लॉकडाउन चार में आर्थिक गतिविधयों की छूट दिए जाने के बाद जहां जिन्दगी अब धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है, वहीं देश में कोरोना संक्रमण के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार और सजग है। लॉकडाउन के दो महीनों में मोदी सरकार ने राज्यों की मदद से कोरोना के उपचार के लिए अलग से अस्पताल बनाने की दिशा में अच्छी सफलता हासिल की है। देश में आज सरकार के पास दस लाख कोरोना रोगियों का एक साथ उपचार करने की क्षमता हो गई है। इनमें से करीब सवा तीन लाख बेड ऐसे हैं जहां पर गंभीर रोगियों का इलाज किया जा सकता है। बाकी हल्के लक्षणों के रोगियों के उपचार के लिए हैं।
कोविड रोगियों के लिए 1093 अस्पताल, 1.85 लाख बेड
नीति आयोग के सदस्य डा. वी. के. पाल के अनुसार जब दो महीने पूर्व देश में बीमारी बढ़नी शुरू हुई थी तब हमारे पास कोविड रोगियों के लिए अलग से एक भी अस्पताल नहीं था। आज 1093 ऐसे अस्पताल हैं जो सिर्फ कोविड रोगियों के लिए हैं। इनमें 185306 बेड हैं जिनमें 31250 आईसीयू बेड भी शामिल हैं। ये अस्पताल आईसीयू के साथ-साथ वेंटीलेटर की सुविधा से भी लैस हैं तथा उन रोगियों का यहां इलाज हो सकता है जिन्हें आईसीयू या वेंटीलेटर की जरूरत हो।
2402 कोविड हैल्थ सेंटर में 1.38 लाख ऑक्सीजन बेड
देशभर में 2402 कोविड हैल्थ सेंटर खोले गए हैं। यहां पर उन कोविड रोगियों का इलाज हो सकता है जो अपेक्षाकृत कम गंभीर हैं और अधिकतम उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है। इन अस्पतालों में 138652 ऑक्सीजन बेड हैं। उपरोक्त दोनों श्रेणियों में 3.24 लाख बेड उपलब्ध हैं।
7013 कोविड केयर सेंटर में 6.5 लाख बेड
देश में 7013 कोविड केयर सेंटर हैं जिसमें करीब साढ़े छह लाख बेड हैं। यहां हल्के लक्षणों वाले रोगियों का इलाज कराया जाता है। ये सुविधाएं उन रोगियों के काम आ सकती है जिन्हें ज्यादा इलाज की जरूरत नहीं है, लेकिन बीमारी का फैलाव रोकने के लिए सिर्फ आइसोलेशन की जरूरत है। तीनों श्रेणियों में 9.74 लाख बिस्तरों की व्यवस्था है। सैन्य बलों की सुविधाओं को भी जोड़ दिया जाए, तो यह संख्या दस लाख से ऊपर हो जाती है।
आईसीयू में जाने वाले मरीजों की संख्या 5 प्रतिशत से कम
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार आईसीयू, ऑक्सीजन और वेंटीलेटर पर जाने वाले मरीजों की संख्या पांच प्रतिशत से भी कम है। बाकी 95 प्रतिशत मरीजों में से सिर्फ उन्हीं को अस्पताल में सतत उपचार की जरूरत पड़ रही है जो किसी अन्य बीमारी से ग्रस्त हैं। करीब 80 प्रतिशत मरीजों को सिर्फ आइसोलेशन में रखने की जरूरत है।
घटेगा एक्टिव मरीजों का प्रतिशत
आने वाले दिनों में स्वस्थ होने वाले मरीजों का प्रतिशत बढ़ेगा। अभी करीब 41 प्रतिशत मरीज स्वस्थ हो चुके हैं तथा एक्टिव मरीज 59 प्रतिशत हैं। लेकिन आने वाले दिनों में एक्टिव मरीजों का प्रतिशत घटेगा।
लॉकडाउन जारी नहीं रहने के संकेत
अभी तक देशभर में चार बार लॉकडाउन की घोषणा की जा चुकी है। लेकिन बीमारी को लेकर लोगों में भय कम नहीं हुआ है। इसी बीच सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया है कि लॉकडाउन हमेशा जारी नहीं रह सकता। बीमारी अभी जाने वाली नहीं है। इसलिए बीमारी से बचाव करते हुए जीना है। कोरोना से पीड़ित मरीजों का उपचार और उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तैयारियां जारी रहेंगी।
आइए एक नजर डालते हैं भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने किस तरह तकनीक के माध्यम से कोरोना का इलाज खोजने का प्रयास किया है।
दिल्ली आईआईटी ने बनाई सबसे हल्की पीपीई किट
