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मुर्शिदाबाद से पहलगाम तक खतने वाली सोच, हमले से ‘कश्मीरियत’ की हवा निकली, सिंधु ट्रीटी रद्द होने से लेफ्ट लिबरल गैंग की बोलती बंद

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फोटो सोशल मीडिया

कश्मीर घाटी के पहलगाम में द रजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) के आतंकियों ने पर्यटकों पर बेरहमी से गोलियां मारीं…इसलिए नहीं कि वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या एससी थे। उन्होंने नवविवाहित पत्नी के सामने भी उसके पति को बिल्कुल नजदीक से गोली मारी, इसलिए नहीं कि वह कन्नड़, तमिल, हिंदी या उड़िया बोलता था। उन्हें इस बात की भी परवाह नहीं थी कि वह भाजपा का वोटर है, कांग्रेस का वोटर है या सपा का। उन्होंने निर्दोष पर्यटकों को सिर्फ और सिर्फ इसलिए मार डाला, क्योंकि अधिकांश हिंदू के रूप में पैदा हुए थे। वे मुसलमान नहीं थे और इसीलिए ये इनके लिए काफिर थे! इसीलिए पर्यटकों को धर्म पूछ-पूछकर निर्दयता से नरसंहार करने के लिए गोलियां दागी गईं। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से लेकर जम्मू-कश्मीर के पहलगाम तक वही खतने वाली सोच हावी है। वही कट्टर मुस्लिमपरस्ती वाली आतंकी सोच हावी है। उसी हिंदुओं से नफरत करने वाली और उनका नाश करने वाली सोच का नतीजा पहलगाम का आतंकी हमला है। इस हमले और इसकी सच्चाई सामने आने के बाद ना सिर्फ ‘कश्मीरियत’ और ‘जम्हूरियत’ हवा निकली है, बल्कि बड़ा सवाल ये भी है कि अब लेफ्ट लिबरल गैंग इसके लिए कौनसा नया शब्द गढ़ेंगे? इस गैंग के लिए यक्ष प्रश्न ये भी है कि यदि पहलगाम में जो हुआ वो मुस्लिमों ने नहीं आतंकवादियों ने किया है, तो फिर कुछ दिन पहले मुर्शिदाबाद में कौन से आतंकवादी, हिन्दुओं को भगा रहे थे? हमले के तत्काल बाद पीएम मोदी ने विदेशी दौरा बीच में छोड़कर इन आतंकियों को कल्पना से भी परे सजा देने की ठान ली है।

पहलगाम में आतंकियों ने धर्म पूछकर टूरिस्टों को गोली मारी?
कश्मीर घाटी के पहलगाम में 22 अप्रैल की दोपहर करीब 1.30 बजे हुए आतंकी हमले में कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं हैं…
• हमले से जुड़े एक वायरल वीडियो में एक महिला ने रोते हुए कहा, ‘हम भेलपूरी खा रहे थे, तभी साइड से दो लोग आए। उनमें से एक ने कहा कि ये मुसलमान नहीं लगता है। इसे गोली मार दो और उन्होंने मेरे पति को गोली मार दी।’
• न्यूज नेटवर्क CNN-News18 ने सूत्रों के हवाले से लिखा, ‘आतंकियों ने लोगों से कलमा पढ़ने कहा, ताकि वे गोली चलाने से पहले ये जान सकें कि कौन किस धर्म का है। आतंकियों ने टूरिस्टों की पैंट उतरवाई और ID कार्ड भी चेक किया।’
• न्यूज एजेंसी PTI को एक पीड़ित महिला ने बताया, ‘मेरे पति को सिर पर गोली मारी गई। उन्हें मुसलमान न होने की वजह से गोली मारी गई।’
• सूत्रों के मुताबिक, ज्यादातर मारे गए लोग पुरुष हैं। टूरिस्टों को शुरू में पता ही नहीं चला कि क्या हो रहा है, क्योंकि हमलावर सेना की वर्दी पहने हुए थे और मास्क लगाए हुए थे।
• महाराष्ट्र के पुणे की आसावरी पहलगाम में घूमने आई थीं। न्यूज चैनल आजतक को उन्होंने बताया, ‘हमलावरों ने सिर्फ पुरुषों को निशाना बनाया। खासतौर पर उन्होंने हिंदुओं को जबरन कलमा पढ़वाने की कोशिश की। जो नहीं पढ़ पाए, उन्हें गोली मार दी। मेरे सामने मेरे पापा को तीन गोलियां मारीं।’

ये मुस्लिम नहीं है- कहकर पिस्टल से टूरिस्ट के सिर में गोली मार दी
कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी में 2 अप्रैल की दोपहर करीब 2 बजे अलग-अलग राज्यों से 40 से ज्यादा लोगों का ग्रुप यहां घूमने आया था। सभी टूरिस्ट खुले मैदान में थे। आसपास ही 4 से 5 छोटी-छोटी दुकानें हैं। कुछ टूरिस्ट दुकानों के बाहर लगी कुर्सियों पर बैठ गए। कुछ टूरिस्ट आसपास मैदान में बैठे थे। तभी जंगल की तरफ से दो लोग आए। उन्होंने एक टूरिस्ट से नाम पूछा। टूरिस्ट ने अपना नाम बताया। जंगल से आए लोगों में से एक टूरिस्ट की ओर इशारा करके बोला- ये मुस्लिम नहीं है। इसके बाद पिस्टल निकाली और टूरिस्ट के सिर में गोली मार दी। करीब 10 मिनट तक गोली चलाते रहे। टूरिस्ट्स और दुकानदारों को समझ आ गया कि ये आतंकी हमला है। शुरुआत में एक टूरिस्ट के मरने की खबर आई। रात के 11 बजते-बजते मौतें बढ़कर 27 हो गईं।

TRF ने ली जिम्मेदारी, पाकिस्तान से आए थे आतंकवादी
पहलगाम में हुआ हमला बीते 6 साल में कश्मीर में सबसे बड़ा टेररिस्ट अटैक है। इससे पहले पुलवामा में आतंकियों के हमले में 40 जवानों की मौत हुई थी। हमले की जिम्मेदारी द रजिस्टेंस फ्रंट यानी TRF ने ली है। बीते कुछ साल में जम्मू-कश्मीर में होने वाले सभी छोटे-बड़े हमलों की जिम्मेदारी कश्मीर टाइगर (KT) या द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ही ली है। जम्मू-कश्मीर में करीब 20 साल तीन आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। 2019 के बाद इन आतंकी गुटों ने प्रॉक्सी नाम रखने शुरू किए। टीआरएफ का सुप्रीम कमांडर शेख सज्जाद गुल है। श्रीनगर में पैदा हुआ शेख सज्जाद अभी पाकिस्तान में है। मीडिया ने हमले के दौरान मौजूद टूरिस्ट, पुलिस और डिफेंस एक्सपर्ट से हमले के तरीके, टाइमिंग और वजहों पर पड़ताल की। एक्सपर्ट मानते हैं कि हमला करने वाले आतंकी पाकिस्तान से आए थे। लोकल मिलिटेंट टूरिस्ट पर हमला नहीं करते। ये हमला उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार डालने के लिए किया है। मौके पर मौजूद दुकानदारों के मुताबिक, आतंकियों ने दुकानों से कुछ दूर झाड़ियों से फायरिंग की। गोलियां लगने से टूरिस्ट वहीं गिर गए। फायरिंग के बाद आतंकी भाग गए। सोर्स के मुताबिक, हमले में मरने वालों में लोकल कश्मीरी और विदेशी भी शामिल हैं। विदेशी नागरिक नेपाल और सऊदी अरब के हैं।

