वर्ष 2022 में भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत भारत के विजन को साकार करने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे देश अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है। यह पीएम मोदी का प्रोत्साहन ही रहा कि कभी दूसरे देशों की मदद से अपने सैटेलाइट बनाने और उन्हें अंतरिक्ष में भेजने के लिए खुद की मदद लेने वाला इसरो आज सिर्फ अपने ही नहीं बल्कि दूसरे देशों के सैटेलाइट को भी अंतरिक्ष में भेज रहा है। यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षों में, दुनिया भर के अन्य देश, विश्वविद्यालय और अनुसंधान संस्थान अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भारत के इसरो से संपर्क कर रहे हैं और इसरो अब ऐसे उपग्रहों को प्रक्षेपित करके, उन्हें सटीक रूप से अंतरिक्ष में भेजकर अच्छी कमाई करने लगा है। जनवरी 2018 से नवंबर 2022 तक पांच साल में 19 देशों और विभिन्न संगठनों के 177 उपग्रह लॉन्च किए गए हैं। इसने 94 मिलियन डॉलर और 46 मिलियन यूरो कमाए हैं। यानी कुल 1,100 करोड़ रुपए की कमाई हुई है। मोदी सरकार ने देश में 2020 में प्राइवेट सेक्टर के लिए स्पेस के दरवाजे खोल दिए थे। सरकार चाहती है कि छोटे मिशन का भार जो इसरो पर है, वह प्राइवेट सेक्टर के साथ भागीदारी में उन्हें दिया जाए। जिससे इसरो बड़े मिशन पर फोकस कर सके। इससे भारत में कमर्शल मार्केट भी बढ़ेगा। मोदी सरकार ने इसके लिए स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में रणनीति बदली। देश में निजी संगठनों को उपग्रह निर्माण, प्रक्षेपण के लिए रॉकेट निर्माण और इस क्षेत्र से जुड़े विभिन्न उपकरणों के निर्माण की अनुमति देने के लिए नियमों में बदलाव किया गया है। यही वजह है कि पिछले महीने एक निजी संस्था ने अपने दम पर रॉकेट बनाकर एक सैटेलाइट लॉन्च किया। साथ ही इसरो ने हल्के वजन के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए एक नया लॉन्चर विकसित किया है। यह पीएम मोदी के विजन का ही कमाल है कि पिछले कुछ वर्षों में इसरो ने ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, फिनलैंड, फ्रांस, इजरायल, इटली, जापान, लिथुआनिया, लक्समबर्ग, मलेशिया, नीदरलैंड, कोरिया गणराज्य, सिंगापुर, स्पेन, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड, अमेरिका या इन देशों के विभिन्न संगठनों के उपग्रह लॉन्च किए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की ये उपलब्धियां भारत को सुपर पावर बनाने की ओर अग्रसर हैं।
अंतरिक्ष में हिन्दुस्तान का नया कीर्तिमान, ISRO ने सफलता से लॉन्च किया देश का पहला प्राइवेट रॉकेट 'विक्रम-S'#VikramS #ISRO
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— ZEE HINDUSTAN (@ZeeHindustan_) November 18, 2022
स्पेस इंडस्ट्री में प्राइवेट सेक्टर की एंट्री, देश का पहला प्राइवेट रॉकेट विक्रम-S लॉन्च
भारत के लिए 18 नवंबर, 2022 का दिन ऐतिहासिक रहा। इस दिन भारत ने अंतरिक्ष में ऊंची छलांग लगाते हुए एक नए युग की शुरुआत की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश का पहला प्राइवेट रॉकेट ‘विक्रम-एस’ को लॉन्च किया। इस रॉकेट ने तीन सैटलाइट्स को उनकी कक्षा में स्थापित किया। इसमें दो घरेलू और एक विदेशी ग्राहक के पेलोड शामिल है। भारत इस लॉन्च के बाद अमेरिका, रूस, ईयू, जापान, चीन और फ्रांस जैसे देशों के क्लब में शामिल हो गया, जो प्राइवेट कंपनियों के रॉकेट को स्पेस में भेजते हैं।
