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गांधी परिवार को बड़ा झटका, ईडी ने यंग इंडिया की 751 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की, बीजेपी ने कहा- लूट, भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का जवाब देना होगा

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भारत में केंद्रीय स्तर पर लंबे समय तक कांग्रेस की सरकारें रहीं। जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी ने भी अपने निजी स्वार्थ के लिए केंद्र की सत्ता का दुरुपयोग किया। सत्ता पर नेहरू-गांधी परिवार का कब्जा बनाए रखने के लिए भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण को हथियार बनाया। खुद भ्रष्ट तरीके से संपत्ति अर्जित की और अपने समर्थकों को भी लूटने का पूरा मौका दिया। सार्वजनिक और संवैधानिक संस्थाओं में अपने समर्थकों की घुसपैठ कराकर नियम, कानून और संविधान का मनमाना इस्तेमाल किया। अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा दिया। गांधी परिवार ने देश में ‘खाओ और खाने दो’, ‘लूटो और लूटने दो’ की नीति को लागू किया। इसी नीति के तहत गांधी परिवार ने सुनियोजित और गैर-कानूनी तरीके से एजेएल और यंग इंडियन कंपनी के जरिए नेशनल हेराल्ड अखबार की संपत्ति पर कब्ज किया। लेकिन अब गांधी परिवार को बड़ा झटका लगा है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एजेएल की 691.9 करोड़ और यंग इंडियन की 90 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर ली है।

प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस और गांधी परिवार पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। ऐजेंसी के मुताबिक अंशधारक और कांग्रेस को चंदा देने वालों से एजेएल और पार्टी ने ठगी की। ईडी ने एजेएल और यंग इंडिया कंपनी के खिलाफ संपत्ति कुर्क करने का आदेश धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जारी किया था। इस मामले में ईडी पूर्व में सोनिया और राहुल गांधी से पूछताछ कर चुकी है। एजेंसी के मुताबिक मामले की जांच के दौरान पाया गया कि एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) के पास दिल्ली, मुंबई और लखनऊ जैसे कई शहरों में 661.69 करोड़ रुपये की अचल संपत्तियों के रूप में गैर-कानूनी रूप से अर्जित संपत्ति है और यंग इंडिया के पास एजेएल के इक्विटी शेयरों में निवेश के रूप में 90.21 करोड़ रुपये है।

इससे पहले नेशलन हेराल्ड मामले में ईडी ने बीते साल कार्रवाई की थी। 3 अगस्त,2022 को दिल्ली की हेराल्ड बिल्डिंग में स्थित यंग इंडिया कंपनी के ऑफिस को सील कर दिया था। बीते साल 2 और 3 अगस्त को ईडी की टीम ने सुबह से देर शाम तक नेशनल हेराल्ड के दिल्ली, मुंबई और कोलकाता समेत 16 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की थी। इसके साथ ही ईडी ने निर्देश दिया था कि ऐजेंसी की अनुमति के बिना परिसर न खोला जाए। यह कार्रवाई सोनिया और राहुल से पूछताछ के बाद की गई थी।
नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया और राहुल दोनों मामलों में आरोपी हैं। दोनों नेताओं पर सेक्सन 120 (B) (आपराधिक षड्यंत्र) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत केस दर्ज हैं।  

पांच राज्यों में चल रहे चुनाव के बीच ईडी की कार्रवाई से जहां कांग्रेस बैकफुट पर है, वहीं बीजेपी ने कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला है। बीजेपी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि गांधी परिवार को उनके द्वारा की गई लूट, भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का जवाब देना होगा और वो इससे भाग नहीं सकते। स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को बंद करना और उससे किराया लेना अनैतिक है। कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई को अपने ही परिवार में समाहित कर लिया और फिर एक परिवार की बादशाहत शुरू कर दी। गांधी परिवार सिर्फ पार्टी और स्वतंत्रता आंदोलन की परंपरा ही नहीं कंट्रोल करता है बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन की संपत्ति को भी अपनी निजी संपत्ति मानता है।