कश्मीर में आतंकवाद की नई लहर चलाने की है घातक मंशा
जम्मू कश्मीर पुलिस के DGP रहे एसपी वैद के मुताबिक, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI दुनिया के सामने ये दिखाना चाहती है कि कश्मीर के लोकल लोग आजादी के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन ये बिल्कुल गलत है। 90 के दशक में कश्मीर में मिलिटेंसी के वक्त यहां के कई लोकल लोग पाकिस्तान ट्रेनिंग लेने गए थे। बाद में वे लौटे नहीं और वहीं बस गए। ऐसे लोगों का यहां अब भी नेटवर्क है। ऐसे लोगों की ओवर ग्राउंड वर्कर्स नेटवर्क बनाने में मदद ली जा रही है। लोकल लोगों की मदद के बिना ये हमले संभव ही नहीं हैं। सिक्योरिटी फोर्सेज के अधिकारी तीन वजह बताते हैं
1. नए नामों के जरिए वे साबित करना चाहते हैं कि कश्मीर में आतंकवाद की नई लहर आई है।
2. सेक्युलर दिखने वाले नाम रखे गए, ताकि ये धर्म के आधार पर आए युवाओं के संगठन न लगें।
3. ऐसे नामों से लोकल कनेक्ट दिखेगा और लगेगा कि ये लोकल युवाओं वाला मिलिटेंट ग्रुप है।

370 हटाने से सामान्य हुए हालात में खलल डालने की कोशिश
जम्मू-कश्मीर पुलिस के DGP रहे एसपी वैद कहते हैं, कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद हालात जिस तरह से सामान्य हुए हैं। उसमें खलल डालने के लिए ये हमला किया गया है। टूरिस्टों पर हमला कर लोकल लोगों का बिजनेस ठप करने की कोशिश की गई है। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी बताते हैं, पूरी वारदात भारत को नीचा दिखाने के लिए और हिंदू-मुसलमानों के बीच दरार डालने के लिए की गई है। आतंकियों ने नाम पूछकर लोगों को मारा है। ये भी काफी कुछ कहता है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद से कश्मीर जाने वाले हिंदू सैलानियों और कामगारों की संख्या में गिरावट आ सकती है। आतंकियों ने हिंदुओं को चुन-चुनकर मारा है। यानी आतंकियों का मैसेज साफ है कि वो कश्मीर में हिंदुओं को नहीं देखना चाहते। चाहे वो टूरिस्ट ही क्यों न हों। घाटी से आने वाले केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने नंवबर 2024 में कहा था, ‘कश्मीरी पंडितों के बिना कश्मीर अब कश्मीर नहीं है। कश्मीर जिस मिक्स कल्चर के लिए जाना जाता है, वो कश्मीरी पंडित समुदाय के होने के कारण ही संभव हो पाई। मुझे ये कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि एक दिन जरूर आएगा जब कश्मीर का बहुसंख्यक समुदाय पंडितों के पलायन पर अफसोस जताएगा।’कश्मीरी पंडितों के बाद क्या हिंदुओं के पलायन के लिए हमला
कश्मीर घाटी में 80-90 के दशक में कट्टरता और आतंकवाद हावी था। तब कश्मीरी पंडितों के खिलाफ नफरत 1989 के आखिर में बहुत जहरीली हो गई थी। उन्हें लाउडस्पीकर पर चेतावनी देकर कश्मीर छोड़ने के लिए कहा जाता था। अशोक कुमार पांडे अपनी किताब ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’ में लिखते हैं कि उस समय कश्मीरी पंडितों और अखबारों में घर छोड़ने की जो धमकियां दी गई थीं वो हिजबुल मुजाहिदीन के लेटर पैड पर दी गई थीं। JKLF और हिजबुल हिंसा की अगुआई कर रहे थे। उनके साथ करीब दो दर्जन छोटे-मझोले इस्लामिक संगठन पंडितों की जान के दुश्मन बने हुए थे। तब चेतावनी दी जाती थी कि पंडित मर्द भाग जाएं, उनकी औरतें यहीं रहें। कश्मीर की त्रासदी झेलने वाले राहुल पंडिता अपनी किताब ‘अवर मून हैज ब्लड क्लॉट’ में लिखते हैं कि 19 जनवरी 1990 की रात मस्जिद के लाउडस्पीकर से लगातार आवाजें आ रही थी। मेरे मामा और पिताजी कुछ बात कर रहे थे। तभी बाहर जोर से आवाज आई ‘नारा ए तकबीर, अल्लाह हु अकबर’। फिर आवाज आई, हम क्या चाहते…आजादी, ए जालिमो, ए काफिरो, कश्मीर हमारा छोड़ दो। फिर कुछ देर में नारेबाजी थम गई। जब मेरी मां ने इसे सुना तो वो कांपने लगीं। उन्होंने कहा कि भीड़ चाहती है कि कश्मीर को पाकिस्तान में बदल दिया जाए। उसमें पंडित मर्द न हों, लेकिन उनकी औरतें हों। कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद अब वहां हिंदू आबादी न के बराबर बची है। कश्मीर में बदली फ‍िजां की तस्वीर, मस्जिदों से हमले की खिलाफत
पहलगाम में आतंकी हमले से जम्‍मू कश्मीर के लोग भी आहत हैं। इतना ही नहीं, कश्मीर की मस्‍ज‍िदों से ऐलान क‍िया गया। सरकार से ऐसे लोगों के ख‍िलाफ कार्रवाई की अपील की गई। यह कश्मीर में बदली फ‍िजां का एक और नमूना है। क्‍योंक‍ि अब वहां आतंक‍ियों के समर्थक नहीं दिखते। पहलगाम हमले के बाद वहां के लोगों ने कैंडल मार्च निकाला। इसकी गूंज पाक‍िस्‍तान तक जरूर पहुंचेगी। हमले के दो घंटे बाद कश्मीर की मस्जिदों से एक ऐतिहासिक ऐलान हुआ। कहा गया, पहलगाम हमला इस्लाम और मानवता के खिलाफ है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और यह हमला कश्मीर की शांति और एकता को नष्ट करने की साजिश है। कश्मीर हमारा साझा घर है और हम इसे आतंकियों के हवाले नहीं होने देंगे। कश्मीर के धर्मगुरुओं ने टूर‍िस्‍टों के प्रत‍िएकजुटता द‍िखाई और सरकार से आतंक‍ियों के सफाये की मांग की। उन्होंने कहा, ऐसे कायराना हमले करने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के बारामूला में स्थानीय लोगों ने पहलगाम आतंकी हमले के खिलाफ कैंडल मार्च निकालकर विरोध जताया। वहीं श्रीनगर में स्थानीय लोगों ने मोमबत्ती जलाकर विरोध जताया। अगस्त 2019 में मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटा दिया था। 10 साल बाद 2024 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए। नेशनल कॉन्फ्रेंस की अब्दुल्ला सरकार बनी। हालात सामान्य होने लगे थे। इस दौरान कश्मीर में टूरिज्म बढ़ा है। दूसरे राज्यों से लोग काम के सिलसिले में भी कश्मीर आने लगे। यही वजह रही कि जहां 2020 में कश्मीर में मात्र 34 लाख पर्यटक आए थे, वहीं 2024 में दो करोड़ 35 लाख टूरिस्ट देश-विदेश से आए।

