Home गुजरात विशेष अहमद पटेल की साजिश में ‘भष्म’ हो रहा गुजरात का ‘सद्भाव’!

अहमद पटेल की साजिश में ‘भष्म’ हो रहा गुजरात का ‘सद्भाव’!

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गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस किसी भी तरह से जीत हासिल करना चाहती है और इसके लिए पार्टी ने राज्य में अनेकों साजिशें रची हैं। इस बार कांग्रेस ने अहमद पटेल के नेतृत्व में प्रदेश की सामाजिक सामाजिक एकता और गुजराती स्वाभिमान को तार-तार करने की साजिश रची है। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और प्रवीण राम जैसे चेहरों को आगे कर प्रदेश के जनमानस में जातिवाद और सम्प्रदायवाद का जहर भर रहे हैं। दरअसल इस पूरी कवायद का एक मात्र लक्ष्य है भारतीय जनता पार्टी को हराना। इस बात का खुलासा हार्दिक पटेल की बातों से भी हो गया है जो उन्होंने 10 अक्टूबर को गुजरात में एक प्रेस कांफ्रेंस में कही। 

गुजरात चुनाव जीतने के लिए के लिए चित्र परिणाम

हार्दिक ने कहा आरक्षण नहीं, भाजपा को हराना लक्ष्य
‘मुद्दो बीजेपी ने हरानाओ चे, अनामत नो नाथी’… गुजराती भाषा में हार्दिक पटेल के इस स्टेटमेंट ने उनकी नीयत और कांग्रेस की पूरी साजिश की पोल खोलकर रख दी है। हार्दिक कहने का मतलब साफ है कि उन्हें आरक्षण नहीं चाहिए बल्कि भाजपा की हार चाहिए। उनके इस बयान से स्पष्ट है कि उनका एजेंडा पाटीदारों के लिए आरक्षण नहीं बल्कि अहमद पटेल द्वारा रची गई साजिश को अंजाम तक पहुंचाना है। यानी पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के प्रमुख हार्दिक पटेल पाटीदार समुदाय को सरासर धोखा दे रहे हैं और कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए इस आंदोलन को आधार बना रहे हैं।

कांग्रेस द्वारा प्रायोजित था हार्दिक पटेल का आंदोलन
2015 में गुजरात में आकस्मिक और अप्रत्याशित हिंसा हुई और 10 लोगों की जान भी चली गई, लेकिन क्यों? पटेल-पाटीदार समुदाय में एकाएक ऐसा क्या आर्थिक परिवर्तन हो गया कि आरक्षण का घोर विरोध करने वाला विशाल समुदाय खुद को पिछड़े वर्ग में शामिल करने और आरक्षण का लाभ दिये जाने की मांग करने लगा? एक 22 साल के युवक में इतनी संगठन क्षमता कैसे आ गई कि उसने चंद दिनों में लाखों लोगों को संगठित करके एके बेनर के तले खड़ा कर दिया? जाहिर है यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी और यह आंदोलन पटेल समुदाय का कम और कांग्रेस का अधिक है। जिसमें हार्दिक पटेल सिर्फ एक कठपुतली है और उसके तार बड़े और मंजे हुये राजनीतिक खिलाडि़यों के हाथों में है।

