Home Year Ender 2022 Year Ender 2022: पीएम मोदी कर रहे हैं धार्मिक और विरासत स्थलों...

Year Ender 2022: पीएम मोदी कर रहे हैं धार्मिक और विरासत स्थलों का विकास, श्रद्धालुओं के साथ ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना, अर्थव्यवस्था को मिल रही गति

SHARE

वर्ष 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने खोई हुई सांस्कृतिक विरासत को फिर से हासिल करने और उनके संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम किया है। मजबूत भारत के संकल्प को साकार करने के लिए पीएम मोदी चौतरफा विकास पर ध्यान दे रहे हैं। देश की आर्थिक प्रगति के लिए पर्यटन के महत्व को समझते हुए वे धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों के साथ ही विरासत स्थलों के विकास पर खासा जोर दे रहे हैं। धार्मिक स्थलों के विकास से आई तरक्की काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से भी समझी जा सकती है जहां एक साल में ही साढ़े सात करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु एवं पर्यटक पहुंचे। देश में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, और सूफीवाद की तरह कई धर्मों का संगम है। वहीं उनके तीर्थस्थल भी हैं, ऐसे में घरेलू पर्यटन का विकास काफी हद तक तीर्थयात्रा पर्यटन पर निर्भर करता है, जोकि धार्मिक भावनाओं के द्वारा प्रेरित है। ऐसे में पीएम मोदी तीर्थयात्रा पर्यटन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार पर जोर दे रहे हैं। सालों से यह स्थल बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे थे। अब पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार इन स्थलों का पुरोद्धार कर रही है। लोग यहां धार्मिक भावनाओं की वजह से जाते रहे हैं। अब जब सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है तो यहां पर्यटन बढ़ने के साथ-साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी मंदिरों को भव्य बनाने पर जोर दे रहे हैं। साल 2019 में पीएम मोदी की सरकार ने मनामा और अबू धाबी में भगवान श्रीकृष्ण श्रीनाथजी के पुनर्निर्माण के लिए 4.2 मिलियन डॉलर देने का ऐलान किया था। इसके साथ ही 2018 में उन्होंने अबू धाबी में बनने वाले पहले हिंदू मंदिर की आधारशिला रखी थी। उन्होंने 16 मई, 2022 को नेपाल के लुंबिनी में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेर बहादुर देवबा के साथ भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र का शिलान्यास किया। यही नहीं पीएम मोदी के व्यक्तिगत प्रयासों से ऐसे सैकड़ों प्राचीन वस्तुओं एवं मूर्तियों को विदेशों से वापस लाने में सफलता मिली है, जिन्हें दशकों पहले चोरी और तस्करी के जरिए विदेश भेज दिया गया था। इसी तरह विरासत स्थलों की बात करें तो 2022 में यूनेस्को विश्व विरासत स्थल की सूची में भारत के तीन स्थलों को संभावित स्थलों की सूची में शामिल किया गया। पीएम मोदी के केंद्र की सत्ता में आने से पहले विश्व धरोहर स्थल में भारत के 30 स्थल थे जबकि 2014 के बाद 10 स्थलों को इस सूची में शामिल किया गया है। इससे साफ जाहिर है कि पीएम मोदी इन सांस्कृतिक स्थलों के उत्थान को लेकर कितने गंभीर हैं।

एक साल के भीतर काशी विश्वनाथ धाम पहुंचे 7 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु, 100 करोड़ का चढ़ावा

वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण ने समृद्धि के द्वार खोल दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों का काशी विश्वनाथ धाम अपने नए कलेवर में 2022 में एक साल पूरा किया। जहां कभी संकरी गालियां थीं वह आज भव्य आकर्षण का केंद्र है। चाहे गंगा द्वार हो, वीविंग गैलरी हो या फिर मंदिर चौक हो, हर तरफ भव्यता भक्तों को अपनी तरफ खींच रही है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण के साल भर के भीतर ही साढ़े सात करोड़ श्रद्धालुओं ने बाबा के दर्शन किए। इससे जहां शहर में समृद्धि आई है वहीं मंदिर प्रशासन की आय में भी वृद्धि हुई है। कॉरिडोर बनने के बाद से वाराणसी आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद में कई गुना इजाफा हुआ है। बाबा को साल भर में 100 करोड़ से ज्यादा का चढ़ावा चढ़ा है। 13 दिसम्बर 2021 को श्री काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण पीएम मोदी ने किया था। इस एक साल के भीतर बाबा के दिव्य धाम ने काशी के पर्यटन व्यवसाय को निखारा है। धाम को विकसित करने की आगे और भी योजनाएं हैं। प्रशासनिक अमला अब धार्मिक पर्यटन के उदाहरण के तौर पर इस धाम को प्रस्तुत करने की तैयारी में है। इससे काशी विश्वनाथ धाम का भव्य स्वरूप और भी निखरकर सामने आएगा। पूर्वांचल की पहली सिग्नेचर बिल्डिंग और उस पर स्काई वॉक काशी के विकास में चार चांद लगा देंगे। पतितपावनी गंगा में एक साथ चार क्रूज दुनिया भर के सैलानियों को गंगा की लहरों में आध्यात्म के साथ पर्यटन का लुत्फ दिलाएंगे। काशी में भक्तों की आवक बढ़ने से पर्यटन व्यवसाय बूम पर है। यही नहीं फूल व्यवसाय में भी 40 प्रतिशत का उछाल आया है।

