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मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान से ही पकड़ा गया प्रियंका वाड्रा का झूठ, भ्रष्टाचार में आई भारी कमी

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प्रवासी मजदूरों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को 1000 बसें सौंपने का प्रियंका वाड्रा का दावा फर्जी साबित हुआ। मोदी सरकार ने जिस डिजिटल इंडिया अभियान को गति दी, उसके जरिए ही प्रियंका का घोटाला सामने आया, जिसमें पाया गया कि प्रियंका ने जिन गाड़ियों की सूची यूपी सरकार को सौंपी, उनमें कई बाइक, थ्री-व्हीलर और एंबुलेंस तक के नंबर दिए गए हैं। गाड़ियों का यह विवरण mParivahan App पर देखा जा सकता है। दरअसल, मोदी सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ ने 21वीं सदी के उस आधुनिक भारत की नींव रख दी है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा और अर्थव्यवस्था में दुनिया का सिरमौर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। आइए, एक नजर डालते हैं डिजिटल इंडिया की मुहिम से भ्रष्टाचार में आई कमी पर।

डीबीटी से 1.41 लाख करोड़ की बचत

पिछले वर्षों में मोदी सरकार ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने वाले लाखों-करोड़ों रुपये की रक्षा की है। देश भर में चल रही करीब साढ़े चार सौ योजनाओं के डिजिटलीकरण से अब तक करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये की बचत हुई है। इसने बिचौलिया तंत्र की कमर तोड़ कर रख दी है। डीबीटी के माध्यम से कल्याणकारी योजनाओं की राशि सीधे लोगों के खाते में जमा हो रही है। इस योजना से अब तक करीब 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि लाभार्थियों के खाते में ट्रांसफर की गई है। इससे 1.41 लाख करोड़ से ज्यादा की बचत हुई, जो पहले दलालों और बिचौलियों के हाथों में चले जाते थे। सिर्फ लॉकडाउन के दौरान ही गरीबों के बैंक खातों में 1.70 लाख करोड़ की आर्थिक सहायता भेजी जा रही है।

8 करोड़ से ज्यादा फर्जी लाभार्थी पकड़े गए

डिजिटल इंडिया ने पूरे आर्थिक तंत्र को पारदर्शी बनाने में सहयोग किया है। गरीबों और जरूरतमंदों को उनके बैंक अकाउंट में सीधी राहत दी जा रही है तो फर्जीवाड़ा कर नकली जरूरतमंद बने लोगों को पकड़ा भी जा रहा है। मोदी सरकार ने अब तक भ्रष्टाचार निरोधक अभियान के तहत 8 करोड़ से अधिक ऐसे फर्जी लाभार्थियों को पकड़ने का महत्वपूर्ण काम भी किया है।

लाखों करोड़ के कालेधन पर रोक

विभिन्न डिजिटल प्रोजेक्ट से लाखों करोड़ रुपये के कालेधन पर अंकुश लगा है। देश में कालेधन के संचार पर निर्णायक रोक लगी है। पीएम मोदी का मानना है कि डिजिटल इंडिया ब्लैक मनी के खिलाफ युद्ध है। और पिछले कुछ वर्षों में यह साबित भी हो चुका है।

शांति के साथ किया गया क्रांतिकारी परिवर्तन

भारत के डीबीटी और जीएसटी की दुनिया भर चर्चा हो रही है। इन दोनों कदमों को देशहित में शांति के साथ किया गया क्रांतिकारी परिवर्तन माना जा रहा है। भारत जैसे देश में बिना किसी कानूनी कार्रवाई के 1.41 लाख करोड़ रुपये की बचत बेहद मायने रखती है। दरअसल, टेक्नोलॉजी के बेहतर उपयोग के जरिए यह साबित हो गया है कि व्यवस्था से भ्रष्टाचार और अन्याय को खत्म किया जा सकता है। 

