प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में तरक्की कर रहा है। आज भारत जहां विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, वहीं ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। तेजी से बदलते वैश्विक घटनाक्रम और भूराजनीति में चीन और रूस अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। ऐसे समय में भारत स्पेस इकोनॉमी में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभर कर सामने आया है और अवसर का पूरा लाभ उठाने की पूरी कोशिश कर रहा है। भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड एलोन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स को कड़ी टक्कर दे रहा है। इसके साथ ही कमर्शियल सैटेलाइट लॉन्चिंग में दूसरे देशों का भरोसा भी जीत रहा है।
ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में हिस्सेदारी बढ़ाने पर जोर
दरअसल, 2020 में ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी का आकार 447 अरब डॉलर था, जो 2025 तक बढ़कर 600 अरब डॉलर हो जाएगा। वहीं 2020 में ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी में भारत का हिस्सा करीब 2.6 प्रतिशत यानी 9.6 अरब डॉलर के बराबर था। अब अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने और अवसर का लाभ उठाने के लिए न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इंडियन स्पेस एसोसिएशन और अर्न्स्ट एंड यंग की ‘डेवलपिंग द स्पेस इको सिस्टम इन इंडिया’ के नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में भी कहा गया था कि स्पेस लॉन्चिंग का बाजार 2025 तक बहुत ही तेजी से बढ़ेगा। इस रिपोर्ट में भारत में इसके सालाना 13 प्रतिशत के हिसाब से वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
RLV LEX मिशन की सफलता से काफी सस्ती होगी सैटेलाइट लॉन्चिंग
अवसर का लाभ उठाने के लिए तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं। इसकी एक झलक 2 अप्रैल को देखने को मिली, जब भारत ने दोबारा उपयोग में लाए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान की स्वतः लैंडिंग का मिशन सफलतापूर्वक पूरा कर लिया। इस Reusable Launch Vehicle Autonomous Landing Mission (RLV LEX) को देखकर हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। इसरो ने ये कामयाबी डीआरडीओ और इंडियन एयर फोर्स के सहयोग से कर्नाटक में चित्रदुर्ग के एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज (ATR) में हासिल किया। इस रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के इस्तेमाल से सैटेलाइट लॉन्चिंग काफी सस्ती हो जाएगी। इससे सैटेलाइट लॉन्चिंग के लिए दूसरे देश भी भारत की तरफ आकर्षित होंगे और स्पेस कारोबार में हिस्सेदारी बढ़ेगी।
A proud day for the Indian Space Exploration programme! 🇮🇳
Congratulations to @isro, @DRDO_India & @IAF_MCC for successfully conducting the Reusable Launch Vehicle Autonomous Landing Mission (RLV LEX) from the Aeronautical Test Range (ATR) in Karnataka. pic.twitter.com/iOxY9ineaz
— Jyotiraditya M. Scindia (@JM_Scindia) April 2, 2023
स्पेस कारोबार में छलांग, 36 सैटेलाइट सफलतापूर्वक लॉन्च
पिछले महीने 26 मार्च को स्पेस करोबार में न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ने बड़ी छलांग लगाई। इसरो की इस कंपनी ने दूसरी बार अपने सबसे भारी रॉकेट एलवीएम-3 के जरिए 36 सैटेलाइट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। इन सभी सैलेटाइटों को उपग्रह संचार कंपनी वनवेब ने तैयार किया था। इससे पहले 23 अक्टूबर, 2022 को न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ने वनवेब के ही 36 उपग्रहोंं को लॉन्च किया था। इसके लिए न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड ने वनवेब के साथ 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा का करार किया था। यह इसरो के सबसे बड़े करारों में से एक था। गौरतलब है कि रूस के इनकार के बाद ही वनबेव ने भारत के न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड के साथ 72 सैटेलाइट लॉन्च करने का करार किया था।
https://t.co/ZXFUTJtDDH#IsroLaunch
— naveen m (@navi0885) March 30, 2023
भू-राजनीति और विदेशी कंपनियों की विफलता से मिल रहे बेहतर अवसर
अब तक एलन मस्क के स्पेसएक्स के साथ ही रूस और चीन वाणिज्यिक तौर से सैटेलाइट लॉन्च करने के बड़े खिलाड़ी रहे हैं। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन की विस्तारवादी नीति की वजह से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में काफी बदलाव आया है। आज रूस और चीन अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं। इसका असर ग्लोबल स्पेस इकोनॉमी पर भी पड़ रहा है। भारत खुद को स्पेसएक्स के विकल्प के रूप में पेश कर रहा है। वहीं फ्रांस के एरियनस्पेस को अपने नए रॉकेट को तैयार करने में परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। इसके अलावा ब्रिटिश कारोबारी रिचर्ड ब्रैनसन से जुड़ी सैटेलाइट लॉन्च कंपनी वर्जिन ऑर्बिट होल्डिंग्स इंक ने जनवरी में लॉन्च की विफलता के बाद अपने परिचालन को अनिश्चित काल के लिए बंद करने का ऐलान किया था।