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फलों और सब्जियों का प्रमुख उत्पादक होने के बाद भी भारत क्यों बना रहा फिसड्डी? पीएम मोदी के विजन से अब फलों का निर्यात तीन गुना बढ़ा

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भारत विश्वभर में आम, केला, आलू तथा प्याज जैसे फलों और सब्जियों का प्रमुख उत्पादक है। सब्जियों की बात करें तो अदरक और भिंडी के उत्पादन में भारत पहले स्थान पर है। आलू, प्याज, फूलगोभी, बैगन तथा पत्ता गोभी आदि के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान रखता है। लेकिन जब बात निर्यात या वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी की आती है तो इसमें भारत बहुत पीछे है। सब्जियों और फलों के वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी महज 1 फीसदी के आस-पास है। इसकी प्रमुख वजह यह रही है कि आजादी के बाद 75 सालों तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस की सरकार ने देश के समग्र विकास पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। जबकि फलों और स​​ब्जियों की विशाल उत्पादन क्षमता भारत को निर्यात के लिए सुनहरा अवसर प्रदान करती है। वर्ष 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समूचे भारत के विकास पर जोर दिया और उन्होंने हर उस सेक्टर की पहचान की जिसमें भारत बेहतर कर सकता है। यही वजह है कि आज भारत रक्षा क्षेत्र से लेकर कृषि निर्यात में सफलता के नए झंडे गाड़ रहा है। पिछले आठ साल में भारतीय फल पपीता और खरबूजे के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2013-2014 के अप्रैल-सितंबर में इन दोनों फलों का निर्यात जहां 21 करोड़ रुपये का होता था वहीं अब अप्रैल-सितंबर वर्ष 2022-2023 में यह तीन गुना बढ़कर 63 करोड़ रुपये का हो गया है।

वर्ष 2021-22 में भारत ने 11,412.50 करोड़ रुपये के फलों और सब्जियों का निर्यात किया

कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक आकलन के अनुसार वर्ष 2021-22 में भारत ने 11,412.50 करोड़ रुपये के फलों और सब्जियों का निर्यात किया था। जिसमें फलों की हिस्सेदारी 5,593 करोड़ रुपये और सब्जियों की हिस्सेदारी 5,745.54 करोड़ रुपये की थी। फलों के निर्यात में अंगूर, अनार, आम, केले और संतरे की बड़ी हिस्सेदारी है। इसी तरह से सब्जियों के निर्यात में आलू, प्याज, टमाटर और हरी मिर्च की हिस्सेदारी अधिक है।

भारतीय सब्जियों की बढ़ रही मांग

सब्जियों की बात करें तो प्याज, हरी सब्जियां, आलू और हरी मिर्च का देश से बहुतायत में निर्यात किया जाता है। भारत से सब्जियों को बांग्लादेश, युएई, नेपाल, मलेशिया, यूके, श्रीलंका, ओमान और कतर भेजा जाना आम बात है। भारत में उत्पादित सब्जियों की मांग वैश्विक तौर पर बढ़ रही है। इसके बावजूद भारत का शेयर केवल एक प्रतिशत है। हालांकि कृषि क्षेत्र में हो रहे सुधार और आधारभूत संरचनाओं के निर्माण से उम्मीद जतायी जा रही है कि इस क्षेत्र निर्यात में बढ़ोतरी होगी।

भारत में सब्जियों का बड़ा बाजार

किसी भी संस्कृति में सब्जी के बिना भोजन को अधूरा माना जाता है। भारत में 6.66 मिलियन हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। जो कुल कृषि क्षेत्र का मात्र तीन फीसदी है। डायटिशियन के मुताबिक एक व्यक्ति को प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जी की आवश्यकता होती है। पर अभी तक हम उस लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाये हैं। इसलिए भारत में भी सब्जियों का एक बड़ा बाजार हो सकता है. इस क्षेत्र में भी रोजगार के बड़े अवसर प्राप्त हो सकते हैं।

