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दक्षिण भारत में बीजेपी के बढ़ते जनाधार से कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां बौखलाईं, अब उत्तर-दक्षिण को बांटने की साजिश!

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दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बढ़ते जनाधार से कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां बौखला गई हैं। उन्हें अपनी जमीन खिसकता दिखाई दे रहा है। तेलंगाना, केरल में आज भाजपा तीसरी सबसे पार्टी है वहीं तमिलनाडु में शहरी निकाय चुनाव के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। दक्षिण में बीजेपी का वोट शेयर लगातार बढ़ता जा रहा है। अभी हाल में संपन्न हुए तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें 1 से बढ़कर 8 हो गई और वोट शेयर 13.88 प्रतिशत हो गया। तेलंगाना में 2014 में बीजेपी का वोट शेयर 4.13 प्रतिशत था। वहीं केरल में 2011 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 6.03 प्रतिशत था जो कि 2021 के चुनाव में 11.3 प्रतिशत हो गया। इसी तरह शहरी निकाय चुनाव में 2022 में भाजपा का वोट शेयर बढ़कर 5.4 प्रतिशत हो गया जबकि 2011 में यह 2.1 प्रतिशत था। यही वजह है कि कांग्रेस और दक्षिण भारत की पार्टियों में घबराहट है। वे अपना किला बचाने के लिए कुछ भी अनर्गल बयान देने लगे हैं। कभी सनातन को खत्म करने की बात करते हैं तो कभी हिंदीभाषी राज्य को गौमूत्र स्टेट कहते हैं। कभी दक्षिण भारत को उत्तर भारत से श्रेष्ठ बताते हैं। यही नहीं, जिस दक्षिण भारत से बीजेपी के बाहर होने की बात करते हैं वहीं तेलंगाना में बीजेपी उम्मीदवार कटिपल्ली रेड्डी ने तेलंगाना में मुख्यमंत्री केसीआर और ‘भावी सीएम’ रेवंत रेड्डी दोनों को पराजित किया है। लेकिन अपने  एजेंडे के लिए वे इस सच्चाई से मुंह फेर लेते हैं। इसके अलावा कुल सांसदों के लिहाज से भी बीजेपी दक्षिण भारत की सबसे बड़ी पार्टी है। दक्षिण में बीजेपी के 29 सांसद है वहीं कांग्रेस के 28 सांसद हैं। 

नोहरू ने बोए थे उत्तर-दक्षिण भारत के बीच विभाजन के बीज
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उत्तर – दक्षिण भारत के बीच विभाजन के बीज बोए थे। बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- “पूरे इतिहास में वह क्षेत्र जो पाकिस्तान है, उसका अधिकांश भाग एक अलग देश नहीं था, लेकिन दक्षिण भारत था।” यानि नेहरू के हिसाब से पाकिस्तान अलग देश नहीं था बल्कि दक्षिण भारत था। इससे साफ पता चलता है कि नेहरू और उनके राजवंश के साथ-साथ कांग्रेस का मानना ​​है कि दक्षिण और उत्तर भारत अलग-अलग देश हैं! हो सकता है नेहरू खानपान और रहन-सहन में अंतर होने की वजह से दक्षिण भारत को अलग देश करार दिया हो लेकिन जिस सनातन ने भारतवर्ष को सदियों से जोड़कर रखा हुआ है वे इसे कैसे भूल गए?

नेहरू की विभाजनकारी सोच की वजह से द्रविड़स्थान की मांग उठी
नेहरू की विभाजनकारी सोच की वजह से ही आजादी के समय ही ईवी रामासामी (ईवीआर) तमिलों के लिए द्रविड़स्थान नामक एक अलग देश चाहते थे। ई. वी. रामासामी द्वारा द्रविड़ भारत को समर्थन देने और अलग देश द्रविड़स्थान स्थापित करने की मांग करते हुए मुहम्मद अली जिन्ना को पत्र भी लिखा गया था।

कांग्रेस ने फर्जी आर्य थ्योरी से युवा पीढ़ी का ब्रेन वॉश किया
कांग्रेस और तमिलनाडु की डीएमके जैसी पार्टियों ने अलगाववाद की अपनी अवधारणा को साबित करने के लिए हमेशा फर्जी आर्य आक्रमण सिद्धांत (Fake Aryan Invasion Theory) का समर्थन किया है। कांग्रेस शासन के दौरान फर्जी आर्य आक्रमण सिद्धांत को पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया गया ताकि वे भारत की युवा पीढ़ियों का ब्रेन वॉश कर सकें!

