सेम सेक्स मैरेज यानी समलैंगिक विवाह पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में रोज सुनवाई हो रही है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि विद्वान जजों की नजर में यह कितना महत्वपूर्ण विषय है। जबकि वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट में 11 हजार मामले पेंडिंग हैं। समलैंगिक व्यक्ति प्राचीन समय से समाज में रहते आए हैं लेकिन वेद, उपनिषद, पुराण से लेकर भारत के किसी धर्मग्रंथ में समलैंगिक विवाह की चर्चा नहीं है। भारतीय सनातन संस्कृति में विवाह को 16 पवित्र संस्कारों में से एक माना गया है। यह दो परिवारों का ही नहीं बल्कि दो आत्माओं का भी मिलन होता है, जिससे संसार आगे बढ़ता है। इसे संतान उत्पत्ति के द्वारा पितृ ऋण से मुक्ति दिलाने वाला संस्कार भी माना गया है। ऐसे में सनातन संस्कृति के मूल को जाने बिना भारतीय विवाह पद्धति को समझना भी मुश्किल है। हावर्ड और सेंट स्टीफंस से पढ़े-लिखे अंग्रेजी दां इलीट क्लास की जगह इसकी चर्चा संसद में होनी चाहिए, जहां जनप्रतिनिधि समाज की स्वीकृत मान्यताओं, अस्वीकृतियों पर ज्यादा व्यापक रूप से गंभीर बात कर सकते हैं। लेकिन माननीय मीलार्ड ने कह दिया, ‘मैं हूं सुप्रीम कोर्ट का इंचार्ज, मैं करूंगा फैसला।’
Harvard liberal arts infiltrates Supreme Court of India! #JusticeChandrachud #SameSexMarriage #SupremeCourtofIndia #SnakesInTheGanga pic.twitter.com/0zzBMzUmdM
— Rajiv Malhotra (@RajivMessage) April 19, 2023
समलैंगिक शादी कानून और अपराध का मामला नहीं, संसद में होनी चाहिए चर्चा
लोकतंत्र में यह स्वीकार्य कैसे हो सकता है? यदि चर्चा की जानी है, तो सबसे पहले संसद में की जाए। यह उसी के अधिकार-क्षेत्र का विषय है। यह विशुद्ध रूप से कानून और अपराध का मामला नहीं है। संसद में प्रस्ताव पारित हो जाए, तो फिर संविधान पीठ उसकी विवेचना कर सकती है। समलैंगिक विवाह पर एक भी अध्ययन नहीं किया गया है। विधायिका और न्यायपालिका के बीच, इस मुद्दे पर टकराव की नौबत नहीं आनी चाहिए। यह अतिक्रमण देशहित में नहीं है।
समलैंगिक शादी पर सरकार को करना चाहिए फैसला
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी के मामले में सरकार की तरफ से पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह पर संसद को फैसला लेने दीजिए। इस पर सीजेआई ने कहा कि हम इंचार्ज हैं और हम तय करेंगे कि किस मामले पर सुनवाई करनी है और किस तरह करनी है।
WTF did I just hear? pic.twitter.com/4A7Wt87I1I
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) April 19, 2023
विवाह पुरुष और महिला के बीच संबंध
सॉलिसिटर जनरल ने केंद्र सरकार की ओर से तर्क दिया कि, ‘सामाजिक संबंधों की स्वीकृति कभी भी विधानों के निर्णय पर निर्भर नहीं होती है। यह केवल समाज के भीतर से आती है। मेरा निवेदन यह है कि विशेष विवाह अधिनियम की विधायी स्थिति पूरी तरह से एक बायोलॉजिक मैन (जैविक पुरुष) और एक बायोलॉजिक वुमन (जैविक महिला) के बीच संबंध रही है।’
पुरुष या महिला की पूर्ण अवधारणा नहीं, जननांग आधार नहीं
सॉलिसिटर जनरल मेहता के तर्कों पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘पुरुष की कोई पूर्ण अवधारणा या महिला की पूर्ण अवधारणा बिल्कुल भी नहीं है। यह सवाल नहीं है कि आपके जननांग क्या हैं। यह कहीं अधिक जटिल है, यही बात है। इसलिए जब विशेष विवाह अधिनियम पुरुष और महिला कहता है, तब भी एक पुरुष और एक महिला की धारणा जननांगों पर आधारित पूर्ण नहीं है।’
Chief Justice Of India has said Genitals don't define gender.
