कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी की 136 दिन और 3500 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा का समापन हो चुका है। अब इस यात्रा की सफलता और असफलता को लेकर बहस छिड़ गई है। स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस इस यात्रा को सफल बताने के लिए खूब तर्क-वितर्क का सहारा ले रही है। लेकिन उसकी सफलता के सारे तर्क उस समय धराशायी हो जाते हैं, जब सवाल उठता है कि देश को जोड़ने की बात छोड़िए कांग्रेस विपक्षी दलों को अपने साथ जोड़ में कितना कामयाब रही। इस सवाल का जवाब कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है। कांग्रेस और राहुल की पूरी मेहनत पर आखिरी समय पानी फिर गया, जब अधिकांश विपक्षी दलों ने यात्रा के समापन समारोह से किनारा कर लिया और राहुल गांधी को विपक्ष का नेता नहीं मानने का स्पष्ट संदेश दे दिया।
कांग्रेस की विपक्षी एकजुटता की मुहिम को जोरदार झटका
दरअसल कांग्रेस ने यात्रा के समापन के अवसर पर 30 जनवरी, 2023 को श्रीनगर के शेर ए कश्मीर स्टेडियम में बड़ी रैली का आयोजन किया था। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 23 राजनीतिक दलों के प्रमुखों को पत्र लिखकर इस समापन कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता दिया था। लेकिन समापन कार्यक्रम में 8 दलों के नेता ही शामिल हुए। विपक्ष के कई बड़े नेताओं ने रैली में शामिल होने से मना कर दिया। भारत जोड़ो यात्रा के समापन कार्यक्रम में आने से समाजवादी पार्टी, तेलगू देशम पार्टी और तृणमूल कांग्रेस आने से पहले ही मना कर चुकी थीं। बिहार में कांग्रेस के समर्थन से चल रही सरकार के दो प्रमुख दल आरजेडी और जेडीयू के नेताओं का शामिल नहीं होना चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस की विपक्षी एकजुटता की मुहिम को जोरदार झटका लगा है।
अनुच्छेद 370 की वापसी के समर्थक दलों का मिला साथ
यात्रा के समापन समारोह में शामिल होने वाले दलों के नेताओं में डीएमके से तिरुची सिवा, सीपीआई महासचिव डी राजा, नेशनल कॉन्फ्रेंस से उमर अब्दुल्ला, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी से महबूबा मुफ्ती, आरएसपी से एनके प्रेमचंद्रन और आईयूएमएल के नवसा कनी शामिल है। इसके अलावा जेएमएम और वीसीके भी कार्यक्रम का हिस्सा बने थे। भारी बर्फबारी के बीच हुए समापन कार्यक्रम में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने कहा कि देश को वास्तव में इस यात्रा की जरूरत थी। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी इस कार्यक्रम में मौजूद रहीं। मुफ्ती ने कहा, ‘आज, पूरा देश राहुल गांधी में आशा की किरण देख सकता है’। गौरतलब है कि उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती अनुच्छेद 370 की वापसी के समर्थक है। ऐसे में भारत से जुड़ने के प्रति वे कितना गंभीर है यह पूरा देश जानता है।
विपक्ष का नेतृत्व करने के कांग्रेस की दावेदारी पर उठे सवाल
कांग्रेस को अपनी ताकत दिखाने का एक बड़ा अवसर था, लेकिन कई दलों के नेताओं ने समारोह से किनारा कर कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेरा दिया। जिन बड़े विपक्षी दलों ने कांग्रेस को निराश किया, उनमें अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी, ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), बसपा, आम आदमी पार्टी जैसे दल शामिल थे। एक्सपर्ट कहते हैं कि इन दलों के इस कार्यक्रम में शामिल होने के उम्मीद थी भी नहीं। टीएमसी से लेकर आप तक के नेता खुद को प्रधानमंत्री पद के दौड़ में रखना चाहते हैं। इनमें से ज्यादातर दल कांग्रेस की जमीन पर ही बढ़े हैं। विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए अब कांग्रेस या राहुल गांधी के बजाय दूसरे दल और नेता खड़े हो गए हैं। इनमें दो सबसे बड़े नाम अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी हैं। बिखरा विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती नहीं पेश कर सकता है। ऐसा मानने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।