हर देश अपनी कागजी मुद्रा, नोट में कुछ ना कुछ फेरबदल करते रहते हैं। कुछ देश सिक्योरिटी फीचर्स बदलते हैं और कभी कुछ और बदलाव करते हैं। 1000 के नोटों में वर्ष 2000 में कुछ बदलाव किये गए थे, लेकिन 500 के नोटों में तो 1987 के बाद किसी प्रकार का कोई बदलाव नहीं किया गया था। जबकि जानकारों के अनुसार प्रत्येक 5 वर्षों में मुद्रा में कुछ ना कुछ बदलाव आवश्यक होता है, क्योंकि नोट ही बदल देना अपने आप में ही एक बहुत बड़ा बदलाव है। 08 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब नोटबंदी की घोषणा की तो सब हैरत में पड़ गए, क्योंकि यह निर्णय एक झटके में आया था।
आम लोगों को दिक्कतें तो जरूर हुईं, लेकिन इस नोटबंदी का प्रभाव गरीबों पर नहीं बल्कि काले धन के कुबेरों पर पड़ा। जाहिर है इसका विरोध भी होता रहा, लेकिन सवाल यह कि जब यह कदम देशहित के लिए है तो इसका विरोध क्यों? दरअसल एक विरोध वो कर रहे हैं, जिन्होंने ये कसम खा ली है कि कुछ भी हो प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करना है, दूसरा वे विरोध कर रहे हैं जिनपर नोटबंदी के प्रहार का जोरदार असर हुआ है।
भ्रष्टाचार पर प्रहार से क्यों परेशान हो गई कांग्रेस?
08 नवंबर, 2017 को नोटबंदी के एक साल पूरे होने जा रहे हैं और बीजेपी इसे एंटी ब्लैक मनी डे के तौर पर मना रही है। उधर कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां इस दिन ‘ब्लैक डे’ मना रही है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम जैसे अर्थशास्त्र के दिग्गज भी इस राजनीति का हिस्सा हो गए हैं, लेकिन क्यों? दरअसल कांग्रेस पार्टी जानती है कि नोटबंदी इस देश के लिए कितना आवश्यक था, कितनी बड़ी संख्या में कालाधन का पता लगा है और किस तरह से देश की अर्थव्यवस्था पारदर्शी होती जा रही है। इतना ही नहीं काले कारोबार करने वाली फर्जी कंपनियों पर एक्शन तो ऐतिहासिक साबित होने जा रही है। जाहिर है कांग्रेस की मंशा केवल पॉलिटिकल माइलेज लेने की है।
देशहित के कार्यों पर भी सियासत क्यों करती है कांग्रेस?
कांग्रेस की कार्यसंस्कृति रही है कि वह जब भी कोई देशहित का कार्य होता है तो वह विरोध करती है। इस मामले में भी यही हो रहा है। नोटबंदी को लेकर लगातार दुष्प्रचार और सरकार को बदनाम करने का प्रयास इसी का नतीजा है। कांग्रेस सरकार द्वारा जारी किए आंकड़ों को भी मानने को तैयार नहीं है। वह यह भी नहीं मानती है कि नोटबंदी के बाद डिजिटल ट्रांजेक्शन्स में 80 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है। वह यह भी नहीं मानती है कि बैंकिंग प्रणाली में तीन लाख करोड़ छिपे हुए धन के आने से अर्थव्यवस्था को नयी रफ्तार मिली है। वह यह भी नहीं मान रही है कि नोटबंदी से अलगाववाद-नक्सलवाद पर लगाम लगा है।
ममता बनर्जी को आखिर क्यों नागवार लगती है नोटबंदी?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी नोटबंदी से बेहद खफा हैं। दरअसल नोटबंदी के बाद कोलकाता में ही 145 फर्जी कंपनियां पकड़ी गई हैं जिनके कनेक्शन कहीं न कहीं राज्य की सत्ताधारी दल से जाकर जुड़ते हैं। इतना ही नहीं नोटबंदी के बाद केंद्र सरकार ने कई सरकारी लेन-देन को आधार से जोड़ने में तेजी कर दी है, इस कारण सिर्फ पश्चिम बंगाल में साढ़े तीन लाख से अधिक फर्जी राशन कार्ड पकड़े गए हैं। अन्य सरकारी योजनाओं में घपलों का तो ओर-छोर अभी पता नहीं लगा है, लेकिन वे भी जल्दी ही पता लग जाएंगे। ऐसे में ममता बनर्जी द्वारा नोटबंदी का विरोध तो एक हद तक समझ में आता है कि कहीं उनकी ही पोल-पट्टी न खुल जाए इसलिए पहले से ही भूमिका तैयार रखी जाए। विरोध के तरीके पर भी जरा गौर करिये, ममता बनर्जी ने ट्विटर अकाउंट की अपनी डिस्प्ले तस्वीर काली कर दी है।
अरविंद केजरीवाल को नोटबंदी से इतनी चिढ़ क्यों है भाई?
अरविंद केजरीवाल की पोलपट्टी तो उनके ही पूर्व सहयोगी कपिल शर्मा ने खोल दी है जिन्होंने यह साफ कर दिया है कि आखिर वे नोटबंदी के विरोध में क्यों हैं। कपिल शर्मा के इन ट्वीट्स को पढ़िये और इनकी नीयत को समझ लीजिए।
Releasing an exclusive document to explain how demonetization has hit Kejriwal … Follow this thread #DeMoExposedAK 1/n
— Kapil Mishra (@KapilMishraAAP) November 7, 2017
सभी ट्विट्स पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक कीजिए- https://twitter.com/KapilMishraAAP/status/927743023164702720
विपक्ष के सारे दिग्गज क्यों उतर आए मैदान में?