दिल्ली आईआईटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी पीपीपी किट बनाने में सफलता हासिल की है, जो न सिर्फ सबसे हल्की है, बल्कि कई खूबियों से भी लैस है। बाजार में अभी जो पीपीई मौजूद हैं, उनका वजन 400 से 500 ग्राम के करीब है। लेकिन आईआईटी दिल्ली के टेक्सटाइल एंड फाइबर इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एमिरिटस डॉ एस.एम.इश्तियाक ने डीआरडीओ के कानपुर स्थित डिफेंस मटेरियल्स एंड स्टोर्स रिसर्च एंड डिवेलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (डीएमएसआरडीई) के सहायक निदेशक डॉ बिसवा रंजन के साथ मिलकर इस आरामदायक पीपीई किट को तैयार किया है।
स्वदेशी तकनीक से CSIR-NAL ने बनाया वेंटिलेटर ‘स्वस्थ वायु’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर देश के वैज्ञानिक और डॉक्टर कोरोना मरीजों के इलाज के लिए चिकित्सीय उपकरण और दवाएं बनाने में निरंतर जुटे हुए हैं। अब बेंगलुरू स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरी (NAL) के साइंटिस्ट ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए एक नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर बीपैप (बीआईपीएपी) बनाया है। वैज्ञानिकों ने वेंटिलेटर को रिकॉर्ड 36 दिनों के भीतर तैयार किया है। इस वेंटिलेटर का नाम ‘स्वस्थ वायु’ रखा गया है।
‘स्वस्थ वायु’ वेंटिलेटर को चलाना है बेहद आसान
CSIR-NAL के निदेशक जेजे जाधव के मुताबिक टीम ने एयरोस्पेस डिजाइन डोमेन में अपनी विशेषज्ञता के आधार पर स्पिन-ऑफ तकनीक को सक्षम किया है। एनएएल हेल्थ सेंटर में इस प्रणाली के कड़े बायोमेडिकल परीक्षण और बीटा क्लिनिकल परीक्षण हुए हैं। इतना ही नहीं वैश्विक अनुभव के आधार पर और भारत व विदेश में मौजूद विशेषज्ञों से परामर्श के बाद इस वेंटिलेटर को तैयार किया गया है। उन्होंने बताया कि यह मध्यम और गंभीर कोरोना मरीजों का इलाज करने में सक्षम होगा। इस वेंटिलेटर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके इस्तेमाल के लिए किसी स्पेशल नर्सिंग की आवश्यकता नहीं है। ये किसी वार्ड, अस्थायी अस्पताल या डिस्पेंसरी में भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है। नर्सिंग स्टाफ को इसके लिए प्रशिक्षित करने की जरूरत नहीं है। सबसे बड़ी बात है कि इस वेंटिलेटर को स्वदेशी उपकरण और तकनीक से तैयार किया गया है। इसे एनएबीएल की मान्यता प्राप्त एजेंसियों ने प्रमाणित किया है। जल्द ही नियामक अधिकारियों से मंजूरी मिलने के बाद अस्पतालों में नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर का इस्तेमाल शुरू हो जाएगा।
मेक इन इंडिया के तहत ‘फेलूदा’ टेस्ट किट बनाने में मिली सफलता, मिनटों में होगा कोरोना टेस्ट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5वीं बार राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में स्थानीयता और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि स्थानीय तौर पर ऐसी कोशिशें हों और विकास किए जाए, ताकि आम जनता के साथ-साथ देश भी आत्मनिर्भर बन सके। कोरोना से लड़ने के लिए हमारे वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और विशेषज्ञों ने मेक इन इंडिया के तहत नए उपकरणों और दवाइयों का विकास कर इस दिशा में सफलता पायी है। कोरोना की इस जंग में अब भारतीय वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक पेपर बेस्ड टेस्ट स्ट्रिप तैयार की है, जो मिनटों में COVID-19 का पता लगा सकती है। इस टेस्ट किट को ‘फेलूदा’ नाम दिया गया है।
आईजीआईबी के वैज्ञानिकों ने विकसित किया टेस्ट किट
सीएसआईआर से संबद्ध नई दिल्ली स्थित जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (आईजीआईबी) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह एक पेपर-स्ट्रिप आधारित परीक्षण किट है, जिसकी मदद से कम समय में कोविड-19 के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। इस टेस्ट में कागज की पतली स्ट्रिप में उभरी लाइन से पता चल जाता है कि कोई शख्स कोरोना पॉजिटिव है या नहीं।
