पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम के नेपाली समुदाय को अप्रवासी बताने वाली सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर नाराज़गी जताते हुए वहां स्थानीय समुदाय के लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 13 जनवरी को सिक्किम के निवासियों के लिए इनकम टैक्स छूट से संबंधित एक याचिका पर अपने आदेश में सिक्किम के नेपालियों को विदेशी मूल के लोगों के रूप में संदर्भित किया था, जो सिक्किम में आकर बस गए थे। इस आदेश की जानकारी सार्वजनिक होने के बाद स्थानीय लोग इस फैसले के खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। यही नहीं यहां लड़ाई अब मूल निवासी के साथ ही बाहरी का भी रूप ले रही है। इससे एक तरफ़ जहां प्रदेश की राजनीति में खलबली मच गई वहीं राज्य सरकार के सामने क़ानून-व्यवस्था को बनाए रखने को लेकर नई चिंता उत्पन्न हो गई है। इस बीच गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर पुराने फैसले पर विचार करने की मांग की।
मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद भी प्रदर्शन जारी
इस बीच सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने घोषणा की कि सिक्किम के नेपालियों पर अदालत के अवलोकन में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर की गई है। हालांकि सरकार के इस आश्वासन के बाद भी राजधानी शहर गंगटोक के अलावा अब ग्रामीण इलाकों में रहने वाले सिक्किम के नेपाली लोग भी विरोध प्रदर्शन पर उतर आए।
Sikkim is one of most peaceful state of India that shares boarder with China. Sikkim is largest cardamom producer India, Sikkim is fully organic farming n environmentally conscious state
A fair judgment of Supreme court was completely overshadowed by a non needed comment
13/13 pic.twitter.com/3tivD1wZNn— ST⭐R Boy (Agenda Buster) (@Starboy2079) February 7, 2023
नेपाली समुदाय का सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के खिलाफ प्रदर्शन जारी
सिक्किम का नेपाली समुदाय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के खिलाफ लगातार प्रदर्शन कर रहा है। 13 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम के निवासियों के लिए इनकम टैक्स छूट देने से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान अपने आदेश में सिक्किम के नेपालियों को “विदेशी मूल” का बता दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ये लोग सिक्किम में आकर बस गए थे। इसके बाद से सिक्किम का नेपाली समुदाय नाराज है।
गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की
इस बीच गृह मंत्रालय ने सिक्किम के नेपाली समुदाय का ‘अप्रवासी’ के तौर पर उल्लेख करने वाली सुप्रीम कोर्ट की कुछ टिप्पणियों के खिलाफ 6 फरवरी 2023 को शीर्ष अदालत में एक पुनर्विचार याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट में गृह मंत्रालय ने पुनर्विचार याचिका दाखिल कर पुराने फैसले पर विचार करने की मांग की। इतना ही नहीं भारत सरकार ने सिक्किम की पहचान की रक्षा करने वाले संविधान के अनुच्छेद 371F के बारे में अपनी स्थिति दोहराई और कहा कि इसे कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि सिक्किम में बसे विदेशी मूल के व्यक्तियों जैसे नेपालियों के बारे में उक्त आदेश में अवलोकन की समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि वे नेपाली मूल के सिक्किमी हैं। भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 371एफ की सर्वोपरिता के बारे में अपना रुख दोहराया है, जो सिक्किम निवासियों की पहचान की रक्षा करता है, जिसे कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
Supreme Court’s fascination for media sound bites & creating sensation via its observation is fairly well established fact but it has now gone a step further- even its decision can endangering security n peace – blame for what is happening in Sikkim lies squarely with SC pic.twitter.com/NmVHRMIhjp
