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बिहार में बड़ा खेल होने वाला है, लालू परिवार जाएगा जेल! आरजेडी टूट की कगार पर, सरकार पर संकट के बादल!

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बिहार की सरकार पर संकट के बादल छा गए हैं। सत्ताधारी महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू यादव स्वयं तो चारा घोटाले में सजायाफ्ता हैं ही अब उनका पूरा परिवार लैंड फॉर जॉब स्कैम और आईआरसीटीसी घोटाले में जेल जाएगा। आलम यह है कि लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी और उनके 9 में से छह संतान किसी न किसी भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित हैं। लालू यादव के ओएसडी रहे भोला यादव ने लालू और उनके परिवार का सारा काला चिट्ठा सीबीआई के सामने खोल दिया है, ऐसे में उनके बचने की गुंजाइश न के बराबर है। और जब पूरा परिवार ही जेल में होगा तो परिवारवादी पार्टी राजद का बिखरना निश्चित है। वे नेता जो देश और समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं वे निश्चित ही राजद पर लगे दाग को धोकर दूसरे दलों से जुड़कर समाजसेवा करना चाहेंगे। राजद में बिखराव आता है तो साफ है कि बिहार की सरकार गिर जाएगी।

लालू परिवार भ्रष्टाचार के शिकंजे में, फायदे में नीतीश कुमार

बिहार की राजनीति में अगले कुछ दिन बेहद अहम हैं। जब यह तय होगा कि वर्तमान सरकार गिरती या नहीं। अगर गिरती है तो फिर नई सरकार किसके नेतृत्व में बनेगी। लेकिन लालू परिवार के भ्रष्टाचार के शिकंजे में आने के बाद सबसे ज्यादा किसी को फायदा हुआ है तो वो हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। क्योंकि अंदरखाने कहा यह जा रहा है कि राजद में यह तय हो गया था कि होली बाद तेजस्वी की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी होगी। लेकिन इसी बीच भ्रष्टाचार में कार्रवाई हो गई और यह बदलाव टल गया और मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार बने हुए हैं। अब आगे देखना यह होगा नीतीश का अगला कदम क्या होता है। चूंकि भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा राजद सरकार में शामिल है तो यह देखना होगा कि नीतीश भ्रष्टाचार के दाग से खुद को कब अलग करते हैं। इसमें एक पेंच यह भी है कि चूंकि जदयू नेता ललन सिंह की शिकायत पर ही सीबीआई और ईडी की कार्रवाई हो रही है तो क्या राजद सरकार से अपना समर्थन वापस लेगी।

पीएम मोदी ने कहा था- लोकतंत्र बचाने के लिए परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ संघर्ष करना होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ”परिवारवाद-वंशवाद की राजनीति ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। इसने देश का भयंकर नुकसान किया है। लोकतंत्र बचाने के लिए परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ संघर्ष करना होगा।” उन्होंने कहा था, ”ये परिवारवादी पार्टियां आज भी देश को पीछे ले जाना चाहती हैं। उनका सार्वजनिक जीवन परिवार से शुरू होता है और सिर्फ परिवार के लिए ही होता है। हमें याद रखना है कि परिवारवाद की राजनीति से धोखा खाने वाले लोगों का भरोसा भाजपा ही लौटा सकती है। वंशवाद के राजनीतिक कीचड़ में भी हमने कमल को खिलाया है।”

नौकरी के बदले जमीन मामले में ED को मिले कई सबूत

नौकरी के बदले जमीन मामले में ED टीम की छापेमारी में लालू प्रसाद यादव के परिजनों के घर से लाखों रुपये कैश और जेवरात बरामद किए गए हैं। बताया जाता है कि लालू के परिजनों के घर से 53 लाख रुपये कैश, अमेरिकी डॉलर, 540 ग्राम सोने के सिक्के, डेढ़ किलो सोने के गहने भी मिले हैं। परिवार का और 30 किलो से अधिक सोने के जेवरात और 900 अमेरिकी डॉलर भी बरामद किए गए हैं।

जमीन के बदले नौकरी मामले में अब तेजस्वी से होगी पूछताछ

सीबीआई ने अब नौकरी के बदले जमीन मामले में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को समन भेजा है। बताया जाता है कि जांच एजेंसी द्वारा भेजे गए इस समन में तेजस्वी यादव से जमीन के बदले नौकरी मामले में पूछताछ की बात कही गई है। इसी मामले में 15 मार्च को लालू प्रसाद यादव, रावड़ी देवी उनकी दो बेटियों समेत 16 आरोपियों को अदालत में पेश होना है। जमीन के बदले नौकरी मामले में सीबीआई की टीम राबड़ी देवी और लालू यादव से पूछताछ कर चुकी है।

