एक ओर जहां पीएम मोदी शानदार और ऐतिहासिक तरीके से अपने तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ मना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी पारी की नैय्या सिर्फ छह महीनों में ही डगमगाने लगी है। दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में उनके विरोधी से लेकर उनके समर्थक तक, एक बात पर आम सहमति रखते हैं कि ट्रंप अन्प्रिडिक्टेबल हैं। यानी वो आगे क्या करेंगे, किसी की छोड़िए, उनको खुद को भी पता नहीं होता। जनवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर बैठने के बाद से ट्रंप ने टैरिफ से लेकर डिपोर्टेशन तक, तमाम मुद्दों पर ऐसे स्टैंड लिए हैं जिसकी उम्मीद शायद ही किसी ने आज से 6 महीने पहले लगाई थी। कमाल है कि ट्रंप अपने उन फैसलों पर टिके रहेंगे, इसका भी कोई दावा नहीं कर सकता। वो अपने अतरंगी बयानों की तरह ही फैसले लेने के बाद उससे यूटर्न लेने के लिए भी जाने जाते हैं। एक तरफ उनके कई फैसले कोर्ट में पलटे जा चुके हैं, वहीं दोस्त एलन मस्क और करीबी सलाहकारों के इस्तीफों से उनकी पकड़ कमज़ोर हुई है। विदेश नीति में भी उन्हें कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है। चीन, रूस, ईरान और भारत जैसे देश अब उनकी बातों को पहले जैसी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
ट्रंप की आर्थिक नीतियां अमेरिका के लिए खतरे की घंटी राष्ट्रपति ट्रंप की इन फ्लिप-फ्लॉप पॉलिसी का सबसे बड़ा असर अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर देखने को मिल रहा है। हालांकि पहली मार अमेरिका को ही लगती साफ-साफ नजर आ रही है। जेपी मॉर्गन चेज के मुख्य कार्यकारी (CEO) जेमी डिमन ने ट्रंप प्रशासन की आर्थिक नीतियों के कारण अमेरिका के उभरते ऋण बाजार संकट के खतरे पर चिंता व्यक्त की है। इसके अलावा जेमी डिमन ने फॉक्स बिजनेस नेटवर्क के “मॉर्निंग्स विद मारिया” शो में अपनी बात रखी है। उन्होंने इस इंटरव्यू में मारिया बार्टिरोमो को बताया कि “यह (ऋण बाजार संकट) एक बहुत बड़ी बात है। यह एक वास्तविक समस्या है। निश्चित रूप से बॉन्ड बाजार में कठिन समय आने वाला है। मुझे नहीं पता कि यह छह महीने में आएगा या फिर इसके बाद आएगा। लेकिन ट्रंप की आर्थिक नीतियों के चलते इसका आना लगभग तय हो रहा है।
ट्रंप के नए व्यापार टैरिफ अमेरिका को मंदी की ओर ले जाएंगे
डोनाल्ड ट्रंप जब दूसरी बार व्हाइट हाउस लौटे, तो उनके समर्थकों ने इसे ‘ट्रंप 2.0’ का नाम दिया। उम्मीद थी कि इस बार ट्रंप पुराना हिसाब-किताब चुकता करेंगे और अमेरिका को फिर से महान बनाने के दूरगामी फैसलों को अंजाम देंगे। लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल उलट साबित हो रही है। महज 6 महीने में ही ट्रंप की दूसरी पारी लड़खड़ाती नजर आ रही है। ना विदेश नीति में कोई बड़ी सफलता मिल पा रही है, ना अंदरूनी राजनीति में कोई स्थिरता है। उनके दोस्त एलन मस्क ने भी कहा कि डोनाल्ड ट्रंप के नए व्यापार टैरिफ इस साल की दूसरी छमाही तक मंदी को बढ़ावा दे सकते हैं। अगर अमेरिका की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाती है, तो बाकी कुछ भी मायने नहीं रखता। ट्रंप और मस्क के बीच टकराव ने वित्तीय बाजारों में हलचल मचा दी है। टेस्ला के शेयर में 14 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई, जिससे मार्केट वैल्यू में लगभग 150 बिलियन डॉलर की गिरावट आई है।