पहलगाम हमले के दूसरे दिन PM मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत ने 5 बड़े फैसले लिए हैं। इसमें 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को रोका गया है। जानिए, सरकार के इन फैसलों का पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा…

पहली बार 65 साल पुराना सिंधु जल समझौता रद्द किया
भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को 6 नदियों का पानी बांटने को लेकर सिंधु जल समझौता हुआ था, जिसे सिंधु जल संधि कहते हैं। समझौते के तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) का अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का इस्तेमाल करने की परमिशन दी गई। सिंधु जल समझौते का मकसद था कि दोनों देशों में जल को लेकर कोई संघर्ष न हो और खेती करने में बाधा न आए। हालांकि भारत ने हमेशा इस संधि का सम्मान किया, जबकि पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने के आरोप लगातार लगते रहे हैं। भारत के पाकिस्तान से तीन युद्ध हो चुके हैं, लेकिन भारत ने कभी भी पानी नहीं रोका था, लेकिन पाकिस्तान हर बार भारत में आतंकी हमले के लिए जिम्मेदार होता है।
Impact- पाकिस्तान की 80% खेती सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों के पानी पर निर्भर है। अब भारत की तरफ से इन नदियों का पानी रोक देने से पाकिस्तान में जल संकट गहराएगा। वहां की आर्थिक स्थिति बिगड़ेगी। इसके अलावा पाकिस्तान कई डैम और हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से बिजली बनाता है। पानी की कमी से बिजली उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जिससे आर्थिक और औद्योगिक गतिविधियों पर असर पड़ेगा।

2.अटारी चेक पोस्ट के बंद होने से पाकिस्तान के लोगों की आवाजाही रुकेगी
अटारी चेक पोस्ट के बंद होने से पाकिस्तान के लोगों की आवाजाही तो बंद होगी ही, साथ ही छोटे सामानों को भारत निर्यात नहीं करेगा। इससे वहां के छोटे व्यापारियों को आर्थिक नुकसान होगा। भारत आए पाकिस्तानी नागरिकों को इस रास्ते से लौटने के लिए 1 मई तक का वक्त दिया गया है। इसके बाद वह इस रास्ते से नहीं लौट पाएंगे।
Impact- साल 2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद से ही पाकिस्तान से द्विपक्षीय व्यापार बंद है। किसी तीसरे देश के माध्यम से भारत-पाकिस्तान के बीच आयात-निर्यात होता है। हालांकि, दोनों देशों के बीच छोटे-मोटे सामानों का लेन देन होता है। जैसे- सेंधा नमक, चमड़े का सामान, मुल्तानी मिट्टी, तांबे का सामान, मिनरल मिल्स, ऊन और चूना हैं।

3. वीजा सर्विस के साथ आतंकियों के आने का रास्ता भी बंद
भारत ने पाकिस्तानियों के वीजा पर रोक लगा दी है। इतना ही नहीं, SAARC वीजा छूट योजना से भी पाकिस्तान के लोग भारत नहीं आ पाएंगे। दरअसल, पाकिस्तान के कई लोगों की रिश्तेदारी भारत में है। ऐसे में कई बार पाकिस्तानी लोग रिश्तेदार बनकर भारत आते हैं। इनके अलावा धार्मिक यात्राओं का बहाना करके भारत आते हैं और आतंकी हमलों को अंजाम देते हैं।
Impact- दोनों देशों के बीच वीजा सर्विस बंद होने से आतंकियों के भारत आने का रास्ता भी बंद हो जाएगा।

4. हाई कमीशन से डिफेंस एडवाइजर्स हटाए, कर्मचारी कम किए
भारत ने नई दिल्ली में स्थित पाकिस्तानी हाई कमीशन में तैनात पाकिस्तानी मिलिट्री, नेवी और एयर एडवाइजर्स को अवांछित व्यक्ति घोषित किया है। उनके पास भारत छोड़ने के लिए एक हफ्ते का समय है। 1 मई 2025 तक पाकिस्तान के हाई कमीशन में तैनात कर्मचारियों की संख्या 55 से घटाकर 30 की जाएगी। भारत ने आजादी के बाद से अब तक दिल्ली में पाकिस्तान के दूतावास को कभी भी बंद नहीं किया है।
Impact- सैन्य-डिप्लोमैटिक संवाद ठप होने का असर ये होगा कि भारत में पाकिस्तानी रक्षा सलाहकारों की वापसी से दोनों देशों के बीच सैन्य-स्तर की बातचीत और संपर्क पूरी तरह बंद हो जाएंगे।

5. भारत ने अपने डिफेंस एडवाइजर्स भी वापस बुलाए
पाकिस्तान के डिफेंस एडवाइजर्स हटाने के साथ ही भारत भी अपने मिलिट्री, नेवी और एयर एडवाइजर्स को इस्लामाबाद स्थित इंडियन हाई कमीशन से वापस बुलाएगा। संबंधित हाई कमीशन में ये पद निरस्त माने जाएंगे। दोनों उच्चायोगों से सर्विस एडवाइजर्स के 5 सपोर्ट स्टाफ को भी वापस बुलाया जाएगा।
Impact- इस फैसले से हाई कमीशन का प्रभाव कम होगा। स्टाफ की संख्या घटकर 55 से 30 हो जाने से पाकिस्तानी उच्चायोग की कार्यक्षमता और भारत में उसकी कूटनीतिक मौजूदगी सीमित हो जाएगी।

मुर्शिदाबाद में कौन से आतंकवादी, हिन्दुओं को भगा रहे थे?

बड़ा सवाल ये भी है कि यदि पहलगाम में जो हुआ वो मुस्लिमों ने नहीं आतंकवादियों ने किया है, तो फिर कुछ दिन पहले मुर्शिदाबाद में कौन से आतंकवादी, हिन्दुओं को भगा रहे थे? मुर्शिदाबाद में हिंसा में 4 लोगों को मौत का शिकार होना पड़ा। सैकड़ों लोग घायल हुए तो वहीं कई लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह पलायन को मजबूर होना पड़ा। मुर्शिदाबाद में हिंसा के मामले में ममता बनर्जी सरकार कदम-कदम पर बुरी तरह फेल साबित हुई है। यह खुलासा भी हुआ है कि यहां पर हिंसा की सुनियोजित साजिश तीन महीने से ज्यादा समय से चल रही थी। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद को छोटा बांग्लादेश बनाने के लिए उपद्रवियों और दंगाइयों के पास पैसा तुर्किए तक से आ रहा था। पत्थरबाज, उपद्रवी और आगजनी करने वालों को बकायदा इसके लिए पांच-पांच सौ रुपए तक दिए गए। पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के खिलाफ माहौल बनाने के लिए विदेशों तक से फंडिंग हो रही थी और राज्य की तृणमूल सरकार हाथ पर हाथ धरे मौन ही बैठी रही। इसका खामियाजा निर्दोष हिंदुओं ने आगजनी, मारपीट और पलायन के रूप में भुगता।