यूपीए सरकार की तुलना में करीब 9 गुना ज्यादा डीबीटी हुआ

डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 में 1.5 लाख करोड़ रुपये की रकम को सीधे जनता के खातों तक पहुंचाया है। जो 2016-17 के वित्तीय वर्ष की तुलना में दोगुनी रही। 2018-19 में केंद्र सरकार के बजट का तीन-चौथाई डीबीटी के जरिए लाभार्थियों के खातों तक पहुंचाया गया। 2013-14 में यूपीए के कार्यकाल के दौरान 7,367 करोड़ रुपये का डीबीटी हुआ था, लेकिन JAM (जनधन, आधार और मोबाइल) के कारण डीबीटी के जरिए भुगतान में काफी मदद मिली, जो 2014-15 में बढ़कर 38,926 करोड़ रुपये और 2015-16 में 61, 942 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। साल 2014 से 2019 तक साढ़े सात लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि डीबीटी के जरिए जरूरतमंद लोगों को प्राप्त हो चुकी है।

बैंक अकाउंट, आधार और मोबाइल के त्रिदेव ने बदली तस्वीर

आजादी से लेकर साल 2014 तक के 67 सालों में से करीब 60 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस ने गरीबों के कल्याण के लिए कई योजनाएं बनायीं, यहां तक कि ‘गरीबी हटाओ’ का बहुचर्चित नारा दे डाला, लेकिन गरीबों के घर के दुःख-दर्द कम नहीं हुए। क्योंकि इस दौरान गरीबों की योजनाओं के धन को जनता के ही प्रतिनिधि, सरकारी अफसरों की मिलीभगत से डकार लेते थे। इस दुष्चक्र की कमर को DBT ने पूरी तरह से तोड़ दिया। एक तरह से देखें तो DBT, बैंक खाता, आधार संख्या और मोबाइल नंबर का एक ‘त्रिदेव’ है। इस ‘त्रिदेव’ में प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 अगस्त 2014 को जन धन योजना से की। इस योजना ने सभी गरीब परिवारों को एक बैंक खाता दिया और इन बैक खातों को आधार संख्या और मोबाइल नंबर से जोड़ दिया गया।

जनधन योजना में 38 करोड़ गरीबों के बैंक खाते खुले

जनधन योजना के जरिए देश भर के 38 करोड़ से ज्यादा गरीबों के बैंक खाते खोले गए। इतना ही नहीं, आज देश में 125 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास आधार कार्ड मौजूद है, जो डिजिटलीकरण के इस दौर में बेहद सहायक सिद्ध हो रहा है। इसके अतिरिक्त देश में करीब 120 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं।

पेंशन से लेकर स्कॉलरशिप तक बैंक खाते में

सरकार की तरफ से गरीबों को रोजगार, पेंशन, स्कॉलरशिप, गैस सब्सिडी और अन्य कामों के लिए अलग-अलग योजनाओं के जरिए धन दिया जाता है। प्रधानमंत्री मोदी की DBT योजना आने से पहले इन योजनाओं से पैसा सरकारी विभाग के कर्मचारी, गरीबों में बांटते थे। इस बंटवारे में कुछ ही हिस्सा गरीबों के हाथ लगता था, बाकी का सारा हिस्सा सरकारी तंत्र हड़प जाता था। इससे गरीबों का हक तो मारा ही जाता था, भ्रष्टाचार भी बेहिसाब बढ़ रहा था।

डीबीटी से जुड़ी गरीबों की योजनाएं

2014 में जहां मात्र 28 योजनाओं का धन सीधे खातों में जाता था, वहीं आज करीब 450 योजनाओं का धन डीबीटी के जरिए सीधे जरूरतमंद लोगों के बैंक खातों में पहुंच रहा है। इनमें रोजगार, पेंशन, छात्रवृत्ति, गैस सब्सिडी और अन्य तमाम तरह की सरकारी योजनाएं शामिल है।

