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PM Modi के विजन से ही निकला ‘राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’, बीस हजार करोड़ से ज्यादा खर्च कर तय होगा Net Zero का लक्ष्य, मिशन से ऐसे बदल जाएगी जिंदगी

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन उन्हें दुनिया के बड़े नेताओं में सर्वथा अलग और लोकप्रिय बनाता है। अपने दूरदृष्टा विजन को धरातल पर उतारने के लिए अपनी संकल्प-शक्ति और अथक परिश्रम के चलते ही वो सम्मानित नेता की सर्वोच्च उपाधि पाते हैं। आपको याद होगा कि स्कॉटलैंड के ग्लासगो में यूएन के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम COP26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार भारत के उत्सर्जन में नेट जीरो के लक्ष्य को पाने की अवधि का ऐलान किया था। इस लक्ष्य को पाने की दिशा में मोदी सरकार में अपने मजबूत कदम तेजी के आगे बढ़ाए हैं। सरकार ने देश में ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 19,744 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना को मंजूरी दी है। ‘राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ नामक यह योजना वर्ष 2070 तक शून्य उत्सर्जन के देश के लक्ष्य को हासिल करने में भी काफी मददगार साबित होगी।भारत का लक्ष्य 2030 तक हर साल 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में ग्रीन हाउस गैसों, विशेष रूप से कार्बन के उत्सर्जन में कटौती को सुनिश्चित करने वाले फैसले को मंजूरी दी गई। ‘राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ पीएम मोदी के विजन से ही निकला है। उन्होंने ही वर्ष 2021 के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इस महत्वपूर्ण मिशन की घोषणा थी। अब मोदी सरकार इस मिशन को अमली जामा पहनाने में जुटी है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने ने कहा कि प्रधानमंत्री के दिखाए विजन पर चलते हुए भारत का लक्ष्य 2030 तक प्रतिवर्ष 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। इस प्रोत्साहन योजना से इसके दाम को भी कम करने में मदद मिलेगी। दुनियाभर में देश की साख भी बढ़ेगी।भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात में ग्लोबल हब बनाना लक्ष्य
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी इस मिशन के जरिये भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग और निर्यात में ग्लोबल हब बनाना चाहते हैं। इसके लिए, जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर एक ही जगह उपलब्ध कराने की योजना है, जिससे इसके उत्पादक और उपभोक्ता पर ट्रांसपोर्टेशन का अतिरिक्त भार न पड़े। इस अभियान के जरिये भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही कई क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने में भी मदद मिलेगी। वहीं, प्रसार भारती के लिए योजना से विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में प्रसारण बुनियादी ढांचे को बढ़ाएगी। इसके अलावा दूरदर्शन व ऑल इंडिया रेडियो के नए स्टूडियो, नई ओबी वैन और डीटीएच प्लेटफार्म की क्षमता को बढ़ाने के लिए भी कैबिनेट ने 2500 करोड़ मंजूर किए।कार्बन न्यूट्रैलिटी यानी कार्बन के उत्सर्जन में तटस्थता लाना ही नेट जीरो
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सतत विकास और हमारे युवाओं के लिए निवेश के अवसर पैदा करने की दिशा में हाइड्रोजन मिशन ऐतिहासिक कदम है। इससे नेट जीरो के लक्ष्य को पाने में भी मदद मिलेगी। इस बीच यह समझना भी जरूरी है कि पीएम जिस नेट जीरो की बात कह रहे हैं, उस नेट जीरो का क्या मतलब है? गौरतलब है कि अमेरिका समेत कई यूरोपीय देश लगातार 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन टारगेट हासिल करने की बात करते रहे हैं। नेट जीरो का अर्थ यह है कि सभी देशों को जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए कार्बन न्यूट्रैलिटी यानी कार्बन के उत्सर्जन में तटस्थता लानी है। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि कोई देश कार्बन के उत्सर्जन को शून्य पर पहुंचा दे (जो कि असंभव है)। बल्कि नेट जीरो का अर्थ है कि किसी भी देश के उत्सर्जन का आंकड़ा वायुमंडल में उसकी ओर से भेजी जा रही ग्रीनहाउस गैसों के जमाव को स्थिर रखे।नेट जीरो को आसान भाषा में इन चार पॉइंट्स में समझा जा सकता है…
1. दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के लिए ग्रीनहाउस गैसों को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह वो गैस है, जिनका ज्यादा उत्सर्जन पूरी दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रहा है। इन गैसों में सबसे प्रमुख है कार्बन डाइऑक्साइड (CO2),मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (NO)। इसके अलावा इंसानों द्वारा बनाए गए कुछ कार्बन और फ्लोरीन गैस के कंपाउंड भी ग्रीनहाउस गैस में गिने जाते हैं, क्योंकि यह भी वायुमंडल में ऊर्जा छोड़ती हैं, जिससे अंततः ग्लोबल वॉर्मिंग पैदा होती है। यानी इन गैसों का ज्यादा उत्सर्जन धरती पर गर्मी का कारण बनता है।

2. वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य के शरीर से लेकर उसके आसपास मौजूद चीजें भी कार्बन और अन्य तत्वों के जोड़ से बनी है। इसका मतलब यह है कि कोई देश वातावरण में कार्बन आधारित ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन कर रहा है, उतना ही उसे सोख और हटा भी रहा है। यानी उसकी तरफ से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का योगदान न के बराबर हो। इसी को नेट जीरो कहा जाता है। यह तकनीकें जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम करने में भी इस्तेमाल हो सकती हैं। मसलन सूर्य से मिलने वाली सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अब हर तरह की मशीन को चलाने में हो रहा है। इसके अलावा बिजली और ग्रीन फ्यूल से चलने वाले वाहनों पर भी जोर दिया जा रहा है। 3. धरती का तापमान बढ़ने का एक कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के ज्यादा जमाव को माना जा रहा है। जीवाश्म ईंधन और रोजमर्रा के कामों में आने वाले इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज (फ्रिज, एसी) में इस्तेमाल होने वाले कंपाउंड (क्लोरोफ्लोरोकार्बन-सीएफसी) आदि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के ज्यादा इकट्ठा होने जिम्मेदार हैं। इनसे निकलने वाले खतरनाक तत्व प्रकृति को खासा नुकसान पहुंचाते हैं।

4. चूंकि दुनियाभर में जीवाश्व ईंधन और रोजमर्रा की जरूरतों की चीजों का इस्तेमाल अचानक बंद नहीं किया जा सकता। ऐसे में इनके उत्सर्जन में कमी का एक लक्ष्य तय किया गया है। कई विकसित देशों ने तो यह लक्ष्य 2050 तक ही तय किया है। उनका कहना है कि अमीर देशों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए जल्द से जल्द जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल पर रोक के साथ प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले कंपाउंडों के प्रयोग पर भी लगाम लगानी होगी। ताकि ग्रीनहाउस गैसों (मुख्यतः कार्बन डाइऑक्साइड) का उत्सर्जन कम हो जाए।

नेट जीरो के टारगेट को हासिल करने में इसलिए सही हैं भारत की आपत्तियां
विकसित देशों ने जहां नेट जीरो 2050 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है, वहीं पीएम मोदी ने इस लक्ष्य को 2070 पर तय किया है। भारत शुरुआत से ही नेट जीरो के टारगेट को जल्दी हासिल करने पर आपत्ति जताता रहा है। विकसित देशों के उलट भारत की अर्थव्यवस्था भी अभी लगातार बढ़ रही है, जिसकी वजह से ऊर्जा जरूरतें आगे भी बढ़ती रहेंगी। यही वजह है कि विकासशील देश होने की वजह से अभी भारत की निर्भरता जीवाश्म ईंधन पर सबसे ज्यादा है। सैद्धांतिक तौर पर भारत की आपत्तियां सही भी मानी जा रही हैं। नेट जीरो का लक्ष्य कभी भी 2015 के पेरिस समझौते का हिस्सा नहीं था। इस समझौते में शामिल देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए सिर्फ एक आधारभूत ढांचा खड़ा करना था और अपने पांच से दस सालों के लक्ष्य तय करने थे, जिससे वे यह दिखा सकें कि जलवायु परिवर्तन के लिए यह देश गंभीर हैं। भारत ने भी 2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने के साथ नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने का वादा किया है। दुनियाभर में सोलर एनर्जी अलायंस को बढ़ावा देना भारत की इसी नीति का हिस्सा है।दुनियाभर के लिए क्यों जरूरी है नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करना?
पिछले दो सालों से नेट जीरो के लक्ष्य पर लगातार जोर दिया जा रहा है। विकसित देशों का लक्ष्य सदी के मध्य तक पृथ्वी के तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकना है। हालांकि, अभी जिस तरह से उत्सर्जन का स्तर जारी है, उससे सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 3 से 4 डिग्री तक बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। इसे एक उदाहरण के जरिए समझना ज्यादा बेहतर रहेगा। दुनिया में जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों (कार, बस, जहाज, आदि) और फ्रिज, एसी में बढ़ते सीएफसी के इस्तेमाल की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी ज्यादा हुआ है। इस बढ़ते उत्सर्जन को हरे-भरे जंगलों के जरिए कम किया जा सकता है। पेड़ जो कि कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं, वे ग्रीनहाउस गैसे उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ और भविष्य की तकनीकों के जरिए उत्सर्जन पर लगाम लगाई जा सकती है।

 

 

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