A historic moment for India as the rocket Vikram-S, developed by Skyroot Aerospace, took off from Sriharikota today! It is an important milestone in the journey of India’s private space industry. Congrats to @isro & @INSPACeIND for enabling this feat. pic.twitter.com/IqQ8D5Ydh4
— Narendra Modi (@narendramodi) November 18, 2022
स्काईरूट एयरोस्पेस कंपनी ने बनाया ‘विक्रम-एस’ रॉकेट
विक्रम-एस रॉकेट को हैदराबाद में स्थित स्काईरूट एयरोस्पेस कंपनी ने बनाया है। ‘विक्रम-एस’ की लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से हुई। यह रॉकेट कार्बन फाइबर से बना है। इसमें 3-D प्रिंटेड इंजन लगे हैं। यह रॉकेट 83 किलो के पेलोड (सैटलाइट) को 100 किमी. ऊंचाई तक ले जाने में सक्षम है। आवाज की 5 गुना अधिकतम रफ्तार से उड़ान भर सकता है। ये देश की स्पेस इंडस्ट्री में प्राइवेट सेक्टर की एंट्री को नई ऊंचाइयां देगा। रॉकेट का नाम ‘विक्रम-एस’ भारत के महान वैज्ञानिक और इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इस रॉकेट के लॉन्च के साथ ही देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में निजी क्षेत्र के प्रवेश का प्रारंभ हुआ। यही कारण है, इस मिशन का नाम ‘प्रारंभ’ रखा गया है। इससे अलग-अलग ताकत और वजन ढोने वाले रॉकेटों के निजी कंपनियों में बनने की राह खुलेगी। कमर्शल लॉन्च में प्राइवेट कंपनियों के आने से ISRO पर भार कम होगा।
निजी रॉकेट का प्रक्षेपण करके भारत ने रचा इतिहासः जितेंद्र सिंह
अंतरिक्ष विभाग का प्रभार संभाल रहे केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह इस प्रक्षेपण के गवाह बने और उन्होंने इसकी सफलता के लिए देश को बधाई दी। उन्होंने कहा कि भारत इसरो के दिशानिर्देशों के तहत श्रीहरिकोटा से ‘स्काईरूट एयरोस्पेस’ के विकसित पहले निजी रॉकेट का प्रक्षेपण करके इतिहास रचने का काम किया है। उन्होंने इसे वास्तव में एक नई शुरुआत और एक नई सुबह बताया। सिंह ने कहा, ‘मुझे इसे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की यात्रा में नई पहल कहना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बहुत-बहुत धन्यवाद, जिन्होंने अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए खोलकर इसे संभव बनाया है।
#WATCH | ISRO launches LVM3-M2/OneWeb India-1 Mission from Satish Dhawan Space Centre (SDSC) SHAR, Sriharikota
(Source: ISRO) pic.twitter.com/eBcqKrsCXn
— ANI (@ANI) October 22, 2022
इसरो ने लॉन्च किए 36 वनवेब सैटेलाइट, सबसे भारी LVM-3 रॉकेट के जरिए पहली बार हुई लॉन्चिंग
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि वनवेब द्वारा विकसित 36 ब्रॉडबैंड सैटेलाइट का एक ग्रुप 23 अक्टूबर 2022 को लो अर्थ ऑर्बिट में सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया है। इस लॉन्चिंग को सबसे भारी LVM3 रॉकेट के जरिए किया गया है। हालांकि अब रॉकेट का नाम बदलकर LVM3-M2 किया गया है। इन सभी सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया है। इसरो और वाणिज्यिक इकाई न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) द्वारा श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इन सैटेलाइट की लॉन्चिंग की गई है। LVM3 रॉकेट के जरिये हुआ पहला लॉन्चिंग अभियान है। वनवेब ने कहा कि यह इस साल का दूसरा और अब तक का 14वां लॉन्च है। इसरो के अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग सचिव सोमनाथ एस ने इस लॉन्चिंग को देश और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए ऐतिहासिक घटना बताया है।
