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PM Modi सरकार की नोटबंदी से हाउसिंग सेक्टर में Black Money का इस्तेमाल 80 प्रतिशत घटा, जीएसटी ने भरोसा बढ़ाया तो मकानों की बिक्री बढ़ी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के बाद से देश के हाउसिंग सेक्टर में बढ़ा बदलाव आया है। 2016 के आखिर से अब तक देश के हाउसिंग मार्केट में काले धन का इस्तेमाल 75 से 80 प्रतिशत घटा है और इंवेनटरी में भी कमी आई है। नोटबंदी से पहले के उलट नई लांचिंग के मुकाबले बिक्री ज्यादा बढ़ी है। प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म एनाराक की एक रिसर्च से यह जानकारी सामने आई है।नोटबंदी और जीएसटी ने रियल एस्टेट सेक्टर में भरोसा बढ़ाया
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2016 में रेरा लागू हुआ। और उसी साल 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा कर दी गई। इसके बाद जुलाई 2017 से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू हो गया। इन सबका रियल एस्टेट पर गहरा असर पड़ा। 2013 से लेकर 2016 की तीसरी तिमाही तक सात बड़े शहरों में 16.15 लाख मकानों वाले नए हाउसिंग प्रोजेक्ट लांच हुए थे। इसके मुकाबले 11.78 लाख मकानों की बिक्री हुई थी। लेकिन 2016 की चौथी तिमाही से लेकर 2021 की तीसरी तिमाही के बीच इन शहरों में 9.04 लाख मकानों की लांचिंग के मुकाबले 12.37 लाख मकानों की बिक्री हुई।कोरोना महामारी ने हाउसिंग सेक्टर में जरूरत पैदा कीं
एनाराक ग्रुप के चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा कि नोटबंदी, जीएसटी और रेरा के चलते हाउसिंग सेक्टर की एक तरफ से साफ सफाई हो गई। ज्यादातर खामियां दूर हो गईं और इस बाजार पर ग्राहकों का भरोसा बहाल हुआ। इस बीच कोविड महामारी आ गई। और लोगों को अपने घर की अहमियत समझ में आई। इसके चलते मकानों की बिक्री तेजी से बढ़ने लगी।नए मकानों में कम कैश डील के चलते सेगमेंट कम प्रभावित
रिपोर्ट के मुताबिक, नए मकानों के मुकाबले पुराने मकानों के बाजार पर नोटबंदी का ज्यादा असर हुआ। दरअसल, पुराने मकानों और लग्जरी हाउसिंग सेगमेंट में नगद कारोबार ज्यादा होता है। नोटबंदी ने इसी तरह की डील पर सबसे बड़ी चोट की थी। नए और किफायती मकानों में कम कैश डील के चलते यह सेगमेंट कम प्रभावित हुआ। इस सेगमेंट में डवलपरों की बिक्री बढ़ी।

वादा था सरकार भ्रष्टाचार और कालेधन पर कार्रवाई करेगी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दोनों लोकसभा चुनावों के दौरान लोगों को यह भरोसा दिया था कि वे भारतीय अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाने का प्रयास करेंगे। देशवासियों से वादा किया था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार और कालेधन पर कार्रवाई करेगी। उन्हीं वादों के अनुरूप प्रधानमंत्री मोदी ने कई बड़े और कड़े कदम उठाए हैं। भारत जैसे विशाल देश में नोटबंदी जैसा निर्णय कोई आसान नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री ने साहस दिखाया और देश की जनता ने उनका साथ दिया।

नोटबंदी के चलते हाउसिंग मार्केट में पारदर्शिता बढ़ी

  • नोटबंदी के बाद रेरा और जीएसटी जैसे बदलावों के चलते रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता आई
  • कम दाम पर सरकार का जोर देखकर बड़े डेवलपरों ने सस्ते, मिड सेग्मेंट हाउसिंग पर फोकस किया
  • ब्रांडेड डेवलपर और रियल एस्टेट सेक्टर की लिस्टिड कंपनियों के हाउसिंग प्रोजेक्ट की डिमांड बढ़ी
  • छोटे-मोटे डेवलपर, जिनका बिजनेस मुख्य रूप से कैश डील के भरोसे चल रहा था, बाहर हो गए

नोटबंदी रियल एस्टेट के लिए वरदान साबित
रियल एस्टेट क्षेत्र कालेधन के ट्रांजेक्शन्स के लिए बेहद ही आसान जरिया बन गया था। लेकिन नोटबंदी के निर्णय के बाद आम लोगों के लिए घर खरीदना बहुत सस्ता हो गया। दो लाख रुपये से अधिक के कैस ट्रांजेक्शन पर रोक लगने के बाद प्रॉपर्टी की कीमतों में 30 से 40 प्रतिशत तक कमी आ चुकी है। नोटबंदी के कारण रियल एस्टेट सेक्टर अब अधिक पारदर्शी, संगठित, भरोसेमंद और खरीददारों के लिए अनुकूल साबित हो रहा है।