आइए जानते हैं, आखिर वो कौन-कौन सी वजहें हैं जिनकी वजह से ट्रंप का दूसरा कार्यकाल शुरुआत में ही पटरी से उतरता दिख रहा है…
This is not ok pic.twitter.com/feOtg6f6ge
— Elon Musk (@elonmusk) June 9, 2025
लॉस एंजेलिस में गृहयुद्ध के हालात, आगजनी और हिंसा
अमेरिकी राष्ट्रपति की मनमानी नीतियों का विरोध घर में तेज हो गया है। कैलिफोर्निया राज्य के लॉस एंजिलिस में अप्रवासियों को बाहर निकालने की ट्रंप सरकार की इमिग्रेशन पॉलिसी के खिलाफ पिछले दिनों से हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। हिंसा में अब तक दो लोगों की मौत हो चुकी है। सैकड़ों गाड़ियों को जला दी गई हैं। कई प्रदर्शनकारी अमेरिकी झंडे पर थूकते नजर आए। राष्ट्रपति डोनाल्ड ने आदेश दिया है कि जो लोग प्रदर्शन के दौरान मास्क पहन रहे हैं, उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया जाए। प्रदर्शनकारी मास्क पहनकर सड़कों पर उतर रहे हैं ताकि वे सुरक्षा कैमरों से बच सकें। ट्रंप ने सोशल मीडिया पर लिखा कि शहर पर अप्रवासियों का कब्जा है, इसे जल्द आजाद कराया जाएगा। ट्रंप ने लॉस एंजिलिस में फैली हिंसा और तोड़फोड़ के बाद वहां तैनात किए गए नेशनल गार्ड के जवानों की तारीफ भी की है। ये जवान आमतौर पर राज्य के गवर्नरों के आदेश पर बुलाए जाते हैं, लेकिन इस बार ट्रम्प ने खुद उनकी तैनाती कर दी। कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूजम का कहना है कि लॉस एंजिलिस में नेशनल गार्ड्स की तैनाती के खिलाफ राज्य सरकार ट्रंप पर केस कर दिया है।
डोनाल्ड ट्रंप ने मनमाने फैसले लिए, फिर खुद ही पलटे
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाने जाते थे, लेकिन इस बार उन्होंने खुद ही अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है। उन्होंने अपनी तरकश से ट्रंप टैरिफ का जो तीर निकाला, वह लगता है बूमरेंग होकर उन्हें ही जख्मी कर रहा है। पहले ट्रंप ने चीन पर भारी टैरिफ लगाए, लेकिन अमेरिका की ट्रेड कोर्ट ने उन्हें रद्द कर दिया। कहा गया कि ट्रंप ने अपनी सत्ता की सीमाएं लांघी हैं। इसी तरह, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों के दाखिले पर रोक लगाने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट ने इस आदेश को “संविधान के खिलाफ” बता कर पलट दिया।
राष्ट्रपति ट्रंप के कई आदेशों को अदालत से मिला है झटका
इतना ही नहीं, ट्रंप के मौजूदा कार्यकाल में अब तक अदालतें उनके सौ से ज्यादा आदेशों पर रोक लगा चुकी हैं। खुद ट्रंप ने अपने 11 बड़े फैसले वापस लिए हैं जैसे जन्मसिद्ध नागरिकता खत्म करने का प्रस्ताव, संघीय कर्मचारियों की सामूहिक छंटनी, और विदेश सहायता रोकने की कोशिश। ऐसा लगने लगा है कि ट्रंप की “मैं कर दूंगा” वाली राजनीति अब अदालतों और संविधान के आगे बेबस हो गई है। जब राष्ट्रपति के भरोसेमंद लोग ही इस्तीफा देने लगें, तो ये किसी भी प्रशासन के लिए खतरे की घंटी होती है। ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वॉल्ट्ज और उनके डिप्टी एलेक्स वोंग ने इस्तीफा दे दिया है। आरोप था कि वॉल्ट्ज ने यमन में अमेरिकी कार्रवाई की जानकारी लीक की थी। वहीं एक और बड़ा नाम विवेक रामास्वामी, जो ट्रंप प्रशासन के “गवर्नमेंट एफिशिएंसी विभाग” (DOGE) के अधिकारी थे, उन्होंने भी पद छोड़ दिया है। कहा गया कि उनके फैसले के पीछे एलन मस्क की भूमिका रही, जो पहले ट्रंप के खास माने जाते थे। हालांकि हाल ही में अब मस्क ने भी ट्रंप से दूरी बना ली है। इस सबका सीधा मतलब है कि महज 6 महीने में ही ट्रंप अब अपने ही कैंप में अकेले पड़ते जा रहे हैं।
भारत समेत कई देशों के साथ बिगड़ते चले जा रहे हैं रिश्ते
ट्रंप की दूसरी पारी की सबसे बड़ी नाकामी उनकी लगातार गिरती अंतरराष्ट्रीय साख है। भारत को झुकाने के लिए ट्रंप ने कई चालें चलीं, लेकिन नतीजा उल्टा निकला। भारत ने ट्रंप की बातों को झूठा बताया है। ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका की मध्यस्थता से भारत-पाक तनाव कम हुआ, लेकिन भारत सरकार ने इस दावे को खुलेआम नकार दिया। चीन पर भारी टैरिफ लगाने के बाद चीन ने अपने ट्रेड पार्टनर्स बढ़ा लिए। इनोवेशन में निवेश तेज़ किया और अमेरिकी दबाव को झेलने की तैयारी कर ली। रूस-यूक्रेन विवाद सुलझाने की ट्रंप की कोशिशें भी बेअसर रहीं। पुतिन अपने स्टैंड पर अडिग हैं और ट्रंप का डीलमेकिंग वाला अंदाज यहां चल नहीं पाया। यूक्रेन के राष्ट्रपति जैलेंस्कीं तो ट्रंप के ऑफिस में ही ट्रंप कैबिनेट के साथियों को हड़का आए। ईरान की बात करें तो ट्रंप के पहले कार्यकाल में न्यूक्लियर डील से बाहर निकलने के बाद यूरोप भी उनसे नाराज हो गया था। अब उनकी ‘मैक्सिमम प्रेशर’ नीति बेअसर है और ईरान बातचीत की टेबल पर आने को तैयार नहीं है।ट्रंप का सपोर्ट नहीं किया होता तो चुनाव नहीं जीत पाते – एलन
दुनिया के 2 पावरफुल लोग, टेस्ला प्रमुख एलन मस्क और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच तकरार चरम पर पहुंच गई है। कुछ महीने पहले की बात है जब मस्क ट्रंप के सबसे नजदीकी सहयोगी माने जा रहे थे। मस्क को DOGE का प्रमुख चुना गया, जिसका मकसद सरकार की एफिशिएंसी बढ़ाने और खर्च घटाने का है। 30 मई को मस्क का DOGE के चीफ के तौर पर आखिरी दिन था। उसके बाद आखिर ऐसा क्या हो गया कि मस्क ने ट्रंप के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग तक कर डाली है और एक अलग पॉलिटिकल पार्टी बनाने की भी बात की है। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी के कारण 2025 की दूसरी छमाही अमेरिका में मंदी आ सकती है। उन्होंने इस बात को भी जोर देकर कहा कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में वे ट्रंप का साथ नहीं देते तो उनका जीतना मुश्किल था। रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप और मस्क के बीच संबंध तब और खराब हो गए, जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने एलन की सरकारी सब्सिडी और कॉन्ट्रैक्ट्स को खत्म करने की धमकी दी। यह एक ऐसा कदम है, जो दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के बिजनेस को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। इससे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर प्रभाव दिख सकता है।
एलन की सरकारी सब्सिडी और कॉन्ट्रैक्ट्स को खत्म करेंगे- ट्रंप