यह एक ऐतिहासिक मिशन है…यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन के कारण संभव हुआ है क्योंकि वे चाहते थे कि LVM3 NSIL के साथ वाणिज्यिक बाजार में सबके सामने आए और हमारे लॉन्च वाहनों के संचालन के लिए वाणिज्यिक डोमेन की खोज और विस्तार करे: ISRO चेयरमैन डॉ. एस. सोमनाथ https://t.co/Mcj6b50ENI pic.twitter.com/8w5yynMU5t
— ANI_HindiNews (@AHindinews) October 22, 2022
लद्दाख से कन्याकुमारी तक मिलेगी तेज कनेक्विटी
लंदन स्थित उपग्रह संचार कंपनी नेटवर्क एक्सेस एसोसिएटेड लिमिटेड (वनवेब) ने इस लॉन्चिंग के बाद जानकारी देते हुए कहा कि इसरो और NSIL के साथ उसकी साझेदारी से 2023 तक पूरे भारत में कनेक्टिविटी प्रदान की जाएगी। जिसमें लद्दाख से कन्याकुमारी और गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक पहुंच शामिल है। कंपनी ने कहा कि वनवेब न केवल उद्यमों के लिए बल्कि उद्यमों के साथ-साथ गांवों, नगर पालिकाओं और स्कूलों के साथ-साथ देश के सुदूर क्षेत्रों तक सुरक्षित समाधान मुहैया कराएगा। वनवेब के अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल ने कहा इस लॉन्चिंग के साथ ही धरती की निचली कक्षा में 648 उपग्रहों का बेड़ा तैयार करने की कंपनी की योजना का 70 फीसदी यानी 462 उपग्रह का समूह पूरा हो जाएगा। केवल चार और लॉन्च के साथ ही यह बेड़ा दुनियाभर में उच्च गति वाली तेज कनेक्विटी प्रदान करने लगेगा। वनवेब को छह लॉन्च की आवश्यकता थी जो यूक्रेन और रूस जंग की स्थिति के कारण विलंबित हो गए। हमने कुछ अन्य मिशनों को आगे-पीछे किया तब जाकर प्राथमिकता के आधार पर दो लॉन्च किए गए। उन्होंने कहा कि इन सैटेलाइट से देश के उन हिस्सों में ही इंटरनेट पहुंचाया जा सकेगा, जहां कनेक्टिविटी पहुंचाना संभव नहीं है। वनवेब ने इस लॉन्चिंग के लिए 1000 करोड़ रुपये से अधिक का सौदा किया था और एक और GSLV को अगले साल जनवरी में लॉन्च किए जाने की उम्मीद है। कंपनी ने कहा, भारत में कनेक्टिविटी बढ़ाने की वनवेब की प्रतिबद्धता को भारती ग्लोबल का समर्थन प्राप्त है, जो इसकी सबसे बड़ी निवेशक है।
पीएम मोदी की वजह से संभव : इसरो अध्यक्ष
एलवीएम-3 के प्रक्षेपण को ऐतिहासिक मिशन बताते हुए इसरो के अध्यक्ष डॉ एस सोमनाथ ने कहा कि यह पीएम मोदी के समर्थन के कारण संभव हुआ है क्योंकि वह चाहते थे कि एलवीएम3 कॉमर्शियल मार्केट में आए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते थे कि LVM3 NSIL के साथ वाणिज्यिक बाजार में सबके सामने आए और हमारे लॉन्च वाहनों के संचालन के लिए वाणिज्यिक डोमेन की खोज और विस्तार करे। डॉक्टर सोमनाथ ने कहा कि दिवाली के पहले ही हमने उत्सव शुरू कर दिया है। 36 में से 16 सैटेलाइट्स सफलतापूर्वक सुरक्षित रूप से अलग हो गए हैं और अन्य 20 उपग्रहों को अलग कर दिया जाएगा। डेटा थोड़ी देर बाद आएगा और अवलोकन का कार्य जारी है। LVM3-M2 मिशन नए लॉन्च व्हीकल के साथ अंतरिक्ष एजेंसी को अपने विश्वसनीय वर्कहॉर्स पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) के साथ उपग्रहों को निचली पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के लिए बढ़ावा देगा।
India’s Polar Satellite Launch Vehicle PSLV-C52 injected Earth Observation Satellite EOS-04, into an intended sun synchronous polar orbit of 529 km altitude at 06:17 hours IST on February 14, 2022 from Satish Dhawan Space Centre, SHAR, Sriharikota. https://t.co/BisacQP8Qf
— ISRO (@isro) February 14, 2022
Satellite EOS-04 सफलतापूर्वक प्रक्षेपित, धरती पर नज़र रखेगा यह उपग्रह