विश्वनाथ धाम में भक्तों ने 100 करोड़ रुपये दान दिया

वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकापर्ण के बाद पहले ही साल भक्तों ने 100 करोड़ रुपये से अधिक का दान दिया है। महज एक साल के भीतर ही 7.35 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने बाबा विश्वनाथ धाम के दर्शन किए हैं। यह तादाद पहले के मुकाबले 12 गुने से भी ज्यादा है। काशी विश्वनाथ मंदिर में बीते एक साल में नकदी के अलावा 60 किलो सोना, 10 किलो चांदी, 1500 किलो तांबा भी भक्तों ने चढ़ाया है। श्रद्धालुओं ने 50 करोड़ रुपये से ज्यादा की नकदी दान में दी है। कुल मिले दान का 40 फीसदी ऑनलाइन आया है। मंदिर प्रशासन की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक बीते साल के मुकाबले इस साल आय में 500 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

2018-19 में 26.65 करोड़ रुपये का चढ़ावा चढ़ा था

बाबा विश्वनाथ धाम में दान मिलने की बात की जाए तो 2018-19 के वित्तीय वर्ष में सर्वाधिक 26.65 करोड़ रुपये का चढ़ावा चढ़ा था। उससे पहले चढ़ावे का आंकड़ा सालाना 10 से 12 करोड़ रुपये तक ही होता था। खर्च की बात करें तो अप्रैल 2021 में 38 लाख और मई 2021 में 76 लाख रुपये खर्च हुए थे। अप्रैल 2022 में 31 लाख और मई माह में एक करोड़ 25 लाख रुपये खर्च किए गए हैं। इसमें वेतन, सामान्य खर्च, व्यवस्था और आकस्मिक खर्च भी शामिल हैं।

एक साल में साढ़े सात करोड़ भक्तों ने किया दर्शन

काशी कॉरिडोर बनने के एक साल के भीतर जब से धाम ने मूर्त रूप लिया भक्तों का आकर्षण बढ़ता गया। काशी के होटल सहित सभी व्यवसाय अपने चरम पर हैं। भक्तों की आवक पहले विशेष मौकों पर होती थी लेकिन अब रोजाना डेढ़ लाख भक्त दर्शन कर रहे हैं। साल भर में लगभग साढ़े सात करोड़ भक्तों ने यहां मत्था टेका है जिसके कारण अब मन्दिर की व्यवस्था को सुचारू करने के लिए खजाना पूरा भरा हुआ है। भक्तों की बढ़ती हुई संख्या के कारण होटल व्यवसाय बूम पर है। इतना ही नहीं पर्यटन से जुड़े सभी वर्ग उत्साहित हैं।

पांच साल में बढ़े दस गुना पर्यटक

बीते पांच साल में वाराणसी आने वाले पर्यटकों की संख्या दस गुना तक बढ़ चुकी है। कोरोना संकट खत्म होने के बाद से वाराणसी आने वाले विदेशी पर्यटकों की तादाद में खासा वृद्धि हुई है। पर्यटन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2022 में महज जुलाई महीने में वाराणसी पहुंचने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या 40.03 लाख है, जो जुलाई 2017 के 4.61 लाख के मुकाबले करीब दस गुना ज्यादा है। इस साल सावन और देव दीपावली में वाराणसी पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या ने रिकार्ड बनाया है। काशी विश्वनाथ मंदिर के चारों प्रवेश द्वारों पर लगे हेट स्कैनिंग मशीन से आने वालों की गिनती की जाती है।

