उमाशंकर सिंह, एनडीटीवी में रिपोर्टर हैं और अपनी पत्रकारिता को निष्पक्षता के मानदंडों पर आदर्श मानते हैं, लेकिन इनके निष्पक्षता के सभी मानदंडों की तब कोई अहमियत नहीं रहती जब ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए कुछ बोलते या रिपोर्ट करते हैं।
सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में उमाशंकर व्यंग्य की जो आग उगलते हैं वह हर तरह से पत्रकारिता के धर्म को शर्मसार करती है। आइए आप भी देखिए, किस तरह से उमाशंकर सिंह अपनी ‘आदर्श पत्रकारिता’ से देश की पत्रकारिता को शर्मसार कर रहे हैं-
‘आदर्श पत्रकारिता’ -1
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषण में कहा था कि मैनें चाय बेची है, देश नहीं बेचा है। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य पर उमाशंकर सिंह ने 27 नवंबर को एक Tweet में अपमानजनक व्यंग्य से प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा निशाना साधा। उमाशंकर सिंह ने Tweet में जो प्रश्न पूछा था उसका जवाब सरकार पहले ही देकर बता चुकी थी कि राफेल डील में भारत को 12,600 करोड़ रुपये का फायदा हुआ था, लेकिन फिर भी अपने को आदर्श पत्रकार के रूप में स्थापित करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपमानजनक Tweet किया।
उमाशंकर सिंह की ‘आदर्श पत्रकारिता’ की मिसाल ही है कि 6 दिसंबर को उस खबर को Tweet किया, जिसका सरकार हर स्तर पर खंडन कर चुकी है, यहां तक कि वित्त मंत्री भी इस झूठी खबर का खंडन कर चुके हैं। “ बैंक में रखा आपका पैसा नहीं रहेगा आपका, मोदी सरकार ला रही कानून” खबर पूरी तरह से झूठी खबर थी, लेकिन इसी खबर को Tweet करते हुए, उमाशंकर सिंह ने लिखा-आंख बंद डब्बा गोल! नोटबंदी तो झेल गए बैंक में जमा पैसे कैसे बचाओगे ये सोचो। फिर मंदिर वहीं बना लेना।
दिल्ली की सीबीआई अदालत ने 2G घोटाला मामले के निर्णय में जब सभी आरोपियों को बरी कर दिया तो, उमाशंकर सिंह के अंदर का “ आदर्श पत्रकार” जाग उठा और उसने Tweet पर लिखा-मतलब वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल का Zero loss Theory सही साबित हुआ! लेकिन उमाशंकर सिंह को यह याद नहीं रहा कि सर्वोच्च न्यायलय ने घोटालों के आधार पर ही 122 स्पेक्ट्रम आवंटनों को रद्द किया था, और यह निचली अदालत का फैसला है, अभी उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय को इस पर अपना निर्णय देना है। आखिर, कपिल सिब्बल को सही साबित करने की इतनी भी क्या जल्दी थी?
1 नवंबर को उमाशंकर सिंह ने जो Tweet किया उसने उनकी पत्रकारिता की पोल खोल कर रख दी। इस Tweet में बड़े ही असभ्य तरीके से भारत की उपलब्धि का मजाक उड़ाते हुए प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा। भारत का ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की सूची में 130 वें स्थान से 100 वें स्थान पर आने की खबर पर लिखा कि -भ्रम का पत्तल उठेगा तो असलियत की जमीन दिखेगी। फिर अखबार के इन पन्नों पर आप चनाचूर खाना।
उमाशंकर सिंह ने 7 अक्टूबर को एक Tweet के जरिए GST पर लिखा कि -GST नामकरण में दोष शुद्धि के अनुष्ठान की आवश्यकता है। एतद् प्रकार से GST को ‘गौ सेवा टैक्स’ के साथ प्रजा पर प्रतिस्थापित किया जाए। आखिर GST जैसे गंभीर विषय पर भी अपना एजेंडा चलाने से उमाशंकर सिंह बाज नहीं आए। जिस GST को संसद में सभी राजनीतिक दलों ने मिलकर पारित किया था और राज्यों की विधानसभाओं ने भी पारित किया था,उसे एक विशेष राजनीतिक दल से जोड़ने के पीछे क्या मकसद था।
पद्मावती फिल्म पर हुए विवाद पर 18 नवंबर को एक Tweet किया जिसमें गुजरात के विकास मॉडल को जोड़ते हुए अमर्यादित ढंग से लिखा- विकास तो पागल था ही अब भावना भी आहत हो गई है।
झूठी खबर के आधार पर कि खिचड़ी को नेशनल फूड घोषित किया जाएगा, 1 नवंबर को उमाशंकर सिंह ने कुतर्क का सहारा लेते हुए मोदी सरकार के खिलाफ बड़े ही अपमानजनक ढंग से लिखा-
13 अक्टूबर को एक Tweet का जवाब देते हुए अपनी पत्रकारिता की समझ को भी जगजाहिर कर दिया। Tweet में लिखा कि-2014 में ट्विवटर पर ये पूछे थे जो अब पूछ रहे हैं? 15 लाख नहीं मिलने से ज्यादा जागरूक हो गए हैं न? अच्छा है । उमाशंकर सिंह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 2014 के चुनावी भाषण में कही गई उस बात को झूठे ढंग से पेश कर रहे हैं, जिसमें उन्होने कहा था कि यूपीए सरकार में भ्रष्टाचार इतना अधिक है कि हर व्यक्ति के बैंक खाते में 15 लाख रुपये हो सकते हैं। आदर्श पत्रकारिता का यही मानदंड है कि बातों को अपने एजेंडें के माफिक समझा और समझाया जाए।
उमाशंकर सिह ने 24 और 26 सितंबर को Tweet करके सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने का अपना एजेंडा साफ दिखा दिया।
उमाशंकर सिंह ने 1 नवंबर को अपने Twitter पर और 23 जुलाई को अपने Facebook के Post पर जो बातें लिखी उससे साफ हो जाता है कि इस ‘आदर्श पत्रकार’ के मन में वर्तमान में पूर्ण बहुमत की सरकार के प्रति कितना जहर भरा हुआ है।