There is no such thing as an absolute concept of biological man and woman.I do have genuine questions though… and these I ask with utmost respect, with no malice;
1. Do we stop talking about crimes against WOMEN,…— Rupa Murthy (@rupamurthy1) April 18, 2023
जैविक महिला की अवधारणा नहीं तब महिला अपराध पर बात नहीं होगी?
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि जननांग लिंग को परिभाषित नहीं करते हैं। जैविक पुरुष और स्त्री की पूर्ण अवधारणा जैसी कोई चीज नहीं है। ऐसे में यह सहज सवाल उठता है कि क्या हम महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के बारे में बात करना बंद कर देंगे। क्योंकि जैविक महिलाओं की कोई अवधारणा ही नहीं है?
अदालतों में ड्रेस कोड का क्या होगा?
अब अगर जैविक पुरुष या महिला की कोई पूर्ण अवधारणा नहीं है, तो अदालतों में ड्रेस कोड का क्या होगा? क्या इसका मतलब यह है कि कोई भी (लिंग की परवाह किए बिना) वह पहन सकता है जिसे परंपरागत रूप से मनुष्यों के कपड़े माना जाता है?
अदालतों में महिला, पुरुषों के लिए अलग ड्रेस कोड क्यों?
सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के ड्रेस कोड के मुताबिक महिला वकील साड़ी, लंबी स्कर्ट (सादा सफेद या काला या कोई भी हल्का रंग), सलवार-कुर्ता दुपट्टा (सफेद या काला) के साथ या बिना या काले कोट और बैंड के साथ पारंपरिक पोशाक पहन सकती हैं। पुरुष काले और सफेद औपचारिक पैंट/शर्ट और काला कोट, काली टाई पहनते हैं।
पुरुष जननांग के साथ कोई महिला हो तो CrPC के तहत कैसे माना जाएगा?
सीजेआई की टिप्पणी के विरोध में एसजी मेहता ने अपनी बात दोहराई और कहा कि जननांगों के आधार पर ही महिला और पुरुष का निर्धारण किया जाना चाहिए। यह तर्क नहीं माने जाने पर उन्होंने कई जटिलताओं की ओर इशारा किया। उन्होंने तर्क दिया, ‘अगर मेरे पास एक पुरुष के जननांग हैं लेकिन अन्यथा एक महिला हूं, जैसा कि कहा जा रहा है, मुझे CrPC के तहत कैसे माना जाएगा? एक महिला के रूप में? क्या मुझे 160 बयान के लिए बुलाया जा सकता है? कई मुद्दे हैं।’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यह बेहतर होगा कि इसे संसद और संसदीय समितियां के लिए छोड़ दिया जाए।
समलैंगिक यदि बच्चे गोद लेंगे तो मां और किसे बाप माना जाएगा?
याचिका पर जमियत उलेमा हिंद ने भी आपत्ति जताई है। जमीयत की तरफ से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल सेम सेक्स मैरेज का विरोध करने के लिए अदालत में पहुंचे। उन्होंने कहा कि समलैंगिक यदि किसी बच्चे को गोद लेते हैं तो किसे मां और किसे बाप माना जाएगा? उन्होंने पूछा कि गुजारा भत्ता की जिम्मेदारी किसकी होगी? कपिल सिब्बल ने कहा कि शादी विवाह से जुड़े मामले संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं। इसलिए इस विषय पर राज्य सरकारों की भी राय ली जानी चाहिए।
The Petitioners of #SameSexMarriage are also seeking deletion of Section 16 of the Special Marriage Act which mandates public notice for interfaith marriages.
In the name of Privacy, they don’t want family & govt to know it at all.
Will it not help those involved in #LoveJihad? pic.twitter.com/BvYNqAaqMb
— Shashank Shekhar Jha (@shashank_ssj) April 20, 2023
लवजिहाद को बढ़ावा देगा मैरिज एक्ट की धारा 16 हटाना
विशेष विवाह अधिनियम के तहत धारा 16 के तहत पब्लिक नोटिस देने का प्रावधान है। सेमसेक्स मैरिज के याचिकाकर्ता स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 16 को हटाने की भी मांग कर रहे हैं, जो इंटरफेथ मैरिज के लिए पब्लिक नोटिस को अनिवार्य बनाती है। निजता के नाम पर, वे नहीं चाहते कि परिवार और सरकार को यह बिल्कुल भी पता चले। क्या यह लवजिहाद में शामिल लोगों की मदद नहीं करेगा?