काशी के घाटों का सौंदर्य सैलानियों के आकर्षण का केंद्र

घाटों के सौंदर्य से रीझ रहे दुनिया भर के सैलानियों को काशी में पर्यटन के नए केंद्र मिल रहे हैं। अस्सी से संत रविदास घाट को जोड़ने वाला ब्रिज और गंगा व्यूइंग गैलरी के साथ ही खिड़किया घाट पर आधुनिक सुविधाएं पर्यटकों को आकर्षित करेंगे। इसके साथ ही गंगा पार रेती पर टेंट सिटी से लेकर हाई फ्लड लेवल पर प्रस्तावित सड़क नई सुविधा के रूप में सैलानियों के सामने होंगी।

फूल कारोबार भी चमका, गेंदा और गुलाब की सबसे अधिक मांग

बनारस के सैकड़ों गांवों में किसान फूलों की खेती से अच्छा खासा मुनाफा कमाते हैं। यहां जिन फूलों की खेती होती है उनमें गुलाब, बेला, चमेली तो कहीं ग्लेडुलस, रजनीगंधा और जरबेरा का भी उत्पादन होता है। हालांकि सबसे अधिक मांग गेंदा और गुलाब की है। पूर्वांचल में हजारा गेंदे की खेती अत्यंत लोकप्रिय है। गेंदे की खेती के प्रसिद्ध होने की सबसे अहम वजह इसको शीत या ग्रीष्म ऋतु दोनों में हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। फूलों के पोषण के लिए धूप वाला वातावरण सबसे बढ़िया माना जाता है।

काशी में लोगों ने लगाए ‘धन्यवाद मोदी’ के पोस्टर

श्री काशी विश्वनाथ धाम ने जबसे दिव्य रूप लिया उसके बाद वाराणसी के फूल माला से जुड़े लोग हों या फिर बनारसी साड़ी व्यवसाय करने वाले सभी उत्साहित हैं। इन व्यवसायियों में कोरोना के बाद से निराशा थी लेकिन व्यापार में लगभग 40 प्रतिशत बूम से सबके चेहरे खिले हुए हैं। काशी कॉरिडोर के एक साल पूरे होने पर लोगों ने खुशी का इजहार करते हुए ‘धन्यवाद मोदी’ के पोस्टर भी लगाए गए।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोरः 286 साल बाद काशी विश्वनाथ धाम को नया रुप मिला

यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा कॉरिडोर है। करीब सवा 5 लाख स्क्वायर फीट में इसका निर्माण हुआ। साल 1735 में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मंदिर परिसर का पुनर्निर्माण कराया। पीएम मोदी ने रेवती नक्षत्र में 13 दिसंबर 2021 को इसका उद्घाटन किया था। 286 साल बाद काशी विश्वनाथ धाम को नया रुप मिला। इस भव्य कॉरिडोर में छोटी-बड़ी 23 इमारतें और 27 मंदिर हैं। इसके निर्माण में 32 महीने का समय लगा। काशी कॉरिडोर ने 1000 साल बाद बाबा विश्वनाथ दरबार की भव्यता को पुनर्स्थापित किया। कॉरिडोर को पहले से 3 हजार वर्ग फुट से बढ़ाकर लगभग पांच लाख वर्ग फुट कर दिया गया है। कोरोना काल में भी 800 करोड़ के इस प्रोजेक्ट को करीब करीब उसी टाइमफ्रेम में पूरा किया गया है, जो इसके लिए निर्धारित किया गया था।

सोमनाथ मंदिर परिसर का विकास

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20 अगस्त 2021 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर के पुननिर्माण के लिए विभिन्न परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। वर्ष 2022 में इसके भी एक साल पूरे हुए। इन परियोजनाओं में सोमनाथ समुद्र दर्शन पथ, सोमनाथ प्रदर्शनी केंद्र और पुराने (जूना) सोमनाथ का पुनर्निर्मित मंदिर परिसर शामिल हैं। इससे यहां का पर्यटन बढ़ा है और लोगों में समृद्धि आई है।

हिंदू संत रामानुजाचार्य के सम्मान में स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 फरवरी 2022 को हैदराबाद में 11वीं सदी के हिंदू संत रामानुजाचार्य के सम्मान में बनी 216 फीट ऊंची स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी का उद्घाटन किया था। इस प्रतिमा में 120 किलो सोने का इस्तेमाल किया गया है। जिसकी लागत करीब 400 करोड़ रूपए है। यह 45 एकड़ जमीन पर बना है। मंदिर परिसर में करीब 25 करोड़ की लागत से म्यूजिकल फाउंटेन का निर्माण कराया गया है।