600 करोड़ आय का खुलासा, तेजस्वी यादव जल्द होंगे गिरफ्तार

दिल्ली-एनसीआर, पटना, मुंबई और रांची में 24 स्थानों पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से जुड़ी जगहों पर छापेमारी हुई। ईडी ने उनके बेटे, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और उनकी बेटियों से जुड़े परिसरों में छापेमारी की। छापेमारी के एक दिन बाद जमीन के बदले रेलवे की नौकरी की जांच में ईडी ने दावा किया है कि उसने 600 करोड़ रुपये के अपराध की आय का खुलासा करने वाले दस्तावेजों को जब्त कर लिया है। एजेंसी के अनुसार, दस्तावेज 350 करोड़ रुपये की अचल संपत्तियों के स्वामित्व और विभिन्न बेनामीदारों के माध्यम से किए गए 250 करोड़ रुपये के लेनदेन से संबंधित हैं।

लालू ने खलासी-चपरासी से भी लिखवा ली करोड़ों की जमीन, गरीबों की आह लगी

लालू यादव ने रेलवे में खलासी-चपरासी भर्ती में नौकरी दिलाने के नाम पर करोड़ों की जमीन लिखवा ली। अब उन गरीबों का आह लालू परिवार पर लग गई है। यही वजह है कि अब लालू परिवार जेल में दिखाई देगा। पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा- लालू प्रसाद की हिम्मत ही थी कि रेल के खलासी और चपरासी से भी करोड़ों की जमीन लिखवा ली। फर्जी कंपनियां बनवाकर परिजनों के लिए अकूत संपत्ति अर्जित की। सही मायने में काफी हिम्मती हैं, इसीलिए तो चारा घोटाले में जेल जाते समय अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार की छाती पर बैठाया।

जमीन के बदले नौकरी घोटाले के प्रमुख लाभार्थी हैं तेजस्वी यादव

ईडी जिन संपत्तियों की जांच कर रहा है उनमें नई दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में एक चार मंजिला बंगला डी-1088 शामिल है। करीब 150 करोड़ रुपये की कीमत वाली इस बंगले को महज 4 लाख रुपये में खरीदा गया दिखाया गया है। ईडी ने आरोप लगाया है कि यह संपत्ति तेजस्वी के स्वामित्व और नियंत्रण वाली कंपनी एबी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम पर पंजीकृत है। ईडी ने कहा कि तलाशी के दौरान तेजस्वी प्रसाद यादव इस घर में ठहरे हुए पाए गए। इस घर को अपनी आवासीय संपत्ति के रूप में इस्तेमाल करते पाए गए। ईडी के दावों के अनुसार, तेजस्वी जमीन के बदले नौकरी घोटाले के प्रमुख लाभार्थी के रूप में उभरे हैं।

ईडी के हाथ लगे दस्तावेज लालू परिवार की मुसीबत बढ़ा रहे

कुल मिलाकर ईडी ने जो अपराध की आय के दस्तावेज जब्त किये हैं उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि तेजस्वी कभी भी जेल जा सकते हैं। सियासी जानकारों की मानें तो अपराध की आय के लिए जेल जाना सुनिश्चित होता है। तेजस्वी यादव ने इसी के लिए सीबीआई की ओर से जारी समन को दोबारा अन्य तारीख पर भेजने का आग्रह किया। जानकारों का मानना है कि अपराध की आय का खुलासा होने के बाद लालू परिवार बुरी तरह फंस गया है। अब इस पूरी कवायद से निकलने में काफी देर होगी। ईडी के हाथ लगे दस्तावेज लालू परिवार की मुसीबत को बढ़ा देंगे।

रेलवे भर्ती में 50 फीसदी से ज्यादा उम्मीदवार लालू प्रसाद के परिवार के निर्वाचन क्षेत्रों से

एजेंसी ने मनी लॉन्ड्रिंग जांच में छापेमारी की है, जो कि यूपीए सरकार के तहत रेल मंत्री के रूप में लालू के कार्यकाल के दौरान नौकरी के बदले जमीन लेने से संबंधित है। रेलवे के विभिन्न जोन में ग्रुप डी की नौकरी देने वाले लोगों से जमीन की जबरन वसूली का मामला है। ईडी ने कहा कि जांच के दौरान खुलासा हुआ है कि कई रेलवे जोन में भर्ती किए गए उम्मीदवारों में से 50 फीसदी से ज्यादा लालू प्रसाद के परिवार के निर्वाचन क्षेत्रों से थे। एजेंसी का दावा है कि कथित रूप से गरीब माता-पिता से रिश्वत के रूप में ली गई जमीन को बाद में बड़े प्रीमियम पर बेच दिया गया, जिसमें अर्जित धन मुख्य रूप से तेजस्वी के खातों में जा रहा था।

लालू यादव के परिवार में कुल 11 सदस्य, तीन को छोड़ सभी पर लगे हैं ‘दाग’

