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सिर्फ राहुल नहीं, प्रियंका भी साबित हो रही हैं पार्टी के लिए पनौती! देखिए कैसे कांग्रेस-मुक्त हो रहा देश

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चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में से तीन में जीत के बाद अब 12 राज्यों में बीजेपी की अपनी सरकार है। इसके साथ ही चार राज्यों में बीजेपी गठबंधन सरकार में भी शामिल है। जबकि कांग्रेस राजस्थान और छत्तीसगढ़ हारने के बाद अब सिर्फ तीन राज्यों हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में सिमट कर रह गई है। विधानसभा के ताजा नतीजों से साफ है कि देश अब कांग्रेस मुक्त भारत की ओर अग्रसर है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस दिन पर दिन कमजोर होती जा रही है। वर्तमान में भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, लेकिन ये सभी जानते हैं कि मनमोहन सिंह की तरह उनका भी संचालन रिमोट कंट्रोल से हो रहा है। पार्टी के लिए गांधी परिवार ही सब कुछ है। पार्टी के सभी नेताओं के लिए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ही सब कुछ हैं।

पार्टी के लिए पनौती हैं राहुल और प्रियंका वाड्रा!
चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद लोग राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी के लिए पनौती मानने लगे हैं। चुनावी राज्यों में जहां-जहां राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने रैलियां की, ज्यादातर में पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। प्रियंका गांधी वाड्रा तो राहुल गांधी से भी बड़ा पनौती साबित हुई है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में करीब 23 रैलियां कीं। प्रियंका ने मध्य प्रदेश में 11, राजस्थान में 7 और छत्तीसगढ़ में 5 जनसभाएं कीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। छत्तीसगढ़ में प्रियंका वाड्रा ने 5 रैली के साथ रायपुर में एक रोड शो भी किया, लेकिन पार्टी का प्रदर्शन इन सभी जगहों पर सिफर रहा। कांग्रेस को इन सभी जगहों पर हार मिली। करीब-करीब इसी तरह की स्थिति राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी रही। पार्टी को ज्यादातर जगहों पर हार का मुंह देखना पड़ा। प्रियंका वाड्रा ने तीनों राज्यों में जमकर चुनाव प्रचार करने के बाद भी कांग्रेस को कुछ हासिल नहीं हुआ। उलट राजस्थान और छत्तीसगढ़ से सत्ता भी हाथ से निकल गई।

आइए जानते है कि किस तरह उनके नेतृत्व में कांग्रेस मुक्त होने की दिशा में पार्टी आगे बढ़ रही है…

सोनिया-राहुल- प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस मुक्त भारत की ओर पार्टी
कांग्रेस पार्टी में तकरीबन सभी निर्णय राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की सहमति से ही लिए जाते हैं। इनके नेतृत्व में पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही पतन की ओर है। लोकसभा-विधानसभा से लेकर नगर निकायों के चुनावों तक में पार्टी को लगातार मुंह की खानी पड़ रही है। 2014 के बाद से अब तक 9 साल में 58 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, इनमें से 47 चुनावों में कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस अब सिर्फ तीन राज्यों तक में सिमट कर रह गई है और झारखंड में पार्टी छोटे सहयोगी दल की भूमिका में है। राहुल गांधी के कारण पार्टी के सैकड़ों जनाधार वाले नेता पार्टी छोड़कर बाहर जा चुके हैं।

2012 में शुरू कांग्रेस की हार का सिलसिला
लगातार होती हार पर हार राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक समझ पर सवालिया निशान खड़े कर रही हैं। दरअसल वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस मजबूत बनकर उभरी तो यूपी से 21 सांसदों के जीतने का श्रेय राहुल गांधी को दिया गया। 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी खुले शब्दों में कहा कि वे राहुल गांधी के नेतृत्व में काम करने को तैयार हैं, लेकिन राहुल को नेतृत्व दिये जाने की बात ही चली कि पार्टी के बुरे दिन शुरू हो गए। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज 28 सीटें आई। वहीं पंजाब में अकाली-भाजपा का गठबंधन होने से वहां दोबारा सरकार बन गई। ठीकरा कैप्टन अमरिंदर सिंह पर फोड़ा गया। दूसरी ओर गोवा भी हाथ से निकल गया। हालांकि हिमाचल और उत्तराखंड में जैसे-तैसे कांग्रेस की सरकार बन तो गई, लेकिन वह भी हिचकोले खाती रही। इसी साल गुजरात में भी हार मिली और त्रिपुरा, नगालैंड, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की करारी हार हुई।

