Home विचार जब हिंदू आपस में लड़ेगा, तभी ‘युवराज’ प्रधानमंत्री बनेगा?

जब हिंदू आपस में लड़ेगा, तभी ‘युवराज’ प्रधानमंत्री बनेगा?

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हिंदू समुदाय को आपस में बांटने और दूसरे समुदाय विशेष को शह देकर भड़काने की कांग्रेस पार्टी की पुरानी नीति है। कर्नाटक में चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने फिर एक बार हिंदुओं को बांटने का खेल खेला है। लिंगायत समाज को अलग धर्म का दर्जा दिया जाना बहुसंख्यक हिंदू समाज को बांटने की साजिश है।

दरअसल कांग्रेस का बस चले तो लिंगायत क्या, हिन्दू धर्म में जितनी जातियां हैं सबको अलग-अलग धर्म बना दे। चुनाव जीतने के लिए वह  गुप्ता, शर्मा, यादव, सक्सेना,  श्रीवास्तव, सिंह सबको अलग-अलग धर्म की मान्यता दे सकती है, लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि हिंदू समुदाय लगातार कांग्रेस की इन चालों का शिकार भी होता जा रहा है।

‘Divide and rule’  की साजिश रच रहे ‘शिवभक्त’ राहुल
कब कितना और कहां फूट डालना है… यह कांग्रेस को पता है, इसलिए ही चुनाव जीतने के पहले कर्नाटक के अलग झंडे को मान्यता दी, वहीं भगवान शिव की उपासना करने वालों को भी कर्नाटक की सरकार ने अलग धर्म का दर्जा दे दिया। खुद को शिव भक्त कहने वाले राहुल को क्या ये नहीं पता है कि भगवान शिव में हिंदुओं की असीम आस्था है, फिर शिव के उपासक लिंगायत हिंदू समुदाय से अलग कैसे है?    

राजनीति के लिए लिंगायत को अलग धर्म का दिया दर्जा
दरअसल कांग्रेस की सरकारें पिछले 70 वर्षों से लगातार यही तो करती रही है, कर्नाटक सरकार ने तो बस कांग्रेस की इसी नीति को आगे बढ़ाया है। सिद्धारमैया ने चुनावी राजनीति को भांपते हुए ही वर्ष 2017 में ही सिद्धारमैया सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस नागामोहन दास की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। चुनाव की घोषणा से ठीक पहले इस समिति ने लिंगायत समुदाय के लिए अलग धर्म के साथ अल्पसंख्यक दर्जे की सिफारिश कर दी और अब सिद्धारमैया कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। राजनीति की चाल यह कि अब इसे केंद्र सरकार के पास मंजूरी के लिए भी भेज दिया गया है। 

लिंगायत को धर्म मानने की कांग्रेसी राजनीति समझिये
कर्नाटक में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं इस कारण लिंगायतों को हिंदू समाज से बांट कर राजनीतिक साजिश रची गई है। गौरतलब है कि समुदाय की कर्नाटक में करीब 18 प्रतिशत आबादी है जो कि परंपरागत रूप से भारतीय जनता पार्टी को समर्थन करती है। इस बार बीजेपी ने लिंगायत समुदाय के ही सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी घोषित किया है। जाहिर है वर्तमान केंद्र सरकार हिंदू समुदाय को समग्रता में देखती है, ऐसे में मना करने पर उन्हें राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ सकता है और इसका सीधा लाभ कांग्रेस को मिल सकता है।   

वीरशैव और लिंगायत समुदाय में फूट की बीज डाली
सिद्धारमैया के लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की सिफारिश को अपनी मंजूरी देने के साथ ही लिंगायत समुदाय और वीर शैव समुदाय के बीच टकराव की खबरें हैं। एक ही परंपरा से आने वाले दोनों समुदायों भी कांग्रेस ने फूट डाल दी है।  दरअसल बारहवीं सदी में हिंदू समाज के भीतर की कुरीतियों में सुधार करने के लिए ब्राह्मण समुदाय से आने वाले समाज सुधारक बासवन्ना ने लिंगायत समाज की स्थापना की थी। इसी में वीरशैव भी है जो परंपरागत रूप से अन्य हिंदू देवी-देवताओं को भी मानते हैं जबकि लिंगायत समुदाय में भगवान शिव को ईष्टलिंग के रूप में पूजने की मान्यता है। हालांकि ये किसी भी प्रकार से हिंदू समुदाय से अलग नहीं हैं, लेकिन लिंगायत को अलग धर्म और वीर शैव को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर सिद्धारमैया ने राजनीतिक गोटी फेंक दी है।

पत्थलगड़ी पर कांग्रेस ने रची सियासत की साजिश
अंग्रेजों ने आदिवासी बहुल इलाकों को अधिसूचित क्षेत्र बनाकर वहां की पारंपरिक सामाजिक व्यवस्था के माध्यम से शासन की नींव डाली थी। अलग-अलग नामों से चल रही ग्राम सभाओं को सरकार ने संदेश पहुंचाने का जरिया बनाया था। 1996 में पेसा कानून आने के बाद लोग अपने गांव की सीमा पर पत्थलगड़ी (शिला गाड़ कर) करके कानून के तहत गांव को मिली शक्ति के बारे में लिखते थे। लेकिन कांग्रेस ने इसे हिंदुओं को तोड़ने के टूल की तरह इस्तेमाल किया है। आदिवासी समुदाय को हिंदुओं से अलग करने की साजिश के तहत अंग्रेजों के इस कानून को समर्थन दिया है। कांग्रेस के नेताओं ने खुलेआम कहा, ”पत्थलगड़ी करना असंवैधानिक नहीं है क्योंकि पत्थलगड़ी आदिवासियों की संस्कृति में शामिल है।”

