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फ्री रेवड़ी बांटने वाली पार्टी AAP और TRS, केजरीवाल ने दारू बांटी, टीआरएस उससे दो कदम आगे निकल गई- दारू के साथ चखना भी दिया

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देश की सुप्रीम कोर्ट में मुफ्तखोरी या ‘रेवड़ी कल्चर’ पर सुनवाई चल रही है। सवाल है कि मुफ्तखोरी की सियासी परंपरा कब और कैसे खत्म होगी। मुफ्तखोरी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर मुद्दा बताया। कोर्ट ने केंद्र सरकार को सियासी दलों को फ्री वाले चुनावी वादों करने से रोकने के लिए जरूरी समाधान खोजने और हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 जुलाई 2022 को बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करने के दौरान अपने संबोधन में ‘रेवड़ी कल्चर’ का जिक्र किया था। पीएम ने इसके नुकसान के बारे में बताया था और लोगों को इससे बचने की सलाह दी थी। ‘रेवड़ी कल्चर’ भले ही चुनाव में लोगों को आकर्षित करने की गारंटी बन चुका हो, लेकिन इसका नतीजा यह हो रहा है कि राज्यों की आर्थिक सेहत बिगड़ने लगी है और वो कर्ज की बोझ तले दबने लगे हैं। जाहिर है अगर खर्च ज्यादा हो और आमदनी कम हो, फिर कर्ज तो लेना ही पड़ेगा। भारतीय राजनीति में ‘रेवड़ी कल्चर’ का छोटे स्तर पर कई राजनीतिक दलों ने पहले भी इस्तेमाल किया लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ‘रेवड़ी कल्चर’ को चुनाव जीतने की गारंटी के तौर पर अपनाया और इसे व्यापक तौर पर बढ़ावा दिया। केजरीवाल ने फ्री बिजली, फ्री पानी के वादे के बाद फ्री शराब भी शुरू कर दिया था लेकिन वहां वे घोटाले में फंस गए तो इसे बंद करना पड़ा। यानी ये जितनी भी फ्री की बातें हो रही हैं दरअसल उसके पीछे मंशा कुछ और ही होती है- अपनी पार्टी के लिए काली कमाई जुटाना, अपने रिश्तेदारों, जानने वालों को लाभ पहुंचाना। अब इसी कड़ी में देश की राष्ट्रीय राजनीति में उतरने की ताल ठोंकने वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नेता ने दशहरा के मौके पर लोगों को फ्री की रेवड़ी बांटी। रेवड़ी में एक मुर्गा और एक क्वार्टर शऱाब की बोतल शामिल थी। यानी राष्ट्रीय राजनीति में उतरने से पहले टीआरएस ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है।

भारतीय परंपरा में फ्री की कोई भी चीज सेहत के लिए अच्छी नहीं मानी गई है। जब तक हम मेहनत करके किसी चीज को हासिल नहीं करते हमें वो चीज तात्कालिक रूप में अच्छी लग सकती है स्थायी आनंद नहीं दे सकती।

मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त सुविधाएं बांटने के चलन पर अब बहस जोर पकड़ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे युवाओं और राष्‍ट्र का अहित करने वाला कदम बताया है। मुफ्त की रेवड़ी आत्मनिर्भर भारत के साथ भी धोखा है।

क्या है ‘रेवड़ी कल्चर’ ?

देश के दक्षिण राज्यों खासकर तमिलनाडु में सबसे पहले मुफ्त बांटने की सियासत शुरू हुई। यहां चुनाव जीतने के लिए मंगलसूत्र, टीवी, प्रेशर कुकर, वॉशिंग मशीन और साड़ी फ्री में बांटी जाने लगी। तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के कार्यकाल में अम्मा कैंटीन खूब फली-फूली। दक्षिण भारत के बाद अब यह उत्तर भारत के साथ-साथ पूरे देश में वोट पाने का एक शॉर्टकट जरिया बन चुका है। वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों ने मुफ्त बिजली-पानी, अनाज, लैपटॉप, मोबाइल, स्कूटी और बेरोजगारी भत्ता को हथियार बनाया। इसका नतीजा ये हुआ कि आज कई राज्यों की अर्थव्यवस्था कर्ज के बोझ तले दबने लगी है।