रविशंकर प्रसाद ने गांधी परिवार पर गैर-कानूनी तरीके से संपत्ति पर कब्जा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि नेशनल हेराल्ड को आजादी के आंदोलन में कांग्रेस के विचारों को रखने के लिए बनाया गया था। अखबार जब बंद हो गया तो उस पूरी संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग शुरू हो गया और फिर इसकी पूरी संपत्ति को परिवार के नाम कर दिया गया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी ने सरकारी संपत्ति को निजी संपत्ति बना लिया। ये परिवार धोखे और नियमों का उल्लंघन कर व्यापार करता है। ये चाहते हैं कि ये भ्रष्टाचार करें, जनता को लूटें लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई न हो। 2014 में भाजपा की सरकार बनने से पहले ही इन (गांधी परिवार) पर नेशनल हेराल्ड घपले के मामले में एक शिकायत दर्ज की गई। इस शिकायत पर सोनिया गांधी और पुत्र राहुल गांधी को कहीं रियायत नहीं मिली। आयकर विभाग की कार्रवाई में लेनदेन को फ्रॉड पाया गया और इन्हें पूरा टैक्स भरने के लिए कहा गया।

गौरतलब है कि बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने नेशनल हेराल्ड मामले में 2012 में एक शिकायत दर्ज कराई थी। केस दर्ज होने के दो साल बाद 2014 में अदालत ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ समन जारी किया था। इसी साल अगस्त महीने में प्रवर्तन निदेशालय ने संज्ञान लेते हुए मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया था। इस केस में सोनिया गांधी, राहुल गांधी, और कांग्रेस के दिवंगत नेता मोतीलाल वोरा, ऑस्कर फर्नांडीज, सैम पित्रोदा और सुमन दुबे को आरोपी बनाया गया था। आयकर विभाग के मुताबिक यंग इंडियन लिमिटेड में राहुल गांधी को शेयर से 154 करोड़ रुपये की कमाई हुई। 

कांग्रेस के शासन के दौरान भारत को हिला देने वाले भ्रष्टाचार के ऐसे-ऐसे मामले हुए जिसने न केवल लोकतंत्र पर धब्बा लगाया बल्कि एक परिवार की वजह से भारत को 15 लाख करोड़ से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा। इन घोटालों पर एक नजर-

1. इंदिरा गांधी चुनाव धोखाधड़ी (1975):
इंदिरा गांधी चुनावी भ्रष्टाचार की दोषी, 6 साल राजनीतिक पद संभालने पर रोक
चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी पाए जाने के बाद इंदिरा गांधी को छह साल के लिए राजनीतिक पद संभालने से रोक दिया गया था। वर्ष 1975 भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि यह एक गंभीर घटना का गवाह था जिसने लोकतंत्र की नींव को हिलाकर रख दिया था। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने चुनावी धोखाधड़ी की साजिश रची जिसने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों को धूमिल कर दिया। उन्होंने मतदाता सूचियों के साथ छेड़छाड़ की, मतदान केंद्रों में धांधली की और मतगणना प्रक्रिया में हेरफेर किया। पार्टी कार्यकर्ताओं, चुनाव अधिकारियों और स्थानीय नेताओं सहित प्रमुख व्यक्तियों ने इन धोखाधड़ी को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, उनकी मिलीभगत ने कांग्रेस पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण को उजागर किया। इस घटना ने भारतीय चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता और अखंडता पर सवाल खड़ा कर दिया। अदालत ने इंदिरा गांधी पर 6 साल के लिए राजनीतिक पद संभालने पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद, इंदिरा गांधी ने अगले ही दिन देशव्यापी आपातकाल लागू कर दिया।

2. कुओ ऑयल डील (1976):
फर्जी कंपनी से ऑयल डील, सरकारी खजाने को 13 करोड़ का चूना
1976 में तेल के गिरते दामों के मद्देनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांगकांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को 13 करोड़ का चूना लगा। इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने करोड़ों डॉलर की इस घोटाले को अंजाम दिया। मौजूदा कीमतों पर भविष्य में डिलीवरी लेने के लिए हांगकांग स्थित कुओ ऑयल कंपनी को 20 करोड़ डॉलर का अनुबंध दिया गया था। बताया गया कि परोक्ष रूप से पैसा इंदिरा और संजय को जाता था।

