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पोर्ट बिजनेस में दुनिया में चीन को पछाड़ रहा अडानी, इससे चीन को दिक्कत या राहुल गांधी को?

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विश्व मीडिया आज यह कहने लगा है कि पोर्ट (बंदरगाह) की जंग में भारत चीन से आगे निकल गया है। अडानी समूह का कारोबार कई देशों में फैला है और अब अडानी पोर्ट कंपनी कई देशों में विस्तार कर चुकी है और कई देशों में पोर्ट अधिग्रहण के लिए बातचीत चल रही है। इससे चीन बौखला गया है क्योंकि अभी तक चीन की कंपनियों की ही दुनिया के प्रमुख पोर्ट पर नियंत्रण रहा है। अडानी की कंपनी अब उसे जोरदार टक्कर दे रही है और सिंगापुर, श्रीलंका, तंजानिया, मोरक्को, ग्रीस, मिस्र, इजराइल, बांग्लादेश तक उनका कारोबार फैल चुका है। अडानी की उपस्थिति म्यांमार में भी थी लेकिन किसी कारणों से वहां उन्हें अपना कारोबार बेचना पड़ा। अडानी की कंपनी अगर फलेगी-फूलेगी तो देश में वह उतना ही ज्यादा विकास के प्रोजेक्ट शुरू करेगी। इससे देश के लोगों को रोजगार मिलेगा और देश का विकास होगा। अब सवाल उठता है कि अडानी के इस विस्तार को रोकने वाले खलनायक कौन हैं।

अडानी के विस्तार से दिक्कत चीन को या राहुल गांधी को?
अडानी जब ग्रीस में अपना कारोबार फैलाने के लिए बातचीत की प्रक्रिया में है तब भारत की विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अपने नियंत्रण वाले अखबार नेशनल हेराल्ड पर एक लेख लिखकर अडानी के ग्रीस बंदरगाहों को हासिल करने की कोशिश पर सवाल उठाया है। यह समझना मुश्किल है कि अडानी अगर ग्रीस में बंदरगाह हासिल करता है तो इससे कांग्रेस को क्या दिक्कत है। दिक्कत तो चीन को होनी चाहिए क्योंकि उसकी उपस्थिति वहां पहले है। लेकिन भारत के विपक्षी नेता राहुल गांधी अडानी ग्रुप को रोकने, छवि खराब करने के लिए लगातार हमले शुरू कर देते हैं। और इस काम में उनका साथ देती हैं वैश्विक एजेंसियां। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि उन्हीं राहुल गांधी ने 2009 में चीन के साथ एक गुप्त समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। उस एमओयू में क्या था। उस एमओयू में क्या शर्तें और सहमति थी, कोई नहीं जानता। एक तरफ भारत को वैश्विक व्यापार में महाशक्ति बनाने की जंग छिड़ी हुई है। दूसरी तरफ भारतीय विपक्षी दलों द्वारा भारत को रोकने और चीन की मदद करने की कोशिश की जा रही है। इससे आप I.N.D.I.A के गठबंधन के चाल और चरित्र को समझ सकते हैं।

श्रीलंका में अडानी
श्रीलंका में चीन को बड़ा झटका, कोलंबो पोर्ट पर टर्मिनल बनाएगा अडानी ग्रुप
भारत ने चीनी ड्रैगन को बड़ा झटका देते हुए श्रीलंका में 70 करोड़ डॉलर का एक रणनीतिक डीप सी कंटेनर टर्मिनल का समझौता किया। माना जा रहा है कि भारत ने श्रीलंका में चीन के बढ़ते प्रभाव को करारा जवाब देने के लिए यह समझौता किया है। द श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी और भारत के अडाणी समूह ने यह बड़ा समझौता किया है। यह नया पोर्ट कोलंबो में चीन के बनाए 50 करोड़ डॉलर के चीनी जेटी के पास है।

तंजानिया में अडानी
तंजानिया के मुख्य बंदरगाह दार एस सलाम हासिल करने के करीब
अडानी ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ संयुक्त उद्यम के साथ तंजानिया में प्रवेश किया। तंजानिया का अर्थ है अफ्रीका में प्रवेश। कौन सा देश वहां पहले से मौजूद था? ये कोई और नहीं बल्कि चीन था। जो पहले से ही बागामोयो पोर्ट को नियंत्रित करता है। लेकिन अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड (एपीएसईज़ेड) ने तंजानिया के मुख्य बंदरगाह दार एस सलाम पर कार्गो बर्थ को विकसित करने और चलाने के अधिकार हासिल करने के लिए बोली लगाई है और इसे जीतने के करीब है। दार एस सलाम बंदरगाह देश के लगभग 95 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को संभालता है। यह बंदरगाह पड़ोसी देशों जाम्बिया, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, बुरुंडी, रवांडा, मलावी, युगांडा और जिम्बाब्वे की अर्थव्यवस्थाओं को समर्थन देने में भी प्रमुख भूमिका निभाता है। इसके अलावा, बंदरगाह रणनीतिक रूप से पूर्वी और मध्य अफ्रीका के देशों के साथ-साथ मध्य और सुदूर पूर्व, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के लिए माल ढुलाई लिंक के रूप में काम करता है।