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 2022 के अपने पहले प्रक्षेपण अभियान के तहत पीएसएलवी-सी 52 के जरिए धरती पर नजर रखने वाले उपग्रह ईओएस-04 और दो छोटे उपग्रहों को 14 फ़रवरी 2022 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित कर दिया। इसरो ने इसे ‘‘अद्भुत उपलब्धि’’ बताया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ से पीएसएलवी-सी (PSLV-C52) के ज़रिए Satellite EOS-04 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था। इसके साथ ही दो अन्य छोटे राइडशेयर सैटेलाइट्स ‘INS-2TD’ और ‘INSPIRESat-1’ को भी अंतरिक्ष भेजा गया। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र का ये 80वां प्रक्षेपण यान मिशन था, जबकि पीएसएलवी की ये 54वीं उड़ान थी। ईओएस-04 एक ‘रडार इमेजिंग सैटेलाइट’ है जिसे कृषि, वानिकी और वृक्षारोपण, मिट्टी की नमी और जल विज्ञान तथा बाढ़ मानचित्रण जैसे अनुप्रयोगों एवं सभी मौसम स्थितियों में उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसका वजन 1,710 किलोग्राम हे। पीएसएलवी अपने साथ में इन्सपायर सैट-1 उपग्रह भी लेकर गया, जिसे भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईएसटी) ने कोलोराडो विश्वविद्यालय, बोल्डर की वायुमंडलीय और अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला के सहयोग से तैयार किया है जबकि दूसरा उपग्रह आईएनएस-2टीडी एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक उपग्रह है।
100th Consecutively Successful Launch of Sounding Rocket RH-200 from TERLS – See more at: http://t.co/suOAuFVatP pic.twitter.com/D4xJNr6mNO
— ISRO (@isro) July 20, 2015
साउंडिंग रॉकेट RH200 रॉकेट का सफल परीक्षण
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने 24 नवंबर, 2022 को तिरुवनंतपुरम के थुंबा तट से RH200 रॉकेट के तौर पर अपना लगातार 200वां सफल प्रक्षेपण किया। RH200 ने थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) से उड़ान भरी थी। इसरो के लिए ये परीक्षण ऐतिहासिक पल था। इस दौरान पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, ISRO के अध्यक्ष एस. सोमनाथ समेत कई लोग इसके गवाह बने। इस साउंडिंग रॉकेट का इस्तेमाल मौसम विज्ञान, खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष भौतिकी की इसी तरह की शाखाओं पर प्रयोग करने के लिए किया जाता है। रोहिणी साउंडिंग रॉकेट शृंखला इसरो के भारी और अधिक जटिल लॉन्च वाहनों की अगुवा रही है।
Andhra Pradesh | PSLV-C54 takes off from Satish Dhawan Space Centre in Sriharikota. pic.twitter.com/lxsOccncTg
— ANI (@ANI) November 26, 2022
Ocean-Sat 3 समेत 9 सैटेलाइट प्रक्षेपित, महासागरों के अध्ययन में मदद मिलेगी
साल 2022 के लिए ये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का 5वां और आख़िरी मिशन था। 26 नवंबर 2022 को ISRO ने अपने विश्वसनीय रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV-C54) की सहायता से Ocean-Sat 3 भूटान के एक उपग्रह सहित 9 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर अपनी-अपनी कक्षाओं में सफलता से स्थापित किया। इसरो के मुताबिक़, PSLV-C54 ने ओशियन सैट शृंखला के अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट-06 को पृथ्वी से 742 किमी ऊंचाई पर अपनी कक्षा में प्रक्षेपण के बाद 17 मिनट में पहुंचाया। सभी उपग्रह भी अपनी निर्धारित कक्षाओं में क़रीब 528 किमी ऊंचाई पर स्थापित किए गए। इसके जरिए महासागरों के अध्ययन में मदद मिलेगी।
इसरो लगातार करता रहता है सफल रॉकेट परीक्षण