नोटबंदी से टैक्स पेयर्स की संख्या, कैशलेस ट्रांजेक्शन में वृद्धि
नोटबंदी लागू किए हुए पांच साल पूरे हो गए हैं। नोटबंदी के बाद कैश का बैंकिंग सिस्टम में आना, टैक्स पेयर्स की संख्या में बढ़ोतरी, कैशलेस ट्रांजेक्शन में वृद्धि और आतंकवादी-नक्सलवादी गतिविधियों में भारी गिरावट नोटबंदी की सफलता की अनंत कहानियां कहती हैं। इन पांच वर्ष में नोटबंदी के अनेकों फायदे सामने आए हैं।करदाता तेजी के बढ़े और 8.83 करोड़ हो गए
नोटबंदी के बाद टैक्स रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या में 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2013-14 में 3.79 करोड़ थी, जो 2020-21 वित्तीय वर्ष के लिए 10 जनवरी 2021 तक 5.95 करोड़ हो गई। इसके साथ ही 2013-14 में करदाताओं की संख्या 5.27 करोड़ से 67.5 प्रतिशत बढ़कर 7 सितंबर 2021 तक बढ़कर 8.83 करोड़ करोड़ हो गई।डिजिटल हो रहा इंडिया : 6.5 लाख करोड़ ट्रांजेक्शन
नोटबंदी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था लेस कैश सोसाइटी की ओर अग्रसर है। कैशलेस लेनदेन लोगों के जीवन को आसान बनाने के साथ-साथ हर लेनदेन से काले धन को हटाते हुए क्लीन इकोनॉमी बनाने में भी मददगार साबित हुआ है। नवंबर 2016 में जहां यूपीआई आधारित ट्रांजेक्शन सिर्फ 90 करोड़ रुपए का था अक्तूबर 2018 में बढ़कर 74978 करोड़ रुपए पर पहुंचा। अब अक्टूबर-2021 में जेट स्पीड के बढ़कर 6.5 लाख करोड़ हो गया है। इस दौरान 3.65 बिलियन यूपीआई ट्रांजेक्शन हुए।बैंकों की ब्याज दरों में दो प्रतिशत से ज्यादा की कमी
नोटबंदी के बाद बैंकों ने अपनी ब्याज दरों में करीब दो प्रतिशत से ज्यादा की कमी आ चुकी है। नोटबंदी से पहले 1 अक्टूबर, 2016 धन की सीमांत लागत आधारित ब्याज दर (एमसीएलआर) एक माह के लिए 8.95 प्रतिशत और साल के लिए 9.05 थी। नोटबंदी के बाद से भारतीय स्टेट बैंक ने आश्चर्यजनक रूप से एमसीएलआर में कटौती की। इसके बाद दूसरे बैंकों ने भी ऐसा ही किया जिससे आम लोगों को काफी राहत मिली है। 15 सितंबर 2021 को सीमांत लागत आधारित ब्याज दर (एमसीएलआर) एक माह के लिए 6.65 प्रतिशत और साल के लिए 7.0 प्रतिशत ही रह गई है।नोटबंदी ने भारत को महामंदी से बचाया
नोटबंदी के बाद जीडीपी की गिरावट और विनिर्माण क्षेत्रों में मंदी के सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन वास्तविक तथ्य यह है कि नोटबंदी के निर्णय ने भारत को बड़ी मुसीबत से बचा लिया है। 2004 के बाद एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार मंदी की तरफ जा रही थी। चलनिधि यानि Liquidity की कमी से उत्पन्न होने लगी थी। परिणामस्वरूप देश की आर्थिक वृद्धि दर घटते-घटते 2013 में 4.4 प्रतिशत तक आ गई थी। आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2016-17 में 7.4 प्रतिशत थी। नोटबंदी का ही असर है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर अप्रैल-जून-2021 तिमाही में 20.1 प्रतिशत रही।अब काले धन का पता लगाना काफी आसाननोटबंदी के बाद 99 प्रतिशत नकदी बैंकिंग सिस्टम में आ गए हैं। इसका फायदा यह है कि अब काले धन का पता लगाना काफी आसान हो गया है। इस निर्णय के बाद 24.75 लाख ऐसे संदिग्ध मामलों की पहचान की गई जिनमें पैन कार्ड धारकों के प्रोफाइल नोटबंदी के पहले के प्रोफाइल से मेल नहीं खाते।इकोनॉमिक स्वच्छता : 2.38 लाख शैल कंपनियां आइडेंटीफाई
नोटबंदी के बाद पांच लाख से ज्यादा संदिग्ध कंपनियां जांच एजेंसियों के राडार पर आईं। इनमें से अधिकतर कालाधन को छिपाने और कर चोरी के उद्देश्य से संचालित की जा रहीं थी। 2018 से 2021 के बीच में ही 2.38 लाख शैल कंपनियों को भारत सरकार ने आइडेंटीफाई करने के बाद इनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया। नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के जीवन में भी बड़ा बदलाव आया है। अब उन्हें सामाजिक सुरक्षा से उनके अधिकारों के संरक्षण दिये जा रहे हैं। एक करोड़ से अधिक श्रमिकों को प्रोविडेंट फंड का लाभ मिलने लगा है।

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