डीएमके सांसद ने हिंदीभाषी राज्यों को गौमूत्र स्टेट कहा
संसद के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन 5 दिसंबर 2023 को लोकसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन बिल पेश किया। चर्चा के दौरान धर्मपुरी से DMK सांसद डॉ. सेंथिल कुमार ने कहा कि भाजपा की ताकत केवल हिंदी बेल्ट के उन राज्यों को जीतने में ही है, जिन्हें हम आमतौर पर गोमूत्र राज्य कहते हैं। सेंथिल ने आगे यह भी कहा कि दक्षिण के राज्यों में BJP को घुसने नहीं दिया गया है। यह खतरा जरूर है कि कश्मीर की ही तरह भाजपा दक्षिण भारत के राज्यों को भी केंद्र शासित प्रदेश न बना दे। क्योंकि ये वहां जीत नहीं सकते तो उसे UT बनाकर गवर्नर के जरिए शासन कर सकते हैं।

सेंथिल कुमार का बयान सोची समझी राणनीति का हिस्सा
डीएमके सांसद सेंथिल कुमार के इस बयान के बाद सनातन और उत्तर-दक्षिण का विवाद फिर शुरू हो गया है। हालांकि, बयान के बाद सांसद ने माफी मांग ली थी और लोकसभा की कार्यवाही से डीएमके सांसद के बयान को हटा दिया है। लेकिन डीएमके सांसद का यह विवादित बयान कोई अनायास नहीं आया है, यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। यह भी कोई नई बात नहीं है कि डीएमके के किसी नेता ने इस तरह का बयान कोई पहली बार दिया है, इससे पहले भी उसके नेता विभाजनकारी बयान देते रहे हैं। चाहे हिंदी भाषा की बात हो, सनातन संस्कृति की बात हो या फिर उत्तर-दक्षिण विवाद की बात हो, वे इसे लेकर विवादित बयान देते रहे हैं।

बीजेपी के विरोध में किस सीमा तक जाएंगे डीएमके नेता?
आखिर सवाल है कि आप हिंदी या हिंदी भाषी राज्यों के विरोध में किस हद तक गिरेंगे। भाषा के लिहाज से लेकर देश के राज्य के रूप में आप इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बयान कैसे दे सकते हैं। तमिलनाडु के ही सांसद और बीजेपी नेता के के. अन्नामलाई के शब्दों में उत्तर भारत के लोगों को कभी पानी पूरी बेचने वाला, शौचालय बनाने वाला और अब विवादित बयान। हिंदी भाषी राज्यों को लेकर मन में यह दुराग्रह से आखिर क्या हासिल होने वाला है। इससे फायदे की जगह नुकसान ही हो जाता है। डीएमके नेता सीधे-सीधे हिंदी भाषा में रहने वाले लोगों का अपमान कर रहे हैं।

दक्षिण में लगातार बढ़ रहा बीजेपी का जनाधार
ऐसा नहीं है कि बीजेपी का दक्षिण में जनाधार बिल्कुल नहीं है। बीजेपी कर्नाटक में सरकार चला चुकी है। पुड्डुचेरी में पार्टी सरकार की सहयोगी की भूमिका में है। तेलंगाना में विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन लगातार बेहतर होता जा रहा है। यह वोट शेयर के साथ ही सीटों के रूप में भी दिखता है। 2009 में बीजेपी का वोट शेयर करीब 3 फीसदी थी। यह 2014 में बढ़कर 4.13 फीसदी पहुंच गया। 2018 के चुनाव में बीजेपी को करीब 7 फीसदी वोट मिले थे। इस बार बीजेपी को 14 प्रतिशत वोट मिले हैं। पार्टी ने इस बार 8 सीटें जीती हैं। वहीं, पिछले विधानसभा में बीजेपी का पास महज एक ही विधायक था। पार्टी ने यहां 111 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने यहां 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। मौजूदा प्रदर्शन को देखें तो 2024 के लिए पार्टी की स्थिति मजबूत ही हुई है।

सांसदों के हिसाब से बीजेपी दक्षिण भारत की सबसे बड़ी पार्टी
दक्षिण भारत में कुल एमपी की 130 सीटें हैं। इसमें बीजेपी के पास सबसे ज्यादा 29 सीटें हैं। यानि सांसदों के हिसाब से देखें तो बीजेपी दक्षिण भारत की सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बाद कांग्रेस के पास ​​28 सीटें, डीएमके के पास 24 सीटें, वाईएसआरसीपी के पास 22 सीटें, बीआरएस के पास 9 सीटें, आईयूएमएल के पास 3 सीटें, टीडीपी के पास 3 सीटें। लेकिन फिर भी एजेंडा चलाने वाले कहते हैं कि दक्षिण भारत में भाजपा की उपस्थिति नहीं है।  