इस बीच जून के शुरू में एलन मस्क ने ट्रंप के “big, beautiful bill,” की आलोचना कर दी। 5 जून को आखिरकार ट्रंप ने कहा कि वह मस्क का गवर्नमेंट कॉन्ट्रैक्ट तोड़ देंगे। इसके बाद मस्क ने कहा कि अगर उन्होंने ट्रंप का सपोर्ट नहीं किया होता तो वे चुनाव नहीं जीत पाते। मस्क ने रिपब्लिकन लॉ-मेकर्स से कहा कि ट्रंप का अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर कार्यकाल केवल 3.5 साल बाकी है, जबकि वे अभी 40 साल रहेंगे। इसके अलावा ट्रंप पर गंभीर आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की है। मस्क ने दावा किया है कि ट्रंप का नाम एपस्टीन फाइल्स में है। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, “हमारे बजट, अरबों और अरबों डॉलर में पैसे बचाने का सबसे आसान तरीका एलन की सरकारी सब्सिडी और कॉन्ट्रैक्ट्स को खत्म करना है। मुझे हमेशा आश्चर्य होता था कि बाइडेन ने ऐसा क्यों नहीं किया!”
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों की ‘नो एंट्री’ कोर्ट ने रोकी
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों को बड़ी राहत मिली है। एक फेडरल जज ने राष्ट्रपति ट्रंप के उस फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों के पढ़ने पर रोक लगाई गई थी। ट्रंप ने एक निर्देश के तहत हार्वर्ड में विदेशी छात्रों के एडमिशन पर रोक लगाई थी, जिसे कोर्ट में चुनौती दी गई। अब इस पर जज ने फैसला सुनाया है। दरअसल, हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने ट्रम्प प्रशासन को अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के हार्वर्ड में प्रवेश पर रोक लगाने से रोकने के लिए मुकदमा दायर कर दिया था, लेकिन कोर्ट के एक्शन के ट्रंप को करारा झटका लगा है।
Apple को अपने iPhone भारत में ना बनाने की धमकी दी
दिग्गज टेक कंपनी एपल के टिम कुक अमेरिका में बिकने वाले सभी आईफोन का निर्माण अगले साल से भारत में करने की योजना बना रहे हैं। इससे न सिर्फ मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि वैश्विक विनिर्माण हब बनने की दिशा में भारत की स्थिति मजबूत होगी। लेकिन इससे ट्रंप के निशाने पर iPhone बनाने वाली कंपनी Apple भी आ गई है। Apple चीन के बाद भारत में iPhone बना रही है और लेकिन इस बीच ट्रंप ने धमकी दी थी कि अगर Apple भारत में iPhone बनाने का फैसला करता है तो वह iPhone पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगा देंगे। लेकिन मजे की बात यह सामने आई है कि भारत में बने iPhone पर अगर 25 प्रतिशत का टैरिफ लगा भी दिया जाए तो उसकी कीमत अमेरिका में बने iPhone की कीमत से बहुत कम हो होगी। यह बात ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की एक रिपोर्ट से पता चला है। रिपोर्ट में दावा किया गया था एपल अमेरिका में बिकने वाले 6 करोड़ से ज्यादा आईफोन का उत्पादन 2026 के अंत तक पूरी तरह से भारतीय प्लांट में स्थानांतरित करने जा रही है।
टोटल यूटर्न…एक करोड़ डॉलर के इनामी अल-शरा से ट्रंप मिले