— Alok Bhatt (@alok_bhatt) February 7, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने सिक्किम की परिभाषा में संशोधन करने का दिया था निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने 13 जनवरी 2023 के अपने आदेश में केंद्र सरकार को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 10 (26AAA) में ‘सिक्किम’ की परिभाषा में संशोधन करने का निर्देश दिया था, जिसमें 1975 की विलय की तारीख को या उससे पहले सिक्किम में अधिवासित सभी भारतीय नागरिकों को आयकर में छूट दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लेकर सिक्किम का प्रतिनिधिमंडल शाह से मिला
सिक्किम भाजपा अध्यक्ष डी.आर. थापा ने संयुक्त कार्य समिति और सिक्किमी नागरिक समाज के सदस्यों के साथ 6 फरवरी को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल ने शाह को सिक्किम-नेपालियों को विदेशी टैग के मुद्दे और हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के अवलोकन के बाद ‘सिक्किमीज’ की परिभाषा के विरूपण (रूप बदलने) के बारे में अवगत कराया। गृहमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि सिक्किम समुदाय की भावनाओं का पूरा सम्मान किया जाता है। उन्होंने कहा, “सिक्किम के लोग भारत का अभिन्न और आवश्यक हिस्सा हैं। सिक्किम के लोगों के लिए संवैधानिक प्रावधान की रक्षा की जाएगी।” शाह ने सिक्किम के लोगों से राज्य में शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की और राजनीतिक दलों को संवेदनशील मुद्दे से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करने से बचने की सलाह दी।
शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की
गृह मंत्री ने सिक्किम के लोगों से शांति और सद्भाव बनाए रखने की अपील की और राजनीतिक दलों को सलाह दी थी कि वे इस संवेदनशील मुद्दे का राजनीतिक लाभ लेने से बचें। इससे पहले, कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि केंद्र राज्य सरकार का समर्थन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर कर रहा है। राज्य सरकार इस मामले में पहले ही शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुकी है।
9 फरवरी को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया
लोगों में पनपे आक्रोश को इस बात से समझा जा सकता है कि कोर्ट की टिप्पणी के विरोध में प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने भी शांति मार्च निकाला। मुख्यमंत्री तमांग ने भी विदेशियों के रूप में सिक्किम नेपाली समुदाय के उल्लेख पर गहरी चिंता व्यक्त की है। इसके अलावा प्रदर्शनकारियों की मांगों और इस पूरे मुद्दे पर चर्चा करने के लिए 9 फ़रवरी को राज्य विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मंत्री और महाधिवक्ता का इस्तीफा
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विरोध प्रदर्शनों के परिणामस्वरूप राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता सुदेश जोशी ने इस्तीफ़ा दे दिया है, जो कभी याचिकाकर्ताओं के वकील रह चुके हैं। इसके अलावा सिक्किम के स्वास्थ्य मंत्री एमके शर्मा ने भी इस्तीफ़ा दे दिया है।
16 मई 1975 को सिक्किम भारत का 22वां राज्य बन
सिक्किम बौद्ध राजा द्वारा शासित एक स्वतंत्र देश था। 1890 में, सिक्किम ब्रिटिश संरक्षण में आ गया। 1947 में अंग्रेज चले गए और उसके बाद सिक्किम भारतीय संरक्षण में आ गया। 1975 में सिक्किम ने भारत में विलय का फैसला किया और 16 मई 1975 को सिक्किम भारत का 22वां राज्य बन गया। जब सिक्किम का भारत में विलय हुआ था वहां प्रमुख रूप से बौद्ध भूटिया- लेप्चा, शेरपा और नेपाली हिन्दू थे। उनकी आबादी करीब 95 प्रतिशत थी। इसके अलावा भारतीयों के कुछ 500 परिवार थे जो वहां व्यवसाय के लिए बस गए थे।
सिक्किम में भारतीय मूल के लोगों को “ओल्ड सेटलर्स” कहा गया
भारतीय परिवार जो वहां व्यवसाय के लिए बस गए थे उन्होंने हालांकि भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी। उन्हें “ओल्ड सेटलर्स” कहा गया। जब सिक्किम का भारत में विलय हुआ तो उन्होंने शर्त रखी कि वे इनकम टैक्स नहीं देंगे, जिसे भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया था। इसके लिए एक रजिस्टर रखा गया था और रजिस्टर में प्रविष्टि सिक्किमियों तक ही सीमित थी जो 26.04.1975 को सिक्किम के भारत में विलय से पहले सिक्किम में बस गए थे।