3. बोफोर्स घोटाला (1987):
बोफोर्स घोटाले से देश को करोड़ों का नुकसान
राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे तब बोफोर्स तोप सौदे के चलते 1980 के दशक में देश की राजनीति में भूचाल सा आ गया था। 1989 में कांग्रेस को इसकी वजह से सत्ता तक गंवानी पड़ी थी। मामले में आरोपी इटली के बिजनसमैन ओत्तावियो क्वात्रोकी की गांधी परिवार से कथित नजदीकी सवालों के घेरे में रही है। 18 मार्च 1986 को, भारत ने सेना के लिए 400 155 मिमी हॉवित्जर तोपों की आपूर्ति के लिए स्वीडिश हथियार निर्माता एबी बोफोर्स के साथ 1,437 करोड़ रुपये के समझौते पर हस्ताक्षर किए। एक साल बाद, 16 अप्रैल, 1987 को एक स्वीडिश रेडियो चैनल ने आरोप लगाया कि कंपनी ने अनुबंध हासिल करने के लिए शीर्ष भारतीय राजनेताओं और रक्षा कर्मियों को रिश्वत दी थी। इस घोटाले ने 1980 के दशक के अंत में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार को हिलाकर रख दिया था। स्वीडिश रेडियो ने दावा किया कि कंपनी ने सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारी को घूस दिए हैं। 60 करोड़ रुपये घूस देने का दावा किया गया। 60 करोड़ रुपये घूस देने की बात शुरुआती रिपोर्ट थी असल में रिश्वत की राशि इससे कहीं ज्यादा थी। यहीं नहीं क्वात्रोकी के प्रत्यर्पण के नाम पर सरकार ने टैक्सपेयर्स की गाढ़ी कमाई के करीब 250 करोड़ रुपये खर्च कर दिए।

4. 2जी घोटाला (2008):
2जी घोटाला से 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान
राजीव के बाद, सोनिया ने परंपरा को जारी रखते हुए अपने बेटे राहुल गांधी के लिए एक उदाहरण स्थापित करना था, इसलिए उन्होंने 2जी घोटाला किया। इसमें भारत में राजनेता और सरकारी अधिकारी फ्रीक्वेंसी आवंटन लाइसेंस के लिए मोबाइल टेलीफोनी कंपनियों से अवैध रूप से कम शुल्क लेते थे। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक और जांच एजेंसियों का आरोप है कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से भारत सरकार के खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। स्पेक्ट्रम की नीलामी की बजाए ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की नीति पर लाइसेंस को बांटा गया। घोटाले में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा और डीएमके सांसद कनिमोझी का नाम भी शामिल था। इनके अलावा कई कंपनियां और कई कारोबारी भी इसमे आरोपी बनाए गए थे।

5. नोट के बदले वोट घोटाला (2008):
नोट के बदले वोट घोटाला लोकतंत्र पर धब्बा
सोनिया गांधी ने लोकतंत्र पर दाग लगाते हुए सरकार बचाने के लिए नोट के बदले वोट घोटाले को अंजाम दिया। जुलाई 2008 में अमेरिका से परमाणु समझौता के मुद्दे पर वाम दलों ने केंद्र की यूपीए-1 सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। मनमोहन सरकार ने 22 जुलाई 2008 को लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव रखा था। जिस दिन वोटिंग होनी थी, उस दिन सदन में भारतीय जनता पार्टी के तीन सांसद अशोक अर्गल, महावीर भगौरा और फग्गन सिंह कुलस्ते ने नोटों की गड्डियां लहराते हुए सरकार पर सनसनीखेज आरोप लगाए थे। उनका कहना था कि सरकार बचाने के लिए उनके वोट खरीदने की कोशिश की गई। नोट के बदले वोट मामले में एक स्टिंग ऑपरेशन की बात भी सामने आई थी। विकीलीक्स ने खुलासा करते हुए कहा था कि दो सूटकेस और 40 करोड़ ने बचा ली सरकार। साल 2008 में अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर घिरी सरकार को जब विश्वास मत का सामना करना पड़ा था, तब कांग्रेस ने आरएलडी के 4 सांसदों को दस-दस करोड़ में खरीद लिया था। अमेरिकी दूतावास में राजनीतिक मामलों के प्रभारी स्टीवन व्हाइट कांग्रेस सांसद सतीश शर्मा से मिलने गए थे।