टेक्नोलॉजी और सुरक्षा के क्षेत्र में इसरो लगातार भारत को मजबूत करने के लिए परीक्षण करता रहता है। इसरो ने इसी साल गगनयान में सुरक्षा के लिए बड़ा टेस्ट किया था। उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के बबीना फील्ड फायर रेंज में ‘इंटीग्रेटेड मेन पैराशूट एयरड्रॉप टेस्ट’ (आईएमएटी) किया है। इसरो ने बताया कि आईएमएटी देश की महत्वाकांक्षी गगनयान परियोजना को साकार करने की दिशा में पहला कदम है। इसके पहले अक्टूबर में इसरो ने सबसे भारी रॉकेट LVM-3-M2/वनवेब इंडिया-1 को सफलता पूर्वक प्रक्षेपित किया था।
Celebrating 75 Years of Independence by unfurling the Indian Flag @ 30 km in Near Space.@PMOIndia @narendramodi @DrJitendraSingh@isro @INSPACeIND@mygovindia#AzadiKaAmritMahotsov#HarGharTiranga pic.twitter.com/4ZIJMdSZE6
— Space Kidz India (@SpaceKidzIndia) August 14, 2022
स्पेस में फहराया तिरंगा, पृथ्वी से 30 किमी दूर ऐसे मनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ
देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस मौके पर बर्फीले पहाड़ों से लेकर पानी के भीतर तक तिरंगा फहराया गया। इसी के साथ स्पेस में भी तिरंगा फहराते हुए देखा गया। आजादी के 75 साल पूरे करने के मौके पर राष्ट्रीय ध्वज को पृथ्वी से 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर फहराया गया। स्पेस किड्ज इंडिया ने एक गुब्बारे के जरिए तिरंगे को अंतरिक्ष में भेजा। ये संगठन देश के लिए युवा वैज्ञानिकों को बनाने वाला एयरोस्पेस संगठन है। स्पेस किड्ज इंडिया ने वीडियो जारी करते हुए कहा कि, ‘स्पेस में 30 किलोमीटर दूर भारतीय ध्वज फहराकर आजादी के 75 साल का जश्न मना रहे हैं। झंडा फहराना आजादी के ‘अमृत महोत्सव समारोह’ का हिस्सा रहा, जो भारत के स्वतंत्र होने के 75 साल पूरे होने का प्रतीक है। संगठन ने ये भी कहा, यह उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान और श्रद्धांजलि का प्रतीक है, जो हर दिन भारत को गौरवान्वित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
75 सरकारी स्कूलों की 750 युवा छात्राओं ने बनाए ‘आजादीसैट’
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 7 अगस्त 2022 को अपना सबसे छोटा रॉकेट स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) लॉन्च किया जो राष्ट्रीय ध्वज को अंतरिक्ष में भी ले गया। खास बात यह है कि इसे 75 स्कूलों की 750 छात्राओं ने मिलकर बनाया है। आज़ादी का अमृत महोत्सव के उत्सव के मद्देनजर एसएसएलवी में ‘आज़ादी सैट’ नामक एक सह-यात्री उपग्रह शामिल किया गया था जिसमें देशभर के 75 ग्रामीण सरकारी स्कूलों की 750 युवा छात्राओं द्वारा निर्मित 75 पेलोड शामिल थे। इस परियोजना को विशेष रूप से 75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह पर वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करने और युवा लड़कियों को अंतरिक्ष अनुसंधान को अपने करियर के रूप में चुनने के लिए संकल्पित किया गया था। स्पेस किड्ज इंडिया ने 750 स्कूली छात्राओं के बनाए गए एक सेटेलाइट “आजादीसैट” को लॉन्च किया था। हालांकि ये सेटेलाइट अस्थिर ऑर्बिट में स्थापित हो गया और अब यह इस्तेमाल करने के योग्य नहीं है।
पीएम मोदी ने 15 अगस्त को किया था वादा, इसरो जल्द अंतरिक्ष में तिरंगा लहराएगा