वक्फ बिल के नाम पर आतंकवाद फैलाने का नया तरीका
इस बीच मुर्शिदाबाद दंगा मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। भारतीय जांच एजेंसियों के सूत्रों की मानें तो इस हिंसा की प्लानिंग लंबे समय से की जा रही थी। पिछले 3 महीनों से इलाके के लोग इस घटना को अंजाम देने की योजना बना रहे थे। इसके लिए विदेशों से फंडिंग की गई थी। पूरे मामले की जांच के दौरान एजेंसी ने पाया कि यह आतंकवाद फैलाने का नया तरीका है। दो महीने पहले अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एटीबी) के दो जाने-माने सदस्य मुर्शिदाबाद आए और कहा कि एक बड़ी दावत होगी। वे ट्रिगर पॉइंट का इंतजार कर रहे थे। शुरू में रामनवमी की तारीख तय थी, लेकिन सुरक्षा के कारण चीजें बदल गईं, लेकिन वक्फ बिल ने ट्रिगर पॉइंट दे दिया।उपद्रवकारियों को विदेशों से हो रही थी फंडिंग और ट्रेनिंग
सुरक्षा जांच एजेंसियों के मुताबिक हमलावरों और उपद्वियों से कहा गया था कि वे जितनी ज्यादा चीजों को खराब करेंगे उन्हें उतना ही ज्यादा पैसा दिया जाएगा। शुरू में एक सूची बनाई गई थी कि यदि वे अपने किए का ब्यौरा देंगे तो उन्हें कितना धन दिया जाएगा। इसी कड़ी में ट्रेनों को बाधित करना, सरकारी संपत्ति को खत्म करना, हिंदुओं की हत्या करना, घरों को लूटना उनका टारगेट था। इसके लिए उन्हें बकायदा विदेशों से फंडिंग और ट्रेनिंग भी दी गई। बता दें कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के विरोध में 10 अप्रैल से हिंसा जारी है। मुर्शिदाबाद में पहले से ही सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के करीब 300 जवान तैनात हैं और केंद्र ने व्यवस्था बहाल करने में मदद के लिए केंद्रीय बलों की पांच अतिरिक्त कंपनियां तैनात की हैं।

मुर्शिदाबाद को छोटा बांग्लादेश बनाने की थी साजिश
मुर्शिदाबाद हिंसा की प्लानिंग और पूरे खर्च का दारोमदार तुर्की और बांग्लादेश के भरोसे चल रहा था। यहीं से हिंसा को लेकर पूरा फंड दिया जा रहा था। जांच एजेंसियों की माने तो इस योजना में शामिल हर हमलावर और पत्थरबाजों को लूटपाट के लिए 500-500 रुपए दिए गए थे। इनकी पिछले तीन महीनों से लगातार ट्रेनिंग चल रही थी। साजिशकर्ताओं ने बंगाल को भी छोटा बांग्लादेश बनाने की योजना बनाई थी। जैसे दंगे बांग्लादेश हिंसा में देखने को मिले थे, ठीक वैसे ही यहां भी प्लान था। बता दें कि केंद्र सरकार के वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर भड़की हिंसा में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस वाहनों को आग लगा दी, सड़कों पर मारपीट और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की भी घटनाओं को अंजाम दिया गया।मुर्शिदाबाद हिंसा और उपद्रव में बांग्लादेशी कट्टरपंथी भी शामिल
हाल ही में मुर्शिदाबाद हिंसा में बांग्लादेशी कनेक्शन भी सामने आया। न्यूज एजेंसी पीटीआई ने खुफिया रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि बांग्लादेश के दो कट्टरपंथी संगठनों जमात-उल मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) और अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT) ने इसे अंजाम दिया था। हिंसा में पिता-पुत्र की हत्या मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। एक आरोपी बीरभूम और दूसरा बांग्लादेश बॉर्डर से पकड़ा गया है। इनके नाम कालू नदाब और दिलदार नदाब हैं। मुर्शिदाबाद हिंसा में 4 लोगों की मौत हुई, जबकि 15 पुलिसकर्मी घायल हैं। अब तक 300 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए हैं। हिंसाग्रस्त इलाकों में केंद्रीय सुरक्षा बलों के 1600 जवान तैनात हैं।

दहशतजदा लोग बोले- BSF हटाई तो फिर होगी दिक्कत
मुर्शिदाबाद में हिंसा के 5 दिन बाद हालात सामान्य हो गए हैं। प्रशासन ने कहा- हिंसा वाले शहर धुलियान में स्थिति नियंत्रण में है। लोग अब धीरे-धीरे काम पर लौट रहे हैं। धुलियान से पलायन कर चुके 500 से ज्यादा लोग अब वापस आ रहे हैं। हिंसा प्रभावित शमशेरगंज के एक निवासी हबीब-उर-रहमान ने न्यूज एजेंसी ANI से कहा- BSF और CRPF की तैनाती होने के बाद ही माहौल कुछ शांत हुआ है। प्रशासन ने हमसे दुकान खोलने और अनुशासन बनाए रखने को कहा है। कई लोगों ने BSF की स्थायी तैनाती की मांग भी की है। उनका कहना है कि अगर BSF हटी तो फिर से हालात खराब हो सकते हैं। दूसरी ओर राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने मुर्शिदाबाद में हुई हालिया हिंसा की जांच के लिए एक जांच कमेटी बनाई है। आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर खुद हिंसा-प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करेंगी और पीड़ितों से मुलाकात करेंगी। NCW ने यह भी कहा है कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की जाएगी।हिंदुओं को मौत की नींद सुलाने के लिए पानी में मिलाया जहर
इससे पहले पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में उपद्रवकारियों की एक और करतूत का खुलासा हुआ था। इन आताताइयों ने हिंदुओं को मौत की नींद में सुलाने के लिए इनके क्षेत्र की पानी की टंकी में जहर मिला दिया! ताकि जहरीला पानी पीने के बाद लोग मौत के शिकार बन जाएं और इन पर कोई शक भी ना करे। इतना ही नहीं उपद्रवकारियों ने नैतिकता की सारी सीमाएं लांघकर महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की और कई गैस सिलेंडरों को आग के हवाले कर दिया। एक जाति विशेष के इन बदमाश अपराधियों ने अपना इतना खौफ पैदा कर दिया कि हिंसाग्रस्त इलाकों से हिंदुओं का पलायन करना ही शुरू हो गया है। इतना सब होने के बावजूद पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सरकारी अमले ने इस ओर से आंखें मूंद लीं है। इससे दंगाइयों के हौंसले और बढ़ गए हैं।

पीड़ितों का दर्द सुनकर आगबबूला हो जाएंगे आप
मुर्शिदाबाद में हिंसा की वजह से हिंदुओं को पलायन को मजबूर होना पड़ रहा है। उपद्वियों के डर से भागे लगभग 500 हिंदू परिवारों ने मालदा जिले के एक स्कूल में शरण ली है। उनकी आंखों में अब भी डर और असुरक्षा की झलक साफ देखी जा सकती है। उन्होंने जो आपबीती बताई, उसे सुनकर आप भी आगबबूला हो जाएंगे। शमशेरगंज और धुलियान जैसे हिंसा-प्रभावित इलाकों से भागे हुए लगभग 500 परिवारों ने मालदा जिले के वैष्णवनगर परलाल हाई स्कूल में शरण ली है। पीड़ितों के मुताबिक, उन्हें अपने घर जलते हुए छोड़कर नाव के सहारे नदी पार करनी पड़ी। अब वे एक स्कूल के छोटे-छोटे कमरों में बेजान हालात में जी रहे हैं। शुक्रवार और शनिवार को प्रदर्शन के नाम पर हिंसा, आगजनी और लूटपाट का ऐसा तांडव हुआ कि लोग जान बचाकर गांव छोड़ने को मजबूर हो गए। इस हिंसा में अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हैं।

