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कश्मीर में टेरर फंडिंग का हुर्रियत और कांग्रेस कनेक्शन

कांग्रेस के नाकाम नेतृत्व ने कश्मीर में बढ़ाया आतंकवाद, रिपोर्ट

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राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण यानि NIA के हाथ लगे एक सबूत ने टेरर फंडिंग के कच्चे चिट्ठे को खोलकर रख दिया है। इन सबूतों में अस्थिरता पैदा करने और कश्मीर में बड़ी हिंसा को अंजाम देने की पूरी योजना का ब्योरा है। इस बीच जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अबदुल्ला ने हुर्रियत नेताओं की फंडिग के सवाल पर कहा कि कांग्रेस की सरकारें हुर्रियत को फंड करती रही हैं। जाहिर है फारुख के बयान की जांच तो होगी ही, लेकिन इससे साफ है कि कश्मीर समस्या की जड़ में सिर्फ अलगाववादी या आतंकवादी ही नहीं बल्कि कांग्रेस भी है।

टेरर फंडिंग का हुर्रियत कनेक्शन
टेरर फंडिग केस में एनआईए को छापेमारी में जो सुराग हाथ लगे हैं उसमें सैयद अली शाह गिलानी के हस्ताक्षर किया हुआ हुर्रियत का कैलेंडर मिला है। 4 अगस्त 2016 के इस कैलेंडर में कश्मीर में सेना और सुरक्षाबलों के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर लोगों को भड़काने की साजिश के साफ सबूत हैं। अलगाववादी अल्ताफ शाह फंटूश के घर से बरामद इस कैलेंडर से ये साफ हो जाता है कि कश्मीर में सेना और सुरक्षाबलों पर पथराव और प्रदर्शन कोई त्वरित प्रतिक्रिया नहीं बल्कि सोझी समझी साजिश का नतीजा होती है। इस सबका खाका पहले तैयार कर लिया जाता है। कब क्या करना है, कैसे करना है इसकी पहले से तैयारी होती है।

प्रोटेस्ट कैलेंडर में गिलानी के हस्ताक्षर
दरअसल इस प्रोटेस्ट कैलेंडर का कनेक्शन कश्मीर के कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी से जुड़ा है। इस प्रोटेस्ट कैलेंडर पर गिलानी के साइन भी हैं। जाहिर है इसकी बरामदगी से एक बार फिर पाकिस्तानी हैंडलर्स की मदद से कश्मीर में अशांति और हिंसा फैलाने में अलगाववादियों की भूमिका उजागर हुई है।

बुरहान को हीरो बनाने की प्लानिंग
NIA के हाथ लगे कैलेंडर में हिज्बुल कमांडर बुरहान के एनकाउंटर के बाद उन तारीखों का जिक्र है जिनमें घाटी में अशांति फैलाने वाले कार्यक्रम किए गए। इससे एक बार फिर इस बात की पुष्टि हुई है कि हुर्रियत ने कैसे योजनाबद्ध तरीके से घाटी में अशांति और हिंसा फैलाई। विरोध-प्रदर्शन में स्थानीय मौलवियों, अलगाववादी कार्यकर्ताओं के साथ विपक्षी दलों के कार्यकर्ता भी शामिल रहे। एनआईए की जांच के मुताबिक इन सबके लिए हुर्रियत ने पाकिस्तानी एजेंसियों के साथ मिलकर फंड उपलब्ध कराया।

जानिए NIA के हाथ लगे हुर्रियत के इस कैलेंडर में क्या-क्या है दर्ज

– 4 अगस्त 2016 का कैलेंडर, कैलेंडर में सेना और सुरक्षाबलों के खिलाफ धरना प्रदर्शन और लोगों को भड़काने की साजिश

– 6 अगस्त 2016 लोगों को लोकल चौक और अलग-अलग जगह पर इकट्ठा होने को कहा गया, धरना प्रदर्शन की अपील

– 8 अगस्त 2016 श्रीनगर के तरफ जाने वाली सभी सड़कों को ब्लॉक करना और लोगों को ड्यूटी ज्वाइन करने से रोकना और सभी को फोन कर कर के इस बात का दवा बनाना क्यों ऑफिस ना जाए

– 9 अगस्त 2016 औरतों से अपील कि वह असर से मगरिब तक प्रदर्शन में शामिल हो और जगह-जगह इस्लामिक और आजादी के गाने मस्जिदों से बजाये जाए

– 10 अगस्त 2016 जम्मू कश्मीर में तैनात सभी सुरक्षाबलों से को लेटर दिया जाए और उसे कहा जाए कि वह यहां से वापस जाएं