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टोटल यूटर्न का सबसे बड़ा उदाहरण सीरिया के राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से गलबहियां करना भी है। डोनाल्ड ट्रंप ने सऊदी अरब में ये ऐलान किया है कि अमेरिका ने सीरिया से प्रतिबंध हटाने का फैसला लिया है। बता दें कि अल-शरा को पहले अबू मोहम्मद अल जुलानी के नाम से जाना जाता था। जुलानी उर्फ शरा साल 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर आक्रमण के बाद वहां अमेरिकी सेना से लड़ने वाले अल कायदा गुट में शामिल हो गया था। इस गुट को अमेरिका आतंकी संगठन मानता है। अभी भी इराक की अमेरिका समर्थित सरकार ने आतंकवाद के आरोपों में शरा की गिरफ्तारी का वारंट जारी किया हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी अल शरा के अलकायदा से संबंध होने के कारण अमेरिका ने एक समय उनके सिर पर एक करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम भी रखा था।
डील में ट्रंप के परिवार और आर्मी चीफ आसिम मुनीर की संलिप्तता
अमेरिकी राष्ट्रपति भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम का क्रेडिट लेने की कोशिश करते रहे हैं। ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने दोनों देशों को लड़ाई की जगह बिजनेस की पेशकश कर मध्यस्थता कराई। हालांकि, भारत के इस दावे का खंडन करने के बाद ट्रंप को भी कहना पड़ा कि उन्होंने मध्यस्थता नहीं कराई है। लेकिन इस बीच अमेरिकी कंपनी वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल (WLF) की पाकिस्तान के साथ हुई डील ने सभी का ध्यान केंद्रित किया है। WLF एक क्रिप्टोकरेंसी फर्म है, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप के परिवार की 60 फीसदी हिस्सेदारी है। डील में ट्रंप के परिवार और पाकिस्तान आर्मी चीफ आसिम मुनीर की संलिप्तता ने अमेरिकी राष्ट्रपति की हालिया सक्रियता पर सवाल खड़ कर दिए हैं। निजी स्वामित्व वाली अमेरिकी क्रप्टोकरेंसी फर्म और करीब एक महीने पुरानी पाकिस्तान की क्रिप्टो काउंसिल के बीच हुई इस डील में कुछ हाई-प्रोफाइल लोगों की गतिविधियों में तेजी देखी गई है। क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन से जुड़ी फाइनेंशियल टेक उद्यम WLF में राष्ट्रपति ट्रंप के बेटों एरिक और डोनाल्ड जूनियर के साथ-साथ उनके दामाद जेरेड कुशनर की बहुलांश जिम्मेदारी है। वे कुल मिलाकर सामूहिक रूप से कंपनी के 60 प्रतिशत के मालिक हैं।
ट्रंप का पाक प्रेम, आतंक के सप्लायर को बैन से रखा बाहर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में ईरान, अफगानिस्तान समेत 12 देशों पर नए यात्रा प्रतिबंध पर हस्ताक्षर किए। ट्रंप की घोषणा 12 देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश को पूरी तरह से प्रतिबंधित और सीमित करती है। ट्रंप ने इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला दिया है। लेकिन हैरान करने वाली बात है कि ट्रंप प्रशासन ने दुनियाभर में आतंकवाद के सप्लायर पाकिस्तान को इससे बाहर रखा गया है। पाकिस्तान का आतंकी चेहरा पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर में पूरी तरह एक्सपोज कर दिया। इसके बावजूद ट्रंप ने पाक प्रेम दिखाया है। अमेरिका के इस दोहरे रवैये पर एक्सपर्ट सवाल उठा रहे हैं। अमेरिका ने जिन देशों के नागरिकों पर यात्रा प्रतिबंध लगाया है, उनमें अफगानिस्तान, ईरान, म्यांमार, चाड, कांगो गणराज्य, इक्वेटोरियल गिनी, इरीट्रिया, हैती, लीबिया, सोमालिया, सूडान और यमन शामिल हैं।