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भारत का डिजिटल बुनियादी ढांचा वैश्विक चुनौतियों के लिए सुरक्षित और समावेशी समाधान प्रदान करता है- पीएम मोदी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज 19 अगस्त को वीडियो संदेश के माध्यम से बेंगलुरू में आयोजित जी-20 डिजिटल अर्थव्यवस्था मंत्रियों की बैठक को संबोधित किया। सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्यमशीलता की भावना एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था पर चर्चा करने के लिए इससे बेहतर स्‍थल नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री ने पिछले 9 वर्षों में भारत में हुए अभूतपूर्व डिजिटल परिवर्तन के लिए 2015 में डिजिटल इंडिया पहल के शुभारंभ को श्रेय दिया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा वैश्विक चुनौतियों के लिए सुरक्षित और समावेशी समाधान प्रदान करता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत में दर्जनों भाषाएं और सैकड़ों बोलियां हैं। उन्होंने कहा कि यह दुनियाभर के हर धर्म और असंख्य सांस्कृतिक प्रथाओं का घर है। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राचीन परंपराओं से लेकर नवीनतम प्रौद्योगिकियों तक, भारत में सभी के लिए कुछ न कुछ है। उन्होंने कहा कि इस तरह की विविधता के साथ, भारत समाधान के लिए एक आदर्श परीक्षण प्रयोगशाला है। उन्होंने कहा कि भारत में सफल होने वाले समाधान को दुनिया में कहीं भी आसानी से लागू किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने साफ किया कि भारत दुनिया के साथ अपने अनुभव साझा करने के लिए तैयार है और कोविड महामारी के दौरान वैश्विक कल्‍याण के लिए पेश कोविन प्लेटफॉर्म का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि भारत ने एक ऑनलाइन ग्लोबल पब्लिक डिजिटल गुड्स रिपॉजिटरी- इंडिया स्टैक बनाया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विशेषकर ग्लोबल साउथ के साथ-साथ कोई भी पीछे न छूटे।

प्रधानमंत्री ने भारत के 85 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की भी चर्चा की जो दुनिया में कुछ सबसे सस्ती डेटा लागतों का आनंद लेते हैं। उन्होंने शासन को बदलने और इसे अधिक कुशल, समावेशी, तेज और पारदर्शी बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने का जिक्र किया और 1.3 बिलियन से अधिक लोगों को कवर करने वाले भारत के अद्वितीय डिजिटल पहचान मंच आधार का भी उदाहरण दिया। उन्होंने जेएएम ट्रिनिटी- जन धन बैंक खातों, आधार और मोबाइल का उल्लेख किया, जिनके माध्‍यम से वित्तीय समावेशन और यूपीआई भुगतान प्रणाली में क्रांति आ चुकी है, इन साधनों से हर महीने लगभग 10 बिलियन लेन-देन होते हैं, और वैश्विक वास्तविक समय भुगतान का 45 प्रतिशत भारत में होता है।

प्रधानमंत्री ने डीबीटी योजना का भी जिक्र करते हुए कहा कि इस प्रणाली में खामियों को दूर करने से 33 अरब डॉलर से अधिक की बचत भी हुई है। भारत के कोविड टीकाकरण अभियान का समर्थन करने वाले कोविन पोर्टल का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि इसने डिजिटल रूप से सत्यापन योग्य प्रमाणपत्रों के साथ 2 बिलियन से अधिक वैक्सीन खुराक की डिलीवरी में सहायता प्रदान की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऑनलाइन सार्वजनिक खरीद प्‍लेटफार्म- गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस के माध्‍यम से प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्‍ठा लाई जा सकी है। उन्‍होंने ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स की भी जानकारी दी जिसके माध्‍यम से ई-कॉमर्स का लोकतंत्रीकरण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पूरी तरह से डिजिटल कराधान प्रणाली पारदर्शिता और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा दे रही है। प्रधानमंत्री ने एआई संचालित भाषा अनुवाद मंच ‘भाषिनी’ के विकास के बारे में भी बताया, जो भारत की सभी विविध भाषाओं में डिजिटल समावेशन का समर्थन करेगा।

प्रधानमंत्री ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि कार्य समूह जी-20 वर्चुअल ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिपॉजिटरी का निर्माण कर रहा है। उन्‍होंने कहा कि डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के लिए समान प्रारूप पर प्रगति से सभी के लिए एक पारदर्शी, जवाबदेह और निष्पक्ष डिजिटल इकोसिस्‍टम बनाने में मदद मिलेगी। डिजिटल अर्थव्यवस्था के वैश्विक स्तर पर फैलने के साथ-साथ सुरक्षा खतरों और चुनौतियों को देखते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि एक सुरक्षित, विश्वसनीय और लचीली डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए जी-20 उच्च स्तरीय सिद्धांतों पर आम सहमति बनाना महत्वपूर्ण है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हम वर्तमान में जिस तरह से प्रौद्योगिकी से जुड़े हैं, यह सभी के लिए समावेशी और सतत विकास का भरोसा दिलाती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जी-20 देशों के पास एक समावेशी, समृद्ध और सुरक्षित वैश्विक डिजिटल भविष्य की नींव रखने का एक अनूठा अवसर है। उन्होंने कहा कि डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के माध्यम से वित्तीय समावेशन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने किसानों और छोटे व्यवसायों द्वारा डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने, वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य इकोसिस्‍टम बनाने के लिए रूपरेखा स्थापित करने और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सुरक्षित और जिम्मेदार उपयोग के लिए एक प्रारूप विकसित करने का सुझाव दिया।

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