6. राष्ट्रमंडल खेल घोटाला (2010):
राष्ट्रमंडल खेल के नाम पर करीब 70 हजार करोड़ का घोटाला
राष्ट्रमंडल खेल (कॉमनवेल्थ गेम्स) भी घोटाले की श्रेणी में आ गया क्योंकि इस विशाल खेल आयोजन पर अरबों डॉलर खर्च किए गए थे और खेलों की आयोजन समिति के अधिकारियों द्वारा इसमें गंभीर भ्रष्टाचार किया गया था। 2011 में, सीबीआई ने टाइमिंग-स्कोरिंग-रिजल्ट (टीएसआर) मामले में सीडब्ल्यूजी आयोजन समिति के पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत गिरफ्तार किया था। कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के लिए 19,500 करोड़ रुपए का खर्च प्रस्तावित हुआ, बजट बढ़ते-बढ़ते इसका तीन गुना अधिक हो गया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात। स्टेडियम की मरम्मत के नाम पर लाखों डॉलर खर्च हुए। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन को लेकर करीब 70 हजार करोड़ के घोटाले का ‘खेल’ हुआ।

7. देवास-एंट्रिक्स घोटाला (2011):
देश की सुरक्षा से गंभीर समझौता और करोड़ों का नुकसान
सोनिया गांधी ने इस घोटाले को सफाई से अंजाम देने की कोशिश की थी। एंट्रिक्स-देवास घोटाला सबसे गंभीर संकटों में से एक है। एंट्रिक्स और देवास के बीच समझौते पर 2005 में हस्ताक्षर किए गए थे जब जी माधवन नायर अंतरिक्ष विभाग (DoS) में मामलों के शीर्ष पर थे। बाद में उन्होंने सौदे में गड़बड़ी के लिए यूपीए-2 सरकार को जिम्मेदार ठहराया। इस सौदे के अनुसार एंट्रिक्स ने इसरो द्वारा भविष्य में लांच किए जाने वाले दोनों सैटेलाइट से जारी एस बैंड स्पेक्ट्रम के अधिकारों को मात्र 30 करोड़ डालर में देवास को 12 वर्षों के लिए बेच दिया, परंतु सौदे को गुप्त रखा गया। इसरो अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत आता है, जिसका प्रभार सीधे प्रधानमंत्री के पास होता है। इसकी भावी परियोजनाएं बेहद गुप्त रखी जाती हैं। ऐसे में सबसे पहले तो यही सवाल उठा कि उक्त दोनों उपग्रहों के बारे में देवास को कैसे पता चला और यदि भारत सरकार को कोई सौदा करना ही था तो सार्वजानिक नीलामी के रूप में किया जाना चाहिए था। फरवरी 2011 में पहली बार यह सौदा सार्वजनिक जानकारी में आया। 2014 में सीबीआइ ने देवास-एंट्रिक्स सौदे को जालसाजी घोषित करते हुए जी माधवन को गिरफ्तार किया और इस घोटाले की परतें खोलीं। इसके बाद देवास अमेरिकी अदालत में पहुंच गई। वहां भारत सरकार की कमजोर पैरवी के चलते अमेरिकी अदालत ने 2015 में भारत सरकार के खिलाफ फैसला सुना दिया। उसने देवास को भारी-भरकम हर्जाना चुकाने को कहा और हर्जाना न चुकाने की स्थिति में 18 प्रतिशत सालाना ब्याज का प्रविधान भी किया, जो 2020 में 1.2 अरब डालर तक पहुंच गया था।

8. कोयला घोटाला (2012):
सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ का नुकसान
सोनिया को पता था कि सिंहासन पर उनका समय समाप्त हो रहा है, इसलिए उन्होंने अपनी टीम को और अधिक मेहनत करने के लिए कहा। उसके बाद कोयला घोटाले को अंजाम दिया गया। प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से कैप्टिव कोयला ब्लॉकों के आवंटन की अवधारणा पहली बार 2004 में घोषित की गई थी। हालांकि, सरकार ने तंत्र के तौर-तरीकों को अंतिम रूप नहीं दिया। इसका असर यह रहा कि कंपनियां कोयला खदानों की खदान के लिए आगे नहीं आ रही थी। देश में पर्याप्त कोयला था मगर कोयला उपलब्ध होने के बावजूद कोयला निकाला नहीं जा रहा था। इसका नतीजा ये रहा कि देश में कोयले की कमी हो गई। इससे भारत के बाहर इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से कोयला आयात करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सीएजी की रिपोर्ट में सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के लिए सरकार की कड़ी आलोचना की गई। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास 2006-2009 के बीच कोयला विभाग था।

