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मुस्लिम बोर्ड ने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे का किया समर्थन, कहा-आपको हिंदुस्तानी मुसलमान का सलाम

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अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत में मौजूद उसके समर्थक भी सामने आने लगे हैं। शफीकुर्रहमान के बाद अब ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने तालिबान का समर्थन किया है। सज्जाद नोमानी ने तालिबान को सलाम करते हुए उसके तारीफ में जमकर कसीदे पढ़े। उन्होंने कहा कि तालिबान ने पूरी दुनिया की सबसे ज्यादा मजबूत सेनाओं को शिकस्त दी। इन नौजवानों ने अल्लाह को शुक्रिया कहते हुए काबुल की जमीन को चुमा।

एक वीडियो संदेश जारी कर सज्जाद नोमानी ने कहा, “एक बार फिर यह तारीख रकम हुई है। एक निहत्थी कौम ने सबसे मजबूत फौजों को शिकस्त दी है। काबुल के महल में वे दाखिल होने में कामयाब रहे। उनके दाखिले का अंदाज पूरी दुनिया ने देखा। उनमें कोई गुरूर और घमंड नहीं था। बड़े बोल नहीं थे। मुबारक हो। आपको दूर बैठा हुआ यह हिंदुस्तानी मुसलमान सलाम करता है। आपके हौसले को सलाम करता है। आपके जज्बे को सलाम करता है।”

नोमानी ने कहा कि जो कौम मरने के लिए तैयार हो जाए, उसे दुनिया में कोई शिकस्त नहीं दे सकता। यह पूरी दुनिया ने देख लिया कि आपने (तालिबान) लोगों को गले लगा लिया और आम माफी का ऐलान कर दिया। पूरे मुल्क में महिलाओं से किसी भी तरह की बदसलूकी का कोई वाकया नहीं आया। जबकि आप पर इस तरह के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। इसके बाद अगले ही दिन बाजार खुल गए और बच्चियां स्कूल जाती नजर आ रही हैं।

गौरतलब है कि नोमानी ने अपने भाषण में तालिबान की हिंसा और महिलाओं की आजादी को लेकर कुछ भी नहीं कहा बल्कि उसके शासन का स्वागत किया और उस पर लग रहे आरोपों को भी गलत करार दिया। जबकि सच्चाई यह है कि जुलाई 2021 की शुरुआत में, बदख्शां और तखर के प्रांतों पर नियंत्रण करने वाले तालिबान नेताओं ने स्थानीय धार्मिक नेताओं को तालिबान लड़ाकों के साथ विवाह के लिए 15 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों और 45 वर्ष से कम उम्र की विधवाओं की सूची प्रदान करने का आदेश जारी किया। इस आदेश ने इन क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं और उनके परिवारों में गहरा भय पैदा कर दिया। इसके अलावा सोशल मीडिया में एक विचलित करने वाला वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें विदेशी मीडिया के लिए काम करने वाली एक महिला पत्रकार को तालिबानी पीटते नजर आ रहे हैं। 

महिलाओं के साथ तालिबान का यह बर्ताव इस बात की कड़ी चेतावनी देता है कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है और 1996-2001 के तालिबान के क्रूर शासन की याद दिलाता है जब महिलाओं को लगातार मानवाधिकारों के उल्लंघन, रोजगार और शिक्षा से वंचित किया गया, बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया गया और एक पुरुष ‘संरक्षक या महरम’ के बिना उनके घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई। ये यादें ही लोगों को अफगानिस्तान छोड़ने पर मजबूर कर रही हैं। काबुल के हवाई अड्डे पर लोगों की भीड़ इस खौफ का नतीजा है।

इन सबके बावजूद भारत में रहने वाले मुस्लिमों द्वारा तालिबान का समर्थन करना उनके तालिबानी सोच को दर्शाता है, जो भारत को हजारों साल पीछे ले जाना चाहते हैं और देश में इस्लामी कानून के मुताबिक शासन चाहते हैं। लेकिन देश की मौजूदा मोदी सरकार और देश की आम जनता ऐसी सोच से सावधान है। इसका प्रमाण उत्तर प्रदेश में देखने को मिला है, जहां समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क द्वारा तालिबान की तुलना भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों से करने पर उनके खिलाफ पुलिस ने राजद्रोह के मामले में FIR दर्ज की ही। मामला दर्ज होते ही सांसद के सुर बदल गए है। शफीकुर रहमान ने ट्विटर पर इसकी सफाई देते हुए कहा कि मैंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। मेरा तालिबान से क्या मतलब। 

 

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