नोटबंदी को लेकर विपक्ष के सारे दिग्गज एक हो चले हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने नोटबंदी को जबरदस्त मुद्दा बनाया और लगातार इसपर प्रहार करते रहे हैं, लेकिन यह भी तथ्य है कि विपक्षी दलों के विचारों में एका नहीं है और मोदी विरोध के नाम पर इकट्ठा हुए दलों की कोई विश्वसनीयता भी नहीं है। मोदी विरोध के नाम पर जमा हो रही इस जमात की न तो कोई नीति है और न ही कोई सिद्धांत। इतना ही नहीं विचारों में भी मतैक्य नहीं हैं। ऐसे में सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर नोटबंदी जैसे बड़े और कड़े कदम को कठघरे में खड़ा करना कहां तक उचित है?
अर्थशास्त्रियों और बैंकरों को क्यों झुठला रहा है विपक्ष?
नोटबंदी को लेकर कांग्रेस किस तरह का झूठ प्रचार कर रही है इन बैंकरों की बातों से साफ हो जाता है। एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा, बैंकिंग क्षेत्र के लिए मैं इसे सकारात्मक मानूंगा क्योंकि बड़ी मात्रा में धन औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में आया। कासा चालू खाता, बचत खाता जमाओं में कम से कम 2.50-3.00 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो कि अपने आप में बड़ा अच्छा नतीजा है। वहीं आईसीआईसीआई बैंक की प्रमुख कार्यकारी चंदा कोचर ने कहा कि नोटबंदी के कारण बचतों को औपचारिक रूप मिला और म्युचुअल फंडों व बीमा में धन का प्रवाह बढ़ा। नोटबंदी के बाद, तेजी से डिजिटलीकरण को अपनाया गया। भविष्य में भी, डिजिटलीकरण के प्रति संपूर्ण रुख जारी रहेगा। Teamlease Services के चेयरमैन और RBI के Board में डायरेक्टर मनीष सभरवाल का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी का नोटबंदी का कदम भारत को रोजगार पैदा करने के मामले में कहीं बेहतर देश बनाएगा। इसके पक्ष मं उन्होंने 5 प्वाइंट्स भी गिनाए हैं:
- नोटबंदी से ऋण देने की नई क्षमता 18 लाख करोड़ रुपये की हो चुकी है।
- नोटबंदी से डिजिटल पेमेंट में बेतहाशा वृद्धि हुई। अक्टूबर 2016 में UPI/Bhim पर होने वाले पेमेंट की संख्या 1 लाख थी जो अक्टूबर 2017 में 7.7 करोड़ दर्ज की गई।
- नोटबंदी 3 लाख करोड़ की नई financial savings लेकर आई। नोटबंदी के आठ महीने बाद देश ने mutual fund inflows में 1700 प्रतिशत की वृद्धि देखी। नोटबंदी के तीन महीने बाद Life Insurance Premiums में 46 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी।
- ब्याज दरों को कम करना policy priority रही है। बैंक आम तौर पर पहले उपभोक्ताओं को lower policy rates का 50 प्रतिशत फायदा ही देते थे जो नोटबंदी के बाद 100 प्रतिशत हो गया। lower interest rates से देश में formal job creation बढ़ेगा।
- भ्रष्टाचार कम होने से भारत पहले से अधिक योग्य देश के रूप में उभरकर सामने आएगा।
अब आप समझिये कि इस देश के इतने बड़े-बड़े बैंकर्स और अर्थशास्त्री नोटबंदी को सही ठहरा रहे हैं, लेकिन विपक्षी दल मोदी विरोध के नाम पर इसे विफल बता रहे हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता थेलर को भी झूठा बता रही कांग्रेस!
अपने देश के अर्थशास्त्रियों और बैंकरों की बात तो सुन-समझ ली आपने, लेकिन इस साल के नोबेल पुरस्कार विजेता रिचर्ड थेलर के विचार भी जानना जरूरी है। उन्होंने नोटबंदी की सराहना की थी और कहा था कि यह भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठाया गया बेहतरीन कदम है। भारत में नोटबंदी का ऐलान हुआ तो अमेरिकी अर्थशास्त्री थेलर ने ट्वीट किया, ‘यही वह नीति है जिसका मैंने लंबे समय से समर्थन किया है। कैशलेस की तरफ यह पहला कदम है और भ्रष्टाचार कम करने के लिए अच्छी शुरुआत।’
Indian PM Modi: 500 and 1000 rupee notes no longer legal tender as of 12 am local time (1:30pm ET) – Time of India https://t.co/VXmlCtgdK9
— Breaking Business (@breakingmoney) November 8, 2016
अपने देश के कई अर्थशास्त्रियों द्वारा नोटबंदी की आलोचना अब भी जारी है। लेकिन प्रधानमंत्री के नोटबंदी के निर्णय को सही ठहराने वाले रिचर्ड थेलर को नोबेल पुरस्कार दिया जाना क्या ऐसे आलोचकों को ‘आईना’ नहीं दिखा रहा है?