बिहार के पूर्व सीएम और आरजेडी प्रमुख लालू यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही हैं। नौकरी के बदले जमीन घोटाला मामले में राबड़ी देवी और उनके परिवार के अन्य लोगों के लिए जांच का शिकंजा कसता ही जा रहा है। सीबीआई की टीम मीसा भारती, हेमा यादव, रागिनी और चंदा यादव का घर या तो सीबीआई या फिर ईडी के निशाने पर लगा रहता है। नौकरी के बदले जमीन के मामले में सीबीआई की टीम ने लालू यादव, राबड़ी देवी, हेमा यादव, मीसा भारती और चंदा देवी से भी पूछताछ कर रही है। चंदा और रागिनी का नाम डिलाइट मार्केटिंग के शेयर धारक और बाद में निदेशक के रूप में भी नाम आया। बाद में जब कंपनी की पहचान लारा यानी लालू राबड़ी प्रोजेक्ट के रूप में बनी तो चंदा और रागिनी को निदेशक के पद से हटा दिया गया।

अपराध की आय का खुलासा, रकम को सेटल करने के लिए साजिश भी की गई

अब तक की गई जांच से पता चला है कि पटना और अन्य क्षेत्रों में प्रमुख स्थानों पर जमीन के कई टुकड़े तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव के परिवार को नौकरी दिलाने के एवज में मिले हैं। ईडी ने एक प्रेस नोट जारी कर कहा कि इन जमीनं का वर्तमान बाजार मूल्य 200 करोड़ रुपये से अधिक है। एजेंसी ने यह भी कहा कि उसने इन जमीनों के लिए कई बेनामीदारों, शेल संस्थाओं और लाभकारी मालिकों की पहचान की है। ईडी का कहना है कि यह संदेह है कि इस संपत्ति को खरीदने में बड़ी मात्रा में नकदी/अपराध की आय का उपयोग किया गया है। एजेंसी का मानना है कि अपराध की आय को छुपाने के लिए मुंबई की कुछ आभूषण का व्यवसाय करने वाली संस्थाओं से भी संपर्क साधा गया है। अपराध की आय वाली रकम को सेटल करने के लिए कई तरह की साजिश भी की गई है।

राबड़ी ने 7.5 लाख रुपये में जमीन लेकर 3.5 करोड़ रुपये में बेचे

ईडी ने आगे कहा कि जांच में पाया गया है कि लालू यादव के परिवार द्वारा गरीब ग्रुप डी आवेदकों से महज 7.5 लाख रुपये में अधिग्रहित की गई जमीनों के चार टुकड़े राबड़ी ने राजद के पूर्व विधायक सैयद अबू दोजाना को 3.5 करोड़ रुपये में भारी लाभ के साथ बेचे। ईडी ने कहा कि ये एक गैरकानूनी और अवैध सौदा किया गया था। जिसकी रकम का बड़ा हिस्सा तेजस्वी के खाते में डाला गया। एजेंसी ने कहा कि उसने 1 करोड़ रुपये की बेहिसाब नकदी, विदेशी मुद्रा में 1,900 डॉलर, 540 ग्राम सोना बुलियन और 1.5 किलोग्राम से अधिक सोने के आभूषण (1.25 करोड़ रुपये मूल्य), विभिन्न संपत्ति के दस्तावेज, परिवार के सदस्यों (लालू यादव के) के नाम पर बिक्री के दस्तावेज बरामद किए हैं।

लालू यादव ने खुद ही अपने परिवार को फंसाया : सुशील मोदी

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी का कहना है कि CBI और ED अपना काम कर रही है। सुशील मोदी ने कहा, लालू प्रसाद ने विधायक, सांसद, मंत्री, एमएलसी बनावाने के बदले कीमती जमीनें परिवार के सदस्यों के नाम से लीं और खुद ही पूरे परिवार को फंसा दिया। उन्हें किसी दूसरे ने नहीं फंसाया। उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों की कार्रवाई होने पर बार-बार लालू परिवार को फंसाने का जो झूठा प्रचार किया जाता है। उसमें कोई दम होता तो लालू प्रसाद चारा घोटाला के सभी पांच मामलों में अदालत से दोषी नहीं पाये जाते। सुशील मोदी ने यह भी कहा कि लालू प्रसाद ने सत्ता में रहते हुए यही बस एक ही मंत्र अपनाया ‘तुम मुझे जमीन दो, मैं तुम्हें नौकरी दूंगा’। बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हर काम के लिए जमीन लेते हुए गरीब परिवार में जन्मे लालू प्रसाद सबसे बड़े जमींदार बन गए। उनके पास पटना में 1 लाख वर्ग फुट से ज्यादा कीमती जमीन है।