– 11 अगस्त 2016 सभी भारत समर्थित राजनेताओं और सरपंचों से यह कहा जाए कि वह अपने पदों से त्यागपत्र दे और अपने अपने दरवाजे पर अपने त्यागपत्र की कॉपी चिपकाएं

– 12 अगस्त 2016 आजादी के समर्थन में सभी इमाम को यह कहा गया कि मस्जिदों में लोगों को आजादी के लिए जागरूक करें और मस्जिद के दरवाजे पर आजादी के पोस्टर चिपका कर रखें

– 13 अगस्त 2016 काले झंडे लेकर के प्रदर्शन में शामिल हो

– 14 अगस्त 2016 पाकिस्तानी डे इस दिन पाकिस्तान के लिए स्पेशल प्रयोग किए जाएं नमाज किए जाएं और आजादी के हर मस्जिद में पूरे दिन गाने बजाया जाए

– 15 अगस्त 2016 जम्मू कश्मीर में ब्लैक डे मनाया जाए काले झंडे लेकर के राजदूत कार्यालय के सामने प्रदर्शन हो अपने घरों के ऊपर भी काले झंडे रखें दुकान मार्केट और हर चौराहे पर काले झंडे लगाया जाए

– 16 अगस्त औरतें प्रदर्शन में शामिल हो और मस्जिदों में आजादी के तराने और गाने बजे

हवाला रूट की भी हो रही है जांच
कश्मीर के नौशेरा के देविंदर सिंह बहल पाकिस्तानी हैंडलर्स और हुर्रियत के बीच की कड़ी है जिसे एनआईए ने धर दबोचा है। देविंदर सिंह बहल के घर छापेमारी गिरफ्तार अलगाववादी नेताओं से पूछताछ के बाद हुई है। पेशे से वकील बहल हुर्रियत के लीगल सेल का मेंबर भी है। एनआईए की अबतक की जांच से ये तय है कि कश्मीर में आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान ने फंडिंग की। फिलहाल एनआईए उस हवाला रूट को भी तलाश रही है जहां से आतंकियों को धन मुहैया कराया गया।

हुर्रियत को फंडिंग करती रही है कांग्रेस
कांग्रेस अपनी हकीकत चाहे कितना भी छिपा ले लेकिन कहीं न कही से कोई न कोई सबूत बाहर आ ही जाता है। भारत में सबको पता है कांग्रेस ने आज तक इस देश को सिर्फ लूटा है और देश को समस्याओं के भंवर में धकेला है। अब उनके सहयोगी और जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार थी तब कश्मीर के हुर्रियत और अलगाववादियों को फंडिंग देती थी। फारुख अब्दुल्ला के इस बयान के बाद कांग्रेस कठघरे में है और उसे जवाब नहीं मिल रहा।

जवाहर लाल नेहरू-इंदिरा गांधी ने की बड़ी गलती
दरअसल आज जो कश्मीर समस्या है वो सिर्फ कांग्रेस की देन है। भारत के विभाजन के समय इसका हल निकाल पाने में जवाहरलाल नेहरू की असफलता की देश भारी कीमत चुका रहा है। तब न तो दिल्ली में नेहरू सरकार और न ही श्रीनगर में शेख अब्दुल्ला सरकार कभी इस बात को मान सका कि जम्मू-कश्मीर का भारत में पूरी तरह एकीकरण करने की जरूरत है। इस मामले में नेहरू में न तो साहस था न ही दूरदर्शिता थी। अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है जिसे अब तक क्यों कायम रखा गया है यह भी एक सवाल है। 1971 में भी भारत ने कश्मीर मुद्दे को हल करने का मौका गंवा दिया था। 1990 में हिंदुओं के नरसंहार के बाद की चुप्पी ने तो कट्टरपंथियों के हौसले को नये उत्साह से भर दिया था।

कांग्रेस के नाकाम नेतृत्व के कारण मुद्दा बना रहा कश्मीर
भले ही कांग्रेस और इसके साथी दलों के नेता धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते रहें लेकिन कश्मीर में इन्हीं के शासन काल में धर्मनिरपेक्षता की बलि चढ़ाई जा चुकी है। दरअसल बढ़ते कट्टरपंथ की वजह से ही 1990 में कश्मीर में हजारों कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया गया था और हिंदू औरतों के साथ बलात्कार किया गया था। धर्मनिरपेक्ष भारत के एक हिस्से में धर्म को लेकर ही अधर्म का नंगा नाच हो रहा था, लेकिन कांग्रेस की सरकार तब तमाशा देख रही थी। कश्मीर अगर आज सुलग रहा है तो कांग्रेस की अदूरदर्शिता और नाकाम नेतृत्व इसका कारण है।

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