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पीएम मोदी के विजन से घाटी गुलजार, धरती के स्वर्ग कश्मीर में आतंकी वारदातें 59% घटी, विदेशी सैलानी भी 8 गुना बढ़े, G20 के बाद ही आए 20000 विदेशी पर्यटक

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरगामी नीतियों का ही सुफल है कि कश्मीर की वादियां फिर से पर्यटकों से गुलजार हो रही हैं। बरसों तक आतंक के साए में जीने वाले जम्मू-कश्मीर के लोगों की जिंदगी में अमन-चैन लौट रहा है। क्योंकि पीएम मोदी के राज में पिछले सालों में आतंकी वारदातों में 59% तक की कमी आई है। जो कुछ वारदातें हुई भी हैं तो वो छिटपुट ही हैं। खास बात यह है कि कभी पत्थरबाज युवाओं की पहचान बना चुके कश्मी के युवा अब पीएम मोदी की नीतियों के चलते ‘आतंकी गुटों में भर्ती होने से किनारा कर रहे हैं। क्योंकि उनके लिए रोजगार के नित-नए अवसर बन रहे हैं। उन्हें यह अहसास हो गया है कि अपराध के दलदल में डरे-छिपे जीने के बजाए कश्मीर की वादियों में स्वरोजगार के नए अवसरों के साथ जुड़कर जिंदगी ज्यादा बेहतर और आसान हो सकती है।

जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले 12 हजार और बाद में आए 20 हजार विदेशी पर्यटक
धरती के स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर में शांति बहाल होने का ही असर है कि देशी ही नहीं विदेशी सैलानियों को भी कश्मीर लुभा रहा है। घाटी में पिछले साल सितंबर तक केवल 4100 विदेशी पर्यटक आए थे, जबकि इस साल अब तक 32 हजार आ चुके हैं। यानी लगभग 8 गुना विदेशी पर्यटक ज्यादा आ चुके हैं। मई में कश्मीर में जी20 समिट से पहले इस साल 12 हजार विदेशी पर्यटक आए थे, जबकि सितंबर तक 20 हजार सैलानी आ चुके हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि जम्मू-कश्मीर के लिए अमेरिका, कनाडा और कुछ अन्य यूरोपीय देशों ने विपरीत ट्रैवल एडवाइजरी जारी होने के बावजूद सैलानी आ रहे हैं।आम नागरिकों के मारे जाने के मामलों में 77 प्रतिशत तक की कमी
जम्मू-कश्मीर पर्यटन विभाग के अनुसार चौकस सुरक्षा व्यवस्था के कारण पर्यटकों में खौफ नहीं है। अब तक 1.50 करोड़ देशी पर्यटक भी आ चुके हैं। पिछले साल 1.88 करोड़ देशी पर्यटक आए थे। 10 स्थानीय युवा आतंकी बने, 6 का सफाया जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह के अनुसार 10 स्थानीय युवा आतंकी गुटों में भर्ती हुए, इनमें से 6 का सफाया हो चुका है। अनुच्छेद 370 हटने के मोदी सरकार द्वारा लिए गए ऐतिहासिक फैसले के बाद पांच साल में कश्मीर में आतंकवादी हमलों में आम नागरिकों के मारे जाने के मामलों में 77 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है।

कश्मीर में जी-20 की बैठक से लोकल इकोनॉमी को मिला बूस्टर डोज
• प्रधानमंत्री मोदी के विजन के चलते जी-20 शिखर सम्मेलन की बैठकों को दिल्ली में केंद्रित करने के बजाए देश के अलग-अलग शहरों में आयोजन हुए। इसका सबसे ज्यादा फायदा जम्मू-कश्मीर को मिला है।
• जी-20 से पहले और बाद में देशी-विदेशी पर्यटकों के आने से जम्मू-कश्मीर की हैंडलूम इंडस्ट्री, पश्मीना शॉल और ड्राय फ्रूट बिजनेस को नया आयाम मिला है। इससे भी बढ़कर टूरिज्म सेक्टर को बूस्टर डोज मिला है। केंद्र सरकार और लोकल एडमिनिस्ट्रेशन ने दिन-रात एक करके इस जी-20 मीटिंग को कामयाब बनाने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी।
• यहां आने वाले मेहमानों को ये भी यकीन दिलाया गया कि घाटी में अमन बहाली हो चुकी है और अब यह दुनिया के हर हिस्से से आने वाले टूरिस्ट के लिए पूरी तरह महफूज है।
• हालांकि पाकिस्तान इस मीटिंग में खलल डालने के लिए कई तरह की साजिशें रचीं। लेकिन वो अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो पाया। इस मीटिंग के जरिए लोकल इकोनॉमी को पावर बूस्टर डोज मिला है।

कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें शुरू होने से भी बढ़े विदेशी पर्यटक
इस बार आए पर्यटक केवल कश्मीर व जम्मू तक सीमित नहीं रहे। बल्कि राजौरी-पुंछ जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भी पर्यटक काफी अधिक संख्या में पहुंचे। इसका एक मुख्य कारण यह भी था कि प्रशासन ने 75 नए पर्यटन स्थलों को भी बढ़ावा दिया, जहां पहले बहुत ही कम लोग या तो कोई जाता ही नहीं था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू होने से भी पर्यटकों की संख्या बढ़ी है। पिछले 70 साल से यह मांग थी कि जम्मू-कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू की जाएं तो इस बार मोदी सरकार ने लोगों की मांग पूरी करते हुए श्रीनगर से शारजाह के लिए सीधी उड़ान शुरू कराई।विकास के लिए जम्मू कश्मीर में 56 हजार करोड़ रुपये का निवेश
जम्मू कश्मीर में पिछले तीन सालों में 56 हजार करोड़ रुपये के निवेश के आंकड़े को छू गया है, जिसमें 38 हजार करोड़ के विनिवेश के लिए जमीन मुहैया कराई जा चुकी है। जम्मू कश्मीर में विनिवेश करने वाली कंपनियों में प्रमुख नाम अपोलो, मेदांता, वरुण वेवरेजेज, दिव्याणी वेवरेजेज समेत कई नामचीन फाइबर ऑपटिक्स की कंपनियां हैं जो तकरीबन ढ़ाई लाख लोगों को रोजगार के लिए नए अवसर तैयार कर रही हैं। जम्मू कश्मीर में निवेश को लेकर आजादी के बाद के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो साल 2019 तक जम्मू कश्मीर में तकरीबन 14 हजार 7 सौ करोड़ रुपए का विनिवेश हो पाया था, यानि आजादी के बाद से 2019 तक जम्मू कश्मीर में जितना निवेश हुआ उसका लगभग चार गुणा सिर्फ तीन साल में हुआ।कश्मीर की वादियों तक ट्रेन कनेक्टिविटी और बेहतर करने के प्रयास
ट्रेन कनेक्टिविटी की दिशा में तेजी से काम चल रहा है। कश्मीर तक राज्य के अन्य भागों तक ट्रेन कनेक्टिविटी की कोशिश जारी है। इंटरनेशनल फ्लाइट श्रीनगर से शारजाह के लिए शुरू हो चुकी है। जम्मू-कश्मीर से रात में भी विमान उड़ान भरने लगे हैं। बेहतर कनेक्टिविटी के कारण जम्मू-कश्मीर के सेब किसान अब अपनी पैदावार को आसानी से बाहर भेज रहे हैं। फल उत्पादक किसानों को विशेष मदद देने के लिए केंद्र सरकार की नजर ड्रोन के माध्यम से ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने को लेकर भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 मार्च 2023 को डेवलपिंग टूरिज्म विषय पर आयोजित पोस्ट बजट वेबिनार को संबोधित करते हुए टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए सरकार की कई योजनाओं का जिक्र किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज वो समय है, जब हमारे गांव भी टूरिज्म का केंद्र बन रहे हैं। बेहतर होते इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण अब दूर-सुदूर के गांव टूरिज्म मैप पर आ रहे हैं। पीएम मोदी ने कहा कि देश के बॉर्डर इलाकों का भी तेजी से विकास हो रहा है। बॉर्डर किनारे बसे गांवों में ‘वाइब्रेंट बॉर्डर विलेज योजना’ भी शुरू की है।वर्ष 2022 में 1.62 करोड़ पर्यटक जम्मू कश्मीर पहुंचे
जम्मू कश्मीर आने वाले पर्यटकों की रिकॉर्ड संख्या केंद्र शासित प्रदेश में हुए समग्र विकास और बदलाव को दर्शाती है। पर्यटन जम्मू कश्मीर में रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है और जनवरी, 2022 से अक्टूबर 2022 तक 1.62 करोड़ पर्यटकों ने जम्मू कश्मीर का दौरा किया है, जो स्वतंत्रता के 75 वर्षों में सबसे अधिक है। उन्होंने कहा कि इस साल के पहले आठ महीनों में 3.65 लाख अमरनाथ यात्रियों सहित 20.5 लाख पर्यटकों ने कश्मीर की यात्रा की। पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था होने से सैलानियों के बढ़ने के चलते पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों में काफी उत्साह है।