भ्रष्टचार से समझौता कर लालू परिवार को बचा रहे नीतीश कुमार

सुशील मोदी का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम बनने के अपने महत्वांकाक्षी सपने के दबाव में भ्रष्टचार से समझौता कर लिया। अब नीतीश कुमार चारा घोटाला से लेकर ‘जमीन के बदले नौकरी घोटाले’ तक में संलिप्त लालू परिवार को बचाने में लगे हैं। सुशील मोदी ने यह भी कहा कि 2008 में लालू प्रसाद के विरुद्ध भ्रष्टचार के मामलों की जांच के लिए दिवंगत शरद यादव और ललन सिंह ने पहल की थी। जेडीयू ने सारे दस्तावेज सीबीआई को उपलब्ध कराये और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ज्ञापन भी दिया था। आज यही लोग लालू प्रसाद पर कार्रवाई रोकने के लिए प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिख रहे हैं।

बिना नौकरी और कोई काम किए तेजस्वी के पास करोड़ों की जायदाद कैसे

सुशील कुमार मोदी ने पीएम को चिट्ठी लिखने वाले विपक्षी दलों से पूछा है कि वह बताएं कि बिना नौकरी और कोई काम किए तेजस्वी के पास करोड़ों की जायदाद कैसे बन गई। उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव को भी बताना चाहिए कि वे दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कालोनी में अरबों रुपये के चार मंजिला मकान के मालिक कैसे बन गए? उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव ने इंटरमीडिएट तक भी पढाई नहीं की, क्रिकेट में विफल रहे, लेकिन बिना कोई उद्योग-व्यापार किये मात्र 29 साल की उम्र में वे 52 सम्पत्तियों के मालिक कैसे बन गए? क्या इसकी जांच नहीं होनी चाहिए? सुशील मोदी ने यह भी कहा कि विपक्ष को बताना चाहिए कि क्या आरजेडी के पूर्व विधायक अबु दोजाना वही नही हैं, जो पटना में तेजस्वी यादव का 750 करोड़ का मॉल बनवा रहे थे।

क्या होने वाला है बिहार की राजनीति में?

बिहार में पहले जमीन के बदले नौकरी मामले में सीबीआई ने राबड़ी देवी के साथ ही लालू यादव और उनकी बेटी मीसा भारती से पूछताछ की तो वहीं प्रवर्तन निदेशालय ने इसी मामले में अपना एक्शन दिखाया। ईडी ने लालू परिवार और साथ ही उनके करीबी राजद नेता सैयद अबु दोजाना के घर पर और कई अन्य ठिकानों पर छापेमारी की। ईडी की यह कार्रवाई पटना के अलावा दिल्ली और एनसीआर के 15 ठिकानों पर एक साथ हुई। इस कार्रवाई के बाद यह अटकलें लगनी तेज हो गई कि क्या बिहार की राजनीति फिजा बदलने वाली है। लेकिन फिलहाल नीतीश कुमार इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं।

नीतीश ने सीबीआई की पूछताछ पर चुप्पी साधी

अब लालू के परिवार और सहयोगियों के घर लगातार एजेंसी की तरफ से हो रही कार्रवाई की वजह से नीतीश कुमार भी असहज महसूस करने लगे हैं। नीतीश कुमार ने लालू परिवार के खिलाफ ईडी की छापेमारी और लालू, राबड़ी और मीसा से सीबीआई की पूछताछ के बाद से चुप्पी साध रखी है। जेडीयू के तमाम मंत्री और नेता भी इस मामले पर चुप्पी साधे बैठे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार और उनके मंत्रियों के साथ जदयू नेताओं से जब लालू परिवार के खिलाफ एजेंसियों की कार्रवाई को लेकर पूछा गया तो वह बिना कुछ बोले चुप्पी साधे चलते बने।

नीतीश ने भ्रष्टाचार के मामले पर ही छोड़ा था तेजस्वी का साथ

इससे पहले 2015 में नीतीश और तेजस्वी साथ आए तो सरकार ठीक चली और नीतीश ने करप्शन के मामले पर ही तेजस्वी का साथ छोड़ा और सरकार गिर गई। अब एक बार फिर लालू परिवार के ऊपर लगातार सीबीआई और ईडी का कसता शिकंजा इस बात की तरफ इशारा करने लगा है कि कहीं इसी को आधार बनाकर नीतीश पलटी तो नहीं मारने वाले हैं।

बिहारी की राजनीति में कुछ तो बड़ा होने वाला है, राजद की घबराहट बढ़ी

लालू परिवार पर कसते शिकंजे पर जब नीतीश से सवाल किया गया तो उन्होंने सवाल सुना और उसे अनसुना कर गाड़ी में सवार हो चलते बने। इसके बाद तो बिहार के कई मंत्री जो जेडीयू कोटे के हैं उनसे मीडिया सवाल पूछती रही और वह मौन धारण करे रहे। ऐसे में यह अंदाजा लगाया जाने लगा कि बिहारी की राजनीति में कुछ तो बड़ा होनेवाला है। जिसने राजद की घबराहट बढ़ा दी है। जबकि जदयू पूरी शांति से इस सब को दख रही है और भाजपा इस पूरे मामले पर ध्यान गड़ाए बैठी है।

