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विपक्ष सोचता रह गया, पीएम मोदी ने कर दिया महिला आरक्षण का श्रीगणेश, अब बदलेगी देश की तस्वीर

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गणेश चतुर्थी के पावन पर्व पर नई संसद में पदार्पण के साथ ही महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए ऐतिहासिक पहल की। उन्होंने नए संसद भवन में कहा कि महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश करने जा रही है। उन्होंने सभी सांसदों से इसे सर्वसम्मति से पास कराने की अपील की। इसके बाद कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने 128वां संविधान संशोधन बिल यानी ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ को लोकसभा में पेश किया। इसके साथ ही मोदी सरकार ने 27 सालों से ज्यादा समय से अधर में लटके महिला आरक्षण बिल को लोकसभा से पारित करने का रास्ता साफ कर दिया है। इस विधेयक का मुख्य लक्ष्य महिलाओं के लिए लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करना हैं। इस विधेयक के पारित होने और कानून बनने से देश के लोकतंत्र की तस्वीर बदल जाएगी। 

लोकसभा में 181 सीटें अब महिलाओं के लिए होंगी आरक्षित

लोकसभा में पेश बिल के प्रावधानों के अनुसार लोकसभा की 543 सीटों में से 181 अब महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इस विधेयक के कानून बनने के बाद महिला सांसदों की संख्या में दोगुने से अधिक की बढ़ोतरी होगी, जो वर्तमान में 82 है। कानून मंत्री के मुताबिक आरक्षण का प्रावधान 15 वर्षों के लिए लागू रहेगा। उसके बाद इसकी अवधि बढ़ाने पर फैसला संसद को करना होगा। इस विधेयक के तहत एससी-एसटी वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था नहीं होगी। लेकिन जो सीटें एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, उनमें से 33 प्रतिशत अब महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इस समय लोकसभा में 84 सीटें एससी और 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। बिल के कानून बनने के बाद 84 एससी सीटों में से 28 सीटें एससी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसी तरह 47 एसटी सीटों में से 16 एसटी महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।

राज्य विधानसभाओं में बढ़ेंगी महिला विधायकों की संख्या 

इस बिल में सिर्फ लोकसभा ही नहीं, बल्कि बाकी राज्यों की विधानसभाओं में भी महिलाओें को 33 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। संविधान के अनुच्छेद – 239AA के तहत राजधानी दिल्ली की विधानसभा में भी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। यानी अब दिल्ली विधानसभा की 70 में से 23 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। वहीं यूपी की 403 सदस्यीय विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या बढ़कर 132 हो जाएगी, जो वर्तमान में 48 हैं। बिहार के 243 सदस्यों वाली विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या बढ़कर 80 हो जाएगी, जो वर्तमान में 26 है। कई विधानसभाओं में महिलाओं की भीगीदारी 10 प्रतिशत से कम है। इसके अलावा बिहार में 10.70 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 14.44 प्रतिशत, हरियाणा में 10 प्रतिशत, झारखंड में 12.35 प्रतिशत, पंजाब में 11.11 प्रतिशत, गुजरात में 8.2 प्रतिशत महिला विधायक है। कई राज्यों में महिला विधायकों की संख्या एक है, इनमें हिमाचल, पुडुचेरी और नागालैंड शामिल है। इस बिल के कानून बनने के बाद इन विधानसभाओं की तस्वीर बदल जाएगी।