काफी सस्ती है पेपर-स्ट्रिप किट
आईजीआईबी के वैज्ञानिक डॉ सौविक मैती और डॉ देबज्योति चक्रवर्ती की अगुवाई वाली एक टीम ने इस पेपर किट को विकसित की है। यह किट एक घंटे से भी कम समय में नए कोरोना वायरस (एसएआरएस-सीओवी-2) के वायरल आरएनए का पता लगा सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आमतौर पर प्रचलित परीक्षण विधियों के मुकाबले यह एक पेपर-स्ट्रिप किट काफी सस्ती है और इसके विकसित होने के बाद बड़े पैमाने पर कोरोना के परीक्षण चुनौती से निपटने में मदद मिल सकती है।
500 रुपये में होगी कोरोना की जांच
इस किट की एक खासियत यह है कि इसका उपयोग तेजी से फैल रही कोविड-19 महामारी का पता लगाने के लिए व्यापक स्तर पर किया जा सकेगा। आईजीआईबी के वैज्ञानिक डॉ देबज्योति चक्रवर्ती के मुताबिक अभी इस परीक्षण किट की वैधता का परीक्षण किया जा रहा है, जिसके पूरा होने के बाद इसका उपयोग नए कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए किया जा सकेगा। इस किट के आने से वायरस के परीक्षण के लिए वर्तमान में इस्तेमाल की जाने वाली महंगी रियल टाइम पीसीआर मशीनों की जरूरत नहीं पड़ेगी। नई किट के उपयोग से परीक्षण की लागत करीब 500 रुपये आती है।
पिछले करीब दो महीनों से दिन-रात जुटे थे वैज्ञानिक
आईजीआईबी के वैज्ञानिकों ने बताया कि वे इस टूल पर लगभग दो साल से काम कर रहे हैं। लेकिन, जनवरी के अंत में, जब चीन में कोरोना का प्रकोप चरम पर था, तो उन्होंने यह देखने के लिए परीक्षण शुरू किया कि यह किट कोविड-19 का पता लगाने में कितनी कारगर हो सकती है। इस कवायद में किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए आईजीआईबी के वैज्ञानिक पिछले करीब दो महीनों से दिन-रात जुटे हुए थे।
टेस्ट के लिए जल्द होगा पेपर-स्ट्रिप किट का इस्तेमाल
सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने कहा, इस किट के विकास से जुड़े प्राथमिक परिणाम उत्साहजनक हैं। हालांकि, प्राथमिक नतीजे अभी सीमित नमूनों पर देखे गए हैं और इसका परीक्षण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। दूसरे देशों से मंगाए गए नमूनों पर भी इसका परीक्षण किया जाएगा। नियामक निकायों से इसके उपयोग की अनुमति जल्दी ही मिल सकती है, जिसके बाद इस किट का उपयोग परीक्षण के लिए किया जा सकता है।
सत्यजीत रे की फिल्म से लिया गया है ‘फलूदा’ नाम
बता दें कि इस किट को फेलूदा का नाम बांग्ला फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्म से लिया गया है। फेलूदा उनकी फिल्मों का एक किरदार रहा है जो बंगाल में रहने वाला प्राइवेट जासूसी किरदार है, जो छानबीन कर हर समस्या का रहस्य खोज ही लेता है।
कोरोना की काट खोजने में लगे वैज्ञानिक, एक महीने में बनाई कोविड कवच एलाइजा किट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार कोरोना महामारी से लड़ाई में दिन-रात जुटी हुई है। पीएम मोदी के निर्देश पर देश के डॉक्टर और वैज्ञानिक इस जानलेवा वायरस की काट खोजने में जी-जान से लगे हुए हैं। देश के लिए एक अच्छी बात है कि कोरोना वायरस की जांच के लिए भारत के वैज्ञानिकों ने महज एक महीने में ही एलाइजा किट बना दी है। मोदी सरकार ने इस जांच किट को कोविड कवच एलाइजा का नाम दिया है। इस किट का इस्तेमाल एंटीबॉडी जांच में किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि करीब ढाई घंटे में इस किट से 90 सैंपल की जांच की जा सकती है।
National Institute of Virology, Pune has successfully developed the 1st indigenous anti-SARS-CoV-2 human IgG ELISA test kit for antibody detection of #COVID19 .