बिहार BJP में बड़ा बदलाव, एक साथ बदले गए 45 जिलाध्यक्ष

इस बीच बिहार बीजेपी में होली के ठीक बाद बड़े पैमाने पर बदलाव कर दिया गया है। पार्टी ने 45 जिलाध्यक्षों को बदल दिया है। क्या आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह बदलाव किया गया है। जाहिर है 2024 का अगला लोकसभा चुनाव और 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव इन्हीं जिला अध्यक्षों के नेतृत्व में लड़ा जाना है। नए जिलाध्यक्षों के नामों की सूची पर नजर डालने तो यह साफ हो जाता है कि इसमें समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने की पार्टी ने पूरी कोशिश की है। इनमें अगड़ी जाति से लेकर पिछड़ी और यहां तक की अतिपिछड़ी जाति से आने वाले लोगों को भी प्रतिनिधित्व दिया गया है।

प्रशांत किशोर ने कहा- नीतीश का JDU हमेशा से बैसाखी का मोहताज

इन दिनों बिहार की राजनीति में जोर आजमाइश कर रहे चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार की राजनीति में केवल दो बड़े खिलाड़ी हैं, एक भारतीय जनता पार्टी और दूसरी राष्ट्रीय जनता दल (राजद)। प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल-यूनाइटेड (जद-यू) को खुद को जीवित रखने के लिए हमेशा से ही एक बैसाखी की जरूरत पड़ती है। पीके ने नीतीश पर तंज कसते हुए कहा कि इससे पहले उन्होंने (नीतीश कुमार) कहा कि भाजपा उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रही है। जल्द ही आप राजद को लेकर भी ऐसे ही आरोप सुनेंगे। यह गठबंधन टिक नहीं सकता। आज उपेंद्र कुशवाहा पार्टी से बाहर हो गए हैं, कल कोई और बाहर होगा। उन्होंने कहा कि लोग लालू प्रसाद के कार्यकाल के कानूनविहीन युग के बारे में सोचकर अभी भी कांपते हैं, जिसे आज भी ‘जंगल राज’ के रूप में याद किया जाता है।

राजद परिवारवादी पार्टी, लालू यादव 12वीं बार बने RJD के राष्ट्रीय अध्यक्ष

अब देश की जनता परिवारवादी पार्टियों को स्वीकार नहीं करेगी। राजद भी देश की परिवारवादी पार्टियों में एक है जो आज भ्रष्टाचार के दलदल में फंस चुका है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की अक्टूबर 2022 में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में लालू यादव को नया अध्यक्ष चुन लिया। पार्टी ने लालू प्रसाद यादव को लगातार 12वीं बार निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना। राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए लालू यादव के अलावा किसी ने भी नामांकन दायर नहीं किया था। इसके चलते लालू को निर्विरोध पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कहने पर जेडीयू नेता ललन सिंह ने लालू के खिलाफ सीबीआई दस्तावेज मुहैया कराए थे। लेकिन आज राजद के साथ सरकार होने की वजह से उनके सुर बदल गए हैं। इस पर एक नजर- 

सीबीआई को लालू के खिलाफ JDU ने उपलब्ध कराए थे दस्तावेज

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भ्रष्टचार से समझौता कर लालू परिवार को बचा रहे। हलांकि अभी वे मौन धारण किए हुए हैं लेकिन उनके करीबी ललन सिंह लालू परिवार के बचाव में मुखर हैं। जबकि 2008 में लालू प्रसाद के विरुद्ध जांच के लिए शरद यादव और ललन सिंह ने पहल की थी। JDU ने सारे दस्तावेज सीबीआई को उपलब्ध कराये थे। इस संबंध में ललन सिंह ने मनमोहन सिंह को ज्ञापन दिया था, लेकिन नीतीश कुमार की तरह वे भी पलटूराम बन गए और आज वह लालू परिवार के बचाव में उतर आए हैं। ललन सिंह की ये सफाई तब आयी है जब लालू यादव यादव समेत उनके परिवार के पांच सदस्य इस मामले में फंस चुके हैं। ललन सिंह ही चारा घोटाले के मामलों में सबसे सक्रिय किरदार थे, जिसके बाद पांच मामलों में लालू प्रसाद यादव को जेल की सजा हो चुकी है।

ललन सिंह ने कहा था- लालू गरीबों की आवाज नहीं, चारा खाने वाले हैं

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, पांच साल पहले ललन सिंह ने कहा था- कोर्ट के फैसले ने साबित कर दिया कि पूरा चारा घोटाला लालू प्रसाद के संरक्षण और उनके ही नियंत्रण में हुआ। लालू प्रसाद गरीबों की आवाज नहीं हैं, वे तो गरीबों का चारा खाने वाले हैं। उन्होंने गरीब आदिवासियों का ही चारा खा लिया। कोर्ट के फैसले ने प्रमाणित कर दिया कि वे गरीबों के कितने बड़े हितैषी हैं। लालू ने जो किया, उसका परिणाम तो उन्हें भुगतना ही होगा। जैसी करनी-वैसी भरनी। लालू प्रसाद को यह पता ही होगा कि जो पाप यहां होता है, उसका परिणाम यहीं भुगतना पड़ता है। स्वर्ग-नरक यहीं है। इसी जमीन पर करनी की सजा भोगनी पड़ती है।