भारत से ताजे फलों और सब्जियों का सबसे अधिक निर्यात इन देशों को किया गया

भारत से ताजे फलों और सब्जियों का सबसे अधिक निर्यात संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, नीदरलैंड, मलेशिया, श्रीलंका, ब्रिटेन, ओमान और कतर को होता है। वहीं प्रसंस्कृत फलों और सब्जियों का सबसे अधिक निर्यात अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, नीदरलैंड, ब्रिटेन और सऊदी अरब को होता है। भारत से फलों और सब्जियों का निर्यात करने वाले देशों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि नीदरलैंड और ब्रिटेन को छोड़कर, भारत के ताजे फल और सब्जियों का निर्यात बड़े पैमाने पर पड़ोसी देशों या आसपास के देशों को हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में सुधार के बाद भारत अंतिम खरीदार तक ताजा फलों और सब्जियों को पहुंचाने के लिए सुदृढ़ और विशाल कोल्ड स्टोरेज नेटवर्क बनाने में, वातानूकुल यातायात व्यवस्था और अन्य जरूरी इंतजाम करने में जुटा है जिससे इन्हें जल्दी खराब होने से बचाया जा सके।

पीएम मोदी ने करवाया उत्पादन के बाद फसल की बर्बादी का अध्ययन

पीएम मोदी ने देश की सत्ता संभालने के बाद यह पता लगाने के लिए अध्ययन करवाया कि फसल की कटाई के बाद कितने अनाज की बर्बादी हो जाती है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015 में भारत में खाद्य हानि का मूल्यांकन करने के लिए आईसीएआर के केंद्रीय फसल कटाई उपरांत इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईपीएचईटी) को एक अध्ययन सौंपा गया था। इस अध्ययन से पता चलता है कि फसल की कटाई के बाद अनाज में हुई हानि 4.65 फीसदी से 5.99 फीसदी के बीच थी। तिलहन और दालों में हानि 3.08 फीसदी से 9.96 फीसदी के बीच थी। मसालों में हानि 1.18 फीसदी से 7.89 फीसदी के बीच थी। पशुधन उत्पाद (दूध, मांस और सब्जियों) में हानि 0.92 फीसदी से 10.52 फीसदी के बीच थी और फलों तथा सब्जियों में हानि 4.58 फीसदी से 15.88 फीसदी के बीच थी। लघु किसान कृषि व्यवसाय कंसोर्टियम (एसएफएसी) द्वारा 29 वस्तुओं के समूह का मूल्यांकन करने के लिए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा के खेतों में भ्रमण पर आधारित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि नाशपाती के मामले में सबसे ज्यादा नुकसान 22-44 फीसदी हुआ था और तरबूज के मामले में सबसे कम 7-11 फीसदी नुकसान हुआ था।

कोल्ड-चेन और अन्य संसाधनों को किया जा रहा सुदृढ़

वर्ष 2015 में एनसीडीडी द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में खराब होने वाली वस्तुओं के परिवहन के लिए आवश्यक आधुनिक भंडारण बुनियादी ढांचे की कमी है। अब इस कमी को पूरा करने के लिए पीएम मोदी के निर्देश पर तेजी से काम किया जा रहा है। जब एकीकृत पैक हाउसों की बात आती है तो पैक हाउस रीफर वैन की देश में कमी है। केवल कोल्ड स्टोरेज (थोक और हब दोनों) के मामले में कुछ स्थिति अच्छी थी लेकिन खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह कोल्ड स्टोरेज इस बात का आश्वासन नहीं देते है कि खराब होने वाली वस्तुएं भंडारण के दौरान खराब नहीं होंगी। अब इसमें पहले की तुलना में बहुत सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी देश में एकीकृत पैक-हाउस की कमी है, जो कोल्ड चेन में प्रवेश करने के लिए ताजा उपज को इकट्ठा करने और तैयार करने के लिए आवश्यक हैं और इस दिशा में तेजी से कार्य किया जा रहा है।

