प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार देश के जनसामान्य को बेहतर और कम खर्च में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने को लेकर प्रयास कर रही है। इसके लिए मोदी सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं, देशभर में मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं, गांवों में वेलनेस सेंटर खोले हैं और सस्ती दवाईयों के सेंटर भी संचालित किए जा रहे हैं। अभी हाल में आम बजट में देश के दस करोड़ गरीब परिवारों के लिए आयुष्मान भारत योजना का ऐलान किया गया है और अब केंद्र सरकार दुर्लभ बीमारियों के खात्मे की योजना बना रही है।
दुर्लभ बीमारियों के खात्मे को राष्ट्रीय पॉलिसी
केंद्र सरकार 300 दुर्लभ बीमारियों के खात्मे के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर अभियान शुरू करने वाली है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इसके लिए एक राष्ट्रीय पॉलिसी बनाने में जुटा है। इस पॉलिसी को इस वर्ष के अंत तक लागू किए जाने की उम्मीद है, इसके तहत डॉक्टरों को भी इन बीमारियों के बारे में प्रशिक्षित किया जाएगा। आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में लगभग 7 हजार दुर्लभ बीमारियां हैं, जिनमें से भारत में लगभग 300 तरह की दुर्लभ बीमारियां पाई जाती हैं। इनके उपचार का खर्चा भी करीब 8 से 20 लाख रुपये तक होता है। अभी सरकारी अस्पतालों में सुविधा न होने की वजह से मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है। इन्हीं में से एक लायसोसोमल स्टोरेज डिस्ऑर्डर (एलएसडी) दुर्लभ बीमारी है, जिनकी पहचान आसानी से नहीं हो पाती।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार भारत में होने वाली दुर्लभ बीमारियों के मरीजों की संख्या दो से तीन लाख है। इनमें से सबसे ज्यादा मरीज एलएसडी बीमारियों के हैं। इसलिए सरकार का इन्हीं बीमारियों पर ज्यादा फोकस है। इस बीमारी में एंजाइम की कमी के कारण कोशिकाएं कई तरह के फैट व कार्बोहाइड्रेट को तोडने में असक्षम हो जाती है। इससे शरीर में विषाक्त पदार्थ बनने लगते है।
200 करोड़ रुपये खर्च करेगी मोदी सरकार
मोदी सरकार इन दुर्लभ बीमारियों से निपटने के लिए 200 करोड़ रुपये खर्च करेगी, जबकि बाकी 125 करोड़ रुपये राज्य सरकारों की तरफ से खर्च किया जाएगा। बताया जाता है कि अगर समय पर एलएसडी की पहचान हो जाए तो इसकी कुछ बीमारियों जैसे कि एमपीएस, गौचर, पोम्पे, फ्रैबी का इलाज मुमकिन है। इसलिए जरूरी है कि फिजिशियन को भी दुर्लभ बीमारियों की जानकारी दी जाए क्योंकि रोगी सबसे पहले उन्हीं के पास सलाह लेने जाते है। इन बीमारियों का इलाज इंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (ईआरटी) से किया जा सकता है। पॉलिसी के तहत देश के हर जिले में ईआरटी की सुविधा दी जाएगी।
स्वास्थ्य एक ऐसा क्षेत्र है जहां पहले किसी और सरकार का ध्यान नहीं गया। आम नागरिकों को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देने को कृतसंकल्प मोदी सरकार ने इसे लेकर विस्तृत योजना बनाई है। पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने ऐसी तमाम स्वास्थ्य योजनाएं संचालित की हैं, जिनके बारे में पहले की किसी भी सरकार ने सोचा तक नहीं। एक नजर डालते हैं उन योजनाओं पर-
आयुष्मान भारत योजना
इस वर्ष के बजट में आयुष्मान भारत के नाम से प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने एक ऐसी योजना लांच की है, जिससे देश के हर गरीब को इलाज की सुविधा मिलेगी। मोदी केयर के नाम से चर्चित इस योजना के अंतर्गत देश के 10 करोड़ गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को मुफ्त में पांच लाख रुपये का चिकित्सा बीमा उपलब्ध कराया जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक देश के 50 करोड़ लोगों को अब पांच लाख रुपये तक का इलाज कराने पर अस्पताल को एक भी पैसा नहीं देना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों में सस्ती दवाएं
देशभर में गरीबों और बुजुर्गों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के अन्तर्गत देशभर में 3 हजार से अधिक जन औषधि केंद्र खोले गए हैं। इन केंद्रों पर 800 से अधिक दवाएं उपलब्ध हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि ये दवाएं बाजार में मिलने वाली दवाओं की तुलना में 80 प्रतिशत तक सस्ती हैं।
हर तीन लोकसभा क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज की योजना