9. अगस्ता वेस्टलैंड चॉपर घोटाला (2013):
नेताओं, अधिकारियों को 360 करोड़ रुपए रिश्वत देने की बात सामने आई
जब सोनिया को पता चला कि वह सत्ता से बेदखल होने वाली है तो उसने टीम को एक और घोटाले के लिए निर्देश दिए। इस घोटाले में कई भारतीय राजनेताओं एवं सैन्य अधिकारियों पर आगस्ता वेस्टलैंड से मोटी घूस लेने का आरोप है। यूपीए-1 सरकार के समय अगस्ता वेस्टलैंड से वीवीआईपी के लिए 12 हेलिकॉप्टरों की खरीद का सौदा हुआ था। यह सौदा 3,600 करोड़ रुपए का था। इसमें 360 करोड़ रुपए की रिश्वतखोरी की बात सामने आई थी। UPA-2 सरकार के दौरान फरवरी 2010 में 12 हेलिकॉप्टर खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इसका ठेका तब 556 मिलियन यूरो यानी करीब 3,546 करोड़ रुपए में अगस्‍ता वेस्टलैंड को दिया गया। अगस्‍ता वेस्टलैंड का हेडक्वॉर्टर ब्रिटेन में है, जबकि इसकी पैरंट कंपनी फिनमैकेनिका का हेडक्वॉर्टर इटली में है। इटली की जांच एजेंसियों के मुताबिक फिनमैकेनिका ने यह ठेका हासिल करने के लिए भारत के कुछ नेताओं और वायुसेना के कुछ अधिकारियों को 360 करोड़ रुपए की रिश्वत दी।

10. नेशनल हेराल्ड स्कैंडल (2008)
करीब 5 हजार करोड़ रुपये संपत्ति इस तरह किया अपने नाम
गांधी परिवार पर अवैध रूप से नेशनल हेराल्ड की मूल कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की संपत्ति हड़पने का आरोप है। वर्ष 1938 में कांग्रेस नेता जवाहर लाल नेहरू ने 5000 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी बनाई थी। जवाहर लाल नेहरू के साथ सभी 5000 स्वतंत्रता सेनानी इस कंपनी के शेयर होल्डर थे। शुरुआत से ही इस कंपनी में कांग्रेस और गांधी परिवार के लोग हावी रहे। यह कंपनी नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और कौमी आवाज नाम से तीन अखबार प्रकाशित करती थी। करीब 70 साल बाद कांग्रेसी शासनकाल में कांग्रेस से मिले 90 करोड़ रुपये लोन के बावजूद घाटे के कारण एक अप्रैल, 2008 को ये अखबार बंद हो गए। गांधी परिवार पर इस संपत्ति का अवैध रूप से अधिग्रहण करने के लिए पार्टी फंड का इस्तेमाल करने का आरोप लगा है। गांधी खानदान के मौजूदा दोनों नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड केस में कोर्ट से जमानत पर हैं। इन दोनों ने अपनी सरकारों के जरिए देश के कई शहरों में नेशनल हेराल्ड अखबार के नाम पर कई एकड़ जमीन आवंटित करा ली। इसकी प्रॉपर्टी की मौजूदा कीमत करीब 5 हजार करोड़ रुपये से अधिक बताई जाती है।

हेराफेरी कर 5 लाख रुपये से बनाई 5 हजार करोड़ की संपत्ति
मार्च 2011 में सोनिया और राहुल गांधी ने 5 लाख रुपये की लागत से ‘यंग इंडिया लिमिटेड’ नाम की कंपनी खोली। इस कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 76 प्रतिशत हिस्सेदारी हैं, जबकि मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के 12-12 प्रतिशत शेयर हैं। दोनों ही कांग्रेसी नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं। कंपनी बनने के बाद यंग इंडिया लिमिटेड (YIL) ने नेशनल हेराल्ड को चलाने के लिए ‘एजेएल’ के 90 करोड़ की देनदारियों का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। यानी एक तरह से लोन चुकाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। इसके बाद एजेएल के 10-10 रुपए के नौ करोड़ शेयर ‘यंग इंडिया लिमिटेड’ को दे दिए गए। 9 करोड़ शेयर के साथ यंग इंडिया को इस कंपनी के 99 प्रतिशत शेयर मिल गए और इसके बदले यंग इंडिया को कांग्रेस का लोन चुकाना था। लेकिन राहुल-सोनिया की यंग इंडिया लिमिटेड ने सिर्फ 50 लाख रुपए का ही भुगतान किया था कि गांधी परिवार के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने एजेएल के बाकी बचे 89.50 करोड़ रुपए का लोन माफ कर दिया। लोन माफ करते ही सोनिया और राहुल गांधी की कंपनी यंग इंडिया को एजेएल की संपत्ति का मालिकाना हक मिल गया।