सरना को अलग धर्म मानने की सियासत को दी हवा
झारखंड में रघुबर दास मंत्रिमंडल ने धर्मांतरण विधेयक-2017 को मंजूरी दी जिसके तहत मूल निवासियों का धर्म परिवर्तन मुश्किल हो गया है, क्योंकि इसमें जबरन धर्म परिवर्तन कराने वालों के विरूद्ध कठोर सजा का प्रावधान है। दरअसल कांग्रेस बड़े पैमाने पर आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तन होने के लिए समर्थन करती रही है। अब कांग्रेस आदिवासियों के वर्ग को भड़काकर सरना धर्म को मान्यता देने की बात उछाल रही है।

दरअसल झारखंड में बड़े पैमाने पर आदिवासियों को ईसाई बनाया जा रहा है। प्रदेश की आबादी में आदिवासियों की जनसंख्या 26 प्रतिशत है, इनमें अब 14 प्रतिशत लोग ईसाई धर्म को मानने लगे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या में 29 प्रतिशत, इस्लाम धर्म के मानने वालों की संख्या में 28.4 प्रतिशत और हिंदू धर्म के मानने वालों की संख्या में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भाजपा जबरन धर्म परिवर्तन का विरोध करती है जबकि कांग्रेस ने इसके लिए अपने सहयोगी बाबू लाल मरांडी को भी अपने साथ मिला लिया है। आप समझ सकते हैं कि कांग्रेस को मिर्ची लगने का कारण क्या हो सकता है?

दलितों को उकसाकर बौद्ध बनाने की साजिश रची
साल 2016 के जुलाई में गुजरात के ऊना में वशराम, रमेश, अशोक और बेचार नाम के व्यक्ति को कथित गौरक्षकों ने पीटा था। इसमें कांग्रेस की साजिश के सबूत भी सामने आए थे, लेकिन इसे अब सियासत का जरिया बनाकर कांग्रेस आपनी वोट बैंक की राजनीति साधने में लगी है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि ये चारों लोग 14 अप्रैल को बौद्ध धर्म अपना लेंगे। हालांकि इन सबके बीच यह जानना जरूरी है कि जो लोग इन्हें भड़का रहे हैं उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाने का एलान नहीं किया है, लेकिन कांग्रेस इन चारों को प्रतीक के तौर पर दिखाना चाह रही है कि हिंदू धर्म में काफी भेदभाव है।

ईसाई धर्म को बढ़ाने के लिए साजिश रच रहे राहुल
कांग्रेस के कार्यकाल में ईसाई धर्म का लगातार विस्तार होता जा रहा है। देश में ईसाइयों की आबादी 2.78 करोड़ है। कभी चंद हजार ईसाई की संख्या थी परन्तु आज 2.80 करोड़ से अधिक ईसाई हैं। दरअसल कांग्रेस ने हमेशा से ईसाई धर्म को बढ़ाने के लिए कार्य किए हैं और हिंदुओं का विभाजन कर इस कार्य को अंजाम देते रहे हैं। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल से ही सोनिया गांधी ने पूर्वोत्तर में ईसाई मिशनरियों के फैलने में मदद की जिसने उन क्षेत्रों में आबादी का संतुलन ही बिगाड़ दिया। इसी का परिणाम है कि आज मेघालय में 75 प्रतिशत, मिजोरम में 87 प्रतिशत, नागालैंड में 90 प्रतिशत, सिक्किम में 8 प्रतिशत और त्रिपुरा में 3.2 प्रतिशत ईसाई आबादी हो गई है। इस साजिश को अंजाम देने के लिए कांग्रेस ने कभी माफी नहीं मांगी। वहीं केरल में भी करीब 24 प्रतिशत आबादी ईसाईयों की है। 

भगवा रंग को आतंकवाद से जोड़कर किया अपमान
जिस हिंदू संस्कृति और सभ्यता की सहिष्णुता को पूरी दुनिया सराहती है, उसे भी बदनाम करने में कांग्रेस ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 2007 में हुए समझौता एक्सप्रेस धमाके के संदिग्ध पाकिस्तानी आरोपी को साजिश के तहत छोड़ दिया गया और उनके स्थान पर निर्दोष हिन्दुओं को गिरफ्तार किया गया। समझौता विस्फोट में कांग्रेस को राजनीतिक लाभ पहुंचाने के लिए सोनिया गांधी, अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, शिवराज पाटिल और सुशील कुमार शिंदे ने हिंदू आतंकवाद का जाल बुना और एक पूरे के पूरे समुदाय को बदनाम किया।

जाहिर है कांग्रेस हिंदुओं को टुकड़ों में बांटकर और अपमानित कर अपनी राजनीति तो चमका ही रही है, साथ ही हिंदुओं को इस देश से जड़ मूल से सफाये का बड़ा षडयंत्र भी रच रही है। हिंदुओं को जातियों और समुदाय में बांटने का कांग्रेस का यह षड्यंत्र कामयाब हो गया तो राजनीति तो अवश्य जीत जाएगी, लेकिन सनातन धर्म और भारत देश जरूर हार जाएगा।

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