जहरीला पानी पीने से कई लोग बीमार पड़े
मुर्शिदाबाद से एक बेहद चौंकाने वाली खबर सामने आई है। यहां के कुछ इलाकों में पानी की टंकियों में जहर मिलाए जाने की बात सामने आई है। यह जहर उन टंकियों में मिलाया गया, जिनका उपयोग स्थानीय बंगाली हिंदू समुदाय द्वारा किया जा रहा था। इस घटना ने इलाके में डर और गुस्से का माहौल पैदा कर दिया है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस जहरीले पानी से कई लोग बीमार पड़ गए हैं, जिनमें छोटे बच्चे भी शामिल हैं। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में लोग सवाल कर रहे हैं कि इस पांच महीने की मासूम बच्ची की क्या गलती थी? इस घटना के बाद से लोग आक्रोशित हैं और इंसाफ की मांग कर रहे हैं। कुछ परिवारों ने तो यहां तक कहा है कि वे अब अपने ही घर में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे और पलायन का मन बना रहे हैं।

अगर बीएसएफ और पुलिस ना होती, तो शायद ही जिंदा होते
अपना घर-बार छोड़ने के मजबूर हुई एक महिला ने रोते हुए बताया, ‘हमारे पास जो कुछ भी था, सब दंगाइयों ने जला दिया गया। उन्होंने पेट्रोल छिड़ककर घरों में आग लगा दी। पानी की टंकी में जहर मिला दिया। बच्चों ने सुबह से कुछ नहीं खाया है। हमें पीने तक को पानी नहीं मिल रहा। हम नाव से जान बचाकर भागे हैं। अगर बीएसएफ और पुलिस नहीं होती, तो शायद हम जिंदा न होते।’ हिंसा के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाया है। केंद्रीय बलों की 17 कंपनियां मुर्शिदाबाद में तैनात की गई हैं। अर्धसैनिक बल स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। अफवाहों के चलते मुर्शिदाबाद, मालदा और बीरभूम के कुछ इलाकों में इंटरनेट सेवाएं 15 अप्रैल तक अस्थायी रूप से बंद कर दी गई हैं।

महिलाओं के साथ छेड़छाड़, गैस सिलेंडर में आग
अभी लोग संदेशखाली में महिलाओं के साथ बदसलूकी की घटनाओं को नहीं भूले हैं कि मुर्शिदाबाद और अन्य इलाकों में ऐसी घटनाएं सामने आने लगी हैं। पीड़ितों ने आरोप लगाया कि हिंसा के दौरान हथियारबंद उपद्रवियों ने महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की। यहां तक उन्होंने लड़कियों तक को नहीं छोड़ा। एक महिला ने बताया कि हमलावर दंगाई ‘बम, बंदूक और चाकू लेकर आए थे। उन्होंने घरों में लूटपाट की, गैस सिलेंडर में आग लगा दी।’ कुछ ने बताया कि महिलाओं को धमका कर बदसलूकी की गई और घरों में रखे गहनों, फर्नीचर और यहां तक कि मवेशियों तक को नहीं छोड़ा गया। स्कूलों में शरण लिए लोगों की आंखों में डर, बेबसी और असहायता साफ झलक रही है। जिनका सब कुछ लूट चुका है, उनके लिए यह भयावह मंजर एक सपने की तरह है जो कभी खत्म नहीं होता।

हिंसाग्रस्त इलाकों के पीड़ितों से मिले बीजेपी विधायक
भाजपा ने ममता बनर्जी सरकार पर सीधा हमला बोला है। नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने साफ कहा कि हिंदुओं की हत्या, दुकानें लूटना और मंदिर तोड़ना – यही तुष्टिकरण की राजनीति है। रविवार को बीजेपी के पांच विधायकों का प्रतिनिधिमंडल पीड़ितों से मिलने मालदा पहुंचा। इसके अलावा बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने पीड़ितों से मिलकर कहा, ‘बंगाल के हिंदू अब समझ चुके हैं कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल को लाइट बांग्लादेश बनाने में सफल हो गई हैं। हम वादा करते हैं कि बीजेपी की सरकार बनने के बाद ऐसे हमलावरों को सीधा बाहर निकालने की जिम्मेदारी हमारी होगी।’

धुलियान से 400 से ज्यादा हिंदू परिवार पलायन को मजबूर
वक्फ संशोधन कानून के विरोध में बंगाल में हिंसक प्रदर्शन के बाद बड़ी संख्या में लोग हिंसा प्रभावित इलाकों से घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं। बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर बताया कि कट्टरपंथियों के डर से मुर्शिदाबाद के धुलियान से 400 से ज्यादा हिंदू नदी पार कर लालपुर हाई स्कूल, देवनापुर-सोवापुर जीपी, बैसनबनगर, मालदा में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। इसी बीच, रविवार को मुर्शिदाबाद के फरक्का इलाके में भी तनाव फैल गया। हिंसा के बाद सैकड़ों लोग अपने घर छोड़कर भागने के लिए बाध्य हुए हैं। आगजनी, तोड़फोड़ और पानी में जहर मिलाने की घटनाओं से लोग आतंकित हैं। मालदा में शरणार्थियों ने घरों में हुई तोड़फोड़ और अपने खोए हुए घर-बार की पीड़ा बयां की है।

सीमावर्ती जिलों को अफस्पा कानून के तहत अशांत क्षेत्र घोषित करें
भाजपा सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखा, जिसमें कहा कि ‘ बंगाल के सीमावर्ती जिलों को अफस्पा कानून के तहत अशांत इलाके घोषित कर देना चाहिए।’ महतो ने बंगाल में हिंदुओं के पलायन की तुलना 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन से की। भाजपा नेता प्रदीप भंडारी ने हिंसा के लिए सीएम ममता बनर्जी को जिम्मेदार ठहराया। अन्य भाजपा नेताओं ने भी हिंसा के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया। वहीं, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने बताया कि ‘किसी को भी कानून हाथ लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।’

मुर्शिदाबाद हिंसा से निपटने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाएं
मुर्शिदाबाद में हिंसा, उपद्रव और आगजनी की घटनाओं के लेकर भाजपा ही नहीं इंडी गठबंधन में अपनी सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कांग्रेस पार्टी भी हमलावर है। मालदा दक्षिण के कांग्रेस सांसद ईशा खान चौधरी ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार से मुर्शिदाबाद जिले में शांति बहाल करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने की अपील की। इस बीच राज्यपाल सीवी आनंद बोस में सीएम ममता बनर्जी से बात की और केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र भेजा है। उधर, बंगाल फ्रंटियर के आईजी करणी सिंह शेखावत ने कहा, मुर्शिदाबाद में बीएसएफ की 10 और सीआरपीएफ की 5 कंपनियां तैनात की गई हैं।