महाकाल लोक कॉरिडोर धार्मिक पर्यटन को नया आयाम देगी

पीएम मोदी ने 11 अक्टूबर 2022 को मध्य प्रदेश के उज्जैन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के नवविस्तारित क्षेत्र ‘श्री महाकाल लोक’ का लोकार्पण किया। महाकाल मंदिर के लिए तैयार किए गए मास्टर प्लान का उद्देश्य महाकाल मंदिर को पुरानी पहचान वापस दिलाना है। महाकाल लोक कॉरिडोर काफी भव्य है और अब ये मंदिर के क्षेत्र को 10 गुना तक बढ़ा देगा। कॉरिडोर में भगवान शिव से जुड़ी कई मूर्तियां लगाई गई हैं, जो अलग अलग कहानी बताती है और भक्तों को भगवान शिव से जोड़ती हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर 300 मीटर में बना है, जबकि इसकी लंबाई 900 मीटर है। इसे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से भव्य माना जा रहा है। इस पर 856 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। जितना भव्य यह कॉरिडोर बना है उससे पता चलता है कि आने वाले दिनों में यह धार्मिक पर्यटन को नया आयाम देगी।

श्री कालिका माता मंदिर पर ध्वज फहराया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के पंचमहाल जिले में स्थित प्रसिद्ध पावागढ़ महाकाली मंदिर के शिखर पर ध्वज फहराया। गुजरात के पंचमहल जिले के पावागढ़ पहाड़ी में कालिका माता के पुनर्विकसित मंदिर का उद्घाटन 18 जून 2022 को किया। प्रसिद्ध मंदिर के ऊपर झंडा पांच शताब्दियों तक नहीं फहराया गया था और पीएम मोदी के शासन में आने के बाद यह काम किया गया है।

संत तुकाराम शिला मंदिर का उद्घाटन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 जून 2022 को संत तुकाराम शिला मंदिर का उद्घाटन किया। पीएम मोदी ने विकास योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा, ‘संत ज्ञानेश्वर पालखी मार्ग का निर्माण 5 चरणों में होगा और संत तुकाराम पालखी मार्ग का निर्माण 3 चरणों में होगा। 350 किलोमीटर से ज्यादा बड़े हाइवे बनेंगे, इसमें 11000 करोड़ का खर्च होगा। संत तुकाराम एक वारकरी संत और कवि थे। उन्हें अभंग भक्ति कविता और कीर्तन के माध्यम से समुदाय-उन्मुख पूजा के लिए जाना जाता है। यह मंदिर 36 चोटियों के साथ पत्थर की चिनाई से बनाया गया है। इसमें संत तुकाराम की एक मूर्ति भी स्थापित की गई है।

चार धाम परियोजना

मोदी सरकार ने देवभूमि उत्तराखंड के लिए चार धाम परियोजना शुरू की है। केदारनाथ बद्रीनाथ की यमुनोत्री और गंगोत्री के चारधाम परियोजना- रणनीतिक रूप से बेहद अहम माने जाने वाली 900 किलोमीटर लंबी इस सड़क परियोजना का उद्देश्य उत्तराखंड के चारों धामों के लिए हर मौसम में सुलभ और सुविधाजनक रास्ता देना है। चारधाम परियोजना एक तरह से ऑल वेदर रोड परियोजना है, जो उत्तराखंड में केवल चार धामों को जोड़ने की परियोजना भर नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय महत्व की परियोजना है। इसके जरिए उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को जोड़कर पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही, साथ ही पड़ोसी चालबाज देश चीन को चुनौती देने के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण है। इसके अलावा ऋषिकेश को रेल मार्ग से कर्णप्रयाग से जोड़ने का काम चल रहा है। ये रेलवे लाइन 2025 से शुरू हो जाएगी।