रेवड़ी कल्चर पर आगाह कर चुका है RBI

इससे पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी ‘रेवड़ी कल्चर’ से देश को होने वाले नुकसान को लेकर आगाह कर चुका है। ‘स्टेट फाइनेंसेस: अ रिस्क एनालिसिस’ नाम से आई आरबीआई की रिपोर्ट की मानें तो पंजाब, राजस्थान, केरल, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की हालत डांवाडोल है। कैग (CAG) के डेटा के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सब्सिडी पर राज्य सरकारों के खर्च में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जिससे कर्ज बढ़ता जा रहा है। वित्त वर्ष 2020-21 में सब्सिडी पर राज्यों ने कुल खर्च का 11.2% खर्च किया था। जो 2021-22 में बढ़कर 12.9% हो गया। सब्सिडी पर सबसे ज्यादा खर्च ओडिशा, झारखंड, केरल और तेलंगाना ने किया। वहीं पंजाब, गुजरात और छत्तीसगढ़ सरकार ने सब्सिडी पर अपने रेवेन्यू एक्सपेंडिचर का 10% से ज्यादा खर्च किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारें सब्सिडी की बजाय मुफ्त दे रहीं हैं। जिससे फ्री पानी, फ्री बिजली, बिल माफी और कर्ज माफी से सरकारों को कोई कमाई नहीं हो रही है। उल्टे सरकार को इस पर खर्च करना पड़ रहा है। RBI के मुताबिक कुछ ऐसे राज्य हैं जिनका कर्ज 2026-27 तक सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 30% से ज्यादा हो सकता है। ऐसे राज्यों में पंजाब की हालत ज्यादा खराब होगी। पंजाब सरकार पर GSDP का 45% से ज्यादा कर्ज होने का अनुमान है। तो वहीं राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल का कर्ज भी 35% तक होने की संभावना है।

‘रेवड़ी कल्चर’ से राज्यों की सेहत पर बुरा असर 

‘रेवड़ी कल्चर’ से जहां राज्यों की आर्थिक सेहत पर बुरा असर हो रहा है तो वहीं दूसरे स्तर पर भी साइड इफेक्ट्स देखने को मिल रहे हैं। पंजाब में साल 1971 में सिर्फ 1,92,000 ट्यूबवेल थे। लेकिन बिजली बिल में माफी और सब्सिडी मिलने से इसकी संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई। आज यहां ट्यूबवेल की संख्या 14.1 लाख तक पहुंच गई है। इससे भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है। आलम यह है कि अधिक दोहन के चलते भूजल 20 से 30 मीटर नीचे चला गया है। जिससे पंजाब बहुत बड़े जलसंकट की ओर बढ़ रहा है।

वेनेजुएलाः रेवड़ी कल्चर से खेत, किसान और बाजार सब नष्ट हो गए! एक कॉफी की कीमत 25 लाख पहुंच गई

देश और राज्य के संसाधनों के बेजा इस्तेमाल का असर देश के खजाने पर जब पड़ता है, तो देश का क्या हाल हो सकता है, यह वेनेजुएला से समझिए। वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था 95 फीसदी तेल निर्यात पर निर्भर थी और जब तक तेल की कीमतें ऊंचाईयां छूती रहीं, वेनेजुएला की सत्ता पर काबिज समाजवादी सरकारों ने तेल की आमदनी से लबालब खजाने को पानी की तरह बहाया और लोगों को मुफ्त बिजली, पानी, अस्पताल और शिक्षा दी गई। दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडार वाले देशों में शुमार वेनेजुएला वर्तमान में दीवालिया होने के कगार पर है, जिसके पीछे की वजह थीं, वहां की समाजवादी नीतियां और फ्री रेवड़ी कल्चर, जिसका असर वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था पर तब पड़ना शुरू हुआ, जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें गिरनी शुरू हो गईं। वेनेजुएला के उदाहरण से यह सबक मिलता है कि लोक कल्याणकारी योजनाएं प्रोत्साहन के लिए होती है, उनकी गांरटी नहीं होती है। क्योंकि वेनेजुएला की समाजवादी सरकार ने जैसे ही जनता के लिए सबकुछ मुफ्त मुहैया करना शुरू किया, वहां के मेहनतकश किसानों और काश्तकारों को मेहनत करना भारी पड़ गया और उन्होंने किसानी से भी तौबा कर लिया। जब तक तेल की कीमतें ऊंची रहीं, तब तक फ्री की योजनाएं चली, लेकिन जैसे ही तेल की कीमतें गिरी सरकार की नीतियां फेल हो गईं, क्योंकि सरकार खजाने पर दवाब बढ़ गया और महंगाई चरम पर पहुंच गई। आज वेनेजुएला में 100 फीसदी से अधिक महंगाई है, गरीबी रेखा के नीचे 94 फीसदी आबादी, कुपोषण के शिकार 75 फीसदी लोग हैं और 10 फीसदी लोग देश छोड़कर भाग चुके हैं। ये फ्री की रेवड़ी बांटने के कारण हुई। वेनेजुएला में आज बाजार और वहां की करेंसी सब नष्ट हो चुकी है। एक लाख बोलेबियन करेंसी की कीमत 1000 गुना नीचे गिर गई है। वहां एक कॉफी की कीमत 25 लाख हो गई है।

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