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आसान नहीं था इस्‍लामिक स्‍टेट के गढ़ में जाकर 39 भारतीयों के बारे में जानकारी जुटाना

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अशांत इराक में इस्‍लामिक स्‍टेट के गढ़ मोसुल में जाकर अपहृत 39 भारतीयों के बारे में जानकारी जुटाना कोई आसान काम नहीं था। वह भी तब जब उनके बारे में भारत या इराकी सुरक्षा बलों के पास कोई पुख्ता सुराग नहीं हो। मोसुल और आसपास के इलाके में इस्लामिक स्टेट का नियंत्रण होने के कारण वहां से कोई जानकारी निकल कर आ भी नहीं पा रही थी। भारतीय अधिकारियों की लगातार कोशिश थी कि किसी तरह अपहृत लोगों या अपहरणकर्ताओं से संपर्क हो जाए। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने मोसुल और बगदाद की यात्राएं की और इराक के गांवों तक पहुंचे। इस दौरान जनरल सिंह को गांव के छोटे कमरे में जमीन पर भी सोना पड़ा।

डीएनए सैंपल से हुई पहचान 
विदेश राज्यमंत्री समेत भारतीय अधिकारी इराक में जब इन लोगों को ढूंढ रहे थे, तो बदुश गांव में एक शख्स से गांव के पास एक पहाड़ पर कई लोगों के दफनाए जाने के बारे में पता चला। इसके बाद उन्होंने वहां डीप पेनीट्रेशन रडार की मांग की। डीप पेनिट्रेशन राडार से पता चला कि पहाड़ में कई लाशें दफन हैं। भारत सरकार के कहने पर यहां पूरा पहाड़ खुदवाया गया। वहां से अवशेषों में लंबे बाल, कड़ा और आईडी कार्ड्स मिले। इन शवों को डीएनए जांच के लिए बगदाद भेजा गया। इसके बाद अपहृत भारतीयों के परिवार के लोगों के डीएनए मंगाए गए। इराकी प्रशासन, मार्टियर्स फाउंडेशन और रेड क्रॉस की मदद से मारे गए लोगों के डाटाबेस से डीएनए नमूमों का मिलान शुरू हुआ। डीएनए सैंपल से शवों की पहचान हुई।

सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में की पुष्टि
इसके साथ ही 2014 में अपहृत इन 39 भारतीयों के मारे जाने की पुष्‍टि हो गई है। विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने मंगलवार को राज्‍यसभा में इसकी पुष्‍टि की। इसके पहले सुषमा स्‍वराज ने पिछले साल जुलाई में लोकसभा में कहा था कि, ‘बिना ठोस सबूत के वे 39 भारतीयों को मृत घोषित नहीं कर सकतीं। बिना सबूत के किसी को मृत करार देना पाप है। मैं यह पाप नहीं करूंगी।’ अब 39 भारतीयों के मारे जाने की पुष्टि करते हुए सुषमा स्वराज ने राज्यसभा में कहा कि लापता भारतीयों को खोजने के लिए मेरे सहयोगी जनरल वीके सिंह ने बहुत मशक्कत की। उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहूंगी जिन्होंने 3 वर्षों तक मुझे जांच जारी रखने दिया।

इराक संकट हो या बाढ़-भूकंप या फिर कोई और प्राकृतिक आपदा… प्रधानमंत्री मोदी फैसले लेने में कतई देर नहीं करते हैं।

यमन संकट: एक फोन और बदल गई 7,000 लोगों की दुनिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक फोन कॉल और बदल गई करीब सात हजार लोगों की दुनिया। प्रधानमंत्री मोदी ने सऊदी अरब के शाह को एक फोन किया और फिर शुरू हो गया यमन में युद्ध की विभिषिका के बीच फंसे हजारों लोगों के लिए ‘ऑपरेशन राहत’। बात एक अप्रैल, 2015 की है। तब प्रधानमंत्री ने रियाद में शाह को सीधे कॉल कर एक हफ्ते के लिए बमबारी रोकने को कहा। सऊदी शाह एक हफ्ते तक सुबह नौ बजे से 11 बजे तक बमबारी रोकने पर राजी हो गए। जिसके बाद यमन से 4,800 से अधिक भारतीयों और 1,972 विदेशियों को सुरक्षित निकालने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों ने ‘ऑपरेशन राहत’ शुरू किया था।