2014: लोकसभा में 44 सीटों पर सिमट गई, 8 चुनावों में सिर्फ एक जीत पाए
दरअसल कांग्रेस के लिए यह विश्लेषण का दौर है, लेकिन वह वंशवाद और परिवारवाद के चक्कर में इस विश्लेषण की ओर जाना ही नहीं चाहती है। पार्टी गांधी परिवार से बाहर देखने के लिए तैयार नहीं है। 2014 में पार्टी की किरकिरी हर किसी को याद है। जब 44 सीटों पर जीत मिलने के साथ ही पार्टी प्रमुख विपक्षी दल तक नहीं बन पाई। गुजरात के सीएम के बाद पीएम मोदी इसी साल देश के प्रधानमंत्री बने। साल 2014 में 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हुए। इनमें हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम शामिल हैं। इन 8 राज्यों में से केवल अरुणाचल में कांग्रेस सरकार बना सकी। लेकिन ये सरकार भी बचा नहीं पाई।

2015: दो राज्यों में हुए चुनाव, दिल्ली में कांग्रेस का सूपड़ासाफ, बिहार में मिली सत्ता गंवा दी
साल 2015 में बिहार और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। दिल्ली में तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। 70 विधानसभा सीटों में से एक पर भी कांग्रेस नहीं जीत सकी। उसी साल बिहार में भी चुनाव हुए। आरजेडी और जेडीयू के साथ गठबंधन कर सरकार में शामिल हो गई, लेकिन महागठबंधन की सरकार चलाने का सलीका नहीं आया। कांग्रेस की हठधर्मिता के चलते जुलाई 2017 में नीतीश कुमार की जेडीयू ने गठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी के साथ मिलकर अलग सरकार बना ली।

2016: पांच राज्यों में चुनाव, सिर्फ एक में मिली जीत 
2016 में असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में चुनाव हुए। असम और केरल में कांग्रेस की सरकार थी। चुनाव हुए तो कांग्रेस के हाथ से असम और केरल निकल गया। केवल छोटे-से पुडुचेरी में कांग्रेस की जीत हुई और सरकार बनी। दरअसल कांग्रेस ने सिर्फ बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के विरोध को ही सबसे बड़ा काम मान लिया है। इस कारण देश की जनता के मन में कांग्रेस के प्रति नकारात्मक भाव पैदा हो गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी कांग्रेस ने कोई खास सबक नहीं सीखा। उल्टे राहुल गांधी अपने फटे कुर्ते के प्रदर्शन की बचकानी हरकतें करते रहें, लेकिन उन्हें कोई रोकने तो दूर, टोकनेवाला भी नहीं मिला।

2017 : सात राज्यों में चुनाव, सिर्फ पंजाब में मिली जीत
साल 2017 में 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। पीएम मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत का असर हुआ और कांग्रेस ने हिमाचल और मणिपुर में सत्ता गंवा दी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में पीएम मोदी के नेतृत्व के चलते बीजेपी को शानदार जीत मिली। गोवा में कांग्रेस आपसी गुटबाजी के चलते सरकार ही नहीं बना पाई। सिर्फ पंजाब में कांग्रेस जीत सकी। पंजाब में भी पार्टी की जीत कैप्टन अमरिंदर सिंह की विश्वसनीयता और मेहनत के कारण हुई। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी को चमत्कारिक जीत और कांग्रेस को अब तक की सबसे करारी हार मिली। सवा सौ साल से भी किसी पुरानी पार्टी के लिए इससे बड़े शर्म की बात और क्या हो सकती है कि देश के उस प्रदेश में जहां कभी उसका सबसे बड़ा जनाधार रहा हो, वहीं पर उसे 403 में से सिर्फ 7 सीटें मिली हों।

