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ममता बनर्जी की राजनीति पर मंडराता ‘बाबरी साया’: मुर्शिदाबाद के विधायक हुमायूं कबीर के विवाद ने TMC की नींव हिलाई

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पश्चिम बंगाल की राजनीति इन दिनों एक अजब मोड़ पर खड़ी है। यह एक ऐसा विस्फोटक मोड़ है, जिसमें सत्ता पर काबिज तृणमूल कांग्रेस के भीतर उठा तूफान उसे ही हिलाता दिखाई दे रहा है। मुर्शिदाबाद में टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर द्वारा शुरू की गई बाबरी मस्जिद निर्माण की मुहिम ममता बनर्जी के लिए अनचाहा तूफान बन गई है। कबीर पश्चिम बंगाल में बाबरी नाम से मस्जिद बनाने का दावा कर रहे हैं। हुमायूं कहते हैं कि जिस दिन अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी, उसी तारीख पर यानी 6 दिसंबर 2025 को मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में वे बाबरी मस्जिद का शिलान्यास करेंगे। इसके जवाब में भाजपा और हिंदूवादी संगठनों ने मुर्शिदाबाद में ही अयोध्या की तर्ज पर दो अलग-अलग राम मंदिर बनाने का दावा किया है। उनका ये भी कहना है कि कोई भी अपनी जमीन पर मस्जिद बना सकता है, लेकिन बाबर के नाम पर इस देश में मस्जिद नहीं बनेगी। अगर बनी तो उसका हश्र भी अयोध्या जैसा ही होगा।

 

सीएम ममता बनर्जी अपने ही विधायक के राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसी
सीएम ममता बनर्जी की दिक्कत यह है कि वह कबीर को ना रोक सकती हैं और ना ही उनका समर्थन कर सकती हैं। रोकेंगी तो मुस्लिम समुदाय के भीतर नाराजगी की आग भड़केगी, और समर्थन करेंगी तो यह और साफ हो जाएगा कि ममता की राजनीति सिर्फ एकतरफा तुष्टिकरण पर टिकी है। यह ऐसी दुविधा है जिसने उन्हें एक ऐसे राजनीतिक चक्रव्यूह में घेर लिया है, जिसमें किसी भी दिशा में कदम उठाने पर नुकसान ही नुकसान है। दरअसल, हुमायूं कबीर जिस तरह बाबरी मुद्दे को बंगाल की राजनीति में उठा रहे हैं, वह साफ संकेत देता है कि वह सिर्फ एक विधायक की भूमिका में नहीं, बल्कि एक मुस्लिम नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश में हैं। यही वह बिंदु है, जो ममता बनर्जी को सबसे अधिक अस्थिर कर रहा है। बंगाल का मुस्लिम वोट लंबे समय तक टीएमसी की सत्ता का ईंधन रहा है। पर आज वही वोट-बैंक भीतर से बिखरने को तैयार खड़ा है। कबीर का अभियान मुस्लिम समुदाय के बीच एक नया संदेश दे रहा है कि टीएमसी चाहे कितनी भी बड़ी पार्टी क्यों न हो, लेकिन उनकी आवाज कहने के लिए एक “नया चेहरा” अब मैदान में उतर चुका है।

टीएमसी के भीतर वैकल्पिक मुस्लिम नेतृत्व उभरने के संकेत
दरअसल, मुर्शिदाबाद वह जिला है जहां से ममता को वर्षों से अपराजेय समर्थन मिलता आया है। लेकिन उसी किले की दीवारों के भीतर अब दरारें दिखने लगी हैं। कबीर की यह मुहिम न केवल टीएमसी के भीतर गुटबाजी को बढ़ा रही है, बल्कि यह भी संकेत दे रही है कि आने वाले दिनों में टीएमसी के भीतर एक वैकल्पिक मुस्लिम नेतृत्व उभर सकता है। ममता बनर्जी इसे अपने लिए राजनीतिक खतरा मानें या पार्टी के लिए संकट, लेकिन सच यही है कि बाबरी मस्जिद का यह विवाद अब एकतरफा नहीं रहेगा। यह पूरे राज्य के सत्ता समीकरणों में बदलाव की झनकार पैदा करेगा।