This robust test will play a critical role in surveillance of proportion of population exposed to #SARSCoV2 infection pic.twitter.com/pEJdM6MOX6
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) May 10, 2020
अभी मुंबई में दो जगहों पर इसका ट्रायल हो चुका है। आपको बता दें कि पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने इस एंटीबॉडी जांच किट को तैयार किया है। अब इस किट का ज्यादा से ज्यादा निर्माण कराने के लिए दवा कंपनी जायडस से करार किया गया है।
This kit was validated at 2 sites in Mumbai & has high sensitivity & accuracy. Besides,it has the advantage of testing 90 samples together in a single run of 2.5 hours, so that healthcare professionals can proceed quickly with necessary next steps on their patients’ triage paths. pic.twitter.com/J0uKCUPa5h
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) May 10, 2020
जाहिर है कि अभी तक आरटी पीसीआर के जरिए ही कोरोना वायरस का पता चल रहा है। इस जांच में करीब 2 से तीन घंटे का वक्त लगता है। ऐसे में सर्विलांस के लिए भारतीय वैज्ञानिक एक किट को बनाने में जुटे हुए थे। इस किट के जरिए जिला स्तर पर बड़ी आसानी के साथ संक्रमण की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार यह किट काफी सस्ती भी पड़ेगी। हालांकि अभी इसकी कीमत तय नहीं हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि कोरोना वायरस के सर्विलांस को लेकर यह किट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।
#ELISA based testing is easily possible even at district level. The @icmr_niv technology has been transferred to #Zydus #Cadila for mass-scale production.
The Drug Controller General has granted commercial production & marketing permission to Zydus. #COVID19Updates #SARS_CoV_2 pic.twitter.com/jFaAAerWtl— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) May 10, 2020
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस कामयाबी के लिए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी यानि एनआईवी और आईसीएमआर की टीम को बधाई भी दी है। इस किट की मदद से कोरोना वायरस के संक्रमण की घनी आबादी में वास्तविक स्थिति पता करने में आसानी होगी। दरअसल एंटीबॉडी रैपिड जांच किट्स को लेकर कुछ समय पहले भी चीन की कंपनियों को लेकर एक विवाद सामने आया था। अब एनआईवी पुणे की ओर से कोविड कवच एलाइजा किट का निर्माण होने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही यह किट राज्यों को उपलब्ध हो सकेगी, जिसके आधार पर यह भी पता चल सकेगा कि भारत में कोरोना वायरस का सामुदायिक फैलाव अब तक हुआ है या नहीं?
आपको बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर किस तरह देश में वैज्ञानिक और डॉक्टर युद्धस्तर पर कोरोना की वैक्सीन और दवाई खोजने में जुटे हुए हैं।-
कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान का असर, 30 से अधिक वैक्सीन ट्रायल स्टेज में
कोरोना संकट काल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान का असर हुआ है। कोरोना वायरस से उपचार के लिए 30 से ज्यादा वैक्सीन ट्रायल स्टेज में है। प्रधानमंत्री मोदी ने 5 मई को कोविड-19 कोरोना वायरस के उपचार के लिए वैक्सीन निर्माण, दवा की खोज, निदान और परीक्षण की मौजूदा स्थिति की समीक्षा की। समीक्षा बैठक में उन्हें बताया गया कि 30 से अधिक भारतीय वैक्सीन विकास के विभिन्न चरण में हैं। वैक्सीन विकास में तीन चरणों पर काम हो रहा है जिसमें मौजूदा दवाओं का पुन: संयोजन, नई औषधि पर प्रयोगशाला परीक्षण और सामान्य वायरस रोधी गुणों की जांच के लिए पौध उत्पाद और तत्वों का परीक्षण शामिल है।