2018 : इस साल हुए 9 चुनाव, कांग्रेस दो राज्यों में सत्ता हासिल करने के बाद संभाल नहीं पाई
वर्ष 2018 के मार्च में त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में चुनाव हुए। कांग्रेस एक भी राज्य में नहीं जीत सकी। इसके बाद मई में कर्नाटक में चुनाव हुए, जहां जनता दल (सेक्युलर) के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन बगावत के कारण सालभर में ही सरकार गिर गई और बीजेपी सत्ता में आ गई। दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव हुए। तेलंगाना छोड़कर तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन मध्य प्रदेश में 13 महीने में ही बगावत के कारण कांग्रेस की सरकार गिर गई।

2019 : नरेन्द्र मोदी को ज्यादा ताकत से दोबारा प्रधानमंत्री बनाया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जन कल्याणकारी योजनाओं के चलते लोकप्रियता सातवें आसमान पर पहुंच गई। इसी साल लोकसभा के भी चुनाव हुए। देश की जनता ने उन्हें और ज्यादा ताकत देकर दोबारा प्रधानमंत्री बनाया। कांग्रेस 52 सीटें ही जीत सकी। लोकसभा के अलावा 7 राज्यों- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव हुए। 7 में से 5 में कांग्रेस चुनाव हार गई। झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सरकार को समर्थन दिया। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के साथ तो महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रही। लेकिन जल्दी ही महाराष्ट्र भी हाथ से निकल गया।

2020 : इस साल हुए दोनों विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह हारी
इस साल दिल्ली और बिहार में चुनाव हुए। लगातार दूसरी बार दिल्ली में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी। हालात यह रहे कि 70 में से 63 सीटों पर तो कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत ही जब्त हो गई। बिहार में कांग्रेस ने आरजेडी के साथ गठबंधन किया, लेकिन ये गठबंधन भी बुरी तरह हार गया।

2021 : पांच में से चार राज्यों में जनता ने कांग्रेस को बुरी तरह नकारा
इस साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए। चार राज्यों में कांग्रेस हार गई। बंगाल में तो पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। पुडुचेरी में जहां कांग्रेस सत्ता में थी, वहां से भी हार गई। तमिलनाडु में कांग्रेस ने द्रमुक समेत कई पार्टियों के साथ मिलकर में चुनाव लड़ा और 25 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, जिसमें से 18 जीतकर आए। 

2022 : पांच राज्यों में चुनाव पांचों में हारी कांग्रेस, चार में बीजेपी की डबल इंजन सरकारें
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में चल रहा बीजेपी का विजय रथ इस साल भी पूरी स्पीड के साथ दौड़ा। जनता ने प्रधानमंत्री के आह्वान पर डबल इंजन की सरकारों पर भारी बहुमत के साथ जिताया और बताया की पीएम मोदी के नेतृत्व में उसे पूरा विश्वास है। इस साल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव हुए। 1985 के बाद पहली बार था जब कांग्रेस यूपी की सभी सीटों पर उतरी, लेकिन मात्र 2 सीटें ही जीत सकी। उसके कई प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा पाए। बाकी सभी राज्यों में भी कांग्रेस की हालत बेहद खराब ही रही। पंजाब में कांग्रेस अपनी सत्ता नहीं बचा सकी और 18 सीटों पर आकर सिमट गई। महाराष्ट्र में कांग्रेस का महाविकास अघाड़ी के साथ बेमेल गठबंधन भी टूट गया।

2023: राजस्थान, एमपी, छ्ततीसगढ़, त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में निराशाजनक प्रदर्शन
इस साल 2023 के शुरू में पूर्वोत्तर के भी तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में नतीजे बीजेपी गठबंधन के पक्ष में रहे। जहां त्रिपुरा और नागालैंड में बीजेपी की शानदार वापसी हुई, वहीं मेघालय में बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की एनपीपी सरकार फिर से सत्ता में वापसी की। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन एकदम निराशाजनक रहा। इसके बाद नवंबर में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों में भी पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता हाथ से निकल गई। मध्य प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा। किसी तरह से तेलंगाना में पार्टी की इज्जत बचा ली। इस तरह अब कांग्रेस सिर्फ तीन राज्यों हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में सत्ता में है।

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