कश्मीर में जीर्ण-शीर्ण हुए मंदिरों का पुनरोद्धार

आतंकवाद के कारण वीरान और जीर्ण-शीर्ण हुए मंदिरों और दरगाहों के जीर्णोद्धार और सदियों पुरानी स्थापत्य कला के मुताबिक उनकी पुनर्बहाली के लिए करीब तीन करोड़ की राशि खर्च की जाएगी। मंदिर जिला श्रीनगर में वास्तुकला और विरासत की बहाली, पुनरुद्धार, संरक्षण और रखरखाव के लिए चिन्हित किए धर्मस्थलों व अन्य ऐतिहासिक इमारतों में शामिल हैं। अधिकारियों ने बताया कि जिला श्रीनगर में राम मंदिर सफाकदल, खानकाह ए सोखता, मंगलेश्वर भैरव मंदिर बाबा डेंब, हजरत शेख दाउद की बटमालू स्थित जियारतगाह, हब्बाकदल स्थित गणपतियार मंदिर का पुनरुद्धार, संरक्षण और रखरखाव वास्तुकला एवं विरासत बहाली योजना के तहत किया जाना है। सरकार के आकलन के अनुसार कश्मीर घाटी में अभी 1842 धार्मिक स्थल हैं जिनमें 952 मंदिर है। 740 जीर्ण शीर्ण हालत में है। जबकि 212 में पूजा होती है। धारा 370 हटने के बाद मोदी सरकार ने श्रीनगर में कई पुराने मंदिरों का पुनर्निर्माण शुरु किया है। मोदी सरकार ने सबसे पहले झेलम नदी के किनारे बने रघुनाथ मंदिर का फिर से निर्माण किया।

सरकार ने प्रसाद योजना का किया विस्तार, 12 और धार्मिक स्थल शामिल

सरकार ने धार्मिक स्थलों का विकास करने के शुरू की गई प्रसाद योजना का विस्तार किया है। फिलहाल इस योजना से 12 धार्मिक स्थलों को जोड़ा गया है। इनमें कामाख्या (असम), अमरावती (आंध्र प्रदेश), द्वारका (गुजरात), गया (बिहार), अमृतसर (पंजाब), अजमेर (राजस्थान), पुरी (ओडिशा), केदारनाथ (उत्तराखंड), कांचीपुरम (तमिलनाडु), वेलनकन्नी (तमिलनाडु), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), मथुरा (उत्तर प्रदेश) शामिल हैं। इन 12 स्थलों के अलावा प्रसाद योजना का दायरा और बढ़ा दिया गया है.योजना के तहत स्थलों की संख्या बढ़कर लगभग 41 हो गयी है। बौद्ध तीर्थ यात्रा के लिए कुशीनगर के अलावा झारखंड स्थित देवघर समेत कई तीर्थ स्थलों का प्रसाद योजना के तहत बुनियादी सुविधाओं का निर्माण कराया जा रहा है। दूसरी तरफ रामायण सर्किट और बुद्ध सर्किट को भी जोड़ने का काम चल रहा है। देश में कोरोना की रफ्तार में कमी होने के बाद घरेलू पर्यटन में बढोतरी हुई है। पर्यटन मंत्रालय की माने तो दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी में सुधार तथा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई विकास कार्य तेज कर दिया गया है, जिससे आने वाले यात्रियों को असुविधा न हो। बेहतर सुविधाएं मिलने से जहां पर्यटकों को सहुलियत होगी, वहीं रोजगार के भी अवसर बढ़ेंगे. स्थानीय सरकार को इससे कमाई भी बढ़ेगी।

प्रसाद योजना में अब शामिल हुए 41 धार्मिक स्थल

पर्यटन मंत्रालय ने योजना में शामिल स्थलों की संख्या को अब बढ़ाकर 41 कर दिया है। यानि अब देश के 41 धार्मिक स्थलों पर बुनियादी सेवाएं और जरूरी इंफ्रा को स्थापित किया जाता है जिससे यात्रियों को इन तीर्थ स्थलों तक पहुंचने और यहां रहने में सुविधा हो। इस स्थलों तक आवागमन बेहतर होने से न केवल टूरिज्म सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा वहीं भारी संख्या में तीर्थ यात्रियों के पहुंचने से स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। भारत सरकार की तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक, विरासत के विकास का राष्ट्रीय मिशन (प्रसाद) एक केंद्रीय योजना है, इसे पर्यटन मंत्रालय ने साल 2014-15 में शुरू किया था, केंद्र सरकार ने इसके लिए अलग से बजट का प्रावधान किया है। इस योजना के तहत संबंधित चयनित स्थलों और जिसमें तीर्थयात्रा और विरासत स्थलों के एकीकृत करने के लिए काम किया जाता है। इस योजना का मकसद बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाना है। प्रवेश स्थल (सड़क, रेल और जल परिवहन), आखिरी छोर तक कनेक्टिविटी, पर्यटन की बुनियादी सुविधाएं जैसे सूचना केंद्र, एटीएम, मनी एक्सचेंज, पर्यावरण अनुकूल परिवहन के साधन, क्षेत्र में प्रकाश की सुविधा और नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत से रोशनी, पार्किंग, पीने का पानी, शौचालय, अमानती सामान घर, प्रतीक्षालय, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, शिल्प बाजार, हाट, दुकानें, कैफेटेरिया, मौसम से बचने के उपाय, दूरसंचार सुविधाएं, इंटरनेट, कनेक्टिविटी आदि शामिल हैं।