11. वाड्रा-डीएलएफ घोटाला
कांग्रेस सरकार के रहते रॉबर्ट वाड्रा बेहद कम कीमतों पर जमीनें खरीदीं
वर्ष 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और उनके दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ घोटाले का आरोप लगा। उन पर शिकोहपुर गांव में कम दाम पर जमीन खरीदकर भारी मुनाफे में रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ को बेचने का आरोप लगा। रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ से 65 करोड़ का ब्याज-मुक्त लोन लेने का आरोप लगा। बिना ब्याज पैसे की अदायगी के पीछे कंपनी को राजनीतिक लाभ पहुंचाना मूल उद्देश्य था। यह तथ्य भी सामने आया है कि केंद्र में कांग्रेस सरकार के रहते रॉबर्ट वाड्रा ने देश के कई और हिस्सों में भी बेहद कम कीमतों पर जमीनें खरीदीं। इस मामले में हाल ही में हरियाणा सरकार ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।

12. बीकानेर जमीन घोटाला
रॉबर्ट वाड्रा की 4 कंपनियों के खिलाफ एफआईआर
राजस्थान के बीकानेर में हुए जमीन घोटालों में रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों के जमीन सौदे भी शामिल हैं। अंग्रेजी न्यूज पोर्टल इकोनॉमिक्स टाइम्स के अनुसार गलत जमीन सौदों के सिलसिले में 18 एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें से 4 वाड्रा की कंपनियों से जुड़े हैं। ये सारी एफआईआर 1400 बीघा जमीन जाली नामों से खरीदे जाने से जुड़ी हैं, जिनमें से 275 बीघा जमीन वाड्रा की कंपनियों के लिए जाली नामों से खरीदे जाने के आरोप हैं।

13. मारुति घोटाला (1973)
सोनिया गांधी को बनाया गया था एमडी
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी को यात्री कार बनाने का लाइसेंस मिला था। वर्ष 1973 में सोनिया गांधी को मारुति टेक्निकल सर्विसेज प्राइवेट लि. का एमडी बनाया गया, हालांकि सोनिया के पास इसके लिए जरूरी तकनीकी योग्यता नहीं थी। बताया जा रहा है कि कंपनी को सरकार की ओर से टैक्स, फंड और कई छूटें मिलीं थी।

14. दलित हॉस्टल घोटाला
गांधी परिवार की ओर से खरीदी गई जमीन में काफी गड़बड़ी
मुंबई के बांद्रा ईस्ट इलाके में गांधी परिवार की ओर से खरीदी गई जमीन में काफी गड़बड़ी है। सन 1983 में यह जमीन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को दलितों के हॉस्टल बनाने के लिए मिली थी। दलितों के हॉस्टल के लिए आरक्षित 3478 वर्ग मीटर को कमर्शियल प्रॉपर्टी में कन्वर्ट कर दिया गया। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कि 20,000 वर्गफीट पर ही निर्माण करने की अनुमति थी, लेकिन कांग्रेस ने 80,000 वर्ग फुट जमीन पर निर्माण कर लिया। जहां सरकार को कमर्शियल प्रॉपर्टी से 50 प्रतिशत राजस्व प्राप्त होता है, वहीं इस प्रॉपर्टी से सिर्फ 30 प्रतिशत मिला। मुंबई के पॉश बांद्रा ईस्ट इलाके की इस जमीन की कीमत सन 2017 के हिसाब से 262 करोड़ रुपए आंकी गई।

15. मूंदड़ा स्कैंडल (1957)
घोटाले की छींटें जवाहर लाल नेहरू पर पड़े
कलकत्ता के उद्योगपति हरिदास मूंदड़ा को स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे घोटाले के तौर पर याद किया जाता है। इसकी छींटें प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर भी पड़े। दरअसल 1957 में मूंदड़ा ने एलआईसी के माध्यम से अपनी छह कंपनियों में 12 करोड़ 40 लाख रुपये का निवेश कराया था। यह निवेश सरकारी दबाव में एलआईसी की इंवेस्टमेंट कमेटी की अनदेखी करके किया गया। तब तक एलआईसी को पता चला उसे कई करोड़ का नुक़सान हो चुका था। इस केस को फिरोज गांधी ने उजागर किया, जिसे नेहरू ख़ामोशी से निपटाना चाहते थे। उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामाचारी को बचाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें अंतत: पद छोड़ना पड़ा।