चारा घोटाले की जांच के अहम किरदार थे ललन सिंह

वर्ष 1996 में लालू प्रसाद यादव पर जब चारा घोटाला का आरोप लगा था तो उनके खिलाफ सीबीआई जांच कराने वालों में सबसे अहम किरदार ललन सिंह ही थे। पटना हाईकोर्ट में सीबीआई जांच के लिए याचिका दायर करने वालों में ललन सिंह शामिल थे। बाद में जब कोर्ट के आदेश से सीबीआई जांच शुरू हुई थी तो ललन सिंह ने जांच एजेंसी को सबूत जुटाने में सबसे ज्यादा मदद की थी। चारा घोटाले के पांच मामलों में लालू प्रसाद यादव को सजा सुनायी जा चुकी है। लालू प्रसाद यादव को 5 मामलों में अब तक 1.65 करोड़ रुपए का जुर्माना हो चुका है और 32 साल से अधिक की सजा हो चुकी है। फिलहाल जमानत पर लालू प्रसाद यादव बाहर हैं।

ललन सिंह ने लैंड फॉर जॉब स्कैम में की थी सीबीआई जांच की मांग

बात सिर्फ चारा घोटाले की नहीं है। लैंड फॉर जॉब मामले में सीबीआई जांच की मांग करने वाले कोई और नहीं बल्कि ललन सिंह और शिवानंद तिवारी ही थे। 2008 में ललन सिंह ने ही तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव पर जमीन लेकर नौकरी देने का आरोप लगाया था। इतना ही नहीं ललन सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस कर जमीन से जुड़े कागजात जारी किए थे, जो लालू के परिजनों के नाम रजिस्ट्री कराए गए थे। ललन सिंह द्वारा कागजातों को सीबीआई को भी सौंपा था। जब मामले की जांच के दौरान सीबीआई द्वारा आरोपों को गलत बताया था तो ललन सिंह ने सीबीआई पर ‘मैनेज’ करने तक का आरोप लगा दिया था। इस मामले में लालू यादव के अलावा मीसा भारती, राबड़ी देवी समेत 15 से ज्यादा आरोपी हैं।

लालू का कहना कि फंसाया गया, कुकर्मों पर पर्दा डालने जैसाः ललन सिंह

लालू को सजा मिलने पर ललन सिंह ने कहा था- हैरत की बात तो यह है कि लालू प्रसाद अपने कुकर्मों को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। चारा घोटाले की जांच कोर्ट के अधीन हुई। जांच सीबीआई और मॉनिटरिंग पटना हाईकोर्ट ने की। चार्जशीट और साक्ष्य हाईकोर्ट के निरीक्षण में एकत्र हुए। साक्ष्यों के आधार पर ही अब न्यायालय ने उन्हें सजा सुनाई है। इसमें कोई राजनीतिक दल कहां से आ गया? अब यह कहना कि उन्हें फंसा दिया गया, अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने जैसा है।

लालू परिवार को फंसा कर यू टर्न मारते ललन सिंह

करीब 15 साल पहले तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव पर रेलवे में नौकरी देने का आरोप लगाने वाले ललन सिंह ने अब यू टर्न मारा है। 2008 में ललन सिंह ने ही सारे सबूतों के साथ न सिर्फ प्रेस कांफ्रेंस कर लालू प्रसाद यादव पर जमीन लेकर नौकरी देने का आरोप लगाया था बल्कि सीबीआई को तमाम कागजात सौंप कर जांच करने की मांग की थी। लेकिन जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह ने अब खुद प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर कहा कि जमीन के बदले रेलवे में नौकरी के मामले में कोई दम नहीं है।

बिहार में सियासी गर्माहट के बीच सभी की निगाहें नीतीश कुमार पर टिकी है। नीतीश कुमार वर्ष से 2000 से पाला बदलते रहे हैं। इस पर एक नजर-

नीतीश कुमार वर्ष से 2000 से बदलते रहे हैं पाला

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 में बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ दिया। 26 साल के साथ में ये दूसरी बार है जब नीतीश भाजपा से अलग हुए। नीतीश कुमार समता पार्टी के दौर से ही भाजपा के साथ आ गए थे। 2000 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब भाजपा के साथ ही थे। तब से लेकर अब तक सात बार वह इस पद पर रह चुके हैं। इनमें से पांच बार शपथ के दौरान भाजपा उनकी सहयोगी थी। कुर्सी के लिए नीतीश अपनी सुविधा के अनुसार पलटते रहे हैं। इससे पहले 2013 में नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ नीतीश एनडीए से अलग हो गए थे और 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया था। 2015 में उन्होंने पुराने सहयोगी लालू यादव के साथ गठबंधन किया, लेकिन ये सरकार भी 20 महीने ही चल पाई। आरजेडी से अलग होने के बाद नीतीश ने एक बार फिर एनडीए का दामन थामा और फिर अगस्त 2022 में एनडीए का साथ छोड़ दिया।