घरेलू पर्यटन के साथ ही विदेशियों के आकर्षण का केंद्र बनेगा

देश में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, और सूफीवाद की तरह कई धर्मों का संगम है। वहीं उनके तीर्थस्थल भी हैं, ऐसे में माना जाता है कि घरेलू पर्यटन का विकास काफी हद तक तीर्थयात्रा पर्यटन पर निर्भर करता है, जोकि धार्मिक भावनाओं के द्वारा आंशिक रूप से या पूरी तरह से प्रेरित है। ऐसे में तीर्थयात्रा पर्यटन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार लाना है। सालों से यह स्थल बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे थे। अब पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार इन स्थलों का पुरोद्धार कर रहा है। लोग यहां धार्मिक भावनाओं की वजह से जाते रहे हैं। अब जब सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है तो यहां पर्यटन बढ़ने के साथ-साथ नौकरियां भी मिलेगी।

उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थलों का विकास

पीएम मोदी के विजन के अनुसार, उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थलों को विकसित करने की तैयारी अब उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से शुरू की गई है। सरकार इन स्थलों को फिर से विकसित कर यहां पर टूरिज्म सेक्टर को विकसित करने की योजना पर काम कर रही है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं तैयार की गई हैं। दरअसल, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने बुंदेलखंड के इलाकों के किलों को पुनर्विकसित करने का मंत्र दिया था। इसके बाद योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से प्रदेश के तमाम ऐतिहासिक स्थालों के पुनरुद्धार कर इसे पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध बनाने की योजना तैयार की गई। यूपी सरकार ने काशी, अयोध्या, मथुरा, समेत बौद्ध धर्म स्थलों के साथ राज्य के ऐतिहासिक स्थलों पर अपनी नजर टिका दी है। इनके कायाकल्प करने के लिए 341 करोड़ रुपये से विकास कार्य की गति को तेज किया गया है। अब पर्यटकों को न सिर्फ सनातन और बौद्ध धर्म की जानकारी मिलेगी, बल्कि यहां के वीर सपूतों की कहानी भी जान सकेंगे। तकरीबन 341 करोड़ की लागत से प्रस्तावित इन प्रोजेक्ट्स में साउंड एंड लाइट शो के लिए केंद्र सरकार की ओर से 4, जबकि प्रदेश सरकार की ओर से 15 नए स्थलों को चिह्नित किया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के विरासत स्थलों को सजाया-संवारा जा रहा है। आइए देखते हैं वर्ष 2022 में मिली उपलब्धि के साथ ही पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद किस तरह विरासत स्थलों में आया सुधार-

मोढेरा सूर्य मंदिर, वडनगर और उनाकोटी की मूर्तियां यूनेस्को धरोहर स्थलों की संभावित सूची में किया गया शुमार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की बागडोर संभालने के बाद खोई हुई सांस्कृतिक विरासत को फिर से हासिल करने और उनके संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम किया है। पीएम मोदी की पहल से देश में विरासत संरक्षण पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है। आज मोदी सरकार के प्रयासों का नतीजा है कि भारत के कई विरासत स्थल यूनेस्को के विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया है। यह एक ओर जहां देश के लिए गौरव की बात है वहीं इससे पर्यटन को भी बढा़वा मिल रहा है। वर्ष 2022 में भारत के तीन नए सांस्कृतिक स्थलों को संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में शामिल किया गया है। इसमें मोढेरा का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर, गुजरात का ऐतिहासिक वडनगर शहर और त्रिपुरा में उनाकोटी की चट्टानों को काटकर बनाई गई मूर्तियां शामिल हैं। इससे भारतीय सांस्कृतिक विरासत को बहुत प्रोत्साहन मिलेगा। यह पीएम मोदी के प्रयासों का ही परिणाम है कि 2014 से 2021 के बीच भारत के 10 विरासत स्थलों को यूनेस्को ने अपनी विरासत सूची में शामिल किया है। वर्ष 2021 में गुजरात के धोलावीरा और तेलंगाना के रामप्पा मंदिर को यूनेस्को ने अपनी विरासत सूची में शामिल किया था। इसे मिलाकर यूनेस्को की विरासत सूची में अब भारत के 40 विरासत स्थल हो गए हैं। वर्ष 2014 के पहले तक यूनेस्को की सूची में भारत के 30 विरासत स्थल थे जबकि पीएम मोदी के देश की बागडोर संभालने के बाद 10 विरासत स्थलों को इस सूची में शामिल किया गया है।