16. अंतुले ट्रस्ट-सीमेंट घोंटाला (1981)
इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान के लिए फंड के बदले सीमेंट का कोटा
अंतुले ट्रस्ट प्रकरण की गूंज 1981 में हुई। यह महाराष्ट में हुए सीमेंट घोटाले से संबंधित था। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री ए आर अंतुले का नाम एक घोटाले में सामने आया। उन पर आरोप यह था कि उन्होंने इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान, संजय गांधी निराधार योजना, स्वावलंबन योजना आदि ट्रस्ट के लिए पैसा जुटाया। जो लोग, खासकर बड़े व्यापारी या मिल मालिक ट्रस्ट को पैसा देते थे, उन्हें सीमेंट का कोटा दिया जाता था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने दोषी ठहराया तो उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनको सभी दोषों से मुक्त कर दिया। 

17. जीप खरीद घोटाला (1948)
घोटाले के आरोपी को नेहरू ने मंत्री बना दिया
देश की आजादी के तुरंत बाद यानी 1948 में जीप घोटाला हुआ। दरअसल, पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को जीपों की जरूरत थी। उस वक्त 300 पाउंड प्रति जीप के हिसाब से 1500 जीपों के लिए आदेश दिए गए थे, लेकिन 1949 तक महज 155 जीपें पहुंच पाईं। इनमें भी ज्यादातर जीपें तय मानक पर खरी नहीं उतरीं। जांच में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वीके मेनन आरोप लगे। कई साल चली जांच के बाद 1955 में इस मामले को बंद कर दिया गया। जिन मेनन पर घोटाले के आरोप लगे थे उन्हें बाद में जवाहर लाल नेहरू ने अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया।

18. साइकिल आयात घोटाला (1951)
साइकिल आयात करने का कोटा देने के लिए रिश्वत ली
साइकिल आयात घोटाला 1951 में हुआ था। उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सरकार में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सचिव एस.ए.वेंकटरमण ने गलत तरीके से एक कंपनी को साइकिल आयात करने का कोटा दिए जाने के बदले में उन्होंने रिश्वत भी ली और इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।

19. आदर्श घोटाला (2012)
सैनिकों के लिए बने फ्लैट नेताओं ने भी ले लिए
इस घोटाले में मुंबई की कोलाबा सोसायटी में 31 मंजिल इमारत में स्थित फ्लैटों को बाजार की कीमतों से कम कीमत पर बेचा गया था। इस सोसायटी को सैनिकों की विधवाओं और भारत के रक्षा मंत्रालय के कर्मियों के लिए बनाया गया था। समय की अवधि में, फ्लैटों के आवंटन के लिए नियम और विनियमन संशोधित किए गए थे। इसमें महाराष्ट्र के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- सुशील कुमार शिंदे, विलासराव देशमुख और अशोक चव्हाण के खिलाफ आरोप लगाये गये थे। यह जमीन रक्षा विभाग की थी और सोसायटी के लिए दी गई थी।

20. टाट्रा ट्रक घोटाला (2012)
ट्रकों की खरीद के लिए 14 करोड़ रुपये की रिश्वत
वेक्ट्रा के अध्यक्ष रवि ऋषिफॉर्मर और सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग प्रतिबंध अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामला पंजीकृत किया था। इसमें सेना के लिए 1,676 टाटा ट्रकों की खरीद के लिए 14 करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई थी।

21. सत्यम घोटाला (2009)
14,000 करोड़ रुपये का कॉरपोरेट घोटाला
सत्यम कंप्यूटर सर्विसेजस के घोटाले से भारतीय निवेशक और शेयरधारक बुरी तरह प्रभावित हुए। यह घोटाला कॉरपोरेट जगत के सबसे बड़े घोटालों में से एक है, इसमें 14,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया गया था। पूर्व चेयरमैन रामलिंगा राजू इस घोटाले में शामिल थे, जिन्होंने सब कुछ संभाला हुआ था। बाद में उन्होंने 1.47 अरब अमेरिकी डॉलर के खाते को किसी प्रकार के संदेह के कारण खारिज कर दिया। उस साल के अंत में, सत्यम का 46 प्रतिशत हिस्सा टेक महिंद्रा ने खरीदा था, जिसने कंपनी को अवशोषित और पुनर्जीवित किया।