कश्मीर की शारदा पीठ पर शारदीय नवरात्र में हुई पूजा-अर्चना 
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 के खात्मे के बाद अमन-चैन और खुशहाली की बयार के बाद पीएम मोदी सरकार का कश्मीर के लिए अगला कदम देवा मां के आशीर्वाद से जुड़ा है। पवित्र चैत्र नवरात्रों में जम्मू कश्मीर के उत्तरी इलाके में नियंत्रण रेखा के पास प्राचीन माता शारदा देवी के मंदिर में इस बार श्रद्धालु दर्शन कर सकेंगे। सेवा शारदा कमेटी के मुताबिक उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में स्थित मंदिर का निर्माण पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में शारदापीठ मंदिर की सदियों पुरानी तीर्थयात्रा को फिर से शुरू करने के लिए किया जा रहा है। मंदिर का निर्माण कार्य पिछले साल ही शुरू किया गया है। मां शारदा देवी का मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक माना जाता है। यह लगभग 5000 साल से ज्यादा पुराना मंदिर है। अब 75 साल बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो गया है। इस मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए चैत्र नवरात्री के दिन खोला गया था। इस बार शारदीय नवरात्र में भी मंदिर में श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की।कश्मीरी पंडित सदियों से कुलदेवी के रूप में मां शारदा की करते हैं पूजा
नब्बे के दशक में जिन कश्मीरी पंडितों को जम्मू-कश्मीर से अत्याचार करने के बाद भागने को मजबूर किया गया, यह मंदिर उन्हीं कश्मीरी पंडितों के लिए एक आस्था का प्रतीक है। कश्मीरी पंडित कुल देवी के रूप में मां शारदा की पूजा करते हैं। अब कर्नाटक के श्रृंगेरी मठ से शारदा मंदिर की मूर्ति लाई गई है। यह मूर्ति 3000 किमी दूर से शारदा माता की शोभा यात्रा के रूप में लाई गई। शारदा मंदिर में मूर्ति की प्राण- प्रतिष्ठा होने के साथ ही चैत्र नवरात्र में भक्तों के लिए मंदिर दर्शनार्थ खोल दिया जाएगा। कश्मीर पंडितों का कहना है कि पहले श्रीनगर से शारदा देवी मंदिर तक वार्षिक यात्रा निकाली जाती थी। इस प्राचीन धार्मिक यात्रा को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि करतारपुर कॉरडोर की तर्ज पर इस शोभा यात्रा की भी शुरूआत की जा सकती है।