विश्व प्रसिद्ध है गुजरात के मोढेरा का सूर्य मंदिर

यह सूर्य मंदिर प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात में स्थित है, यह बहुत प्राचीन मंदिर हैं, इसका एतिहासिक महत्व भी है। मोढेरा में स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण 1026 ई. में सूर्यवंशी सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर ग्याहरवीं शताब्दी का है। इस मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया है कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के समय तक इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर के गर्भगृह की दीवारों पर बहुत सुंदर नक्काशी की गई है। इसकी दीवारों पर नक्काशी से पौराणिक कथाओं का चित्रण किया गया है। यह मंदिर तीन हिस्सों में विभाजित है। इस मंदिर में सूर्य कुंड, सभा मंडप और गूढ़ मंडप बना है, कुंड में जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। यह मंदिर विश्वप्रसिद्ध है, इस मंदिर में वास्तुकला का अद्भुत नमूना देखने को मिलता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इसको बनाने में चूने का प्रयोग नहीं किया गया है। राजा भीमदेव के द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था जिसमें सभामंडप और गर्भगृह आता है। सभा मंडप के आगे की ओर को एक कुंड बना हुआ है जिस सूर्यकुंड या रामकुंड कहा जाता है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है। इसकी देख-रेख अब पुरातत्व विभाग के द्वारा की जाती है।

करीब 2500 साल पुराना है गुजरात का ऐतिहासिक वडनगर शहर

वडनगर गुजरात का प्राचीन शहर है। इसका इतिहास करीब 2500 साल पुराना है। पुरातत्ववेत्ताओं के मुताबिक, यहां हजारों साल पहले खेती होती थी। खुदाई के दौरान यहां से हजारों साल पहले के मिट्टी के बर्तन, गहने और तरह-तरह के औजार-हथियार भी मिल चुके हैं। कई पुरातत्ववेत्ताओं का मानना है कि यह हड़प्पा सभ्यता के पुरातत्व स्थलों में से एक है। हड़प्पा सभ्यता भारत की सबसे प्राचीनतम सभ्यता मानी जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहनगर वडनगर में खुदाई में यहां से बौद्ध स्तूप मिले थे। खनन के दौरान अब यहां से करीब 2 हजार साल पुराने दो बौद्ध कक्ष और चार दीवारें मिली हैं। ये दीवारें करीब 2 मीटर ऊंची और 1 मीटर चौड़ी हैं। आसपास के हालात देखकर पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने यहां बौद्ध विहार होना का अनुमान लगाया है। महेसाणा जिले के वडनगर में चल रही खुदाई के दौरान हाल ही में तीसरी व चौथी सदी के बौद्ध स्तूप के अवशेष और सातवीं-आठवीं सदी का एक मानव कंकाल भी मिला था। यह मानव कंकाल सातवीं-आठवीं सदी का बताया गया है। खुदाई के दौरान तीसरी व चौथी सदी के समय का सांकेतिक बौद्ध स्तूप भी मिला था।

त्रिपुरा के रघुनंदन हिल्स में उनाकोटी की मूर्तियां काफी मशहूर

पूर्वोत्तर के त्रिपुरा राज्य में उनाकोटी की मूर्तियां काफी मशहूर हैं। यह मूर्तियां त्रिपुरा के रघुनंदन हिल्स के एक पहाड़ के चट्टानों को काटकर बनाई गईं हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां एक, दो या दस मूर्तियां नहीं हैं बल्कि इनकी संख्या 99 लाख 99 हजार 999 मूर्तियां हैं। बंगाली भाषा में उनाकोटी का मतलब ही होता है एक करोड़ से एक कम। रिसर्चर्स की मानें तो इन मूर्तियों को करीब 8वीं या 9वीं शताब्दी में बनाया गया होगा लेकिन इसे किसने बनाया इस बात की कोई ठोस जानकारी नहीं हैं। हालांकि कुछ मूर्तियां इसमें से खराब भी हो गई हैं। उनाकोटी में ज्यादातर मूर्तियां हिंदू देवी-देवताओं की हैं। इनमें भगवान गणेश, भगवान शिव और दूसरे देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं। फिलहाल इस जगह के संरक्षण की जिम्मेदारी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पास है। इसके बाद से यहां कि हालत में कुछ सुधार देखने को मिला है। यहां मौजूद कई मूर्तियां इतनी विशाल हैं कि इनके ऊपर से झरने बहते हैं। यहां देश के कई हिस्से से लोग घूमने के लिए भी आते हैं। गौरतलब है कि कुछ खास मूर्तियों के पास आमजनों को जाने की अनुमति नहीं है। यहां नंदी बैल भी है। यह नंदी बैल भगवान शिव के नजदीक है। इन नंदी बैलों की संख्या तीन है। अप्रैल के महीने में इस जगह पर एक बहुत बड़ा मेला भी लगता है जिसे अशोकाष्टमी का मेला कहा जाता है। उनाकोटी में बनी भगवान शिव की मूर्ति को उनाकोटिश्वरा काल भैरवा नाम से पुकारा जाता है जो करीब 30 फीट के आस-पास ऊंची है। भारत सरकार अब इस जगह को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का टैग दिलाने की तैयारी कर रही है क्योंकि सरकार का कहना है कि यह एक अनोखी सांस्कृतिक धरोहर है।

