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एनडीए गठबंधन ने ‘इंडिया’ को बुरी तरह पराजित किया! विपक्ष के ‘इंडिया’ नाम को लेकर शिकायत, थाने पहुंचा मामला

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इस बात में कोई संशय नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत जिस तेज गति से विकास रहा है उसे देखते हुए जनता ने लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को जिताने का मन बना लिया है। अब तो विपक्षी नेता भी कहने लगे हैं कि 2024 में आएगा तो मोदी ही। तो फिर 2024 में एनडीए गठबंधन की जीत के बाद अखबारों की सुर्खियां क्या होंगी? यही न कि- एनडीए गठबंधन ने ‘इंडिया’ को बुरी तरह पराजित किया! इससे समझा जा सकता है कि विपक्षी दलों ने किस बुरी नीयत से इस नाम का चुनाव किया है। यानि देश को नीचा देखना पड़े तो इससे उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, उन्हें तो बस अपने परिवार और सत्ता की चिंता है। वहीं एंबलम एक्ट की धारा-3 के तहत कोई भी व्यक्ति या संगठन इंडिया नाम अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता और इस तरह से इंडिया नाम के उपयोग से भारत के लोगों की भावना आहत हुई है। भावना आहत होने के बाद अब दिल्ली के थाने में इसकी शिकायत की गई है। शिकायत में कहा गया है कि विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस-इंडिया) रखकर कानून तोड़ा है।

‘इंडिया’ नाम रखने पर दिल्ली में पुलिस थाने में शिकायत
वकील अवनीश मिश्रा ने दिल्ली के बाराखंभा पुलिस स्टेशन में दी गई शिकायत में कहा कि एंबलम एक्ट की धारा-3 के तहत कोई भी इंडिया नाम अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता और इस तरह से इंडिया नाम के उपयोग से भारत के लोगों की भावना आहत हुई है। विपक्ष के 26 दलों की बेंगलुरु में हुई बैठक में इस गठबंधन के लिए इंडिया नाम चुना गया। वकील ने सभी 26 दलों को दंडित करने की मांग की है। शिकायत में यह भी कहा गया है कि एंबलम एक्ट की धारा-5 में ऐसे उल्लंघन पर जुर्माने के साथ सजा का प्रावधान किया गया है। इस एक्ट की धारा-3 के उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति पर अधिकतम 500 रुपये तक जुर्माना लगाने का प्रावधान है।

विपक्षी दलों ने I.N.D.I.A में डॉट डालकर दरार पैदा कर दी
विपक्षी दलों ने भारत (I.N.D.I.A) के नाम में भी डॉट डालकर दरार पैदा कर दिया है। यह उसी सत्तालोलुप और नकारात्मक सोच को दर्शाता है जब विपक्ष के एक नेता विदेशी ताकतों से लोकतंत्र की दुहाई देकर मदद की गुहार लगाते हैं। जबकि दूसरी तरफ देश के प्रधानमंत्री विश्व मंच पर जाकर बताते हैं कि भारत मदर ऑफ डेमोक्रेसी है और दुनिया को भारत से लोकतंत्र सीखने की वकालत करते हैं।

‘इंडिया’ में टूट, ‘इंडिया’ में फूट
विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखा है लेकिन अभी से जो आलम दिख रहा है उससे यह लग रहा कि यह गठबंधन कब तक चलेगा यह कहना मुश्किल है। बेंगलुरू बैठक के बाद जिस तरह लालू यादव और नीतीश कुमार प्रेंस कांफ्रेंस छोड़कर चले गए उससे गठबंधन की एकता पर सवालिया निशान लगे हैं। अब देखिए अगर नीतीश कुमार या लालू यादव या कोई और दल इस गठबंधन से अलग हो जाए तो क्या कहेंगे- ‘इंडिया’ में टूट, ‘इंडिया’ में फूट। यह कितनी नीच मानसिकता को दिखाती है कि वे निजी लाभ के लिए इंडिया को भी नीचा दिखाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं।