तेलंगाना में 8 सीटें जीतकर बीजेपी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी
ऐसा नहीं है कि बीजेपी का दक्षिण में जनाधार बिल्कुल नहीं है। बीजेपी कर्नाटक में सरकार चला चुकी है। पुड्डुचेरी में पार्टी सरकार की सहयोगी की भूमिका में है। तेलंगाना में विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन लगातार बेहतर होता जा रहा है। यह वोट शेयर के साथ ही सीटों के रूप में भी दिखता है। 2009 में बीजेपी का वोट शेयर करीब 3 फीसदी थी। यह 2014 में बढ़कर 4.13 फीसदी पहुंच गया। 2018 के चुनाव में बीजेपी को करीब 7 फीसदी वोट मिले थे। इस बार बीजेपी को 14 प्रतिशत वोट मिले हैं। पार्टी ने इस बार 8 सीटें जीती हैं। वहीं, पिछले विधानसभा में बीजेपी का पास महज एक ही विधायक था। पार्टी ने यहां 111 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने यहां 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। मौजूदा प्रदर्शन को देखें तो 2024 के लिए पार्टी की स्थिति मजबूत ही हुई है।

नैरेटिव बीजेपी दक्षिण भारत में नहीं,  तेलंगाना में बीजेपी के कटिपल्ली रेड्डी ने CM केसीआर और ‘भावी सीएम’ रेवंत रेड्डी दोनों को हराया
एक तरफ जहां बीजेपी को दक्षिण से दूर बताया जा रहा है वहीं दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में बीजेपी कटिपल्ली वेंकट रमण रेड्डी नए बाहुबली बनकर उभरे हैं। बीजेपी के वेंकट रमण रेड्डी ने तेलंगाना के मौजूदा सीएम के चंद्रशेखर राव (केसीआर) के साथ भावी सीएम रेवंत रेड्‌डी दोनों को चुनाव में शिकस्त दी है। कटिपल्ली वेंकट रमण रेड्डी की जीत पर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उनकी फोटो के पोस्ट की है और लिखा कि इस ग्रेटमैन की जीत की चर्चा होनी चाहिए। बीजेपी के कटिपल्ली वेंकट रमना ने कामारेड्डी विधानसभा सीट से तेलंगाना के मौजूदा सीएम केसीआर और कांग्रेस के सीएम उम्मीदवार रेवंत रेड्डी दोनों को हराया।  

केरल में बिना खाता खोले BJP बनी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी
केरल में 2021 के चुनाव में बीजेपी भले ही एक भी सीट न जीत पाई हो लेकिन पार्टी के लिए एक अच्छी खबर भी है। दक्षिण के इस राज्य में बीजेपी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। पार्टी का ये स्थान वोट शेयर के मामले में हैं। 62 सीट जीतकर राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी सीपीआईएम को 25.1 प्रतिशत वोट मिले हैं। वहीं 21 सीट जीतने वाली कांग्रेस को 24.7 प्रतिशत पाकर राज्य में दूसरी सबसे ज्यादा वोट पाने वाली पार्टी बनी है। वोट शेयर के मामले में बीजेपी तीसरे नंबर पर है जिसे 11.3 प्रतिशत वोट मिले हैं।

पीएम मोदी काशी तमिल संगमम के जरिये जोड़ रहे उत्तर-दक्षिण भारत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां काशी तमिल संगमम जरिये उत्तर भारत और दक्षिण भारत की संस्कृतियों को जोड़ने का काम कर रहे हैं वहीं कांग्रेस और डीएमके जैसी पार्टियां विभाजन का कार्ड खेल रही है। प्रधानमंत्री द्वारा संगम की पहल भारत की दो संस्कृतियों को मिलाने की कोशिश है जो संभवतः हज़ार वर्ष बाद की जा रही है। अंतिम तमिल संगम दसवीं शताब्दी में हुआ था। यह ठीक है कि भूमंडलीकरण के दौर में एक लिंग्वाफ्रैंका (संपर्क भाषा) का होना अनिवार्य है पर अन्य भारतीय भाषाओं तथा वहां की संस्कृति का सम्मान भी उतना ही आवश्यक है। इस बात समझते हुए पीएम मोदी प्राचीन तमिल भाषा का कई अवसरों पर बखान कर चुके हैं। लेकिन सत्तालोलुप पार्टियां समाज को बांटकर येन-केन प्रकारेण सत्ता में बनी रहना चाहती हैं। लेकिन में पीएम मोदी में जिस तरह से लोगों का भरोसा बढ़ा है उससे साफ है कि जल्द ही इन विभाजनकारी शक्तियों से मुखौटा उतर जाएगा। और यह मुखौटा जनता ही उतारेगी।

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