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मोदी सरकार की बड़ी कूटनीतिक जीत, जी-20 सम्मेलन में ‘नई दिल्ली घोषणापत्र’ को मिली स्वीकृति, राजनीतिक गिद्दों और मोदी विरोधियों को लगा बड़ा झटका

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भारत की राजधानी नई दिल्ली में दो दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन का आगाज हो चुका है। शिखर सम्मेलन के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत को उस समय बड़ी कूटनीतिक जीत मिली, जब भारत अफ्रीकी यूनियन को इसका सदस्य बनाने में सफल रहा और जी-20 के सदस्य देशों ने ‘नई दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लेरेशन’ को आम सहमति से स्वीकृति दी। भारत मंडपम में चल रहे सम्मेलन के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोद ने कहा कि अभी-अभी अच्छी खबर मिली है कि हमारी टीम की कड़ी मेहनत और आपके सहयोग के कारण ‘नई दिल्ली जी-20 समिट डिक्लेरेशन’ पर आम सहमति बन गई है। प्रधानमंत्री मोदी की इस घोषणा के बाद सम्मेलन कक्ष और पूरे देश में खूशी की लहर दौड़ गई। यह स्वीकृति भारत के वैश्विक दबदबे का प्रमाण है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने फिर साबित कर दिया कि भारत आज वैश्विक भू-राजनीति में अहम भूमिका निभाने की पूरी योग्यता और क्षमता रखता है।  

राजनीतिक गिद्द शशि थरूर की भविष्यवाणी हुई गलत 

इस घोषणा से प्रधानमंत्री मोदी के विरोधियों, भारत विरोधी ताकतों के साथ ही उन राजनीतिक गिद्दों पर वज्रपात हुआ है, जो इस सम्मेलन की असफलता की कामना कर रहे थे। राजनीतिक गिद्दों को लग रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम जी-20 के सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाने में असफल होंगे। यह सम्मेलन अपेक्षित परिणाम देने में नाकाम होगा। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम की योग्यता पर भरोसा नहीं था। लेकिन नई दिल्ली घोषणापत्र की स्वीकृति ने फिर साबित कर दिया है कि “गिद्दों के श्राप देने से गायें नहीं मरा करती हैं।” हाल ही में CNBCTV18News से बात करते हुए कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने आशंका जताई थी कि जी-20 का यह शिखर सम्मेलन घोषणा पत्र की मंजूरी के बिना ही संपन्न हो जाएगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का विशेषज्ञ माने जाने वाले शशि थरूर की आशंका गलत साबित हो चुकी है। इससे उनकी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की समझ पर भी सवाल उठ रहे हैं। 

धरे रह गए सिद्धार्थ वरदराजन के सारे आकलन 

इसी तरह वामपंथी मीडिया पोर्टल ‘द वायर’ के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने भी नई दिल्ली घोषणापत्र पर आम सहमति नहीं बनने की भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा था कि इस सप्ताह के अंत में नई दिल्ली में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए आम सहमति से घोषणापत्र तैयार करने में बाधाएं आ रही हैं। उन्होंने तंज किया कि जी-20 शेरपा, जो सोमवार से बुधवार तक हरियाणा के नूंह में मिले, आम सहमति तक पहुंचने में विफल रहे। वरदराजन ने ‘द वायर’ में ‘No Delhi Declaration? West Rejects India’s Compromise Text at G20 Sherpas Meeting’ शीर्षक से लिखे एक आर्टिकल को सोशल मीडिया एक्स में शेयर किया। उन्होंने लिखा कि पश्चिमी देशों ने शेरपा की बैठक में भारत की सहमति के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। इससे नई दिल्ली घोषणा पत्र पर सवाल खड़े हो गए हैं।

घोषणापत्र को लेकर ‘द वायर’ के दुष्प्रचार को झटका

‘द वायर’ ने सोशल मीडिया एक्स में एक पोस्ट किया था, जिसमें घोषणापत्र को लेकर सहमति नहीं बनने की बात कही गई थी। यहां तक उसे मोदी सरकार की छवि से भी जोड़ने की कोशिश की गई थी। पोस्ट में लिखा गया था कि दिल्ली घोषणापत्र जारी करने में विफलता वैश्विक स्तर पर भारत और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि पर खराब असर डालेगी, जिन्होंने जी-20 की नियमित रोटेशनल अध्यक्षता को एक बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि के रूप में प्रदर्शित करने की कोशिश की है। अब ‘नई दिल्ली लीडर्स समिट डिक्लेरेशन’ को स्वीकृति मिलने से ‘द वायर’ के दुष्प्रचार को जबरदस्त झटका लगा है। अगर घोषणापत्र स्वीकृत नहीं होता तो यह वामपंथी न्यूज पोर्टल प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार को कोसने और बदनाम करने के लिए पूरा जोर लगा देता। इसके तमाम सरपरस्त भी इसके अभियान को आगे बढ़ाने में सक्रिय हो जाते। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने इनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है।

मोदी सरकार ने ध्वस्त किया मीडिया के सारे अनुमान

प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा अभियान चलाने वालों में ‘द प्रिंट’ भी शामिल है। भारत में जी-20 सम्मेलन के एक दिन पहले (08 सितंबर, 2023) को ‘द प्रिंट’ ने ‘Xi-Putin absent, shadow of Russia-Ukraine on consensus: Geopolitical tensions set stage for G20 Delhi’ शीर्षक से एक खबर प्रकाशित की, जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी-जिनपिंग के सम्मेलन में शामिल नहीं होने और उसके असर के बारे में लिखा गया था। अपने आर्टिकल में ‘द प्रिंट’ ने बताया कि रूस और चीन के राष्ट्रपतियों की अनुपस्थिति और यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेद का बड़ा असर पूरे सम्मेलन पर देखने को मिलेगा। जी-20 का यह समूह अपने मूल उद्देश्य को परिभाषित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। भारत जी-20 को अधिक समावेशी निकाय बनाने और एक संयुक्त घोषणापत्र तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। ऐसे में गहराते भू-राजनीतिक मतभेदों की वजह से आम सहमति बनाना काफी मुश्किल होगा। इसी तरह बिजनेस स्टैंडर्ड जैसे समाचार पत्रों ने भी आशंकाएं व्यक्त की थीं। लेकिन मोदी सरकार सारी आशंकाओं और प्रोपेगेंडा को ध्वस्त करते हुए ‘नई दिल्ली घोषणापत्र’ को स्वीकार कराने में सफल रही है।

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