राजनीतिक दलों में महिलाओं का बढ़ेगा प्रतिनिधित्व

महिला आरक्षण बिल के कानून बनने के बाद राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को सक्रिय राजनीति में आगे बढ़ने का ज्यादा अवसर मिलेगा। महिलाओं को ना सिर्फ राजनीतिक दलों में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलेगा, बल्कि देश और समाज में भी नारी प्रतिनिधित्व करने में पीछे नहीं हटेगी। महिला आरक्षण से महिलाओं को मिलने वाले मौके से किस राजनैतिक दल को कितना फायदा होगा, इसका आकलन तो भविष्य में होगा। लेकिन कुछ चुनावी नतीजों पर प्रकाश डालें तो पता चलता है कि निर्वाचित सांसदों में बीजेपी की महिला सांसद अधिक है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल 726 (9 प्रतिशत) महिला प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था। इनमें से विभिन्न राजनीतिक दलों से 78 महिलाएं चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंची, जो एक रिकॉर्ड है। लोकसभा में इस समय 14 प्रतिशत महिला सांसद हैं। बीजेपी ने 53 टिकट महिला उम्मीदवारों को बांटे, जिनमें से 41 ने जीत हासिल कीं। बीजेपी के महिला उम्मीदवारों का स्ट्राइक रेट 73% है। कांग्रेस ने 54 महिला उम्मीदवारों (12.3%) को टिकट दिया, लेकिन उनमें से केवल छह जीत हासिल कर सकीं। टीएमसी की 21 महिला उम्मीदवारों में से नौ ने जीत हासिल कीं, जबकि बीजेडी के सात में से छह उम्मीदवार चुने गए। 

गृह मंत्री अमित शाह ने झूठ बोलने पर अधीर रंजन की लगाई क्लास

नई संसद में महिला आरक्षण बिल पेश होने के संकेत मात्र से कांग्रेस क्रेडिट लेने की होड़ में लग गई। उसके कार्यकर्ता, प्रवक्ता और नेता सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए और सोनिया गांधी के पुराने बयान शेयर करने लगे। जब नई संसद में महिला आरक्षण बिल पेश किया गया तो कांग्रेस ने श्रेय लेने की कोशिश की। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए कांग्रेस ने इस बिल को लोकसभा से पास कराया था। इसके बाद मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान राज्यसभा से बिल पास कराया गया था। यह बिल अभी मौजूद है। अधीर रंजन चौधरी के इस बयान पर सदन में जमकर हंगामा हुआ। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अधीर रंजन ने जो कहा वो फैक्चुअली गलत है। हमारे पास स्पष्ट जानकारी है कि पुराना बिल लैप्स कर गया है। इसके अलावा राजीव गांधी के समय लोकसभा में महिला आरक्षण पर कोई बिल पारित नहीं किया गया था। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि लोकसभा में जो बिल पारित होता है, अगर राज्यसभा उसे पारित नहीं करती है तो लोकसभा का कार्यकाल खत्म हो जाता है तो वह बिल अपने आप खत्म हो जाता है। मैं मानता हूं कि इस चीज को स्पष्टता करनी चाहिए और अधीर रंजन के पास अलग जानकारी है तो सदन के टेबल पर रखना चाहिए। हम नया बिल लाए हैं। आप जानकारी दुरुस्त कर लीजिए।

लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की 10 कोशिशें हो चुकी हैं नाकाम

गौरतलब है कि इससे पहले पुरानी संसद में महिला आरक्षण विधेयक को कानूनी रूप देने के लिए 10 कोशिशें हो चुकी हैं। सबसे पहले 1996 में यूनाइटेड फ्रेंट की देवगौड़ा सरकार महिला आरक्षण विधेयक लेकर आई थी। सरकार को समर्थन देने वाली सभी पार्टियों ने इसका विरोध किया और यह विधेयक पारित नहीं हो सका। इसके बाद 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 13 जुलाई और 14 जुलाई को दो बार लोकसभा में बिल पेश करने की कोशिश की। लेकिन विपक्ष के विरोध और पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने की वजह से बिल पेश नहीं हो सका। 23 दिसंबर, 1998 को अटल सरकार ने तीसरी बार लोकसभा में बिल पेश किया, लेकिन जेडीयू के विरोध की वजह से पारित नहीं हो सका। 2000 में भी अटल सरकार ने बिल पेश करने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। 2002 और 2003 में भी अटल सरकार ने बिल को पारित कराने का असफल प्रयास किया। 2008 में मनमोहन सरकार ने 6 मई को राज्यसभा में विधेयक पेश किया। लेकिन हंगामा होने बाद विधेयक को स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया। 9 मार्च, 2010 को मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में विधेयक पेश किया। हंगामे के बीच दो तिहाई बहुमत से विधेयक पारित किया गया। लेकिन यूपीए सरकार के घटक दलों के विरोध की वजह से मनमोहन सरकार इसे लोकसभा में पेश नहीं कर पाई। तब से यह बिल अधर में लटका हुआ था।

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