सिक्किम के मूल निवासियों में भूटिया, लेप्चा, नेपाली समुदाय शामिल
सिक्किम के मूल निवासियों को सिक्किमी के तौर पर जाना जाता है जिसमें नेपाली समुदाय के साथ भूटिया और लेप्चा शामिल हैं। इसके साथ ही ऐसे दावे किए जाते हैं कि सिक्किम के भारत में विलय होने से पहले वहां सालों से बसे कुछ परिवारों को चोग्याल (राजा) ने वहां की नागरिकता प्रमाण पत्र सौंपे थे। उन लोगों को भी सिक्किमी माना जाता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस अवलोकन ने सिक्किम में तीन मुख्य समूहों में लेप्चा, भूटिया और नेपालियों की जातीयता के बारे में पहचान के एक संघर्ष को जन्म दे दिया है।
मूल सिक्किमी नागरिक किसे माना जाए, इस पर विवाद
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, सिक्किम में आम नागरिकों के इस विरोध का नेतृत्व कर रही जॉइंट एक्शन कमिटी के अध्यक्ष शांता प्रधान ने “हम केवल उन लोगों को सिक्किमी मानते है जिनको हमारे स्वर्गीय राजा चोग्याल ने 1961 में सिक्किम प्रजा नागरिक प्रमाण पत्र दिया था लेकिन इसमें भी कुछ शर्तें थीं।”वो कहते हैं, “जिन लोगों ने यह नागरिक प्रमाण पत्र लेना था उन लोगों को यह साबित करना था कि वे 1946 से सिक्किम में स्थायी तौर पर रह रहे हैं। लेकिन अब अगर 1975 से यहां रहने वाले लोगों को सिक्किमी मान लिया जाएगा तो इससे हमारे अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो गया है।”
सिक्किमी लोगों को ही जमीन खरीदने और सरकारी नौकरी का अधिकार
शांता प्रधान कहते हैं, “सिक्किमी नेपाली को विदेशी मूल का बोलने से हमारी पहचान पर संकट खड़ा हो गया है। यह आंदोलन हमारे पहचान और अस्तित्व की लड़ाई है। अभी तक यहां केवल सिक्किमी लोगों को ही ज़मीन ख़रीदने और सरकारी नौकरी का अधिकार है, वो जिनके पास प्रजा नागरिक प्रमाण पत्र है। लेकिन सिक्किमी की परिभाषा को बदली गई तो हमारे सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा।”
2008 में इनकम टैक्स छूट से भारतीय नागरिकों को बाहर कर दिया
2008 में पेश की गई इनकम टैक्स छूट में 1975 के बाद सिक्किम में रहने वाले भारतीय नागरिकों को शामिल नहीं किया गया था और उन सिक्किमी महिलाओं को भी शामिल नहीं किया गया था जो ग़ैर-सिक्किम पुरुष से शादी करती हैं। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इन दोनों को शामिल नहीं किया जाना भेदभावपूर्ण था। ये संविधान से हासिल समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इस पर अदालत ने कहा कि कर छूट का लाभ सिक्किम में रहने वाले सभी भारतीय नागरिकों को दिया जाना चाहिए।
2013 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका के बाद शुरू हुआ यह विवाद
एसोसिएशन ऑफ़ ओल्ड सेटलर्स ऑफ़ सिक्किम और अन्य लोगों ने 1975 से पहले सिक्किम में रहने वाले नागरिकों को इनकम टैक्स में दी जाने वाली छूट को चुनौती देते हुए 2013 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। जिन लोगों ने यह याचिका दायर की थी वे मुख्य रूप से मारवाड़ी व्यापारी समुदाय से हैं।
सिक्किम की 6 लाख आबादी में सबसे ज्यादा नेपाली
सिक्किम की 6 लाख 10 हज़ार से अधिक जनसंख्या में सबसे ज़्यादा आबादी नेपाली लोगों की है और उन्हीं को आप्रवासी बताया गया। इसके अलावा जो याचिकाकर्ता हैं वो मारवाड़ी और बिहारी लोग हैं इसलिए यहां अब लड़ाई मूल निवासी और बाहरी के बीच शुरू हो गई है।
आयकर छूट मांगने वाले व्यापारी समुदाय का सिक्किम के अधिकतर कारोबार पर दबदबा
साल 2011 की जनगणना के हिसाब से सिक्किम की 6 लाख 10 हज़ार आबादी में लेप्चा और भूटिया आबादी का 27 फीसदी है और वे मुख्य रूप से बौद्ध हैं। वहीं सिक्किम के नेपाली यहां अपनी क़रीब 70 फ़ीसदी आबादी के साथ बहुसंख्यक हैं और ये समुदाय मुख्य रूप से हिंदू हैं। जिन लोगों ने आयकर में छूट को लेकर याचिका दायर की थी वो कुल आबादी के क़रीब छह फीसदी है और एक तरह से व्यापारी समुदाय होने के कारण सिक्किम के अधिकतर कारोबार पर उनका दबदबा है। सिक्किम की कुल 32 विधानसभा सीटों में क़रीब सात सीटों पर ये लोग निर्णायक भूमिका निभाते हैं।