बम गोलों और गोलियों के बीच हिंसाग्रस्त देश से भारतीयों को सुरक्षित निकालना मुश्किल लग रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का कुशल नेतृत्व और विदेश राज्यमंत्री जनरल (रि) वीके सिंह के प्रबंधन और अगुवाई ने कमाल कर दिया। भारतीय नौसेना, वायुसेना और विदेश मंत्रालय के बेहतर समन्वय से भारत के सभी नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया। इसके अलावा 25 देशों के सैकड़ों नागरिकों की भी जान बचाने में भारत को कामयाबी मिली। इस सफलता ने दुनिया को विश्वमंच पर भारत का लोहा मानने के लिए मजबूर कर दिया ।

मालदीव के लोगों की प्यास बुझाई
दिसंबर 2014 में मालदीव का वाटर प्लांट जल गया और पूरे देश में पीने के पानी की किल्लत हो गई। वहां त्राहिमाम मच गया और आपातकाल की घोषणा कर दी गई। तब भारत ने पड़ोसी का फर्ज अदा किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्वरित फैसला लिया। मालदीव को पानी भेजने का निर्णय कर लिया गया और इंडियन एयर फोर्स के 5 विमान और नेवी शिप के जरिये पानी पहुंचाया जाने लगा।

नेपाल भूकंप में राहत का अद्भुत उदाहरण
27 अप्रैल, 2015 को नेपाल की धरती में हलचल हुई और आठ हजार से ज्यादा जानें एक साथ काल के गाल में समा गईं। जान के साथ अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ सो अलग। हलचल नेपाल में हुई लेकिन दर्द भारत को हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई और नेपाल के लिए भारत की मदद के द्वार खोल दिए। नेपाल में जिस तेजी से मदद पहुंचाई गई वो अद्भुत था। भारतीय आपदा प्रबंधन की टीम ने हजारों जानें बचाईं। सबसे खास रक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय का नेपाल सरकार से बेहतरीन समन्वय रहा। प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल की पूरे विश्व ने सराहना की।

अफगानिस्तान में भूकंप में राहत
अक्टूबर 2015 को अफगानिस्तान-पाकिस्तान में 7.5 तीव्रता के भूकंप के चलते 300 लोगों के मौत हो गई। पीएम मोदी ने तत्काल दोनों देशों को मदद की पेशकश की। अफगानिस्तान में भारतीय राहत टीम को बिना देर किए रवाना किया गया और मलबे में फंसे सैकड़ों लोगों को निकालने में सफलता पायी।

सऊदी अरब में फंसे हजारों भारतीयों को निकाला
सऊदी अरब में गलत हाथों में जाकर फंसे करीब 20 हजार भारतीय तीन महीने के भीतर अपने वतन वापस लौट पाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के प्रयास से सऊदी अरब सरकार ने भारतीयों को 90 दिन के लिए ‘राजमाफी’ दी है। ‘राजमाफी’ के तहत 20 हजार से ज्यादा लोगों ने भारत लौटने के लिए अर्जी दाखिल की थी।

बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए भेजी राहत
सितंबर,2017 में भारत ने बांग्लादेश में म्यांमार से आए रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए राहत सामग्री भेजी थी। बांग्लादेश के मदद मांगने पर बिना देर किए भारत ने चावल, गेहूं, दाल, चीनी, नमक, खाद्य तेल, नूड्ल्स, बिस्किट, मच्छरदानी वगैरह की पहली खेप के साथ वायु सेना का विमान भेज दिया। विदेश मंत्रालय की निगरानी में ‘ऑपरेशन इंसानियत’ नाम से वहां राहत कार्यक्रम चलाया गया।

श्रीलंका ईंधन संकट: संकटमोचक बनी मोदी सरकार
श्रीलंका को नवंबर, 2017 में पेट्रोल और डीजल की जबरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ा। श्रीलंका में ईंधन की कमी के बीच राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बताया कि भारत, श्रीलंका को अतिरिक्त ईंधन भेज रहा है और विकास में सहयोग के लिए भारत के सतत समर्थन का भरोसा भी दिलाया। इसके पहले मई,2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकटग्रस्त श्रीलंका के लिए राहत भेजी थी। यहां दक्षिण-पश्चिम मॉनसून ने भारी तबाही मचायी थी, जिसमें 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए थे और 90 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।

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