यानि नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानि फंसा हुआ कर्ज। सीधे शब्दों में कहें तो लोन लेने के बाद जब कर्जदाता किस्त चुकाने में सक्षम नहीं होते हैं तो बैंकों की रकम फंस जाती है और बैंक इसे एनपीए घोषित कर देता है। कांग्रेस शासन काल में बैंकों के एनपीए में बढ़ोतरी हुई थी लेकिन अब हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं और 2022 में यह घटकर 5 प्रतिशत पर आ गया था।
एनपीए से निपट रही नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी
मोदी सरकार द्वारा उठाया गया एक और बड़ा कदम बैंकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के मुद्दे के समाधान के लिए नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (NARCL) की शुरुआत की है, जिसे आमतौर पर बैड बैंक के रूप में जाना जाता है। एक एग्रीगेटर के रूप में कार्य करते हुए, एनएआरसीएल बैंकिंग संस्थानों से संकटग्रस्त ऋण और अन्य होल्डिंग्स प्राप्त करने के लिए जिम्मेदार है। इस इकाई को परिसंपत्तियों को स्थानांतरित करने से शीघ्र समाधान संभव हो जाता है जबकि बैंक मुख्य परिचालन पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
एनपीए घटकर दशक के निचले स्तर 3.8 प्रतिशत पर रहेगा
बैंकों की ग्रॉस नॉन-परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए वित्त वर्ष 2023-24 के अंत में घटकर दशक के निचले स्तर 3.8 प्रतिशत पर आ जाएंगी। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का अनुमान है कि हाल में खत्म हुए वित्त वर्ष 2022-23 के अंत में एनपीए घटकर 4.2 प्रतिशत रह जाएगा। इससे एक साल पहले यह आंकड़ा 5.9 प्रतिशत था। इससे पहले अनुमान जताया गया था कि 2023-24 के अंत में एनपीए चार प्रतिशत रहेगा। यह मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए कई सुधारों का संयुक्त परिणाम है।
दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 लागू
सरकार ने दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 भी लागू किया है। यह बोर्ड को निलंबित करने, प्रमोटर की शक्ति हटाने और कंपनियों और व्यक्तियों के लिए समयबद्ध ऋण वसूली की अनुमति देता है।
एसबीआई को 16,694.5 करोड़ का रिकॉर्ड तोड़ मुनाफा
इन सभी सुधारों के कारण, बैंकिंग क्षेत्र को यूपीए काल के दौरान खराब प्रबंधन के कारण उत्पन्न तनाव से राहत मिलने के संकेत मिल रहे हैं। नवीनतम यह है कि एसबीआई ने मार्च 2023 को समाप्त तिमाही के लिए ₹16,694.5 करोड़ का रिकॉर्ड तोड़ मुनाफा कमाया। Q4FY23 में शुद्ध लाभ 83 प्रतिशत बढ़कर ₹16,695 करोड़ हो गया, जो FY23 के ₹50,000 करोड़ को पार कर गया, जिससे यह यह मील का पत्थर हासिल करने वाला पहला भारतीय बैंक बन गया।
पंजाब नेशनल बैंक का मुनाफा 1,741.11 करोड़ हो गया
पंजाब नेशनल बैंक का Q4FY23 मुनाफा 610.5% बढ़कर ₹1,741.11 करोड़ हो गया, जबकि कुल आय 31.8 प्रतिशत बढ़कर ₹28.13 हजार करोड़ हो गई। तिमाही के दौरान कम प्रावधानों और कुल आय में वृद्धि के कारण बैंक के मुनाफे में बढ़ोतरी हुई। पीएनबी का सकल एनपीए अनुपात Q4FY22 में 11.78 प्रतिशत से बढ़कर Q4FY23 में 8.74 प्रतिशत हो गया, और शुद्ध NPA पिछले वर्ष की समान तिमाही में 4.8 प्रतिशत से घटकर Q4 में 2.72 प्रतिशत हो गया।
As the economy of India gets a significant boost under Modi Govt, major credit for this growth goes to the banking sector.
Here’s a #thread 🧵explaining major policy reforms done under PM Modi’s leadership which led to easing stress in the Indian banking system. (1/15) pic.twitter.com/R2HwSrUZWl
— Political Kida (@PoliticalKida) June 19, 2023
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का शुद्ध लाभ 93 प्रतिशत बढ़ा
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का Q4FY23 शुद्ध लाभ सालाना आधार पर 93 प्रतिशत बढ़कर ₹2,782 करोड़ हो गया, जो मजबूत शुद्ध ब्याज आय वृद्धि और बट्टे खाते में डाले गए खातों से मजबूत वसूली से प्रेरित है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ने एक साल पहले की तिमाही (14/15) में ₹1,440 करोड़ का शुद्ध लाभ दर्ज किया था।
यूपीए के दौरान प्रभावशाली लोगों को आसानी से मिला लोन
जब कोई बैंक ऋण देता है तब वह उधार लेने वाले की व्यवसाय योजना या उधारकर्ता के क्रेडिट इतिहास की जांच करते हैं। लेकिन भारत में, कई बैंक सरकारी नियंत्रण में हैं और सीधे वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं और यहां क्रोनी कैपिटलिज्म आता है। यूपीए कार्यकाल के दौरान, प्रभावशाली लोगों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से ऋण प्राप्त करना आसान था। वे पहुंच के बल पर लोन पा जाते थे। ऐसे ऋणों को मंजूरी देने से पहले बैंकों द्वारा कोई जोखिम मूल्यांकन नहीं किया गया।
बैंकों की मनमानी पर लगाम से घोटालेबाज घबराए
मोदी सरकार ने बैंकों की मनमानी पर लगाम कसनी शुरू की। इससे विपक्षी नेता घबराए हुए हैं, क्योंकि जांच-पड़ताल का शिकंजा अब उनके चहेतों और मनमाने ढंग से वित्त विभाग का दुरुपयोग करने वाले पूर्व मंत्रियों तक भी पहुंच रहा है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम की गिरफ्तारी इसका सुबूत है। बैंकों में घपले-घोटालों से पता चलता है कि हमारा बैंकिंग प्रशासन और उसकी निगरानी व्यवस्था किस कदर भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी। सरकारी बैंक रिजर्व बैंक और उसके ऑडिटरों की निगरानी में काम करते हैं जबकि भ्रष्टाचारियों की संपत्ति को जब्त करने का कानून भी कांग्रेस राज में संसद में पारित होने के लिए रखा नहीं जा सका था।
पीएम मोदी ने संकटग्रस्त प्रणाली को समृद्ध प्रणाली में बदला
बैंकिंग क्षेत्र के मजबूत प्रदर्शन ने आर्थिक विकास को गति दी है। मोदी सरकार ने यूपीए से विरासत में मिली एक संकटग्रस्त प्रणाली को एक समृद्ध प्रणाली में बदल दिया है। अब यह भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य में योगदान देने के लिए तैयार है।