मोरक्को में अडानी
भारत के बाहर अडानी का सबसे बड़ा क्लीन पावर डेवलपमेंट
अडानी समूह अपने ग्रीन सेक्टर बिजनेस को यूरोप तक फैलाने में जुटे हैं। समूह मोरक्कों में एक बड़ा प्रोजेक्ट लाने के लिए बातचीत की प्रक्रिया में है। इसका लक्ष्य यूरोप को बिजली और उत्सर्जन मुक्त ईंधन की आपूर्ति करना है। अडानी का कोयला से पोर्ट ग्रुप उत्तरी अफ्रीका के मोरक्को में विंड और सौर जेनरेशन प्लांट बनाने और निर्यात के लिए ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करने की तैयारी में है। यह भारत के बाहर अडानी का सबसे बड़ा क्लीन पावर डेवलपमेंट होगा जो 10 गीगावाट जितना बड़ा हो सकता है। मोरक्को में भी चीन पहले से ही मौजूद है और उसे लग रहा है कि जो काम वह कर सकता था उसे अब अडानी करेगा।

इजराइल में अडानी
इज़राइल के हाइफ़ा बंदरगाह का अधिग्रहण
अडानी ने चीन को सबसे बड़ा झटका इजराइल में दिया। अडानी ने जनवरी 2023 में सबसे रणनीतिक रूप से स्थित इज़राइल के हाइफ़ा बंदरगाह का 1.2 अरब डॉलर में अधिग्रहण किया। उसी समय जब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आया था। हाइफा बंदरगाह मालवाहक जहाजों के संबंध में इजरायल में दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है जबकि पर्यटक जहाजों के मामले में यह इकलौता सबसे बड़ा बंदरगाह है। चीन ने इस बंदरगाह को हासिल करने की पूरी कोशिश की जो पहले से ही वहां कंटेनर टर्मिनल में मौजूद था। इस कदम से वे देश भी स्तब्ध रह गए जो चीन के आक्रामक रवैये को जानते थे और सोचते थे कि चीन को कोई नहीं रोक सकता।

मिस्र में अडानी
अडानी पोर्ट ने 14 करोड़ डॉलर में मिस्र की कंपनी में बहुमत हिस्सेदारी खरीदी
अडानी इजराइल में अधिग्रहण के बाद यहीं नहीं रुके वे मिस्र में भी प्रवेश कर गए जो रणनीतिक रूप से भूमध्य सागर का सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है। और अडानी ने वहां किस देश को परेशान किया? यह फिर से चीन था जो पहले से ही वहां मौजूद था। अडानी पोर्ट ने अपने अंतरराष्ट्रीय विस्तार के हिस्से के रूप में मिस्र के इंटरनेशनल एसोसिएटेड कार्गो कैरियर (IACC) में 51.4 करोड़ दिरहम ($140m) में 70 प्रतिशत इक्विटी हिस्सेदारी का अधिग्रहण पूरा किया। इसके साथ ही मिस्र की सरकार ने अडानी समूह को स्वेज कैनाल आर्थिक क्षेत्र (SCEZ) में भूमि आवंटित करने पर हामी भरी है।

ग्रीस में अडानी
ग्रीस में कावला, वोलोस, अलेक्जेंड्रोपोली बंदरगाहों के लिए बातचीत
चीन को साल का सबसे बड़ा झटका पिछले हफ्ते लगा जब खबर आई कि अडानी ग्रीस के साथ कावला, वोलोस, अलेक्जेंड्रोपोली बंदरगाहों के लिए बातचीत कर रहा है। इस बंदरगाह को पाने का मतलब है पूरे यूरोपीय बाज़ार में प्रवेश अब अंदाजा लगाइए कि अडानी का प्रतिस्पर्धी देश ग्रीस कौन सा है? यह चीन का कॉस्को है। पीरियस बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण है और भारत इस बंदरगाह को भी हासिल करने के लिए बातचीत कर रहा है।