22. हर्षद मेहता कांड (1992)
स्टॉक मार्केट को करीब 5000 करोड़ रुपए का घाटा
बोफोर्स के बाद साल 1992 में हर्षद मेहता कांड सामने आया। स्टॉक मार्केट में हर्षद का बड़ा नाम था। आरोप है कि हर्षद ने धोखाधाड़ी से बैंकों का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब 5000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। इस पर कई फ़िल्म भी बन चुकी है। बैंक अफसरों के मिलीभगत से हर्षद ने इतने बड़े स्कैम को अंजाम दिया था।

23. स्टांप पेपर घोटाला
तेलगी ने किया 30 हजार करोड़ रुपये का स्कैम
साल 2000 में बेंगलुरु पुलिस को एक टिप मिली कि फर्जी स्टाम्प पेपर ट्रक में भरकर कहीं भेजे जा रहे हैं। पुलिस ने जब छापा मारा तो उन्हें बहुत सारे फर्जी स्टाम्प पेपर मिले। जांच के बाद कई नाम सामने आए, जिसमें से एक नाम था अब्दुल करीम तेलगी का। जब उसको पकड़ने की कोशिशें शुरू हुईं तो तेलगी फरार हो गया। इसी बीच एक बार अजमेर की दरगाह में जब तेलगी गया, तो उसके बारे में पुलिस को पहले ही पता चल गया। वहां पहुंचकर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। जब इस मामले की जांच हुई, तो हर दिन इसकी रकम बढ़ती ही चली गई। तेलगी भी पुलिस को इधर-उधर की बातों में घुमाता रहा। उसे जेल में भी सारी सहूलियत मिलती थी, इसलिए वह जेल से भी अपना धंधा चलाता रहा। बताया जाता है कि 1992 से लेकर 2002 तक करीब 30 हजार करोड़ रुपये का स्टाम्प घोटाला किया गया।

24. छत्तीसगढ़ शराब घोटाला (2023)
कांग्रेस सरकार की मिलीभगत से 2161 करोड़ रुपये का घोटाला
छत्तीसगढ़ में 2018 विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने राज्य में शराबबंदी करने का वादा किया था और अपने घोषणा पत्र में इस मुद्दे को शामिल किया था। लेकिन शराबबंदी नहीं हुई। अब जब 2023 में विधानसभा चुनाव नजदीक आया तो शराबबंदी तो छोड़िए शराब घोटाला सामने आ गया। इस घोटाले को नेताओं, वरिष्ठ नौकरशाहों की मिलीभगत से अंजाम दिया गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच में यह सामने आया है कि शराब घोटाला के जरिये सरकारी खजाने को 2,161 करोड़ रुपये चूना लगाया गया। घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने विशेष अदालत में 16 हजार पन्नों का आरोपपत्र दाखिल किया। ईडी के अनुसार सभी आरोपी एक सिंडिकेट चला रहे थे। इनकी भ्रष्ट गतिविधियों से 2019-23 के बीच सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।

पीएम मोदी ने कहा था- जिसने देश को लूटा है उसका हिसाब होकर रहेगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों को दया का पात्र और भ्रष्टाचारियों का मिलाप बताते हुए कहा था कि ये 20 लाख करोड़ के घोटाले की गारंटी दे सकते हैं। पीएम मोदी ने कहा कि अगर उनकी (विपक्ष) घोटालों की गारंटी हैं, तो मोदी की भी एक गारंटी है। मेरी गारंटी है कि हर घोटालेबाज पर कार्रवाई। हर चोर लुटेरे पर कार्रवाई की गारंटी। जिसने गरीब को लूटा है, देश को लूटा है, उसका हिसाब तो होकर होकर रहेगा। पीएम मोदी ने कहा कि इनका कॉमन मिनिमम प्रोग्राम है कि भ्रष्टाचार पर कार्रवाई से बचना। भाजपा कार्यकर्ता इसे जन-जन तक पहुंचाएंगे, तब लोग देखेंगे उनका असली मंशा क्या है? 20 लाख करोड़ के भ्रष्टाचार की गारंटी!

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