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कांग्रेस काल में होमी भाभा, विक्रम साराभाई सहित इसरो के वैज्ञानिकों की क्यों होती रही रहस्यमय मौत?

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आज कांग्रेस पार्टी चंद्रयान-3 की सफलता का श्रेय लेने के लिए जीजान से जुटी है, लेकिन कांग्रेस का एक काला अध्याय भी है जिसने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को कम से कम 20 साल पीछे धकेल दिया। कांग्रेस काल में होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई सहित भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत होती रही और सरकार ने रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इसकी कभी गंभीरता से जांच तक नहीं करवाई गई। अमेरिका 1960 के दशक से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को रोकने की साजिश में जुटा रहा और कांग्रेस की सरकार वैज्ञानिकों को सुरक्षा देने में नाकाम रही। 1960 से 2013 तक यह सिलसिला चलता रहा और कांग्रेस की सरकारें इसे लेकर बेपरवाह बनी रही। इससे इस आशंका को बल मिलता है कि इन साजिशों में कांग्रेस की भी मिलीभगत तो नहीं थी? इंदिरा गांधी के शासनकाल में 1966 में डॉ. होमी जहांगीर भाभा की रहस्यमय मौत और 1971 में विक्रम साराभाई की होटल के कमरे में संदिग्ध मौत के बाद पीवी नरसिम्हा राव के शासनकाल में नंबी नारायण को फर्जी मामले में फंसाने का सिलसिला चलता रहा। वहीं 2009-2013 तक मनमोहन सिंह के शासनकाल में तो अति ही हो गई। इन चार साल में 11 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत हो गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत के न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम को रोकने के लिए किस तरह से अंतर्राष्ट्रीय साजिश रची गई।

24 जनवरी 1966
प्रधानमंत्री: इंदिरा गांधी (कांग्रेस)
डॉ. होमी जहांगीर भाभा की रहस्यमय मौत
भारत के सबसे प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक और भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक होमी जे भाभा 24 जनवरी, 1966 को भाभा वियना जाने के लिए एयर इंडिया पर सवार हुए थे। एयर इंडिया का बोइंग 707 विमान ‘कंचनजंघा’ सुबह 7 बजकर 2 मिनट पर 4807 मीटर की ऊंचाई पर मोब्लां पहाड़ियों से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ये विमान दिल्ली, बेरूत और जिनेवा होते हुए लंदन जा रहा था। इस दुर्घटना में डॉ. होमी जहांगीर भाभा सहित जहाज पर सवार सभी 117 लोग मारे गए। फ्लाइट का ब्लैक बॉक्स कभी बरामद नहीं हुआ। दुर्घटना का वास्तविक कारण अभी भी अज्ञात है। कांग्रेस सरकार ने इसकी जांच नहीं करवाई।

सीआईए के अफसर ने मानी थी भाभा की मौत में साजिश की बात
न्यूज18 की रिपोर्ट के अनुसार, होमी जहांगीर भाभा की रहस्यमय मौत की एक थ्योरी 2008 में सामने आई। 2008 में एक वेबसाइट ने एक पत्रकार ग्रेगरी डगलस और सीईआए अफसर रॉबर्ट क्राओली के बीच हुई एक बातचीत छापी। इस बातचीत में क्राओली कह रहे थे कि भारत ने 60 के दशक में परमाणु बम पर काम शुरू कर दिया था। जो हमारे लिए समस्या थी। रॉबर्ट के मुताबिक भारत ये सब रुस की मदद से कर रहा था। इस बातचीत में रॉबर्ट क्राओली ने भाभा को खतरनाक बताया था। क्राओली के मुताबिक भाभा जिस वजह से वियना जा रहे थे, उसके बाद उनकी परेशानी और बढ़ती। कहा जाता है कि इसी वजह से विमान के कार्गो में बम विस्फोट के जरिए उसे उड़ा दिया गया।

30 दिसंबर 1971, त्रिवेन्द्रम
प्रधानमंत्री: इंदिरा गांधी
विक्रम साराभाई होटल के कमरे में मृत पाए गए
प्रसिद्ध भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के जनक, विक्रम साराभाई कोवलम के एक होटल के कमरे में मृत पाए गए। पिछली शाम उनमें बीमारी का कोई लक्षण नहीं दिखा था। विक्रम साराभाई जब रात में कोवलम के रिसोर्ट्स में अपने कमरे में सोए तो वो एकदम स्वस्थ थे लेकिन सुबह मृत पाए गए। 31 दिसंबर 1971 को जब वो रात में कोवलम के इस रिसोर्ट्स में रुके, तब तक सब कुछ सामान्य था। लेकिन सुबह उन्हें उनके कमरे में मृत पाया गया। निधन की कोई खास वजह सामने नहीं आ सकी। कोई शव परीक्षण नहीं किया गया, कोई जांच नहीं की गई।