भाजपा नेता उमा भारती के बयान ने आग में घी का काम किया
इसी बीच भाजपा नेता उमा भारती के बयान ने आग में घी का काम किया है। साध्वी भारती ने साफ कहा है, “यदि बाबर के नाम वाली मस्जिद बनी तो उसका अयोध्या जैसा हाल होगा।” उन्होंने X पर लिखा, “खुदा, इबादत, इस्लाम के नाम पर मस्जिद बने हम सम्मान करेंगे। अगर बाबर के नाम से इमारत बनी तो उसका वही हाल होगा, जो 6 दिसंबर को अयोध्या में हुआ था। ईंटें तक नहीं बची थीं। मेरी ममता बनर्जी को सलाह है कि बाबर के नाम पर मस्जिद बनाने की बात कहने वालों पर कार्रवाई करें। पश्चिम बंगाल और देश में अस्मिता और सद्भाव के लिए उनकी जिम्मेवारी है।” उमा भारती के एक-एक ईंट गायब वाले बयान पर विधायक हुमायूं उन्हें मुर्शिदाबाद आने की चुनौती देते हैं। वे कहते हैं कि उमा भारती को ईंट खोलने के लिए मुर्शिदाबाद आना पड़ेगा। हिम्मत है तो आकर गिरा दें। अगर तोड़ दिया तो दोबारा बनाएंगे। उनके इस बयान ने मस्जिद के मुद्दे को बंगाल की सरहदों से निकालकर राष्ट्रीय विमर्श में ला खड़ा किया। भाजपा को यह मौका मिला कि वह ममता पर सीधे प्रहार कर सके और कह सके कि बंगाल सरकार एक पक्ष की धार्मिक राजनीति को बढ़ावा दे रही है। यह बयान टीएमसी के लिए सिर्फ राजनीतिक चुनौती नहीं, बल्कि उसकी छवि पर लगा एक गहरा राजनीतिक धब्बा भी बन गया है।

ममता बनर्जी ने हुमायूं कबीर को दूसरा औवेसी बनने का मौका दिया
हिंदू मतदाताओं के बीच यह पक्की धारणा पहले ही गहरी हो चुकी है कि ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से कभी बाहर नहीं निकलतीं। अब इस विवाद ने उस धारणा को और ठोस रूप दे दिया। टीएमसी का ढुलमुल रवैया, आधिकारिक प्रतिक्रिया का अभाव और कबीर जैसे नेताओं की स्वतंत्र बयानबाजी, इन सबने मिलकर बंगाल के हिंदू मतदाताओं को एक बार फिर यह महसूस कराया कि ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस की राजनीति में उनके लिए कोई जगह नहीं। दूसरी ओर मुस्लिम मतदाता भी अब एकमत नहीं रहे। AIMIM पहले से ही बंगाल में जमीन तलाश रही थी और अब कबीर का उभार उस जमीन को और उपजाऊ बना सकता है। राजनीति का यह समीकरण ममता बनर्जी के लिए सबसे घातक है। हिंदू वोट जा चुके हैं और अब मुस्लिम वोट भी बंटने की कगार पर खड़े हैं। ऐसे में हुमायूं कबीर पश्चिम बंगाल में दूसरे औवेसी बन कर उभर सकते हैं। क्योंकि इस पूरे विवाद के बीच हुमायूं को अब TMC से निलंबित कर दिया गया है।

मुर्शिदाबाद का मुद्दा टीएमसी में एक नए शक्ति-संतुलन के रूप में उभरा
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मुर्शिदाबाद का बाबरी मस्जिद विवाद ममता बनर्जी की राजनीति के लिए सिर्फ एक मुद्दा नहीं, बल्कि एक खुली चेतावनी है। एक ऐसी चेतावनी, जो बताती है कि राजनीतिक जमीन जितनी जल्दी सिर पर चढ़ाती है, उतनी ही जल्दी पैर भी खींच लेती है। ममता की कठिनाई यह है कि यह संकट बाहर से नहीं, भीतर से उठा है। बाहरी विरोधी से लड़ना आसान होता है, लेकिन अंदर उठी आग को बुझाना सबसे मुश्किल होता है। आने वाले महीनों में यह विवाद किस दिशा में जाएगा, इसका अंदाज़ा लगाने के लिए किसी राजनीति के विशेषज्ञ की आवश्यकता नहीं। तस्वीर शीशे की तरह साफ है। अब मुर्शिदाबाद का यह मुद्दा टीएमसी के भीतर एक नए शक्ति-संतुलन की शुरुआत कर चुका है, जिसका नुकसान ममता को और फायदा उनके विरोधियों को मिलना लगभग तय है।

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