बांग्लादेश में अडानी
बांग्लादेश बिजली ग्रिड को बिजली की आपूर्ति
अदानी समूह ने 15 जुलाई को बांग्लादेश बिजली ग्रिड को बिजली की आपूर्ति करने के लिए झारखंड के गोड्डा में भारत की पहली अंतरराष्ट्रीय परियोजना शुरू करने की घोषणा की। गोड्डा में समूह के अल्ट्रा सुपर-क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट (यूएससीटीपीपी) से बांग्लादेश को पूरी लोड बिजली आपूर्ति शुरू होने के बाद अध्यक्ष गौतम अडानी ने ढाका में बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना से मुलाकात की।

अडानी का पोर्ट बिजनेस 90 के दशक में शुरू हुआ 
गुजरात की चिमनभाई पटेल सरकार ने 90 के दशक में निजी कंपनियों को बंदरगाह आवंटित करने की शुरुआत की थी। सरकार ने 10 बंदरगाहों की लिस्ट बनाई थी, जिनमें एक मुंद्रा पोर्ट भी था। 1995 में गौतम अडानी की कंपनी अडानी पोर्ट्स को 8000 हेक्टेयर में फैले इसी Mundra Port के संचालन का कॉन्ट्रैक्ट हासिल हुआ था।

हाई टाइड में डूब जाती थी मुंद्रा की जमीन
मुंद्रा पोर्ट की जमीन को लेकर विपक्ष लगातार सरकार को घेरता रहा है। ऐसा कहा जाता है कि इस जमीन को एक रुपये प्रति स्क्वायर फीट के दाम में अडानी पोर्ट्स को मिली थी। गौतम अडानी ने खुद बीते साल 2022 में दिए एक इंटरव्यू में इस बारे में बताते हुए कहा था कि उन्हें वेस्टलैंड की जमीन मिली थी, जिसकी कीमत उस समय काफी कम थी। अडानी के मुताबिक, असल में वो जमीन, जमीन नहीं थी, हाई टाइड के समय वह पानी में चली जाती थी। उन्होंने कहा था कि इस जमीन को ठीक करने में हमने उस पर 3-4 फीट रिक्लेमेशन किया और इस पर आने वाली लागत उसकी ओरिजनल कॉस्ट से भी कहीं ज्यादा थी।

देश का सबसे बड़ा बंदरगाह मुंद्रा पोर्ट
जमीन को ठीक करके मुंद्रा को फायदे का सौदा बनाने में अडानी पोर्ट्स को लगभग 10 साल का समय लगा। इस वक्त अडानी ग्रुप का मुंद्रा पोर्ट आज भारत का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह है। गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और ओडिशा जैसे सात समुद्री राज्यों में 13 घरेलू बंदरगाहों में अडानी पोर्ट्स की मौजूदगी है। मुंद्रा पोर्ट पर सालाना करीब 10 करोड़ टन माल उतरता है। यहां की एडवांस्ड और सिस्टामैटिक तकनीक इसे दूसरे बंदरगाहों से अलग है। यह देश का व्‍यस्‍ततम बंदरगाह है और इससे पूरे भारत के लगभग एक-चौथाई माल की आवाजाही होती है।  

अडानी पोर्ट पर हिंडनबर्ग का सबसे कम असर 
अंतर्राष्ट्रीय साजिश के तहत अडानी समूह को बदनाम करने के लिए हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट पब्लिश की गई। रिपोर्ट पब्लिश के होने के पहले 24 जनवरी को अडानी पोर्ट के शेयर का भाव 761.20 रुपये था और 25 जनवरी 2023 के बाद इसने 462.45 रुपये का निचला स्तर छुआ था। 2 फरवरी को ये शेयर इस लो-लेवल पर पहुंचा था। लगातार महीने भर इसमें भी गिरावट जारी रही, लेकिन 2 सितंबर 2023 को बाजार बंद होने के समय इसका भाव 800 रुपये था।

अडानी पोर्ट के विस्तार से चीन परेशान
अडानी पोर्ट ने 2020 में सिंगापुर में एक होल्डिंग फर्म बनाई और कंपनी 2030 तक विश्व का सबसे बड़ा बंदरगाह बनने की घोषणा की गई। यहीं से शुरू हुई भारत को वैश्विक व्यापार में महाशक्ति बनाने की साहसिक यात्रा जिसकी चीन ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। अडानी पोर्ट जिस तेजी के साथ विस्तार कर रही है उसने चीन को पूरी तरह से परेशान कर दिया है। चीन को अपना कारोबार सिमटता दिख रहा है। इसीलिए तरह-तरह के प्रोपेगेंडा किए जा रहे हैं, साजिशें की जा रही हैं।

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