कर्नाटक के श्रृंगेरी से शारदा मूर्ति को एलओसी तीतवाल तक ले जाने के लिए यात्रा
कश्मीर की शारदा समिति बचाओ ने 24 जनवरी से कर्नाटक में श्रृंगेरी से शारदा मूर्ति को एलओसी तीतवाल तक ले जाने के लिए यात्रा शुरू की थी। यात्रा बेंगलुरू, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, जयपुर और गुड़गांव में प्वाइंट टू प्वाइंट ठहरने के बाद 20 मार्च को तीतवाल पहुंची है। एलओसी पर कुपवाड़ा के तंगधार सेक्टर में नवनिर्मित शारदा मंदिर में स्थापना के लिए मूर्ति पहुंच गई है, जिसके पहुंचने पर वहां के स्थानीय लोगों ने जश्न मनाया। शारदा समिति बचाओ के सदस्य मूर्ति को सजाए गए वाहन में कश्मीरी पंडित भवन से विभिन्न शहरों में ले जाते हैं। यहां कश्मीर में एलओसी तीतवाल में नवनिर्मित शारदा यात्रा मंदिर की कथा है। शारदा यात्रा मंदिर, तीतवाल, कश्मीर शारदा पीठ पीओके के तीर्थ यात्रा मार्ग पर स्थित है। प्राचीन काल से, चंद्र कैलेंडर के भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शारदा पीठ की वार्षिक तीर्थयात्रा होती थी। तीतवाल से शारदा पीठ तक पवित्र गदा (छड़ी मुबारक) निकाली जाती है। शारदा पीठ भारतीय उपमहाद्वीप की शिक्षा का केंद्र था, यहां शास्त्र और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए विद्वान श्रद्धा से आते थे। शारदा लिपि कश्मीर की मूल निवासी है, जिसका नाम विद्या की देवी और शारदा पीठ की मुख्य देवी सरस्वती के नाम पर रखा गया है।धार्मिक मान्यता है कि यहां सती का दायां हाथ गिरा था, यह शक्तिपीठों में से एक है
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के इस बयान के बाद मां शारदा शक्ति पीठ के इस मंदिर को लेकर चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई, जो 75 सालों से PoK में है। यह हिंदू धर्म की देवी सरस्वती का एक प्राचीन मंदिर है, जो अब खंडहर में तब्दील हो रहा है। इस पीठ का इतिहास सदियों पुराना है और शारदा पीठ को महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यहां माता सती का दायां हाथ गिरा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती की मृत्यु के बाद शोकाकुल भगवान शिव सती के शरीर को लेकर तीनों लोकों में घूम रहे थे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से 51 हिस्सों में काट दिया था। ये सभी हिस्से धरती पर जहां गिरे, वे सभी पवित्र स्थल बन गए और शक्ति पीठ कहलाए।बंटवारे से पहले तीन प्रमुख तीर्थों में शामिल था शारदा पीठ
यह पीठ नीलम, मधुमती और सरगुन नदी की धाराओं के संगम के पास हरमुख पहाड़ी पर करीब 6500 फीट की ऊंचाई पर है, जो PoK के मुजफ्फराबाद से 140 किलोमीटर और कश्मीर के कुपवाड़ा से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे से पहले शारदा पीठ, मार्तंड सूर्य मंदिर और अमरनाथ गुफा के साथ जम्मू-कश्मीर के तीन प्रमुख तीर्थस्थलों में शामिल था। अब मंदिर खंडहर हालत में है बिना किसी साज-सज्जा वाले मंदिर में अब बस पत्थरों के स्लैब ही बचे हैं। 2009 में प्रकाशित हुई किताब ‘कल्चरल हेरिटेज ऑफ कश्मीरी पंडित्स’ में कश्मीरी लेखक अयाज रसूल नाजकी ने शारदा पीठ से जुड़ी एक लोक कथा का जिक्र किया है। इस कथा के अनुसार- अच्छाई और बुराई के बीच युद्ध के दौरान देवी शारदा ने ज्ञान के पात्र की रक्षा की थी। शारदा देवी ये पात्र लेकर घाटी में गईं और उसे एक गहरे गड्ढे में छिपा दिया। इसके बाद उन्होंने उस पात्र को ढंकने के लिए खुद को एक ढांचे में बदल लिया। अब यही ढांचा शारदा पीठ के रूप में खड़ा है।  शारदा पीठ को कई हजार साल पुराना माना जाता है। यह श्रीनगर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर पीओके में है। प्रमुख शक्तिपीठों में से एक यह पीठ कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। हालांकि अब इसके अवशेष ही बचे हैं। कहा जाता है कि सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान 237 ईसा पूर्व में शारदा मंदिर की स्थापना हुई थी। हिंदू देवी सरस्‍वती को शारदा भी कहते हैं।

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