चाय की चुस्कियों के बीच सनातन धर्म की चर्चा
इस बीच पश्चिम बंगाल के ओल्ड मालदा के बुलबुली मोड़ पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सीनियर लीडर दिलीप घोष ने स्थानीय लोगों के साथ चाय पर चर्चा की। इस दौरान उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों पर खुलकर बात की और सनातन धर्म की रक्षा के लिए लोगों से एकजुट होने का आह्वान किया। इस कार्यक्रम में सबसे पहले बुलबुली मोड़ पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। इसके बाद चाय की चुस्कियों के बीच उन्होंने आम लोगों से उनकी समस्याएं सुनीं और पार्टी की योजनाओं के बारे में बताया। और सनातन धर्म की रक्षा के लिए लोगों से एकजुट होने का आह्वान किया। इस अवसर पर उत्तर मालदा के भाजपा सांसद खगेन मुर्मू, विधायक गोपाल साहा, कई भाजपा नेता और कार्यकर्ता मौजूद थे। चर्चा के दौरान दिलीप घोष ने हाल ही में मोथाबाड़ी में हुई घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह रामनवमी के अवसर पर लोग एकजुट होकर सड़कों पर उतरे, उसी तरह सनातन धर्म को बचाने के लिए भी लोगों को एकजुट होना होगा।

आइए, हिंदू विरोधी ममता बनर्जी के शासनकाल की अराजकता, तानाशाही और हिंदू विरोधी मानसिकता पर एक नजर डालते हैं…

सबूत नंबर-21
राम नाम मास्क बांटने पर बीजेपी नेता गिरफ्तार
पश्चिम बंगाल के हुगली में जय श्रीराम मास्क बांटना ममता बनर्जी की पुलिस को रास नहीं आया। पुलिस मास्क बांटने वाले बीजेपी नेताओं को पकड़कर ले गई। हुगली के सेरामपुर में बीजेपी नेता अमनिश अय्यर लोगों को ‘जय श्रीराम’ लिखा मास्क बांट रहे थे। इसी दौरान पुलिस वहां पहुंची और बीजेपी नेता को गिरफ्तार करके ले गई। इस दौरान वहां मौजूद लोगों ने विरोध जताते हुए जमकर जय श्रीराम के नारे लगाए। बीजेपी ने मास्क बांटने पर पार्टी नेता को गिरफ्तार करने को पूर्ण तानाशाही करार दिया है।

सबूत नंबर-20
भगवा टीशर्ट पहनने और जय श्रीराम बोलने से रोका
इसके पहले 7 फरवरी, 2021 को भगवा टीशर्ट पहनने और जय श्रीराम बोलने वालों को धमकाया गया। कोलकाता के इको पार्क में पुलिस के एक अधिकारी ने लोगों से साफ कहा कि आप लोग यहां जय श्री राम का नारा नहीं लगा सकते हैं।

सबूत नंबर-19
पार्टी नेता ने जय श्रीराम बोलने वालों को धमकाया
हाल ही में उनकी पार्टी के एक नेता ने जय श्रीराम बोलने वालों को धमकाया। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के एक नेता ने लोगों को धमकाते हुए कहा कि अगर बंगाल में रहना चाहते हो तो यहां ‘जय श्री राम’ के नारे नहीं लगा सकते। वीडियो में किसी सभा को संबोधित करते हुए टीएमसी नेता ने बंगाली में कहा कि राज्य में जय श्री राम बोलने की अनुमति नहीं है। यहां इन सब चीजों की अनुमति नहीं दी जाएगी। जो लोग इसका जाप करना चाहते हैं वे मोदी के राज्य गुजरात में जाकर ये कर सकते हैं।

सबूत नंबर-18
मुर्शिदाबाद में काली मां की मूर्ति जला डाला
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण और वोटबैंक को लेकर इतनी अंधी हो चुकी है कि राज्य में हिन्दू विरोधी हरकतों पर कुछ भी एक्शन नहीं लेती हैं। कभी मंदिर में पूजा करने पर पिटाई की जाती है तो कभी हिन्दुओं के घर और मंदिर जला दिए जाते हैं। कभी रामनवमी और दुर्गापूजा पर तो कभी सरस्वती पूजा पर रोक लगा दी जाती है। इससे राज्य को मुसलमानों का हौसला बुलंद है और जब भी मौका मिलता है हिंदुओं को प्रताड़ित करते रहते हैं। हाल ही में 1 सितंबर, 2020 को मुर्शिदाबाद के एक मंदिर में काली मां की मूर्ति जला दिया गया। बीजेपी सांसद अर्जुन सिंह ने एक ट्वीट कर आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद इलाके के एक मंदिर पर हमला कर मां काली की मूर्ति जला दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि दीदी की राजनीति का जिहादी स्वरूप अब हिंदू धर्म और संस्कृति को नष्ट करने पर तुला हुआ है।


सबूत नंबर-17
मंदिर में पूजा करने पर पुलिस ने की पिटाई
ममता राज में तो हिन्दुओं को मंदिरों में भी पूजा करने की आजादी नहीं है। 5 अगस्त, 2020 को जब पूरे विश्व के हिन्दू अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन को लेकर उत्साहित थे। वहीं पश्चिम बंगाल की पुलिस लॉकडाउन के बहाने हिन्दुओं पर जुल्म ढा रही थी। मंदिर में पूजा कर रहे लोगों पर पुलिस ने लाठियां बरसाईं और सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया। 

खड़गपुर में स्थानीय लोग राम मंदिर शिलान्यास के उत्सव में मंदिर में पूजा कर रहे थे। लेकिन ममता की पुलिस को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। इससे सार्वजनिक व्यावस्था और लॉकडाउन का उल्लंघन नहीं हो रहा था। फिर भी शांतिपूर्वक पूजा कर रहे लोगों को पुलिस ने घसिटकर मंदिर से बाहर निकाला। लोग पुलिस से पूजा करने का आग्रह करते रहे, लेकिन पुलिस ने उन्हें पूजा करने की अनुमति नहीं दी।

बीजेपी कार्यकर्ता ने नारायणपुर इलाके में ‘यज्ञ’ आयोजित करने का प्रयास किया लेकिन ममता के गुंडों ने उन्हें रोक दिया। हिन्दुओं और ममता के गुंडों के बीच झड़प हो गई। जिसके बाद पुलिस ने लोगों को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया। जिसमें कई लोगों को चोटें आईं। उधर खड़गपुर में श्री राम मंदिर के लिए पूजा का आयोजन किया गया था। लेकिन ममता बनर्जी की पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया, महिलाओं को भी नहीं छोड़ा।

सबूत नंबर-16
तेलिनीपाड़ा में जला दिए गए हिन्दुओं के घर और मंदिर
राज्य के हुगली जिले के चंदर नगर के तेलिनीपाड़ा में मई, 2020 के महीने में कई दिनों तक हिंदुओं के खिलाफ खुलकर हिंसा हुई। हिंदुओं के घर जलाए गए। जिले के तेलिनीपाड़ा के तांतीपारा, महात्मा गांधी स्कूल के पास शगुनबागान और फैज स्कूल के पास जमकर हिंसा, आगजनी और लूटपाट की गई। प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। मालदा के शीतला माता मंदिर में भी तोड़फोड़ और आगजनी की गई।

सबूत नंबर-15
पुस्तक मेले में हनुमान चालीसा के वितरण पर लगाया प्रतिबंध
पश्चिम बंगाल में ममता की पुलिस ने कोलकाता में 44वें अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेले में विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा बांटी जा रही हनुमान चालीसा की पुस्तकों पर रोक लगा दी। पुलिस ने बताया कि हनुमान चालीसा के वितरण से शहर में कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है और पुस्तक मेले में आने वाले लोग भावनाओं में बह सकते हैं।