नरेंद्र पटेल और निखिल सवानी राहुल गांधी के लिए चित्र परिणाम

कांग्रेस की कोशिशों से अल्पेश ने तोड़ा गुजराती समाज
गुजरात में ओबीसी समाज की 146 जातियां हैं, जो 60 से ज्यादा सीटों पर अपना असर रखती हैं और पिछले कई चुनाव से ओबीसी मतदाता पूरी प्रतिबद्धता के साथ बीजेपी का समर्थन करते रहे हैं। कांग्रेस ने इसी प्रतिबद्धता को तोड़ने के लिए अल्पेश को चुना, क्योंकि अल्पेश पहले से कांग्रेसी रहे हैं और उनके पिता खोड़ाजी ठाकोर कांग्रेस के अहमदाबाद के ग्रामीण जिला अध्यक्ष भी रहे हैं। ये वही अल्पेश ठाकोर हैं जिन्होंने 2012 के जिला पंचायत चुनाव में मांडल सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लड़ाई लड़ी थी, लेकिन जीत नहीं सके थे। इतना ही नहीं 3 साल पहले भी वह कांग्रेस का फटका डालकर प्रचार कर रहे थे। लेकिन अहमद पटेल के नेतृत्व में फुल प्रूफ साजिश देखिये कि किस तरह पहले अल्पेश ने कांग्रेस छोड़ दी और पहले ठाकोर सेना बनाई। फिर ड्राई स्टेट होने के बावजूद हर जगह आसानी से मिलने वाली देसी शराब को बड़ा मुद्दा बनाया और मध्य और उत्तर गुजरात में देसी शराब के ठिकानों पर ‘जनता रेड’ करना शुरू किया। इसके बाद यही उनकी राजनीति का आधार बन गया फिर इसे युवाओं की बेरोजगारी जोड़ा और अंतत: वे कांग्रेस में जाकर मिल गए। अल्पेश ने ठाकोर सेना का दायरा बढ़ाते हुए पूरे ओबीसी समाज को भी इसमें जोड़ दिया और कांग्रेस के साथ गुप चुप तरीके से डील करते हुए गुजरात के करीब 80 देहात की विधानसभा सीटों पर बूथ स्तर पर प्रबंधन का काम किया।

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आप-कांग्रेस की मिली भगत से निकले जिग्नेश मेवानी
11 जुलाई, 2016 को चार दलित युवकों की गुजरात के उना में पिटाई कर दी। इस घटना के बाद 34 गिरफ्तारियां हुईं और न्यायिक प्रक्रियाएं भी शुरू कर दी गईं। लेकिन कांग्रेस की ‘फूट डालो-राज करो’ की राजनीति को एक नयी जमीन मिल गई। एक चेहरा भी सामने लाया गया जिग्नेश मेवानी का। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की मिलीभगत से उन्हें दलितों का चेहरा प्रोजेक्ट किया जाने लगा। जिग्नेश की पोल तभी खुल गई जब उना में जिन दलितों की पिटाई हुई थी उन परिवारों ने ही जिग्नेश मेवानी पर उनकी अनदेखी करने का आरोप लगा दिया। जिग्नेश पर राजनीति करने का आरोप लगा दिया। दरअसल गुजरात सरकार ने उन परिवारों को तत्काल राहत मुहैया करवाई थी, लेकिन जिग्नेश मेवानी की राजनीति के कारण उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। ऐसे में दलित परिवारों ने ही जिग्नेश मेवानी की मंशा पर सवाल उठा दिए। ‘आजादी कूच आंदोलन ‘ से जिस तरह दलितों के अलावा मुस्लिम समुदाय एकजुट हुआ इससे साफ हो गया कि कांग्रेस ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ का नया कार्ड खेला। सामाजिक आंदोलन के नाम पर जब जिग्नेश की राजनीतिक महत्वाकांक्षा उजागर हुई तो उनकी पोल खुल गई है।

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गुजराती स्वाभिमान पर आघात कर रहे अहमद पटेल
बीते 70 वर्षों के इतिहास पर गौर करें तो ऐसे कुत्सित कृत्यों की जड़ में कोई है तो वो कांग्रेस ही है। दरअसल अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी सरपरस्ती में पले-बढ़े कांग्रेसी नेताओं ने उनकी नीतियां जरूर अपना लीं। सालों साल तक सत्ता पर काबिज रहने की कवायद में वंशवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, संप्रदायवाद की आग में देश को जलाने की साजिश पर कांग्रेस पार्टी अमल करती रही है। कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं को नारा दिया है कि ‘गुजरात जीते तो सब जीते’। यानी गुजरात चुनाव कांग्रेस किसी भी ‘छल-कपट’ से जीतना चाहती है। गुजराती मान का अपमान करने और राज्य के विकास को डिरेल करने के लिए कांग्रेस ने पूरी भूमिका तैयार कर दी है।

