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गतिशील भारत के लिए PM Modi ने दिया अद्भुत मंत्र – अगले 25 साल की हमारी कार्यशैली के हर पहलू में कर्तव्य को ही सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में देश को और गतिशील बनाने के लिए अद्भुत मंत्र दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि देश बीते 75 वर्षों में जिस गति से आगे बढ़ा है, उससे कई गुना गति से देश को आगे बढ़ाने का मंत्र है- कर्तव्य। अगले 25 वर्षों में हमें इस मंत्र को पूरी तरह अपने जीवन में उतारना है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज यहां 82वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने जोर देते हुये कहा कि अगले 25 वर्ष, भारत के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने सांसदों से आग्रह किया कि वे एक ही मंत्र को जीवन में उतारें – कर्तव्य, कर्तव्य, कर्तव्य।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत के लिये लोकतंत्र सिर्फ एक व्यवस्था नहीं है। लोकतंत्र तो भारत का स्वभाव है, भारत की सहज प्रकृति है। उन्होंने जोर देते हुये कहा, “हमें आने वाले वर्षों में, देश को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाना है। यह संकल्प ‘सबके प्रयास’ से ही पूरे होंगे” और लोकतंत्र में, भारत की संघीय व्यवस्था में जब हम ‘सबका प्रयास’ की बात करते हैं, तो सभी राज्यों की भूमिका उसका बड़ा आधार होती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि चाहे पूर्वोत्तर की दशकों पुरानी समस्याओं का समाधान हो, दशकों से अटकी-लटकी विकास की तमाम बड़ी परियोजनाओं को पूरा करना हो, ऐसे कितने ही काम हैं जो देश ने बीते सालों में किये हैं, सबके प्रयास से ही किये हैं। उन्होंने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई को ‘सबका प्रयास’ के वृहद उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।देश की एकता और अखंडता के संबंध में एक भी भिन्न स्वर उठता है, तो उससे सतर्क रहें : पीएम
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा देश विविधताओं से भरा है। उन्होंने कहा, “अपनी हजारों वर्ष की विकास यात्रा में हम इस बात को अंगीकृत कर चुके हैं कि विविधता के बीच भी, एकता की भव्य और दिव्य अखंड धारा बहती है। एकता की यही अखंड धारा, हमारी विविधता को संजोती है, उसका संरक्षण करती है।” आज के बदलते हुए समय में हमारे सदनों की विशेष जिम्मेदारी है कि देश की एकता और अखंडता के संबंध में अगर एक भी भिन्न स्वर उठता है, तो उससे सतर्क रहें।प्रधानमंत्री ने दृढ़तापूर्वक कहा कि हमारे सदन की परंपरायें और व्यवस्थायें स्वभाव से भारतीय हों। उन्होंने आह्वान किया कि हमारी नीतियां और हमारे कानून भारतीयता के भाव को, ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प को मजबूत करने वाले हों। उन्होंने कहा, “सबसे महत्त्वपूर्ण, सदन में हमारा खुद का भी आचार-व्यवहार भारतीय मूल्यों के हिसाब से हो। यह हम सबकी जिम्मेदारी है।”

प्रधानमंत्री ने एक और अद्भुत विचार दिया। उन्होंने कहा कि क्या साल में तीन-चार दिन सदन में ऐसे रखे जा सकते हैं, जिसमें समाज के लिये कुछ विशेष कर रहे जनप्रतिनिधि अपना अनुभव बतायें। अपने सामाजिक जीवन के इस पक्ष के बारे में देश को बतायें। इससे दूसरे जनप्रतिनिधियों के साथ ही समाज के अन्य लोगों को भी कितना कुछ सीखने को मिलेगा।प्रधानमंत्री ने यह प्रस्ताव भी रखा कि हम बेहतर चर्चा के लिये अलग से समय निर्धारित कर सकते हैं क्या? उन्होंने कहा कि ऐसी चर्चा, जिसमें मर्यादा का, गंभीरता का पूरी तरह से पालन हो, कोई किसी पर राजनीतिक छींटाकशी न करे। उन्होंने कहा कि एक तरह से वह सदन का सबसे ‘स्वस्थ समय’ हो, ‘स्वस्थ दिवस’ हो।

प्रधानमंत्री ने ‘एक राष्ट्र, एक विधायी मंच’ का विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “एक ऐसा पोर्टल हो, जो न केवल हमारी संसदीय व्यवस्था को जरूरी तकनीकी गति दे, बल्कि देश की सभी लोकतांत्रिक इकाइयों को जोड़ने का भी काम करे।” इस अवसर पर लोकसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश और राज्यसभा के उपसभापति भी उपस्थित थे।

 



 	
        

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