इस बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने शोधकार्य, उद्योग और सरकार के समन्वित प्रयासों से कुशल नियामक प्रक्रिया पर विचार किया। प्रधानमंत्री ने जोर दिया कि संकट के इस समय हर संभव उपाय वैज्ञानिक प्रक्रिया का नियमित हिस्सा बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि दवा अनुसंधान के लिए जिस तरह से भारतीय वैज्ञानिक और उद्योग साथ आये हैं, वह सराहनीय है।
प्रधानमंत्री मोदी ने दवा, वैक्सीन और जांच से जुड़े मामलों पर एक हैकाथन आयोजित करने का सुभाव किया। उन्होंने कहा कि इसमें सफल उम्मीदवारों को स्टार्टअप कंपनियों द्वारा दवा के विकास कार्यों में लगाया जाना चाहिए।
देश में चल रहा वैक्सीन पर शोध और दवा पर ट्रायल
वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ाई में देश के डॉक्टर और शोधकर्ता काफी जोर-शोर से लगे हुए हैं। कई देशों की तरह भारत भी वैक्सीन पर शोध कर रहा है। इसके साथ ही उन दवाओं का भी ट्रायल चल रहा है जो पहले से दूसरी बीमारी में इस्तेमाल होती रही हैं। ये वो दवाएं हैं जो वायरस से संक्रमित मरीज को ठीक करने में मददगार साबित हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के लिए वैक्सीन पर भी शोध हो रहा है।
इनोवेशन और रिसर्च हब बना भारत
कोरोना वायरस के इस दौर में भारत नए अनुसंधान का हब बन कर उभरा है, जिस पर पूरे विश्व की नजर है। कोविड19 से मुकाबले के लिए भारत अलग-अलग क्षेत्रों में कई अनुसंधान कर रहा है। जिसमें कम कीमत पर टेस्टिंग की नई तकनीक इजाद करने से लेकर सस्ते वेंटिलेटर तक शामिल हैं।
दस गुणा तेजी से जांच करने वाली डायग्नोस्टिक किट
भारत में काफी तेजी से कोविड-19 की जांच के लिए नई डायग्नोस्टिक किट बनाई गई है। हाल ही में श्री चित्रा तिरुनाल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुवनंतपुरम में एक डायग्नोस्टिक किट बनाई गई। जो दुनिया में एकदम अलग और नए तरीके की है। इस किट का प्रयोग करने की कीमत भी कम होगी और जांच में 10 गुना तेजी आएगी। इससे जब भी हमें बहुत तेज और जल्दी टेस्ट की जरूरत होगी इससे करने में आसानी होगी। इससे टेस्टिंग में काफी फायदा मिलेगा। सबसे अहम बात है कि इसकी मैन्युफैक्चरिंग भारत में होगी। न केवल बनेगा बल्कि आने वाले दिनों में विश्व में भी सप्लाई कर सकेंगे।
बेहतर गुणवत्ता वाला पोर्टेबल वेंटिलेटर भी बनाए
कोरोना वायरस से संक्रमित गंभीर मरीजों को कई बार आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा जाता है। लेकिन अभी जो वेंटिलेटर का प्रयोग कर रहे हैं वो ज्यादातर विदेशी हैं जिनकी कीमत 6-7 लाख रुपये तक है। हालांकि अब देश वासियों को इतना ज्यादा नहीं खर्च करना पड़ेगा। क्योंकि भारत ने खुद अब अच्छी क्वालिटी के पोर्टेबल वेंटिलेटर बनाना शुरू कर दिया है। आईआईटी कानपुर में एक ग्रुप है जिसने कुछ कंपनियों के साथ मिलकर कम कीमत के वेंटिलेटर बनाए हैं। ये वेंटीलेटर कहीं भी हॉस्पिटल में रखे जा सकते हैं। इनकी कीमत 10 हजार रुपए तक है इसे घर पर भी आसानी से रखा जा सकता है। इसके अलावा पुणे में ही बिना लक्षण वाले वायरस से संक्रमितो के लिए एक जांच किट तैयार की गई है।
वेंटिलेटर में ऑक्सीजन के नए सिस्टम पर काम शुरू
कई बार वेंटिलेटर में ऑक्सीजन की जरूरत होती है। उसके लिए पुणे की एक स्टार्टअप ने एक ऐसा सिस्टम बनाया है जो हवा से ऑक्सीजन निकाल कर उसे प्रयोग में लाने का काम करता है और इस तरह के सारे अनुसंधान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत हो रहे हैं। डीएसटी सचिव बताते हैं कि डीएसटी सरकार का सबसे बड़ा विभाग है जो देश के सभी रिसर्च, डेपलपमेंट और इनोवेशन को सपोर्ट करता है। चाहे कोई यूनिवर्सिटी हो, एनजीओ हो, आईआईटी, स्टार्टअप हो या कोई कंपनी हो। जो भी स्वदेशी तकनीक का प्रयोग करके कोई रिसर्च या अनुसंधान करते हैं उन्हें साथ लेकर चलता है। ऐसे बहुत सारे अनुसंधान अभी चल रहे हैं।