नीतीश 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने

वर्ष 2000 में जब बिहार विधानसभा के चुनाव हुए। तब नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था। भाजपा, समता पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा। वहीं, राजद, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी एक साथ मैदान में थे। एनडीए गठबंधन को चुनाव में 151 सीटें मिलीं। भाजपा ने 67 सीटें जीती थीं। नीतीश कुमार की पार्टी के 34 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। एनडीए गठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चुन लिया। नीतीश ने सीएम पद की शपथ भी ले ली। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 163 था। राजद की अगुआई वाली यूपीए के पास 159 विधायक थे। बहुमत का आंकड़ा नहीं होने के कारण नीतीश को सात दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा और यूपीए गठबंधन की सरकार बनी और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनी।

2005 में जदयू-भाजपा ने मिलकर सरकार बनाई

वर्ष 2005 विधानसभा चुनाव से दो साल पहले यानी 2003 में समता पार्टी नए नाम जदयू के तौर पर अस्तित्व में आई। इसमें नीतीश कुमार की समता पार्टी के साथ लोक शक्ति, जनता दल (शरद यादव ग्रुप), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय हो गया था। जदयू और भाजपा ने मिलकर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ा। फरवरी में हुए इस चुनाव में किसी भी गठबंधन या दल को बहुमत नहीं मिला। राम विलास पासवान की लोजपा को 29 सीटें मिलीं। पासवान जिसके साथ जाते उसकी सरकार बनती। लेकिन, पासवान दलित या मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ गए। दोनों ही गठबंधन उनकी शर्त मानने को तैयार नहीं हुए। क्योंकि, एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी नेता थीं, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार गठबंधन के नेता थे। छह महीने राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा। नए सिरे से चुनाव हुए। इस बार एनडीए गठबंधन में शामिल जदूय को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। जो बहुमत के आंकड़े 122 से काफी ज्यादा था। नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

2010 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने नीतीश

एनडीए गठबंधन ने 2010 में भी साथ में मिलकर चुनाव लड़ा। तब जदयू को 115, भाजपा को 91 सीटें मिलीं। लालू प्रसाद यादव की राजद 22 सीटों पर सिमटकर रह गई। तब तीसरी बार नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता मिली। वह मुख्यमंत्री बने।

2013 में नीतीश पलटे, टूटा 17 साल पुराना साथ

2013 में नीतीश ने 17 साल पुराने साथ को छोड़ दिया और पलटी मार ली। तब भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। नीतीश कुमार भाजपा के इस फैसले से सहमत नहीं थे। उन्होंने एनडीए से अलग होने का फैसला ले लिया। भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। राजद ने नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश पद पर बने रहे।

नीतीश ने कहा था- नरेंद्र भाई बहुत दिन गुजरात के दायरे में सिमटकर नहीं रहेंगे

नीतीश कुमार ने साल 2003 में गुजरात के कच्छ में एक रेल परियोजना का उद्धाटन करते हुए कहा था कि “मुझको पूरी उम्मीद है कि नरेंद्र भाई बहुत दिन गुजरात के दायरे में सिमटकर नहीं रहेंगे। देश को इनकी सेवाएं मिलेंगी।” लेकिन 2014 में जब नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किया गया तो नीतीश कुमार को रास नहीं आया और अपनी बात से पलट गए।

2014 लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने दिया इस्तीफा, जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया

2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश की पार्टी ने अकेले लड़ा। उसे महज दो सीटों पर जीत मिली। एनडीए केंद्र की सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने महादलित परिवार से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।

मिट्टी में मिल जाएंगे, बीजेपी से हाथ नहीं मिलाएंगेः नीतीश

2014 में बीजेपी से अलग होते समय नीतीश कुमार ने कहा था कि ‘रहें चाहें या मिट्टी में मिल जाएं लेकिन आपके साथ हाथ नहीं मिलाएंगे।’ उन्होंने कहा था कि ‘भरोसा किया था, वो अटल जी का युग था, अब अटल जी का युग नहीं है। इसलिए जब हम अलग हो रहे थे तो आडवाणी जी ने फोन किया था और कहा था कि आपको अध्यक्ष ने वचन दिया है, उसको निभाया जाएगा, हमने कहा कि अब हम लोगों के लिए संभव नहीं है। और जो अध्यक्ष ने वचन दिया, वो अध्यक्ष हैं नहीं। और इन बातों को कौन सुनेगा, इसलिए हम लोग अपने रास्ते पर चले। वो युग समाप्त हो चुका है। अब आपका नया अवतार हो चुका है। अब इसके बाद किसी परिस्थिति में लौटकर जाने का प्रश्न नहीं उठता।” ये अलग बात है कि 2017 में नीतीश फिर पलटे और भाजपा से हाथ मिला लिया था।