फलों का शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए नई तकनीक की खोज

भारत से हर साल बड़ी मात्रा में बागवानी फलों और खाद्य पदार्थों का दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है। ऐसे में कई बार कुछ फल ऐसे होते हैं, जो ज्यादा दिन तक नहीं रह पाते हैं, जिनका निर्यात जल्द से जल्द करना होता है। लेकिन अब इन वस्तुओं की शेल्फ लाइफ बढने नई तकनीक की खोज की गई है। जिसके बाद अमेरिका को निर्यात होने वाले फलों के राजा आम, अनार, प्याज. आलू समेत कई फलों और सब्जियों को अब जलमार्ग से भी भेजा जा सकेगा। इससे सबसे ज्यादा किसानों को लाभ होगा और उनकी आय में भी इजाफा होगा। विकिरण पद्धति की मदद से आम की शेल्फ लाइफ बढ़ने के कारण इसे अब जलमार्ग से भी भेजने की शुरुआत की जा रही है। हाल ही में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) ने 16 टन आम जलमार्ग से भेजा, जो 25 दिन में वहां पहुंचा। बार्क के मुताबिक सभी आम ठीक थे और वहां के लोगों ने केसर आम को हाथों-हाथ लिया। इस ट्रायल के बाद अब जलमार्ग से फलों और अन्य खाद्य पदार्थों के निर्यात का रास्ता खुल गया है। आने वाले दिनों में अनार सहित कई और फलों को भी अमेरिका जलमार्ग से भेजा जाएगा।

फलों का शेल्फ लाइफ बढ़ने से रुकेगी खाद्यान्नों की बर्बादी

विकिरण के माध्यम से आम सहित कई खाद्य सामग्रियों का शेल्फ लाइफ को बढ़ाया जा सकता है। देश में तकरीबन 30-40 प्रतिशत खाद्यान्नों का भंडारण सही तरीके से नहीं होने के कारण अनाज, फल सब्जियां खराब हो जाती हैं। विकिरण तकनीक खाद्यान्नों की बर्बादी को रोकने में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इससे आलू, प्याज के अंकुरण को रोका जा सकता है, जिससे 7-8 महीने तक इसे 15 डिग्री तापमान में भी रखा जा सकता है। शेल्फ लाइफ बढने किसानों को लाभ होगा। विकिरण तकनीक के कई लाभ हैं। एक तो इससे अनाज जल्दी खराब नहीं होते, दूसरा भंडारण के मुकाबले खाद्यानों के रखरखाव पर होने वाले खर्च में भी आठ गुना कमी हो सकती है। हालांकि लोगों की आवश्यकताओं को देखते हुए रेडिएशन केन्द्रों की संख्या और बढ़ाई जानी चाहिए।

विकिरण पद्धति से खर्च एक से दो रुपये प्रति किलो

विकिरण के माध्यम से अनाज और दालों में जो कीड़े की समस्या होती है, उसे भी रोका जा सकता है। मसालों में फफूंदी की समस्या या सड़ने की समस्या को भी विकिरण से दूर किया जा सकता है। इससे एक साल तक शेल्फ लाइफ बढ़ाई जा सकती है। इसके साथ इसी विकिरण तकनीक से अनाज की नई किस्में भी तैयार की जा रही है जिससे खाद्य उत्पादन बढ़ रहा है। बार्क ने अबतक 56 किस्में विकसित की है। विकिरण पद्धति से खर्च भी एक से दो रुपये प्रति किलोग्राम आता है।

देश में 25 रेडिएशन प्लांट संचालित

देश में 25 रेडिएशन प्लांट में विकिरण पद्धति से खाद्य पदार्थों की शेल्फ लाइफ बढ़ाई जा रही है। इसमें से चार सरकार द्वारा संचालित हैं। एक रेडिएशन प्लांट स्थापित करने के लिए लगभग 10 करोड़ रुपये का खर्च आता है।

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