प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त 2018 को घोषणा की थी कि भारत के स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के मौके पर अंतरिक्ष में तिरंगा फहराया जाएगा। इसरो इस सपने को साकार करने के लिए पूरी तरह तैयार है। स्पेस में झंडा फहराने के पीएम मोदी के वादे को पूरा करते हुए इसरो 7 अगस्त को रॉकेट स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) लॉन्च करेगा। इसरो का एसएसएलवी अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि इसे 500 किलोग्राम से कम वजन वाले उपग्रहों और पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने के लिए विकसित किया गया था। 7 अगस्त को सुबह श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च होगा।
देश का स्पेस सेक्टर 130 करोड़ देशवासियों की प्रगति का माध्यमः पीएम मोदी
पीएम मोदी ने पिछले साल इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISpA) का शुभारंभ किया था। इस मौके पर पीएम मोदी ने कहा है कि देश को इनोवेशन सेंटर बनाने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है और इसके लिए प्राइवेट सेक्टर का योगदान बेहद अहम है, ‘पहले Space Sector का मतलब होता था- सरकार! लेकिन हमने इस Mindset को बदला और फिर इस सेक्टर में इनोवेशन के लिए सरकार, स्टार्टअप, आपस में सहयोग और स्पेस का मंत्र दिया। आज ISRO की Facilities को प्राइवेट सेक्टर के लिए Open किया जा रहा है।’ इंडियन स्पेस एसोसिएशन यानि ISpA की वर्चुअली शुरूआत करते हुए पीएम मोदी ने कहा है कि देश का स्पेस सेक्टर 130 करोड़ देशवासियों की प्रगति का एक बड़ा माध्यम है। गरीबों के घरों, सड़कों और दूसरे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में सैटेलाइट से ट्रैकिंग हो या नाविक टेक्नोलॉजी, गवर्नेंस को पारदर्शी बनाने में ये बहुत मददगार साबित हो रही हैं। पीएम मोदी ने एयर इंडिया से जुड़े फैसले का उदाहरण देते हुए कहा कि ‘Public Sector Enterprises को लेकर सरकार एक स्पष्ट नीति के साथ आगे बढ़ रही है।
SSLV का वजन लगभग 120 टन
स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) परियोजना को विशेष रूप से 75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करने और युवा लड़कियों के लिए अंतरिक्ष अनुसंधान को अपने करियर के रूप में चुनने के अवसर पैदा करने के लिए शुरू किया गया है। एसएसएलवी का वजन लगभग 120 टन है और यह 34 मीटर की ऊंचाई पर अंतरिक्ष में 500 किलोग्राम तक ले जा सकता है।
छोटे उपग्रह के लिए PSLV पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा
यह देश का पहला स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल है। इससे पहले छोटे उपग्रह सुन सिंक्रोनस ऑर्बिट तक के लिए हम PSLV पर निर्भर थे। PSLV को लॉन्च पैड तक लाने और असेंबल करने में दो से तीन महीनों का वक्त लगता है, जबकि SSLV सिर्फ 24 से 72 घंटों के भीतर असेंबल किया जा सकता है। इससे पैसों और समय दोनों की बचत होगी।
इसरो के अध्यक्ष ने नए सैटेलाइट को बताया गेंम चेंजर
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने नए सैटेलाइट को एक ‘गेम चेंजर’ कहा है जो भारत के आकर्षक और फलते-फूलते छोटे सैटेलाइट लॉन्च बाजार में प्रवेश करने के सपनों को आगे बढ़ाएगा। कम से कम टर्नअराउंड समय के साथ यह लागत प्रभावी रॉकेट को बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए डिजाइन किया गया है। अपने सफल प्रक्षेपण के साथ एसएसएलवी अंतरिक्ष क्षेत्र और अन्य निजी भारतीय कंपनियों के बीच विशेष रूप से छोटे सैटेलाइट के लिए वैश्विक बाजार में अधिक सहयोग बनाने में मदद करेगा। इसरो के अधिकारियों ने मीडिया को बताया कि SSLV मिनी, माइक्रो और नैनो उपग्रहों (10-500 किलोग्राम द्रव्यमान) को 500 किमी प्लानर कक्षा में लॉन्च करने में सक्षम है। एसएसएलवी का उद्देश्य पेलोड इमेजिंग के साथ एक बेहतर और प्रैक्टिकल सैटेलाइट को डिजाइन और विकसित करना है। यह वानिकी, जल विज्ञान, कृषि, मिट्टी और तटीय अध्ययन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान करेगा।