2015 में बिहार में बना महागठबंधन, नीतीश पांचवीं बार बने मुख्यमंत्री

2015 विधानसभा चुनाव से पहले जदयू, राजद, कांग्रेस समेत अन्य छोटे दल एकसाथ आ गए। सभी ने मिलकर महागठबंधन बनाया। तब लालू की राजद को 80, नीतीश कुमार की जदयू को 71 सीटें मिलीं। भाजपा के 53 विधायक चुने गए। राजद, कांग्रेस और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार फिर से पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए। लालू के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम और दूसरे बेटे तेज प्रताद स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए।

2017 में नीतीश फिर पलटे, महागठबंधन छोड़ भाजपा से हाथ मिलाया

2017 में तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफा मांगा। हालांकि, राजद ने मना कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने खुद इस्तीफा दे दिया और चंद घंटों बाद भाजपा के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली। भाजपा की मदद से सीएम बने।

2020 में भाजपा ने ज्यादा सीटें जीतीं, फिर भी नीतीश को बनाया मुख्यमंत्री

2020 में भाजपा-जदयू ने मिलकर एनडीए गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा। तब जदयू ने 115, भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 74 सीटें हासिल की। ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जदयू सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी। इसके बाद भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने। भाजपा की तरफ से दो उप मुख्यमंत्री बनाए गए।

2022 में फिर नीतीश पलटे, राजद से हाथ मिलाया

अगस्त 2022 में नीतीश ने फिर पलटी मारते हुए एनडीए से अलग हो गए और राजद से हाथ मिलाया। अभी बिहार विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 243 है। यहां बहुमत साबित करने के लिए किसी भी पार्टी को 122 सीटों की जरूरत होती है। वर्तमान आंकड़ों को देखें तो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद है। उसके पास विधानसभा में 79 सदस्य हैं। वहीं, भाजपा के 77, जदयू के 45, कांग्रेस के 19, वाम दलों के 16, एआईएमआईएम का 01, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के 04 विधायक और एक निर्दलीय विधायक हैं।

नीतीश कुमार ने कब-कब पाला बदला, इस पर संक्षिप्त में एक नजर…

-साल 1994 में नीतीश कुमार ने अपने पुराने सहयोगी लालू यादव का साथ छोड़कर लोगों को चौंका दिया था। जनता दल से किनारा करते हुए नीतीश ने जॉर्ज फ़र्नान्डिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था और 1995 के बिहार विधानसभा चुनावों में लालू के विरोध में उतरे लेकिन चुनाव में बुरी तरह से उनकी हार हुई। हार के बाद वो किसी सहारे की तलाश में थे।

-इसी तलाश के दौरान उन्होंने 1996 में बीजेपी से हाथ मिला लिया। बीजेपी और समता पार्टी का ये गठबंधन अगले 17 सालों तक चला। हालांकि, इस बीच में साल 2003 में समता पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) बन गई। जेडीयू ने बीजेपी का दामन थामे रखा और साल 2005 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की। इसके बाद साल 2013 तक दोनों ने साथ में सरकार चलाई।

-साल 2013 में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2014 के लिए जब नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया तो नीतीश कुमार को यह रास नहीं आया और उन्होंने बीजेपी से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। राजद के सहयोग से सरकार चला रहे नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कुर्सी अपनी सरकार के मंत्री और दलित नेता जीतन राम मांझी को सौंप दी। वे खुद बिहार विधानसभा चुनाव 2015 की तैयारी में जुट गए।

-लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी से पटखनी खा चुके नीतीश कुमार ने साल 2015 में पुराने सहयोगी लालू यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में आरजेडी जेडीयू से अधिक सीट लेकर आई। बावजूद इसके नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री व बड़े बेटे तेजप्रताप यादव स्वास्थ्य मंत्री बने।

-20 महीने तक दो पुराने साथियों की सरकार ठीक से चलती रही लेकिन 2017 में दोनों पार्टियों में खटपट शुरू हो गई। अप्रैल 2017 में शुरू हुई खटपट ने जुलाई तक गंभीर रूप ले लिया, जिसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने योजनाबद्ध तरीके से इस्तीफा दे दिया। चूंकि, विधानसभा में बीजेपी विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी थी, इसलिए बीजेपी ने मध्यावधि चुनाव से इंकार करते हुए पुराने सहयोगी को समर्थन देने का निर्णय लिया और नीतीश कुमार फिर एक बार मुख्यमंत्री बन गए।

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