कांग्रेस पार्टी के नाम में इंडियन, भाजपा के नाम में भारतीय
इंडियन नेशनल कांग्रेस यानि कांग्रेस पार्टी के नाम में इंडियन है और भारतीय जनता पार्टी यानि भाजपा के नाम में भारतीय है। अगर हम देश के स्तर पर देखें तो कोई अंतर नहीं है। ठीक उसी तरह जैसे भारत कहें या इंडिया। लेकिन अवधारणा के स्तर पर व्यापक अंतर है। भारत को इंडिया नाम देने वाले विदेशी हैं जबकि भारत नाम हजारों वर्षों से सनातन है।

यूनान के राजदूत मेगस्थनीज ने सबसे पहले कहा था- इंडिया
भारत को इंडिया नाम सबसे पहले यूनान के राजदूत मेगस्थनीज ने दिया था। इंड्स रिवर को देखते हुए उसने इसे इंडिया कहा था जिसका उसने “इंडिका” नामक पुस्तक में विस्तृत वर्णन किया है। दरसअसल यूनानी सामंत सिल्यूकस ने राज्यविस्तार की इच्छा से 305 ई. पू. भारत पर आक्रमण किया था किंतु उसे संधि करने पर विवश होना पड़ा था। संधि के अनुसार मेगस्थनीज नाम का राजदूत चंद्रगुप्त के दरबार में आया था। वह कई वर्षों तक चंद्रगुप्त के दरबार में रहा। उसने यहां रहकर “इंडिका” नामक पुस्तक लिखी।

यूनान के बाद अंग्रेजों ने भारत को इंडिया कहा
उसके बाद भारत को लूटने के लिए अंग्रेज आए और उन्होंने भारत को इंडिया कहना शुरू किया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 31 दिसम्बर 1600 ईस्वी में की गई। इसे ब्रिटेन की महारानी ने भारत के साथ व्यापार करने के लिए 21 सालों तक की छूट दे दी। बाद में कम्पनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक तथा प्रशासनिक अधिपत्य जमा लिया।

जिसने भारत को इंडिया कहा, उनका इरादा देश को लूटना था
इस तरह से देखें तो यूनान हो या अंग्रेज इंडिया की अवधारणा दोनों विदेशी आक्रांताओं द्वारा भारत को लूटने से थी। और आज जो गठबंधन बन रहा है उसका मकसद भी वही है कि किस तरह भारत को लूटा जाए। संभवतः इसीलिए उन्होंने ‘इंडिया’ नाम चुना है। इसके साथ ही उनका एक लक्ष्य और है कि चूंकि ज्यादातर विपक्षी दल के नेता घोटालों और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं कुछ जेल में हैं, कुछ जमानत पर हैं, कुछ के खिलाफ जांच चल रही है। ऐसे में उन्हें लग रहा है कि सभी दल एक जाएं तो अपने को बचाने के लिए उठने वाली आवाज थोड़ी ऊंची हो जाएगी।

इंडिया और भारत में अंतर नहीं, लेकिन नीयत में खोट हो तो…
एक देशप्रेमी नागरिक की नजर से देखें तो इंडिया और भारत में कोई अंतर नहीं है। यह ठीक उसी तरह है जैसे इजिप्ट को मिस्र और यूनान को ग्रीस भी कहा जाता है। लेकिन जब नीयत में खोट हो तो आशय छलक के बाहर आ ही जाता है। इसका अंदाजा राहुल गांधी के इस बयान से लगा सकते हैं जब वह कहते हैं- इंडिया इज नॉट ए नेशन इट्स यूनियन आफ स्टेट्स। यानि “भारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि राज्यों का एक संघ है।” भारत के आदि ग्रंथों में भारत को एक राष्ट्र के रूप में वर्णित किया गया है लेकिन जड़विहीन राहुल गांधी को भारत के प्राचीन ग्रंथों से क्या मतलब। उन्हें तो बस सत्ता चाहिए।