भारत में विवाह के लिए लड़कों की उम्र 21 और लड़की की उम्र 18 साल निर्धारित
भारत में विवाह के लिए लड़कों की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल निर्धारित की गई है। विशेष विवाह अधिनियम में भी यही प्रावधान है, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक शादी की सुनवाई कर रही है। विशेष विवाह अधिनियम, 1954 एक ऐसा कानून है, जो विभिन्न धर्मों या जातियों के लोगों के विवाह के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह एक सिविल विवाह को नियंत्रित करता है, जहां राज्य धर्म के बजाय विवाह को मंजूरी देता है।
समलैंगिक पार्टनरों में किसकी उम्र 21 और किसकी 18 साल होगी
समलैंगिक विवाह में दोनों पार्टनरों में से किस पार्टनर की उम्र 18 साल होगी और किसकी उम्र 21 साल होगी, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत प्रावधान है।
एक तरफ SC में जहाँ लाखों केस पेंडिंग पड़े हुआ हैं तहाँ अति आधुनिक उत्साही CJI महोदय "सेम सेक्स मॅरेज" के फज़ूल मामले में उलझे हुए हैं.
विधायिका के अपने क्षेत्राधिकार में ना घुसने के अनुरोध के बावजूद
पिले पड़े हैं,— DINESH C KASHYAP (@dck1708) April 19, 2023
समलैंगिक विवाह पर सुनवाई कर रही पांच जजों की संवैधानिक पीठ
समलैंगिक विवाह पर सुनवाई कर रही पांच जजों की संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है।
भारतीय सनातन संस्कृति में विवाह एक संस्कार
सनातन धर्म में विवाह को 16 पवित्र संस्कारों में से एक माना गया है। यह दो परिवारों का ही नहीं बल्कि दो आत्माओं का भी मिलन होता है। विवाह संस्कार का अर्थ भोग नहीं बल्कि दो व्यक्तियों का परम योग है जो अंततः धर्म के अनुसार परमार्थ को प्राप्त करते हैं। विवाह के जीवन को दाम्पत्य जीवन कहा जाता है। और विवाह संस्कार की अनादि परम्परा है।
पुरुष और महिला शब्दों के स्थान पर ‘जीवन-साथी’
सर्वोच्च अदालत के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक शादी को कानूनी-सामाजिक मान्यता देने और स्पेशल मैरिज एक्ट में संशोधन करने पर एक नई बहस शुरू की है। संविधान पीठ शादी की नई व्याख्या भी कर सकती है। कानून में पुरुष और महिला शब्दों के स्थान पर ‘जीवन-साथी’ शब्द स्थापित किया जा सकता है। ऐसी दलीलें सामने आई हैं।
समलैंगिक यौन संबंध प्रकृति की संरचनाओं से खिलवाड़
समलैंगिक यौन संबंध नैसर्गिक और प्राकृतिक हैं? क्या उन्हें ‘अनैतिक’ और ‘गलत’ करार नहीं दिया जाना चाहिए? सर्वोच्च अदालत ने 2018 में धारा 377 के तहत समलैंगिकता को ‘अपराध’ की श्रेणी से मुक्त किया था, लिहाजा उसे कुछ स्वीकृति मिली थी, लेकिन उसके मायने ये नहीं हैं कि प्रकृति की संरचनाओं से खिलवाड़ किया जाए।
समलैंगिकों का जन्म भी स्त्री-पुरुष के मिलन से हुआ
प्रकृति ने सभी जीवों, प्राणियों में ‘नर-मादा’ की संरचना की है। उनके भीतर ऐसे समीकरण, प्रक्रियाएं तैयार की हैं कि दोनों का ‘मिलन’ एक और प्राणी को जन्म देता है। समलैंगिकों का जन्म भी इसी तरह हुआ है। जन्म और संरचना की यह प्रक्रिया एकदम ‘दैवीय’ लगती है। जिस तरह एक नए जीव का मस्तिष्क, चेहरा-मोहरा, शारीरिक अंग, हृदय और दूसरे हिस्से और उंगलियों पर लकीरें आदि हम देखते हैं, उन्हें कौन गढ़ता है? हम अचंभित होते रहते हैं कि ‘नर-मादा’ के मिलन से ही ऐसी संरचना कैसे बन जाती है?