30 नवंबर 1994, केरल
पीएम: पीवी नरसिम्हा राव (कांग्रेस)
नंबी नारायण की गिरफ्तारी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा
क्रायोजेनिक इंजन बनाने की कगार पर पहुंच चुके मशहूर इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायण को अचानक केरल पुलिस और आईबी ने फर्जी आरोप में गिरफ्तार कर लिया। भारतीय अंतरिक्ष मिशन थम गया। बाद में पता चला कि यह एक मनगढ़ंत मामला था। इसरो जासूसी कांड में जब नंबी नारायण को गिरफ्तार किया गया था तो उस वक्त केरल में कांग्रेस की सरकार थी और वहां की पुलिस ने उनपर मनगढंत आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई की जांच में सामने आया है कि नंबी नारायण की अवैध गिरफ्तारी में केरल सरकार के तत्कालीन बड़े अधिकारी शामिल थे। जांच में सामने आया कि 1994 के कुख्यात इसरो जासूसी मामले में एयरोस्पेस वैज्ञानिक नंबी नारायणन की गिरफ्तारी अवैध थी क्योंकि वैज्ञानिक जानकारी लीक होने का आधार मनगढ़ंत था। सीबीआई ने कहा कि नंबी नारायण की गिरफ्तारी संदिग्ध अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा थी। सीबीआई ने यह भी बताया कि उन्हें एक झूठे जासूसी मामले में फंसाया गया था।

कांग्रेस सरकारों को ISRO पर नहीं था भरोसाः नंबी नारायण
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एक इंटरव्यू में नंबी नारायण ने कहा कि इसरो के शुरुआती वर्षों में पिछली सरकारों (कांग्रेस) ने पर्याप्त फंड का आवंटन नहीं किया। उन्होंने यहां तक कह दिया सरकार को तब इसरो पर भरोसा ही नहीं था। उन्होंने पीएम मोदी के बारे में भी कुछ ऐसा कहा, जो कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को चुभ रहा होगा। उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 एक नेशनल प्रोजेक्ट है तो और किसे क्रेडिट दिया जाएगा। प्रधानमंत्री को नहीं तो किसे? नंबी ने कहा कि आप प्रधानमंत्री को पसंद नहीं करते हैं यह आपकी समस्या है।

2009, मुंबई
प्रधानमंत्री: मनमोहन सिंह (कांग्रेस)
लोकनाथन महालिंगम सुबह की सैर पर गए, 5 दिन बाद शव बरामद
परमाणु वैज्ञानिक लोकनाथन महालिंगम सुबह की सैर पर गए थे और लापता हो गए। पांच दिन बाद उसका शव काली नदी से बरामद हुआ है। कुछ हफ़्ते पहले ही एक और परमाणु वैज्ञानिक उसी जंगल में मृत पाया गया था।

नवंबर 2013
प्रधानमंत्री: मनमोहन सिंह (कांग्रेस)
परमाणु पनडुब्बी पर काम कर रहे दो इंजीनियरों की रहस्यमय मौत
भारत की पहली परमाणु-संचालित पनडुब्बी पर काम कर रहे दो उच्च पदस्थ इंजीनियरों, केके जोश और अभिष शिवम को श्रमिकों ने रेलवे ट्रैक पर मृत पाया। उस समय यह कहा गया कि उन्हें जहर दिया गया था और इसे दुर्घटना या आत्महत्या का रूप देने के लिए पटरियों पर छोड़ दिया गया था।

अक्टूबर 2013
प्रधानमंत्री: मनमोहन सिंह (कांग्रेस)
वैज्ञानिकों की मौत पर पीएमओ बेपरवाह
संडे गार्जियन ने भारत के शीर्ष वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौतों पर यूपीए सरकार द्वारा ध्यान न देने पर एक लेख प्रकाशित किया। इस लेख का शीर्षक था- ‘वैज्ञानिकों की मौत पर पीएमओ बेपरवाह’। इन सब के बावजूद कांग्रेस सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सवाल यह है कि जब इतने सारे वैज्ञानिकों की मौतें हो रही थी तब कांग्रेस सरकार ने इसकी गंभीरता से जांच क्यों नहीं करवाई।

2009-13 के बीच
प्रधानमंत्री: मनमोहन सिंह (कांग्रेस)
4 साल में 11 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत
यह आंकड़े 2009-13 के बीच के हैं जिसमें इस बात का खुलासा हुआ है कि इन चार सालों में कुल 11 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमयी परिस्थियों में मौत हो गई है। इनमें से आठ ऐसे वैज्ञानिक हैं जो या तो विस्फोट में मारे गए या फिर उन्होंने खुद को फंदे से लटका लिया। कुछ की मौत समुद्र में डूबने की वजह से भी हुई। ये सारी मौतें केवल एक घटना हैं या फिर कोई सोची समझी साजिश जिसके तहत देश के परमाणु कार्यक्रमों से जुड़े कई वैज्ञानिकों को मौत की नींद सुला दिया गया? इन आंकड़ों से एक बात तो साफ है कि कांग्रेस सरकारों में हमारे देश के वैज्ञानिकों की जिंदगी महफूज नहीं थी।

