पत्रकारिता, प्रजातंत्र में वह व्यवहार है, जिसके माध्यम से जनता और राज्य के बीच असरदार संवाद स्थापित होता है। संवाद की इसी शक्ति से हम भारत के लोग संविधान के उद्देश्य को पूरा करने के लिए लगातार सही दिशा में प्रयत्न करते रहते हैं। लेकिन जब पत्रकार अपने विरोध की सनक को पूरा करने के लिए पत्रकारिता करता है, तो राज्य और जनता के बीच का यह संवाद अविश्वास और भ्रम के माहौल में होता है।
अक्षय मुकुल, ऐसे सनक वाले पत्रकार हैं, जिन्हें अपनी पसंद और नापसंद के परे कुछ और नहीं दिखाई देता, उनको अपनी सोच और पसंद सर्वोपरि लगती है, दूसरों की सोच और व्यवहार को घृणा और नफरत की नजर से देखते हैं। ऐसे सनकी पत्रकार से, सच्ची पत्रकारिता की क्या कोई उम्मीद रखी जा सकती है? आइए, आपको अक्षय मुकुल के पत्रकारिता के सनकीपन को दिखाते हैं-
सनक की पत्रकारिता-1 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 02 नवंबर 2016 को देश भर के चुनिंदा पत्रकारों को रामनाथ गोयनका अवार्ड दिया, लेकिन अक्षय मुकुल ने प्रधानमंत्री मोदी से अवार्ड लेने से मना कर दिया। अक्षय मुकुल का यह सनकपन ही है, जो देश के प्रधानमंत्री से अवार्ड लेने के लिए मना कर देता है, वह भी देश में तीस सालों के बाद पूर्ण बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री से। आखिर, इस सनक भरे विरोध से सिर्फ एजेंडा पत्रकारों के अहं की तुष्टि हुई, क्या देश के 125 करोड़ जनता को कोई लाभ मिला?
सनक की पत्रकारिता-2 सोशल मीडिया एक ऐसा आईना है, जिसमें अक्षय मुकुल जैसे पत्रकारों के प्रधानमंत्री मोदी के विरोध के सनक की परछाई स्पष्ट दिखाई देती है, वह किसी से छुपी नहीं रह सकती है। ऐसे पत्रकार जब अधकचरी खबरों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, तब विरोध की यह परछाई नजर आती है। 2 मार्च को एक ऐसे ही Tweet में अक्षय मुकुल की प्रतिक्रिया को पढ़कर लगता है कि यह पत्रकार सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी का किसी तरह से विरोध करने के लिए ही जीता है। जिस खबर पर यह प्रतिक्रिया दी वह खबर कोई स्थायी सच नहीं थी, कूटनीति के दांव पेंच में ऐसी खबरें हर क्षण आती-जाती रहती हैं, लेकिन ऐसी खबरों पर अमर्यादित प्रतिक्रिया देना अक्षय की सनक ही तो है-