होयसल मंदिरों के पवित्र स्मारक ‘विश्व धरोहर स्थल’ में शामिल करने के लिए नामित

हाल ही में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने वर्ष 2022-2023 के लिये ‘विश्व धरोहर स्थल’ के रूप में विचार करने हेतु होयसल मंदिरों के पवित्र स्मारकों को नामित किया है। 12वीं-13वीं शताब्दी में निर्मित होयसल मंदिर कर्नाटक में बेलूर, हलेबीडु और सोमनाथपुर के तीन घटकों द्वारा चिह्नित हैं। ये तीनों होयसल मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षित स्मारक हैं। ‘होयसला के पवित्र स्मारक’ 15 अप्रैल, 2014 से यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल हैं और भारत की समृद्ध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत के साक्षी हैं।

होयसलेश्वर मंदिर, हलेबिड का अनुकरणीय स्थापत्य

हलेबिड में होयसलेश्वर मंदिर वर्तमान में मौजूद होयसलों का सबसे अनुकरणीय स्थापत्य है। इसका निर्माण होयसल राजा विष्णुवर्धन होयसलेश्वर के शासनकाल के दौरान 1121 ई. में किया गया था। शिव को समर्पित यह मंदिर दोरासमुद्र के धनी नागरिकों तथा व्यापारियों द्वारा प्रायोजित व निर्मित किया गया था। यह मंदिर 240 से अधिक दीवार में संलग्न मूर्तियों के लिये सबसे प्रसिद्ध है। हलेबिड में एक दीवार वाला परिसर है जिसमें होयसल काल के तीन जैन मंदिर भी है।

होयसल वास्तुकला की विशेषताएं क्या हैं?

होयसल वास्तुकला 11वीं एवं 14वीं शताब्दी के बीच होयसल साम्राज्य के अंतर्गत विकसित एक वास्तुकला शैली है जो ज़्यादातर दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्र में केंद्रित है। होयसल मंदिर, हाइब्रिड या बेसर शैली के अंतर्गत आते हैं क्योंकि उनकी अनूठी शैली न तो पूरी तरह से द्रविड़ है और न ही नागर। होयसल मंदिरों में एक बुनियादी द्रविड़ियन आकृति है, लेकिन मध्य भारत में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली भूमिजा मोड ( Bhumija mode), उत्तरी और पश्चिमी भारत की नागर परंपराओं और कल्याणी चालुक्यों द्वारा समर्थित कर्नाटक द्रविड़ मोड के मज़बूत प्रभाव दिखाई देते हैं। इसलिये होयसल के वास्तुविदों ने अन्य मंदिर प्रकारों में विद्यमान बनावट पर विचार किया तथा उनके चयन और यथोचित संशोधन करने के बाद इन विधाओं को अपने स्वयं के विशेष नवाचारों के साथ मिश्रित किया। इसकी परिणति एक पूर्णरूपेण अभिनव ‘होयसल मंदिर’ (‘Hoysala Temple) शैली के अभ्युदय के रूप में हुई। होयसल मंदिरों में खंभे वाले हॉल के साथ एक साधारण आंतरिक कक्ष की बजाय एक केंद्रीय स्तंभ वाले हॉल के चारों ओर समूह में कई मंदिर शामिल होते हैं और यह संपूर्ण संरचना एक जटिल डिज़ाइन वाले तारे के आकार में होती है। चूँकि ये मंदिर शैलखटी (Steatite) चट्टानों से निर्मित हैं जो अपेक्षाकृत एक नरम पत्थर होता है जिससे कलाकार मूर्तियों को जटिल रूप देने में सक्षम होते थे। इसे विशेष रूप से देवताओं के आभूषणों में देखा जा सकता है जो मंदिर की दीवारों को सुशोभित करते हैं।

Leave a Reply