पीएम मोदी के निर्देश पर दिन-रात जुटे हैं वैज्ञानिक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जहां एक तरफ देशवासियों को कोरोना से लड़ने के लिए जागरुक कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ डॉक्टरों, वैज्ञानिकों को इस वायरस की काट खोजने के लिए प्रोत्साहित करने में लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के उत्साहवर्धन और प्रोत्साहन का ही नतीजा है कि इतने कम समय में कोरोना वैक्सीन के लिए भारतीय वैज्ञानिकों का शोध अब जानवरों के ट्रायल के स्तर पर पहुंच चुका है। बताया जा रहा है कि एक या दो सप्ताह में यह परीक्षण शुरू होगा। इसमें सफलता मिलने के बाद इसका इंसानों पर परीक्षण होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार देश के सात से आठ वैज्ञानिक समूह वैक्सीन शोध में आगे चल रहे हैं। आधा दर्जन शैक्षणिक संस्थाओं के वैज्ञानिक भी वैक्सीन के अध्ययन में जुटे हुए हैं।
बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने में भारतीय वैज्ञानिकों को 12 से 18 महीने का वक्त लग सकता है। भारतीय वैज्ञानिकों की तरह की दुनियाभर में वैज्ञानिकों के 75 ग्रुप भी वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक वैक्सीन किसी भी देश में बने, इसका उत्पादन भारत में ही किया जाएगा। जानकारी के अनुसार भारत बायॉटेक, कैडिला, सीरम इंस्टीट्यूट सहित कुछ कंपनियों के वैज्ञानिक जानवरों के ट्रायल तक पहुंच चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर देश में शुरू हुए शोधों की निगरानी जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप कर रही हैं। इस दौरान वायरस के प्रजनन पर भी शोध हो रहा है।
कोरोना की वैक्सीन खोजने में भारत के साथ पूरी दुनिया के वैज्ञानिक भी जुटे हुए हैं। शोध में लगे एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि करीब दो वर्ष पहले दुनियाभर के औद्योगिक व शैक्षणिक वैज्ञानिकों का एक समूह बना गया था, जिसमें भारत की भागीदारी भी है। यह समूह इस तरह की महामारी के आने पर वैक्सीन की तैयारी पर भी काम कर रहा था।
वैक्सीन के लिए आईआईटी गुवाहाटी ने किया करार
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोरोना की वैक्सीन के लिए आईआईटी गुवाहाटी ने अहमदाबाद की बायोसाइंसेज कंपनी हेस्टर के साथ करार किया है। जल्द जानवरों पर इसका ट्रायल शुरू हो जाएगा। वैक्सीन के लिए रीकॉम्बिनेंट एवियन पैरामाइक्सोवायरस-1 पर काम होगा, जिसमें सार्स-कोविड-2 का प्रोटीन होगा। बायोसाइंसेज एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सचिन कुमार ने कहा कि अभी इस वैक्सीन पर कुछ भी कहना ठीक नहीं है। जानवरों पर इसके परीक्षण का परिणाम सामने आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।
BCG का भी क्लिनिकल ट्रायल
भारत के कुछ राज्यों में प्लाज्मा थेरपी से अच्छे नतीजे आए हैं। अब ट्यूबरक्यूलोसिस (TB) की दवा BCG यानी Bacillus Calmette-Guerin से कोरोना के इलाज की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। अमेरिका के हॉफकिन रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक महाराष्ट्र के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट (एमईडी) के साथ मिलकरक्लिनिकल ट्रायल की तैयारी कर रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि शुरुआती टेस्ट्स में BCG कॉन्सेप्ट के नतीजे बेहतर आए हैं, इसीलिए इसके परीक्षण की दिशा में कदम आगे बढ़ाए जा रहे हैं।