विहिप के अधिकारियों ने पुलिस के इस कार्रवाई का विरोध किया। साथ ही पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जब मेले में कुरान और बाइबिल की पुस्तकें बांटी जा सकती हैं तो हनुमान चालीसा की क्यों नहीं? बढ़ते विरोध को देखते हुए कोलकाता पुलिस बैकफुट पर आ गई और हनुमान चालीसा के वितरण से रोक को हटा लिया। विहिप ने कहा कि हनुमान चालीसा धार्मिक पुस्तक है और इसमें किसी भी तरह की आपत्तिपूर्ण सामग्री नहीं है। लेकिन ममता राज में हिंदुओं की धार्मिक पुस्तक का विरोध किया जा रहा है।

सबूत नंबर-14
ममता बनर्जी ने स्कूली बच्चों को धर्म के नाम पर बांटा
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों गंभीर हताशा और निराशा में हैं। लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद उन्हें विधानसभा चुनाव में भी भयानक हार पहले से ही दिखाई देने लगी है। यही वजह है कि ममता बनर्जी अपना वोट बैंक बचाने के लिए जोरशोर से मुस्लिम तुष्टिकरण में जुट गई हैं।

ममता बनर्जी ने राजनीतिक निर्लज्जता की सभी सीमाओं को पार करते हुए स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भी मजहब के नाम पर बांट दिया। ममता बनर्जी की सरकार ने राज्य के स्‍कूलों को निर्देश दिया कि वे मुस्लिम स्‍टूडेंट्स के लिए अलग से मिड-डे मील हॉल रिजर्व करें। यह आदेश राज्‍य के उन सरकारी स्‍कूलों पर लागू होगा जहां पर 70 प्रतिशत या उससे ज्‍यादा मुस्लिम छात्र हैं। राज्‍य अल्‍पसंख्‍यक और मदरसा शिक्षा विभाग की ओर उन सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्‍त स्‍कूलों का नाम मांगा, जहां पर 70 प्रतिशत से ज्‍यादा मुस्लिम बच्‍चे पढ़ते हैं। इन सरकारी स्‍कूलों में अल्‍पसंख्‍यक बच्‍चों के लिए अलग से मिड-डे मील डायनिंग हॉल बनाया जाएगा।

सबूत नंबर-13
ममता बनर्जी ने ‘जय श्रीराम’ बोलने वालों को दी धमकी
मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी को जय श्रीराम का उद्घोष अब गाली की तरह लगने लगा है। राज्य के 24 परगना जिले में ममता बनर्जी का काफिला गुजर रहा था तभी रास्ते में भीड़ में खड़े लोगों ने जय श्रीराम का उदघोष कर दिया। जय श्रीराम सुनते ही ममता बनर्जी को गुस्सा आ गया और गाड़ी से उतरकर उन्होंने लोगों को धमकाना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने जय श्रीराम कहने वालों को गिरफ्तार करने की धमकी भी दी और उन्हें दूसरे प्रदेश का बता दिया। यह कोई पहली बार नहीं है, इससे पहले चुनाव के दौरान भी ममता बनर्जी ने इसी तरह जय श्रीराम कहने वालों को जेल में डालने की धमकी दी थी। 

सबूत नंबर-12
ममता बनर्जी का जय श्रीराम बोलने से इंकार, बताया गाली
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में कहा कि वे किसी हाल में जय श्रीराम नहीं बोलेंगी। ममता का कहना है कि जय श्रीराम बीजेपी का नारा है लेकिन पीएम नरेन्द्र मोदी लोगों को यह बोलने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। सच्चाई यह है कि देश में जय श्रीराम बोलने की सदियों पुरानी परंपरा है। इसके एक दिन पहले ही बंगाल में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें तृणमूल कार्यकर्ता जय श्रीराम का नारा लगा रही भीड़ को खदेड़ रहे हैं। पूरे राज्य में हिंदुओं को इसी तरह प्रताड़ित किया जा रहा है। ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के इस रवैये से बंगाल के लोगों में जबरदस्त गुस्सा है। राज्य में जगह-जगह पर इसका विरोध हो रहा है और इसका असर वोटिंग पर भी पड़ना तय है। दरअसल, राज्य में अपनी पार्टी की खिसकती जमीन से ममता परेशान हो गई हैं। इससे घबराई ममता अब राज्य में धार्मिक आधार पर वोटों को बांटने की कोशिश कर रही हैं। हिंदुओं के खिलाफ बयानबाजी कर मुसलमान वोटर्स को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही हैं।

सबूत नंबर-11
मुस्लिम प्रेम और हिंदू विरोध में देवताओं को बांटने पर तुली ममता बनर्जी
हिंदुओं के धार्मिक रीति-रिवाज, पूजा-पद्धति और पर्व-त्योहार पर लगाम लगाने के बाद ममता बनर्जी हिंदू देवी-देवताओं को बांटने में भी लग गई। हिंदुओं को बांटने के लिए ममता बनर्जी ने कहा कि हम दुर्गा की पूजा करते हैं, राम की पूजा क्यों करें? झरगाम की एक सभा में ममता ने कहा कि, ‘बीजेपी राम मंदिर बनाने की बात करती है, वे राम की नहीं रावण की पूजा करती है। लेकिन हमारे पास हमारी अपनी देवी दुर्गा है। हम मां काली और गणपति की पूजा करते हैं। हम राम की पूजा नहीं करते।’

सनातन संस्कृति में शस्त्रों का विशेष महत्त्व है। अलग-अलग पर्व त्योहारों पर धार्मिक यात्राओं में तलवार, गदा लेकर चलने की परंपरा रही है, लेकिन ममता बनर्जी ने धार्मिक यात्राओं और शस्त्र को भी साम्प्रदायिक और सेक्युलर करार दिया। गौरतलब है कि जब यही शस्त्र प्रदर्शन मोहर्रम के जुलूस में निकलते हैं तो सेक्युलर होते हैं, लेकिन रामनवमी में निकलते ही साम्प्रदायिक हो जाते हैं।

सबूत नंबर-10
राम के नाम से नफरत कई बार हो चुकी है जाहिर
ममता बनर्जी कई बार हिंदू धर्म और भगवान राम के प्रति अपनी असहिष्णुता जाहिर करती रही हैं। हालांकि कई बार कोर्ट ने उनकी इस कुत्सित कोशिश को सफल नहीं होने दिया। वर्ष 2017 में जब लेक टाउन रामनवमी पूजा समिति’ ने 22 मार्च को रामनवमी पूजा की अनुमति के लिए आवेदन दिया तो राज्य सरकार के दबाव में नगरपालिका ने पूजा की अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद जब समिति ने कानून का दरवाजा खटखटाया तो कलकत्ता हाईकोर्ट ने पूजा शुरू करने की अनुमति देने का आदेश दिया।


सबूत नंबर-9
बंगाल सरकार ने पाठ्यक्रम में रामधनु को कर दिया रंगधनु 
भगवान राम के प्रति ममता बनर्जी की घृणा का अंदाजा इस बात से भी जाहिर हो गई, जब तीसरी क्लास में पढ़ाई जाने वाली किताब ‘अमादेर पोरिबेस’ (हमारा परिवेश) ‘रामधनु’ (इंद्रधनुष) का नाम बदल कर ‘रंगधनु’ कर दिया गया। साथ ही ब्लू का मतलब आसमानी रंग बताया गया है। दरअसल साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले ‘रामधनु’ का प्रयोग किया था, लेकिन मुस्लिमों को खुश करने के लिए किताब में इसका नाम ‘रामधनु’ से बदलकर ‘रंगधनु’ कर दिया गया।