देश में मेडिकल कॉलेजों की बेहद कमी है और दूरदराज के लोगों को इलाज के लिए शहरों में आना पड़ता है। इस समस्या को दूर करने के लिए मोदी सरकार ने इस बार के बजट में देश में हर तीन लोकसभा क्षेत्र में एक मेडिकल कॉलेज और अस्पताल खोलने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि इन मेडिकल कॉलेजों में जहां स्थानीय बच्चों को पढ़ने का अवसर मिलेगा, वहीं लोगों को भी उन्हीं के क्षेत्र में इलाज की सुविधा मिलेगी। इसके साथ ही केंद्र सरकार डेढ़ लाख गांवों में वेलनेस सेंटर खोल रही है, जहां लोगों को स्वास्थ्य जांच और दवाएं सबकुछ मिलेंगी।
जीडीपी का 2.5 फीसदी स्वास्थ्य पर खर्च का लक्ष्य
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए लगातार नीतियों में बदलाव कर रहे हैं। सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के तहत स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को 2025 आते-आते जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। सभी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में दवा और निदान मुफ्त निर्बाध रूप में मिले, इसके लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन नि:शुल्क औषध एवं नि:शुल्क नैदानिक पहल का कार्यान्वयन कर रहा है।
जिला अस्पतालों में डायलिसिस मुफ्त
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम के तहत जिला अस्पतालों में गरीबों के लिए निशुल्क डायलिसिस सेवा देने की योजना पर सरकार काम कर रही है। सभी पीएचसी और उप स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएं बढ़ाकर, उसे स्वास्थ्य एवं आरोग्य केन्द्रों में बदलने का काम हो रहा है। राज्य सरकारों के सहयोग से “जन औषधि स्कीम” के अंतर्गत सभी के लिए जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत परिवार फ्लोटर आधार पर स्मार्ट कार्ड आधारित नकद रहित स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया जा रहा है।
साफ अक्षरों में और मरीज की भाषा में हो दवाई का नुस्खा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जन-जन को सशक्त बनाना चाहते हैं। इसी संकल्प के साथ केंद्र सरकार हर योजना पर काम कर रही है। केंद्र सरकार के आदेश पर भारतीय चिकित्सा परिषद (पेशेवर आचरण, शिष्टाचार और नीति ) विनियम में बदलाव किया गया है, और सभी डॉक्टरों को आदेश दिया गया कि उनके द्वारा पठनीय और यथासंभव अंग्रेजी के बड़े अक्षरों में जेनरिक नाम से औषधियों का नाम लिखा जाना चाहिए। साथ ही डॉक्टरों से यह भी कहा गया कि दवाओं का नुस्खा एवं प्रयोग युक्तिसंगत होना चाहिए।
पाठ्यक्रम के बाद ग्रामीण क्षेत्र में सेवा देना अनिवार्य
ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्रों में अच्छे डॉक्टर उपलब्ध हों, इसके लिए केंद्र सरकार के अनुमोदन पर भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सा शिक्षा नियमों में कुछ सुधार किए। अब स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त करने वाले सभी चिकित्सकों को अनिवार्य रूप से दो साल दुर्गम क्षेत्रों में सेवा देनी होगी।
दुर्गम क्षेत्र में सेवा देने वाले चिकित्सकों को मिलेगी वरीयता
भारतीय चिकित्सा परिषद ने चिकित्सा शिक्षा नियमों में बदलाव करके स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में 50 प्रतिशत सीटें सरकारी सेवारत ऐसे चिकित्सा अधिकारियों के लिए आरक्षित कर दी हैं, जिन्होंने कम से कम 3 वर्ष की सेवा दुर्गम क्षेत्रों में की हो। वहीं, स्नातकोत्तर मेडिकल पाठ्यक्रमों में नामांकन कराने के लिए प्रवेश परीक्षा में दुर्गम क्षेत्रों में सेवा के लिए प्रति वर्ष के लिए 10 प्रतिशत अंक का वैटेज दिया जाएगा, जो कि प्रवेश परीक्षा में प्राप्त अंकों का अधिकतम 30 प्रतिशत प्रोत्साहन अंक दिया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त एनएचएम के तहत, ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देने के लिए एमबीबीएस तथा स्नातकोत्तर डॉक्टरों को वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाता है।
घुटना प्रतिरोपण, स्टेंट की कीमतों में कटौती
किफायती कीमत में उपचार सबको मिले, इसी को लागू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घुटना प्रतिरोपण की मूल्य सीमा 54 हजार रुपये से 1.14 लाख रुपये के बीच निर्धारित कर दी है। ऐसा करने से घुटना सर्जरी की कीमत में 70 प्रतिशत तक की कमी आई है। अनुमान है कि इससे सालाना देशवासियों के करीब 1500 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। इसी तरह कैंसर और ट्यूमर के लिए विशेष इम्प्लांट की 4 से 9 लाख रुपये की कीमत को कम करके एक लाख 14 हजार रुपये के भीतर रखा गया है। इससे पहले सरकार स्टेंट की कीमते तय कर चुकी है।