दवाई और वैक्सीन आने तक विशेष सावधानी बरतें
वैसे तो इस वैश्विक महामारी से निजात दिलाने के लिए हमारे देश के डॉक्टर और शोधकर्ता वैक्सीन की खोज के लिए दिन-रात लगे हुए हैं। दवाइयों का ट्रॉयल भी सफल हो रहा है, फिर भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक ये सारी चीजें बाजार में आ नहीं जातीं तब तक लोगों को खुद भी बाहर जाने के दौरान विशेष सावधानी रखनी चाहिए। जो लोग लॉकडाउन में मिली छूट के बाद काम से या दुकान आदि खोलने के लिए बाहर जा रहे हैं उन्हें विशेष सावधानी रखनी है। सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क का प्रयोग, हैंडवाश आदि नियमित रूप से करना है। बाहर निकलें तो एक निश्चित सुरक्षित दूरी बना कर रखें। ऑफिस या कहीं बाहर जा रहे हैं तो टेबल, कुर्सी, दरवाजे की कुंडी आदि अगर टच करें तो तुरंत हाथ धोएं या फिर सेनिटाइज कर लें।
घर के स्मार्ट फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करें
लॉकडाउन में भले ही ढील दी गई है, लेकिन स्थानीय लोगों को भी इसे गंभीरता से लेना होगा। अभी खतरा खत्म नहीं हुआ है और जो भी प्रशासन के दिशा-निर्देश हैं उसका पालन करें क्योंकि खुद के साथ ही परिवार और जिले को भी सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हमारी खुद की है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के साथ ही आरोग्य सेतु ऐप को फोन में रखना जरूरी है। यह वायरस के संक्रमण से बचने में बहुत मददगार है। इससे वायरस से जुड़ी तमाम जानकारी भी मिलती रहती है।
कोरोना महामारी के खात्मे के लिए भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कुछ और आविष्कारों पर नजर डालते हैं-
- भारतीय वैज्ञानिकों ने डिजिटल प्रौद्योगिकी पर आधारित आरोग्य सेतु एप विकसित किया है, जो कोरोना संक्रमण के जोखिम का आकलन और बचाव करने में मदद करता है।
- अभी तक 10 करोड़ से ज्यादा लोग आरोग्य सेतु एप को अपने मोबाइल में डाउनलोड कर चुके हैं।
- भारत के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस की जांच के लिए एलाइजा किट बनाया, जिसे कोविड कवच एलाइजा का नाम दिया गया है।
- एससीटीआईएमएसटी ने कोरोना संकट का सामना करने के लिए ऑटोमेटेड वेंटिलेटर का विकास किया।
- सीएसआईआर-एनएएल ने 35 दिनों के भीतर बाईपैप वेंटिलेटर का विकास किया।
- दिल्ली स्थित डीआरडीओ के एक केंद्र ने एक सैनेटाइजर मशीन बनाया, जिसे बिना छुए उसके झाग से हाथ सैनेटाइज होगा।
- डीआरडीओ ने अल्ट्रावायलेट बॉक्स बनाया है, जिसमें मोबाइल, पर्स और रुपये को सैनेटाइज किया जा सकता है।
- डीआरडीओ द्वारा विकसित सैनेटाइजिंग उपकरण से 3000 वर्ग मीटर क्षेत्र को संक्रमण मुक्त किया जा सकता है।
- श्री चित्रा तिरुनाल प्रौद्योगिकी संस्थान ने कोरोना परीक्षण के लिए स्वैब और वायरल ट्रांसपोर्ट माध्यम का विकास किया।
- डीआरडीओ ने भारी संक्रमण वाले क्षेत्रों के कीटाणुशोधन के लिए एक अल्ट्रा वॉयलेट (यूवी) डिसइंफेक्शन टॉवर विकसित किया।
- अस्पतालों को प्रभावी ढंग से कीटाणुमुक्त करने के लिए यूवी कीटाणुशोधन ट्रॉली का विकास किया गया।
- कोरोना संक्रमण को रोकने में सीएसआईओ के वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रोस्टेटिक डिसइंफेक्शन मशीन विकसित किया।
- एसआईआर के वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए एक पेपर-स्ट्रिप आधारित परीक्षण किट विकसित किया।
- भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण की त्वरित जांच करने वाली ई-कोव-सेंस नामक इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसिंग डिवाइस तैयार की।
- रेलवे के सोलापुर डिविजन ने स्वास्थ्यकर्मियों और मरीजों की सुविधा के लिए मेडिकल असिस्टेन्ट रोबोट का निर्माण किया।