सनातन धर्मग्रंथों में ब्रह्मांड के निरंतर निर्माण का उल्लेख
हमारे वेद, पुराण, उपनिषद आदि प्राचीन महाग्रंथों में जीव, प्राणी की संरचना, आत्मा और ब्रह्मांड के निरंतर निर्माण के संदर्भ में उल्लेख हैं और व्याख्याएं भी की गई हैं। कोई संविधान, कानून और व्यक्तिपरक बौद्धिकता ऐसी नैसर्गिक और प्राकृतिक संरचनाओं की समीक्षा नहीं कर सकते। यह व्यक्ति की क्षमताओं से बहुत परे है। उनके खिलाफ कानूनी प्रावधान स्थापित नहीं कर सकते। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में ‘विवाह’ को एक पवित्र संस्कार माना गया है। यह एक सामाजिक संस्थान भी है। विवाह के जरिए वंश-वृद्धि को सामाजिक मान्यता और स्वीकृति मिली है।
जैविक लैंगिकता जननांग से ही परिभाषित, वैचारिक लैंगिकता बाद की चीज
जैविक और मानवीय लैंगिकता उनके ‘जननांग’ से ही परिभाषित होती है। वैचारिक लैंगिकता उसके बाद ही आती है। अदालत कोई नई परिभाषा तय करना चाहती है। यह आधुनिक मतिभ्रम हो सकता है कि समलैंगिक होना भी ‘प्रगतिशील’ लगे। किन देशों में, किन स्थितियों में इसे कानूनी-सामाजिक-मानसिक मान्यता मिली है, उससे भारतीय समाज को ज्यादा सरोकार नहीं है। समलैंगिक भी भारत देश के नागरिक हैं, लिहाजा उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकार भी सुरक्षित हैं।
समलैंगिक शादी से उपजेंगे कई सवाल
समलैंगिकों की मनोविकृति शारीरिक स्तर पर है, उसका निदान किया जाना चाहिए। समलैंगिक संबंध और शादी के अधिकार और मान्यता का ही सवाल नहीं है। परिवार और संबंध से जुड़े पर्सनल लॉ, बच्चे गोद लेने का अधिकार, उत्तराधिकार एवं संपत्ति के अधिकार भी ऐसे संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन पर बड़े विवाद पनपते रहे हैं और संबंधों का ताना-बाना भी बिखर सकता है। जिस स्तर पर समलैंगिकता की समीक्षा की जा रही है, वह स्तर भी देश के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं करता।
कांग्रेस ने 60 साल के शासनकाल में सनातन संस्कृति को कुचला गया
कांग्रेस ने अपने 60 साल के शासनकाल में चंद वोटों की खातिर मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा दिया और सनातन संस्कृति को दबाने-कुचलने का काम किया। इससे भारतवासियों के दिलो-दिमाग से सनातन संस्कृति का गौरव धूमिल होता रहा। ऐसा प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीश भी सनातन संस्कृति के गौरव से भलीभांति परिचित नहीं रहे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में वेद, उपनिषद, पुराण के संदर्भ शायद ही मिले
सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों पर नजर डालें तो माननीय न्यायाधीशों ने अपने फैसलों में विदेशी अदालतों के तमाम फैसलों के सैकड़ों संदर्भ दिए हैं लेकिन अपनी ही समृद्ध संस्कृति का उल्लेख शायद ही मिले। अदालत के फैसलों में वेद, उपनिषद, पुराण का संदर्भ न मिलना जड़ों से कट जाने को ही दर्शाता है। और जड़ों से कटा समाज कभी तरक्की नहीं कर सकता।
सनातन संस्कृति से जुड़ने पर भारत की तरक्की चौगुनी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद ही सनातन संस्कृति के वैभव को पुनर्स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसका व्यापक असर पिछले नौ सालों में भारत की तरक्की में भी देखने को मिल रहा है। सनातन संस्कृति से जुड़ना यानी अपनी जड़ों से जुड़ना और जड़ों जुड़ने के बाद आज भारत हर क्षेत्र में न केवल विकास कर रहा है बल्कि पूरी दुनिया आशा भरी नजरों से भारत की ओर देख रही है। उन्हें भरोसा है कि दुनिया में जिस तरह का संकट है उसमें भारत ही कोई राह दिखा सकता है।