आर्थिक तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की सफाई

नोटबंदी के बाद करीब 18 लाख संदिग्ध खातों की पहचान हुई। 2.89 लाख करोड़ रुपए जांच के दायरे में हैं और एडवांस्ड डेटा ऐनालिटिक्स के जरिए 5.56 लाख नए केसों की जांच की जा रही है। साथ ही साढ़े चार लाख से ज्यादा संदिग्ध ट्रांजेक्शन पकड़े गए हैं। नोटबंदी के बाद करेंसी सर्कुलेशन में 21 फीसदी तक की कमी आई है। नोटबंदी के बाद 23.22 लाख बैंक खातों में लगभग 3.68 लाख करोड़ रुपये के संदिग्ध कैश जमा हुए, जिसका पता सरकार को लग गया। नोटबंदी के बाद तीन लाख करोड़ से अधिक रकम बैंकों में जमा कराई गई। 1833 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति की भी जब्ती और कुर्की की गई।

‘आधार’ बना भ्रष्टाचार को कम करने का आधार

यूआईडीएआई यानि यूनिक आइडेंटिफिकेशन ऑथारिटी ऑफ इंडिया अब तक देश के लगभग 99 प्रतिशत वयस्कों को आधार से जोड़ चुकी है। अब तक 78 प्रतिशत एलपीजी कनेक्शन, 61 प्रतिशत राशन कार्ड, 69 प्रतिशत मनरेगा कार्ड और 31 करोड़ बैंक खाते आधार नंबर से जोड़े जा चुके हैं। आधार के कारण तमाम सरकारी विभागों और मंत्रालयों से लाभ लेने वाले लोगों के फर्जीवाड़े का पता चल रहा है। इससे न सिर्फ भ्रष्टाचार पर लगाम लगी है, बल्कि सरकार का हजारों करोड़ रुपया भी बच रहा है।

डिजिटलाइजेशन की क्रांति

भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की दिशा में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रधानमंत्री के प्रयास से ही आज भारत डिजिटल लेनदेन में विश्व का अगुआ बनने की राह पर है। नोटबंदी के बाद खुदरा डिजिटल भुगतान में काफी वृद्धि हुई है और डिजिटल भुगतान के माध्यम आईएमपीएस से लेनदेन में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है।

भ्रष्टाचार मुक्त मनरेगा

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना है। इसमें काम करनेवाले बहुत से मजदूरों की मजदूरी के भुगतान में बिचौलिये हावी रहते थे और मजदूर के नाम से जारी होनेवाली पूरी रकम उस तक नहीं पहुंच पाती थी। अकसर यह शिकायतें मिलती थीं कि मजदूरी बांटने की प्रक्रिया में शामिल लोग इसमें धोखाधड़ी करते हैं। इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान में डीबीटी स्कीम लागू किया। इसके लिए मजदूरों के बैंक खाते खुलवाए गए और उन्हें ‘आधार’ नंबर से लिंक किया गया। अब मजदूरी का भुगतान सीधे मजदूर के बैंक खाते के माध्यम से किया जा रहा है। ठेकेदारों द्वारा मजदूरों की संख्या बढ़ा कर फर्जी भुगतान के मामलों पर भी इस प्रक्रिया से रोक लगी है।

घरेलू गैस सिलेंडर में भ्रष्टाचार में कमी

प्रत्येक एलपीजी ग्राहक को साल में 12 रियायती सिलेंडर दिए जाते हैं। केंद्र सरकार ने ‘पहल’ यानी प्रत्यक्ष हस्तांतरित लाभ योजना के तहत पूरे देश में एलपीजी उपभोक्ताओं के खातों को इससे लिंक कर दिया और इस सब्सिडी की रकम को सीधे बैंक खाते में भेजा जाने लगा। शुरू में इसमें कुछ ही जिलों को शामिल किया गया, लेकिन एक जनवरी, 2015 से इसे देश भर में लागू कर दिया गया। इससे एक अन्य फायदा यह भी हुआ कि एक मकान के पते पर एक से ज्यादा कनेक्शन होने का पता लगाना भी आसान हो गया। इससे घरेलू गैस सिलिंडर को कॉमर्शियल इस्तेमाल में लाए जाने से रोकने में भी मदद मिली। साथ ही, भ्रष्टाचार को कम कर जरूरतमंद को ही सिलेंडर और सब्सिडी का लाभ दिलाने में मदद मिली।

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