– ”अमीर राजा की गरीब प्रजा”
– ”यह मीडिया का भक्तिकाल है”
– ”देश के नए बाप”
ये सब वो शीर्षक हैं जिनके सहारे राजीव रंजन श्रीवास्तव आजकल अपनी एजेंडा पत्रकारिता को चमकाने की कोशिशों में लगे हुए हैं। दैनिक देशबंधु का यह ग्रुप एडिटर सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट और इंटरनेट टीवी चैनल DB Live के अपने शो के जरिये सिर्फ नकारात्मकता फैलाने में लगा हुआ है।
किसके इशारे पर एजेंडा पत्रकारिता?
राजीव रंजन श्रीवास्तव की लेखनी और प्रस्तुति पर गौर करने से यह साफ लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकास के एजेंडे पर एक सोची-समझी नीयत के साथ इन्होंने एजेंडा पत्रकारिता का चाकू चलाने की ठान रखी है। यभी भी जाहिर होता है कि वह किसी एक विशेष पक्ष के इशारे पर ऐसा करते हैं।
टीवी शो में सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी पर निकालते हैं भड़ास
राजीव देशबंधु ग्रुप के इंटरनेट टीवी चैनल DB Live पर यह ‘हमारी राय’ नाम से एक शो करते हैं जिसमें मोदी सरकार पर ये अपनी पूरी भड़ास निकालते देखे जाते हैं। सुर्खियों में आने वाले किसी भी मुद्दे पर जिस तरह की एकतरफा राय बनाकर वो पेश किया करते हैं वह स्वस्थ पत्रकारिता के मानदंडों पर कहीं से खरा नहीं उतरता। इस शो में यह सवाल उठाकर या सवाल में ही जवाब भरकर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे रहते हैं। जैसे 10 जनवरी को इन्होंने जिग्नेश मेवाणी और उमर खालिद की रैली से जोड़कर अपनी सीधी राय जाहिर कर दी कि युवा हुंकार रैली से डर गई है मोदी सरकार।
एक ही पक्ष को रखने की यह कैसी पत्रकारिता?
वहीं 9 जनवरी के अपने शो में इन्होंने यह सवाल उठा दिया कि राहुल गांधी की बहरीन यात्रा से क्यों परेशान है बीजेपी? पत्रकारिता के पेशे में संपादकीय टिप्पणियां या सवाल उठाए जाने पर बंदिश नहीं, लेकिन जब वह पूरी तरह से किसी एक ही पक्ष को पेश करता हो तो उसके पीछे की नीयत को भी समझना आसान है।
मोदी सरकार के विरोध में किसी भी हद तक चले जाते
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमले का यह एक भी मौका नहीं जाने देना चाहते। इस हमले को लेकर वह इतने अधीर होते हैं कि बीजेपी नेता के किसी नेता के दिए बयान के सही संदर्भ में भी नहीं जाना चाहते। ‘देश के नए बाप’ नाम से शो करना यह जाहिर करता है कि प्रधानमंत्री मोदी का विरोध करने के लिए वो किस हद तक जा सकते हैं।
बनी-बनाई राय के साथ चलते हैं
सितंबर में झारखंड में 10 वर्षीय बच्ची की मौत को लेकर उन्होंने एकतरफा राय बना दी। इनकी राय से गुजरिए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इन्हें सरकार के पक्ष को जानने-समझने से कोई मतलब नहीं। ये अपनी राय बना चुके होते हैं और काम होता है बस उसे सामने रख देने का।
क्यों नहीं गले उतरता मोदी सरकार का एक भी फैसला?
अपनी सरकार के कदमों को ज्यादा से ज्यादा जन हितैषी बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सितंबर में मंत्रिमंडल का फेरबदल और विस्तार किया था। लेकिन राजीव रंजन ने यह निष्कर्ष निकालने में देर नहीं कि प्रधानमंत्री की इस कवायद से मिनिगम गवर्नमेंट, मैक्सिम गवर्नेंस का नारा बेमानी हो गया।
हस्तक्षेप.com के जरिये भी एजेंडा पत्रकारिता
टीवी शो ही नहीं, हस्तक्षेप.com पर भी अपने आलेखों को राजीव रंजन श्रीवास्तव जिस तरह की चाशनी में लपेटते हैं उससे पता चलता है कि वो किसी विशेष पक्ष के एजेंडे को पत्रकारिता के नाम पर पब्लिक में ले जाना चाहते हैं। नीचे उनके तीन आलेखों से यह खुद-ब-खुद जाहिर हो जाता है।
एजेंडे का रंग फेसबुक पोस्ट में भी
राजीव रंजन श्रीवास्तव का फेसबुक प्रोफाइल उनके क्वालिफिकेशन के बारे में बस इतना बताता है कि उन्होंने मॉस्को के स्टेट जियोलॉजिकल प्रॉसपेक्टिंग यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। सोशल मीडिया में वह फेसबुक के जरिये ही सबसे अधिक सक्रिय नजर आते हैं जहां उनके 4,395 फ्रेंड्स हैं। अब जरा उनके कुछ फेसबुक कमेंट पर गौर कीजिए और यहां भी उनकी एजेंडा पत्रकारिता का रंग देखिए। मामला किसी भी तरह का हो राजीव रंजन की पत्रकारिता उसे मोदी सरकार की मंशा से जोड़कर पेश करके रहेगी। जो स्वच्छता अभियान जन-भागीदारी के एक ऐतिहासिक देशव्यापी अभियान में बदल चुका है, यह पत्रकार उसे भी अपने एजेंडे के चश्मे से ही देखता है।