सबूत नंबर-8
हिंदुओं के हर पर्व के साथ भेदभाव करती हैं ममता बनर्जी
ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ कि ममता बनर्जी ने हिंदुओं के साथ भेदभाव किया। कई ऐसे मौके आए हैं जब उन्होंने अपना मुस्लिम प्रेम जाहिर किया है और हिंदुओं के साथ भेदभाव किया है। सितंबर, 2017 में कलकत्ता हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से ममता बनर्जी का हिंदुओं से नफरत जाहिर होता है। कोर्ट ने तब कहा था,  ”आप दो समुदायों के बीच दरार पैदा क्यों कर रहे हैं। दुर्गा पूजन और मुहर्रम को लेकर राज्य में कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी है। उन्‍हें साथ रहने दीजिए।”


सबूत नंबर-7
दशहरे पर शस्त्र जुलूस निकालने की नहीं दी थी अनुमति
हिंदू धर्म में दशहरे पर शस्त्र पूजा की परंपरा रही है। लेकिन मुस्लिम प्रेम में ममता बनर्जी हिंदुओं की धार्मिक आजादी छीनने की हर कोशिश करती रही हैं। सितंबर, 2017 में ममता सरकार ने आदेश दिया कि दशहरा के दिन पश्चिम बंगाल में किसी को भी हथियार के साथ जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी जाएगी। पुलिस प्रशासन को इस पर सख्त निगरानी रखने का निर्देश दिया गया। हालांकि कोर्ट के दखल के बाद ममता बनर्जी की इस कोशिश पर भी पानी फिर गया।

सबूत नंबर-6
कई गांवों में दुर्गा पूजा पर ममता बनर्जी ने लगा रखी है रोक
10 अक्टूबर, 2016 को कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश से ये बात साबित होती है ममता बनर्जी ने हिंदुओं को अपने ही देश में बेगाने करने के लिए ठान रखी है। बीरभूम जिले का कांगलापहाड़ी गांव ममता बनर्जी के दमन का भुक्तभोगी है। गांव में 300 घर हिंदुओं के हैं और 25 परिवार मुसलमानों के हैं, लेकिन इस गांव में चार साल से दुर्गा पूजा पर पाबंदी है। मुसलमान परिवारों ने जिला प्रशासन से लिखित में शिकायत की कि गांव में दुर्गा पूजा होने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है, क्योंकि दुर्गा पूजा में बुतपरस्ती होती है। शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन ने दुर्गा पूजा पर बैन लगा दिया, जो अब तक कायम है।

सबूत नंबर-5
छठ पूजा मनाने पर लगा दी रोक
ममता राज में साल 2017 में राज्य के सिलीगुड़ी में महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर रोक लगा दी गई। जनसत्ता अखबार की खबर के अनुसार दार्जिलिंग की डीएम ने एनजीटी के आदेश का हवाला देकर महानंदा नदी में छठ पूजा मनाने पर बैन कर दिया। दार्जिलिंग की जिलाधिकारी ने नदी में छठ के लिए अस्थायी घाट बनवाने से भी इनकार कर दिया और कहा कि जो कोई भी यहां छट मनाते देखा गया उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। एनजीटी ने एक अजीबोगरीब तर्क दिया कि छठ के कारण नदी में प्रदूषण हो रहा है। जबकि छठ में ऐसा कुछ भी नहीं होता जिससे नदी प्रदूषित हो। भगवान सूर्य को अर्घ्य के रूप में नदी का ही पानी अर्पित किया जाता है उसमें थोड़े से फूल और पत्ते और चावल के दाने होते हैं। ये सब प्राकृतिक चीजे हैं जिन्हें नदी में पलने वाली मछलियां और दूसरे जीव खाते हैं। ये सारी चीजें सूप में रखकर चढ़ाई जाती हैं, यानी पॉलीथिन फेंके जाने की भी आशंका नहीं होती।

सबूत नंबर-4
ममता बनर्जी ने सरस्वती पूजा पर भी लगाया प्रतिबंध
एक तरफ बंगाल के पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य किया गया तो एक सरकारी स्कूल में कई दशकों से चली आ रही सरस्वती पूजा ही बैन कर दी गई। ये मामला हावड़ा के एक सरकारी स्कूल का है, जहां पिछले 65 साल से सरस्वती पूजा मनायी जा रही थी, लेकिन मुसलमानों को खुश करने के लिए ममता सरकार ने इसी साल फरवरी में रोक लगा दी। जब स्कूल के छात्रों ने सरस्वती पूजा मनाने को लेकर प्रदर्शन किया, तो मासूम बच्चों पर डंडे बरसाए गए। इसमें कई बच्चे घायल हो गए।

सबूत नंबर-3
हनुमान जयंती पर निर्दोषों को किया गिरफ्तार, लाठी चार्ज 
11 अप्रैल, 2017 को पश्चिम बंगाल में बीरभूम जिले के सिवड़ी में हनुमान जयंती के जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ममता सरकार से हिन्दू जागरण मंच को हनुमान जयंती पर जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी। हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं का कहना था कि हम इस आयोजन की अनुमति को लेकर बार-बार पुलिस के पास गए, लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। धार्मिक आस्था के कारण निकाले गए जुलूस पर पुलिस ने बर्बता से लाठीचार्ज किया। इसमें कई लोग घायल हो गए। जुलूस में शामिल होने पर पुलिस ने 12 हिन्दुओं को गिरफ्तार कर लिया। उन पर आर्म्स एक्ट समेत कई गैर जमानती धाराएं लगा दीं।

सबूत नंबर-2
ममता राज के 8000 गांवों में एक भी हिंदू नहीं
पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं का उत्पीड़न जारी है। दरअसल ममता राज में हिंदुओं पर अत्याचार और उनके धार्मिक क्रियाकलापों पर रोक के पीछे तुष्टिकरण की नीति है। लेकिन इस नीति के कारण राज्य में अलार्मिंग परिस्थिति उत्पन्न हो गई है। प. बंगाल के 38,000 गांवों में 8000 गांव अब इस स्थिति में हैं कि वहां एक भी हिन्दू नहीं रहता, या यूं कहना चाहिए कि उन्हें वहां से भगा दिया गया है। बंगाल के तीन जिले जहां पर मुस्लिमों की जनसंख्या बहुमत में हैं, वे जिले हैं मुर्शिदाबाद जहां 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू, और उत्तरी दिनाजपुर 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू। दरअसल बंगलादेश से आए घुसपैठिए प. बंगाल के सीमावर्ती जिलों के मुसलमानों से हाथ मिलाकर गांवों से हिन्दुओं को भगा रहे हैं और हिन्दू डर के मारे अपना घर-बार छोड़कर शहरों में आकर बस रहे हैं।

सबूत नंबर-1
ममता राज में घटती जा रही हिंदुओं की संख्या
पश्चिम बंगाल में 1951 की जनसंख्या के हिसाब से 2011 में हिंदुओं की जनसंख्या में भारी कमी आयी है। 2011 की जनगणना ने खतरनाक जनसंख्यिकीय तथ्यों को उजागर किया है। जब अखिल स्तर पर भारत की हिन्दू आबादी 0.7 प्रतिशत कम हुई है तो वहीं सिर्फ बंगाल में ही हिन्दुओं की आबादी में 1.94 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं ज्यादा दर से बढ़ी है।

 

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