100 स्टार्ट-अप ने इसरो के साथ किया समझौता
भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के अध्यक्ष पवन गोयनका ने कहा कि यह भारत में निजी क्षेत्र के लिए बड़ी छलांग है। उन्होंने स्काईरूट को रॉकेट के प्रक्षेपण के लिए अधिकृत की जाने वाली पहली भारतीय कंपनी बनने पर बधाई दी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बृहस्पतिवार को बंगलुरू टेक समिट-2022 में बताया था कि अंतरिक्ष तकनीक और नवोन्मेष के क्षेत्र में इसरो के साथ काम करने के लिए 100 स्टार्ट-अप समझौता कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने बताया कि 100 में से करीब 10 ऐसी कंपनियां हैं, जो सैटेलाइट और रॉकेट विकसित करने में जुटी हैं।
ISRO ने 5 सालों में विदेशी सैटलाइट की लॉन्चिंग से कमाए 1000 करोड़ से ज्यादा
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पिछले कई सालों में विदेशी उपग्रहों (Satellites) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया है। इसरो ने इन विदेशी सैटेलाइटों के प्रक्षेपण से करोड़ों रुपये कमाए। यह जानकारी संसद में अंतरिक्ष मंत्री जितेंद्र सिंह ने दी। एक सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने 15 दिसंबर 2022 को राज्यसभा को बताया कि इसरो ने विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से पिछले पांच सालों में लगभग 1100 करोड़ रुपये कमाए हैं। पिछले पांच सालों यानी जनवरी 2018 से नवंबर 2022 के बीच इसरो ने इन विदेशी सैटेलाइटों का प्रक्षेपण किया है। इसरो ने अपने कॉमर्शियल हथियारों के माध्यम से कुल 19 देशों के 177 विदेशी उप्रगह लॉन्च किए हैं। इन 19 देशों में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, फिनलैंड, फ्रांस, इजराइल, इटली, जापान, लिथुआनिया, लक्समबर्ग, मलेशिया, नीदरलैंड, कोरिया गणराज्य, सिंगापुर, स्पेन, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका भी शामिल है।
मोदी सरकार ने खोला था प्राइवेट सेक्टर के लिए स्पेस के दरवाजे
देश में 2020 में प्राइवेट सेक्टर के लिए स्पेस के दरवाजे खोले गए थे। मोदी सरकार चाहती है कि छोटे मिशन का भार जो इसरो पर है, वह प्राइवेट सेक्टर के साथ भागीदारी में उन्हें दिया जाए। इससे इसरो बड़े मिशन पर फोकस कर सके। इससे भारत में कमर्शल मार्केट भी बढ़ेगा। विक्रम मिशन को भी कमर्शल स्पेस मिशन को बढ़ावा देने वाली भारत की नोडल एजेंसी इन-स्पेस ने मंजूरी दी थी।
अंतरिक्ष क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधारों की शुरुआत
सरकार ने नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर के गठन का फैसला किया है। आत्मनिर्भर भारत अभियान को गति देने के लिए इसमें निजी क्षेत्र को मंजूरी दी गई है। इससे उद्योग जगत न केवल अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भागीदारी निभाएगा, बल्कि हमारी स्पेस टेक्नोलॉजी को भी नई ऊर्जा मिलेगी। यह निर्णय भारत को बदलने तथा देश को आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से आधुनिक बनाने के प्रधानमंत्री के दीर्घकालिक दृष्टिकोण के अनुरूप है। इससे न केवल इस क्षेत्र में तेजी आएगी बल्कि भारतीय उद्योग विश्व की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। इसके साथ ही प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़े पैमान पर रोजगार की संभावनाएं हैं और भारत एक ग्लोबल टेक्नोलॉजी पावरहाउस बन रहा है।
