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सुप्रीम कोर्ट के आदेश को समझे बिना क्यों हुई राजनीति?

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दलित आंदोलन के नाम पर 02 अप्रैल को देश में जमकर हिंसा की गई। आगजनी, हत्या, हंगामा और जातीय विद्वेष फैलाने की पुरजोर कोशिश हुई। पहले तो यह माना गया कि यह दलितों का गुस्सा था, लेकिन बीतते वक्त के साथ यह बात साबित हो गई कि यह एक बड़ी राजनीतिक साजिश का हिस्सा है।

दरअसल इस साजिश का निशाना महज केंद्र सरकार या कोई राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट भी है। 03 अप्रैल को केंद्र सरकार के रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- उसके आदेश को अधिकतर राजनीतिक दलों और दलित कार्यकर्ताओं ने गलत तरीके से परिभाषित करते हुए एससी/एसटी एक्ट को कमजोर करने वाला बताया।  

राहुल गांधी के ‘झूठ’ ने फैलाई हिंसा की आग
दरअसल गहरी साजिश के तहत दलितों को यह बताने की कोशिश की गई कि सरकार ने एससी/एसटी एक्ट ही खत्म कर दिया है। विशेषकर राजनीतिक दलों ने दलितों को गलत तथ्य के जरिये कैसे भड़काया इसकी बानगी आप इस वीडियो में देख सकते हैं।

 

 

राहुल कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, लेकिन उनका गैर जिम्मेदाराना बयान यह साबित करता है कि उन्हें देश के कानून और संविधान के बारे में कोई जानकारी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के आदेश को उन्होंने बार-बार एससी/एसटी एक्ट को ‘भंग’ करना बताया। जाहिर है वह या तो जाहिल हैं या फिर उन्होंने एक साजिश के तहत झूठ फैलाया।

राहुल गांधी पर लगनी चाहिए रासुका !
राहुल गांधी के इस एक बयान ने देश के कई हिस्सों को हिंसा की लपेट में ले लिया। दलितों को यह समझ में आ गया कि वास्तव में कोर्ट ने उनका कुछ नुकसान कर दिया है। अब जबकि दलितों को भड़काने और हिंसा करने के आरोप में कई लोगों पर कार्रवाई की जा रही है तो कांग्रेस अध्यक्ष के विरूद्ध लोगों को भड़काने के आरोप में रासुका क्यों न लगाई जाए? क्यों न उनपर एससी/एसटी एक्ट के तहत कार्रवाई की जाए ताकि उन्हें भी अच्छी तरह समझ में आ जाए कि आखिर यह एक्ट क्या है? यह मांग वाजिब इसलिए भी है कि राहुल के इस एक गैर जिम्मेदाराना बयान से दलित वर्ग का ही अधिक नुकसान हुआ है।

मीडिया के एक धड़े ने सच छिपाया
राजनीतिक दलों ने जिस तरह से झूठ फैलाया, ठीक इसके उलट मीडिया ने उस सच को ही छिपा लिया जिसे बताना उसका प्राथमिक दायित्व है। मीडिया ने इस सच बताने के बजाय कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश कानून सम्मत है, लोगों को गुमराह किया और उन्हें उकसाने का भी काम किया। कम से कम मीडिया यह भी बताता कि राहुल गांधी अफवाह फैला रहे हैं तो देश में हिंसा नहीं होती।

मायावती ने एक्ट में किया था संशोधन
मीडिया ने एक और बड़ा सच ये भी छिपाया कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश संविधान सम्मत है। मीडिया ने यह भी नहीं बताया कि इससे पहले कई राज्य सरकारों ने कानून के दुरुपयोग को देखते हुए इसमें संशोधन किए हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश में मायावती के शासन के दौरान न सिर्फ संशोधित किया गया था, बल्कि इस कानून की सख्ती को भी कम किया गया था। यही संशोधित कानून प्रदेश में आज भी लागू है। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के कई दलित नेता सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कोई खामी भी नहीं देखते हैं। 

मायावती ने लगाई थी तत्काल गिरफ्तारी पर रोक
मायावती सरकार द्वारा किए गए इस संशोधन के कारण यूपी में एससी-एसटी एक्ट को अलग तरीके से लागू किया जाता है, जिसके तहत अब सीधे गिरफ्तारी नहीं होती है। 2007 में मायावती सरकार ने एससी/एसटी एक्ट को न सिर्फ संशोधित किया, बल्कि उसमें एक धारा 182 लगाकर यह आदेश पारित किया कि अगर कोई इसका दुरुपयोग करेगा, तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई होगी।

मायावती के शासन में 20 मई 2007 को एक सरकारी आदेश निकालकर अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम को संशोधित किया गया था। इसके तहत हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में इस एक्ट को लगाने से पहले एसपी या एसएसपी को अपनी विवेचना करनी होती है।

सरकारी आदेश में साफ-साफ लिखा है कि किसी भी निर्दोष को इस एक्ट के तहत न तो परेशान किया जाना चाहिए और न ही फंसाया जाना चाहिए और अगर कोई ऐसा करता है, तो उसके खिलाफ धारा 182 के तहत कार्रवाई होगी।

90 प्रतिशत मामले पाए जाते हैं फर्जी
बहरहाल ये तो सब जानते हैं कि राजनीति जो दिखती है वो होती नहीं है। इस मामले में भी यही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही आदेश दिया है कि किसी निर्दोष को जेल न जाना पड़े। दरअसल एससी/एसटी एक्ट के तहत किए गए अधिकतर मुकदमे फर्जी होते हैं। 100 में से 90 मामलों में कोर्ट के बाहर समझौता हो जाता है या फिर केस ही गलत साबित हो जाता है। जाहिर है तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान से 90 प्रतिशत लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। साफ है कि सुप्रीम कोर्ट लोगों के मौलिक अधिकार का हनन को रोकने के लिए ही यह आदेश दिया है।

बिहार ने एससी/एसटी एक्ट में किया था सुधार
बिहार में भी एससी/एसटी एक्ट के तहत दर्ज मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं होती है इसके लिए एसपी का आदेश आवश्यक है। गौरतलब है कि एससी/एसटी एक्ट के दर्ज प्राथमिकी में अनुसंधान आरम्भ होता है, फिर डीएसपी सुपरविजन करते हैं। सुपरविजन के बाद तय होता है कि साक्ष्य क्या हैं और उस मामले में गिरफ़्तारी करनी है या नहीं। इसके बाद एसपी रिपोर्ट-2 निकालते हैं जिसमें सुपरविजन नोट पर अनुमोदन होता है, तब कहीं जाकर गिरफ्तारी होती है। इसके साथ ही यह बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि बिहार में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) का प्रावधान है।

जाहिर है सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बिहार और उत्तर प्रदेश के राज्यों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। हां इतना जरूर हुआ है कि राहुल गांधी और मायावती सरीखे नेताओं दोहरा चरित्र जरूर उजागर हो गया है।

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