अमेरिका, कांग्रेस, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम और भारत के खिलाफ साजिश। इस पर एक नजर-

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने 1992 में भारत के अंतरिक्ष पर लगाई थी रोक
1992 में एक सीनेटर के तौर पर जो बाइडन ने भारत को रूस की मदद रोक दी थी। जिसमें रूस भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए क्रायोजेनिक इंजन बनाने में भारत की मदद करने पर सहमत हो गया था। अब अमेरिकी राष्ट्रपति और तत्कालीन (1992) डेलावेयर से सीनेटर, जोसेफ आर बिडेन ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन तकनीक से वंचित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो भारत के भारी-भरकम रॉकेटों की जीएसएलवी श्रृंखला को शक्ति प्रदान करती। जीएसएलवी श्रृंखला के रॉकेट 2 और 4 टन के बीच के पेलोड को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में लॉन्च करने के लिए हैं, यह इस वर्ग का सबसे भारी रॉकेट है, जो भारत के मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन गगनयान को भी लॉन्च करेगा।

1994 में CIA ने नंबी नारायण को झूठे मामले में फंसाया
लेकिन भारत ने अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम जारी रखा। 1994 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA ने वैज्ञानिक नंबी नारायण और उनकी टीम पर झूठे आरोप लगाकर सभी अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नष्ट कर दिया और एक तरह से भारत अंतरिक्ष कार्यक्रम में 20 साल से भी पीछे पहुंच गया। नंबी नारायण के अनुसार, जिस व्यक्ति ने उन्हें फर्जी मामले में फंसाया था, उसमें कुछ अन्य लोगों के अलावा आरबी श्रीकुमार भी शामिल थे।

नंबी नारायण को फंसाने में हामिद अंसारी का करीबी शामिल
पूर्व रॉ (RAW) अधिकारी एनके सूद के अनुसार, एक अन्य व्यक्ति भी शामिल था जिसका नाम रतन सहगल था। वह उस समय आईबी में थे और सीआईए के लिए काम कर रहे थे। वह पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के भी काफी करीबी थे।

1995 में हिलेरी क्लिंटन राजीव गांधी फाउंडेशन के कार्यक्रम में विशेष अतिथि
1995 में प्रथम महिला हिलेरी क्लिंटन दिल्ली में राजीव गांधी फाउंडेशन के कार्यक्रम में विशेष अतिथि थीं। जहां उन्होंने अमेरिका और भारत में गैर सरकारी संगठनों के लिए 100 मिलियन अनुदान के एक नए कार्यक्रम की घोषणा की। 1997 में क्लिंटन परिवार ने राजीव गांधी फाउंडेशन जैसा एनजीओ क्लिंटन फाउंडेशन बनाया। इसके बाद दोनों का एक खास गठजोड़ हो गया। क्लिंटन फाउंडेशन के लिए दानदाताओं में Daw Chemicals (भोपाल गैस कांड का आरोपी) और फाइजर सहित अन्य शामिल हैं।

2001 में जो बाइडन ने सोनिया गांधी की मेजबानी की
2001 में सोनिया गांधी ने अमेरिका का दौरा किया और जो बाइडन ने उनके लिए दोपहर के भोजन की मेजबानी की। क्लिंटन और बाइडन दोनों डेमोक्रेटिक पार्टी से हैं।

एसबी श्रीकुमार ने गुजरात दंगे में पीएम मोदी को फंसाने की कोशिश की
2000 में एसबी श्रीकुमार का तबादला गुजरात पुलिस में हो गया। गुजरात में 2002 के दंगों के बाद श्रीकुमार ने पीएम मोदी को दंगों के मामलों में फंसाने की पूरी कोशिश की। 2017 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद, उन्हें तीस्ता सीतलवाड़ और कांग्रेस द्वारा पीएम मोदी के खिलाफ पेश किया गया था।

तीस्ता सीतलवाड, संत चटवाल और पद्म भूषण!
तीस्ता सीतलवाड को फोर्ड फाउंडेशन और भारतीय मूल के अमेरिकी चटवाल ​​परिवार से कई बार दान मिला। संत चटवाल ​​1994 में बैंक ऑफ इंडिया से धोखाधड़ी करने के लिए वांछित अपराधी था, लेकिन अमेरिका में वह क्लिंटन फाउंडेशन का ट्रस्टी था और क्लिंटन परिवार का बहुत करीबी था। विकीलीक्स के मुताबिक, संत चटवाल ​​ने 2008 के वोट कांड में अकाली दल के सांसदों को खरीदने की कोशिश की थी। 2011 में संत चटवाल ​​को तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण मिला!

संत चटवाल ​​भारतीय अमेरिकी डेमोक्रेट के अध्यक्ष
जब 2020 में जो बाइडन अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो संत चटवाल ​​भारतीय अमेरिकी डेमोक्रेट के अध्यक्ष थे।

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