दुकान का नाम बदलने से सच्चाई नहीं बदलती, नाम बदलने से पहचान नहीं बदलती
इस विपक्षी गठबंधन की एक सच्चाई यह भी देख लीजिए कि अगर राहुल गांधी के दुकान का नाम ‘इंडिया’ है और अगर आप उन्हें यूपीआई पेमेंट करते हैं तो वह कहां जाता है-चीन। यानि अगर आप उन्हें वोट करते हैं तो वे चीन के हित की बात करेंगे। इसी तरह अगर आप अरविंद केजरीवाल को वोट करते हैं तो वह खालिस्तान को चला जाता है। अगर आप ममता बनर्जी को वोट करते हैं तो वो रोहिंग्या के हित की बात करती हैं। अगर आप महबूबा मुफ्ती को वोट देते हैं वो वह पाकिस्तान की तरफदारी करेंगी।

विदेशी शासकों की तरह ही कांग्रेस की सरकारों ने सनातन संस्कृति को दबाया
दरअअसल 800 साल से विदेशी आक्रांताओं ने देश को नीचा दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी, देश के लोगों को गंवार बताकर उनमें हीन भावना भर दिया। फिर देश जब 1947 में आजाद हुआ तो लोगों लगा कि अब उन्हें अपनी पहचान मिलेगी। लेकिन उसके बाद कांग्रेस की सरकारों ने भी अंग्रेजों की मानसिकता ही देश के लोगों पर थोप दिया। तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सनातन संस्कृति उसी तरह दबाया गया जिस तरह विदेशी शासकों के दौर में किया जा रहा था। सनातन संस्कृति को मानने वाले सदियों से राम-राम का अभिवादन करते रहे हैं लेकिन आजाद भारत में भी 65 साल उनके मनोमस्तिष्क पर धर्मनिरपेक्षा का ऐसा घोल डाला गया कि वे राम-राम कहने से बचने लगे कि किसी को ये खराब न लगे।

2014 के बाद भारतीयों को मिली अपनी राष्ट्रीय पहचान
लेकिन 2014 में जनता ने देश की सत्ता पर एक ऐसे शख्स को बिठाया जिसने न केवल भारतीयों को राष्ट्रीय पहचान दी बल्कि दुनियाभर में सिर उठाकर गर्व जीने का रास्ता दिखाया और सम्मान दिलाया। उसने राष्ट्रवाद की ऐसी अलख जगाई कि देश के कोने-कोने में लोग भावुक होकर उसकी तस्वीरों से बात करने लगे। उसने जय सियाराम, हर-हर महादेव कहकर लोगों को अपनी पहचान के प्रति प्रेरित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच में देश सबसे ऊपर है। वह वोट बैंक की राजनीति नहीं करते, बल्कि रचनात्मक तरीके से उच्च लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ते हुए सबसे बेहतर परिणाम लाने के लिए काम करते हैं। यही वजह है कि देश के लोगों ने उनको दिल में बसा लिया है।

नाम में क्या रखा है, काम बोलता है!
अब पीएम मोदी के राष्ट्रवाद के सामने विपक्ष के हथियार एक के बाद एक फेल होते जा रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि मोदी का मुकाबला कैसे किया जाए। हताशा में वे कभी विदेशी ताकतों से भारत के मामलों में दखल देने की मांग करते हैं तो कभी भारत जोड़ो यात्रा निकालते हैं जिसमें उन्हीं नकारात्म लोगों से मिलते हैं जो लोगों को वही 800 साल से चली आ रही दमन को याद दिलाते हैं। यानि उसमें भी उन्हें सफलता नहीं मिली। अब उन्होंने खुद को राष्ट्रभक्त बताने के लिए अपना नाम ही ‘इंडिया’ रख लिया है। इससे पहले विपक्षी दलों की पटना बैठक के बाद यह सामने आया था कि वे अपने गठबंधन का नाम पैट्रियॉटिक डेमोक्रेटिक अलायंस रखेंगे। इस नाम में भी पैट्रियॉटिक इसीलिए जोड़ा गया था कि गठबंधन को देशभक्ति की चाशनी में डुबोकर जनता के सामने पेश कर सकें। हालांकि एंबलम एक्ट की वजह से शायद उन्हें अपना नाम बदलना होगा। तो देखना होगा कि वे अपना दूसरा नाम कौन सा रखते हैं। लेकिन किसी ने ठीक ही कहा है- नाम में क्या रखा है, काम बोलता है!

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