देश की कई दिग्गज कंपनियों के सहयोग से बना है ISpA
ISpA के संस्थापक सदस्यों में लार्सन एंड टुब्रो, ग्रुप का नेल्को, वनवेब, भारती एयरटेल, मैपमायइंडिया, वालचंदनागर इंडस्ट्री, अनंत टेक्नॉलजी लिमिटेड जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं। गोदरेज, अजिस्टा-बीएसटी एरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड, BEL, सेंटम इलेक्ट्रानिक्स एंड मैक्सर इंडिया ने भी ISpA को बनाने में पूरा सहयोग दिया है।
इनोवेशन पर मोदी सरकार का जोर
मोदी सरकार ISRO जैसे संस्थानों में जो सुविधाएं मौजूद हैं, उन्हें प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने का मन बना चुकी है। ताकि इस क्षेत्र में आने वाले युवा कारोबारियों को मशीनों की खरीद के लिए अधिक संसाधन खर्च ना करने पड़ें और उनका सारा फोकस इनोवेशन पर हो। मोदी सरकार इस बात को भली-भांति समझती है कि स्पेस सेक्टर के विकास से आम लोगों की जिंदगी में तेजी से बदलाव लाए जा सकते हैं। बेहतर मैपिंग, इमेजिंग और कवेक्टिविटी की सुविधा से किसानों और मछुआरों को मौसम की बेहतर जानकारी मिल सकती है, सामनों की शिपमेंट और डिलीवरी में तेजी आ सकती है। पर्यावरण की बेहतर सुरक्षा हो सकती है। साथ ही आपदा की पहले जानकारी मिलने से लाखों लोगों की जिंदगी के खतरे में पड़ने से बचाया जा सकता है। पीएम मोदी ने उम्मीद जताई कि देश के इन्हीं लक्ष्यों के लिए इंडियन स्पेस एसोसिएशन भी काम करेगा।
इसरो चंद्रयान 3 मिशन में अमेरिकी उपकरण ले जाएगा
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का आगामी चंद्रयान 3 मिशन अमेरिका के वैज्ञानिक उपकरणों को ले जाएगा। चंद्रयान मिशन 2 में भी अमेरिकी वैज्ञानिक उपकरण थे। यह जानकारी केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष, डॉ. जितेंद्र सिंह ने 22 दिसंबर 2022 को राज्यसभा में दी थी। उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले पांच वर्षों में विशेष रूप से अंतरिक्ष अन्वेषण में सहयोग के लिए 4 सहकारी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं। अमेरिका के अलावा, भारत ने संयुक्त चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण मिशन के लिए व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिए जापान के साथ भी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जबकि यूनाइटेड किंगडम के साथ भविष्य के अंतरिक्ष विज्ञान मिशनों में सहयोग के लिए व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिए एक समझौता है।
चंद्रयान 3 मिशन जून 2023 में लॉन्च किया जाएगा
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के अनुसार चंद्रयान 3 को जून 2023 में लॉन्च किया जाना है। इसमें केवल एक रोवर और लैंडर शामिल होगा और चंद्रयान 2 के ऑर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी के साथ संचार करेगा। इसरो ने चंद्रमा का अध्ययन करने के लिए चंद्रयान मिशन लॉन्च किया है। चंद्रयान 1 मिशन को 22 अक्टूबर 2008 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से लॉन्च किया गया था। इसने एक मून इंपैक्ट प्रोब लॉन्च किया जिसे चंद्रमा की सतह पर टकराया गया और उसने चंद्रमा की सतह पर पानी की एक छोटी मात्रा की खोज की। चंद्रयान 2 को 2 जुलाई 2019 को लॉन्च किया गया था। मिशन का उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक रोवर उतारना था। हालांकि चंद्र लैंडर विक्रम 7 सितंबर 2019 को चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतारने में यह असफल रहा।