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भारत की तीसरी आंख ‘नाविक’ सैटेलाइट लॉन्च, पहली बार स्वदेशी रूबिडियम परमाणु घड़ी का इस्तेमाल, दुश्मन पर होगी पैनी नजर, नेविगेशन सर्विस में होगा सुधार

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत धरती, जल और आकाश में अपना दबदबा कायम करता जा रहा है। मोदी सरकार के प्रयास से भारत को हर क्षेत्र में एक के बाद एक बड़ी सफलता मिल रही है। इसी क्रम में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अंतरिक्ष में पूर्ण स्वदेशी सैटेलाइट ‘नाविक’ को सफलतापूर्वक लॉन्च कर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इसके साथ ही भारत ने रूबिडियम परमाणु घड़ी के निर्माण और उपयोग में आत्मनिर्भरता हासिल कर लिया है। इसरो का यह ‘नाविक’ सैटेलाइट तीसरी आंख का काम करेगा। इससे नेविगेशन सर्विस में सुधार, भारतीय सेना की निगरानी क्षमता में वृद्धि और अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी बढ़ेगी। 

दरअसल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने सोमवार 29 मई को श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 2,232 किलोग्राम के ‘नाविक’ सीरीज में नेक्स्ट जनरेशन सैटेलाइट को लॉन्च किया। 51.7 मीटर लंबा जीएसएलवी अपनी 15वीं उड़ान में एनवीएस-01 नेविगेशन सैटेलाइट को लेकर रवाना हुआ और प्रक्षेपण के 20 मिनट बाद करीब 251 किमी की ऊंचाई पर भू-स्थिर स्थानांतरण कक्ष में स्थापित किया। सैटेलाइट को प्रक्षेपित करने के लिए 27.5 घंटे की उल्टी गिनती रविवार सुबह 7.12 बजे शुरू की गई थी।

NavIC का पूरा नाम Navigation with Indian Constellation है, जो 1500 किमी क्षेत्र में नेविगेशन सर्विस प्रदान करेगा। नाविक को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि सिग्नल 20 मीटर से बेहतर उपयोगकर्ता की स्थिति और 50 नैनोसेकंड से बेहतर समय सटीकता प्रदान कर सके। एनवीएस-01 अपने साथ एल1, एल5 और एस बैंड उपकरण ले गया है। ‘नाविक’ सैटेलाइट का इस्तेमाल स्थलीय, हवाई और समुद्री परिवहन, लोकेशन-आधारित सेवाओं, निजी गतिशीलता, संसाधन निगरानी, सर्वेक्षण और भूगणित, वैज्ञानिक अनुसंधान, समय प्रसार और आपात स्थिति में किया जाएगा। कहा जा रहा है कि ‘नाविक’ नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में बेहतर सेवाएं देने में सक्षम होगा।

इसरो के मुताबिक, पहले सैटेलाइट के लॉन्चिंग में वैज्ञानिक तारीख और स्थान का निर्धारण करने के लिए आयातित रूबिडियम परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल करते थे। लेकिन पहली बार इस ‘नाविक’ सैटेलाइट में स्वदेशी रूप से विकसित रूबिडियम परमाणु घड़ी का इस्तेमाल किया गया। अब भारत रूबिडियम परमाणु घड़ियों निर्माण में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुका है। इसका निर्माण अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र में किया गया है। यह महत्वपूर्ण तकनीक कुछ ही देशों के पास है।  

गौरतलब है कि भारत आपदा को अवसर में बदलना जानता है। 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारत को जब मदद की जरूरत पड़ी, तो अमेरिका ने मदद से इनकार कर दिया। जीपीएस मदद से इनकार किए जाने के बाद भारत अपना नेविगेशन सिस्टम तैयार करने का संकल्प लिया। इसे 2006 में अप्रूव किया गया। इसके बाद इसे 2018 तक पूरी तरह से तैयार कर लिया गया। 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ और युद्ध से सबक लेकर अब भारत अपने नेविगेशन सर्विस में लगातार सुधार कर रहा है। इस दिशा में एनवीएस-1 एक बड़ा कदम है। इससे भारत को समय पर सीमा पर होने वाली गतिविधियों का अंदाजा लग सकेगा और पड़ोसियों की किसी भी कारगुजारी का जवाब समय रहते दिया जा सकेगा।

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