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ऊना दलित पिटाई थी कांग्रेसी नेताओं ने की साजिश
ऊना में दलितों की पिटाई का मामला राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां रही थीं, लेकिन इसकी टाइमिंग ही इस बात की तस्दीक कर रही थी कि ऊना कांड किसी साजिश का नतीजा थी। दरअसल उना कांड बिहार चुनाव से ठीक पहले करवाया गया था। इसका मकसद था कि देश भर के दलितों में ये संदेश जाए कि बीजेपी के राज्यों में दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं। लेकिन जांच में सामने आया कि समधियाल गांव का सरपंच प्रफुल कोराट उना के कांग्रेसी विधायक और कुछ दूसरे कांग्रेसी नेताओं के साथ संपर्क में था। अब तक की जांच में यह साफ हो चुका है कि सरपंच ने ही फोन करके बाहर से हमलावरों को बुलाया था। जो वीडियो वायरल हुआ था वो भी प्रफुल्ल कारोट के फोन से ही बना था। इस साजिश का बदला समधियाल के दलितों ने प्रफुल्ल कोराट को पंचायत चुनाव में हराकर ले लिया। ऊना कांड की जो जानकारी सूत्रों के हवाले से सामने आई है वो कांग्रेस की खतरनाक साजिश की ओर इशारा करती है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के बड़े नेता अहमद पटेल के इशारे पर कांग्रेस के वंश भाई भीम ने ये सारी साजिश रची थी।

गुजरात में कांग्रेस की साजिश के लिए चित्र परिणाम

दलितों की मूंछें मुड़वाना भी निकली थी एक साजिश
बीते दिनों एक खबर आई कि गांधीनगर के लिंबोदरा गांव में कानून की पढ़ाई कर रहे एक दलित छात्र दिगंत महेरिया को उसी के गांव के सवर्णों ने काफी बुरी तरह से इसलिए पीट दिया, क्योंकि उसने मूंछें रखी हुई थीं। दिगंत महेरिया ने अपनी पुलिस रिपोर्ट में भी यही बयान देते हुए अपने गांव के ही सवर्ण भरत सिंह वाघेला को आरोपित किया। दिगंत ने यह तक कहा कि इन सवर्णों की यह भी धमकी थी कि मूंछें रखने का अधिकार केवल ऊंची जाति वालों को ही है। दलित उत्पीड़न के अंतर्गत आता है, इसलिए नामजद व्यक्ति को पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार कर लिया। टाइम्स ऑफ इंडिया तथा इंडियन एक्सप्रैस जैसे समाचार पत्रों ने इसे प्रमुखता दी, चैनलों ने ‘एक्यक्लूसिव’ कहकर चलाया और नामचीन पत्रकारों ने इसपर एक-एक घंटे का प्राइम टाइम कर डाला। लेकिन यह एक साजिश थी इसकी पोल तब खुली जब आरोप लगाने वाले युवक ने कहा कि इस घटना को उसी ने अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर अंजाम दिया था। उसकी पीठ पर जो ‘गंभीर’ घाव था, वह उसने स्वयं ही अपने दोस्तों से कहकर ब्लेड मरवाकर कराया था। पहले तो उसके दोस्त इसके लिए तैयार नहीं थे, मगर फिर दिगंत के कहने पर इस कार्रवाई को अंजाम देने के लिए मान गए। जाहिर है यह एक गंभीर मामला था लेकिन ऐसी कुत्सित साजिशों के आधार पर किस तरह कांग्रेस पार्टी और देश की मीडिया दुष्प्रचार करने लगती है यह इसका नमूना है।

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