प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को कोरोना संकट के समय 5वीं बार राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में स्थानीयता और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि स्थानीय तौर पर ऐसी कोशिशें हों और विकास किए जाए, ताकि आम जनता के साथ-साथ देश भी आत्मनिर्भर बन सके। कोरोना से लड़ने के लिए हमारे वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और विशेषज्ञों ने मेक इन इंडिया के तहत नए उपकरणों और दवाइयों का विकास कर इस दिशा में सफलता पायी है। कोरोना की इस जंग में अब भारतीय वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता हाथ लगी है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक पेपर बेस्ड टेस्ट स्ट्रिप तैयार की है, जो मिनटों में COVID-19 का पता लगा सकती है। इस टेस्ट किट को ‘फेलूदा’ नाम दिया गया है।
आईजीआईबी के वैज्ञानिकों ने विकसित किया टेस्ट किट
सीएसआईआर से संबद्ध नई दिल्ली स्थित जिनोमिकी और समवेत जीव विज्ञान संस्थान (आईजीआईबी) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह एक पेपर-स्ट्रिप आधारित परीक्षण किट है, जिसकी मदद से कम समय में कोविड-19 के संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। इस टेस्ट में कागज की पतली स्ट्रिप में उभरी लाइन से पता चल जाता है कि कोई शख्स कोरोना पॉजिटिव है या नहीं।
काफी सस्ती है पेपर-स्ट्रिप किट
आईजीआईबी के वैज्ञानिक डॉ सौविक मैती और डॉ देबज्योति चक्रवर्ती की अगुवाई वाली एक टीम ने इस पेपर किट को विकसित की है। यह किट एक घंटे से भी कम समय में नए कोरोना वायरस (एसएआरएस-सीओवी-2) के वायरल आरएनए का पता लगा सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आमतौर पर प्रचलित परीक्षण विधियों के मुकाबले यह एक पेपर-स्ट्रिप किट काफी सस्ती है और इसके विकसित होने के बाद बड़े पैमाने पर कोरोना के परीक्षण चुनौती से निपटने में मदद मिल सकती है।
500 रुपये में होगी कोरोना की जांच
इस किट की एक खासियत यह है कि इसका उपयोग तेजी से फैल रही कोविड-19 महामारी का पता लगाने के लिए व्यापक स्तर पर किया जा सकेगा। आईजीआईबी के वैज्ञानिक डॉ देबज्योति चक्रवर्ती के मुताबिक अभी इस परीक्षण किट की वैधता का परीक्षण किया जा रहा है, जिसके पूरा होने के बाद इसका उपयोग नए कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए किया जा सकेगा। इस किट के आने से वायरस के परीक्षण के लिए वर्तमान में इस्तेमाल की जाने वाली महंगी रियल टाइम पीसीआर मशीनों की जरूरत नहीं पड़ेगी। नई किट के उपयोग से परीक्षण की लागत करीब 500 रुपये आती है।
पिछले करीब दो महीनों से दिन-रात जुटे थे वैज्ञानिक
आईजीआईबी के वैज्ञानिकों ने बताया कि वे इस टूल पर लगभग दो साल से काम कर रहे हैं। लेकिन, जनवरी के अंत में, जब चीन में कोरोना का प्रकोप चरम पर था, तो उन्होंने यह देखने के लिए परीक्षण शुरू किया कि यह किट कोविड-19 का पता लगाने में कितनी कारगर हो सकती है। इस कवायद में किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए आईजीआईबी के वैज्ञानिक पिछले करीब दो महीनों से दिन-रात जुटे हुए थे।
टेस्ट के लिए जल्द होगा पेपर-स्ट्रिप किट का इस्तेमाल
सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी. मांडे ने कहा, इस किट के विकास से जुड़े प्राथमिक परिणाम उत्साहजनक हैं। हालांकि, प्राथमिक नतीजे अभी सीमित नमूनों पर देखे गए हैं और इसका परीक्षण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। दूसरे देशों से मंगाए गए नमूनों पर भी इसका परीक्षण किया जाएगा। नियामक निकायों से इसके उपयोग की अनुमति जल्दी ही मिल सकती है, जिसके बाद इस किट का उपयोग परीक्षण के लिए किया जा सकता है।
सत्यजीत रे की फिल्म से लिया गया है ‘फलूदा’ नाम
बता दें कि इस किट को फेलूदा का नाम बांग्ला फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्म से लिया गया है। फेलूदा उनकी फिल्मों का एक किरदार रहा है जो बंगाल में रहने वाला प्राइवेट जासूसी किरदार है, जो छानबीन कर हर समस्या का रहस्य खोज ही लेता है।
आइए एक नजर डालते हैं भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने किस तरह तकनीक के माध्यम से कोरोना का इलाज खोजने का प्रयास किया है।
- भारतीय वैज्ञानिकों ने डिजिटल प्रौद्योगिकी पर आधारित आरोग्य सेतु एप विकसित किया है, जो कोरोना संक्रमण के जोखिम का आकलन और बचाव करने में मदद करता है।
- अभी तक 10 करोड़ से ज्यादा लोग आरोग्य सेतु एप को अपने मोबाइल में डाउनलोड कर चुके हैं।
- भारत के वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस की जांच के लिए एलाइजा किट बनाया, जिसे कोविड कवच एलाइजा का नाम दिया गया है।
- एससीटीआईएमएसटी ने कोरोना संकट का सामना करने के लिए ऑटोमेटेड वेंटिलेटर का विकास किया।
- सीएसआईआर-एनएएल ने 35 दिनों के भीतर बाईपैप वेंटिलेटर का विकास किया।
- दिल्ली स्थित डीआरडीओ के एक केंद्र ने एक सैनेटाइजर मशीन बनाया, जिसे बिना छुए उसके झाग से हाथ सैनेटाइज होगा।
- डीआरडीओ ने अल्ट्रावायलेट बॉक्स बनाया है, जिसमें मोबाइल, पर्स और रुपये को सैनेटाइज किया जा सकता है।
- डीआरडीओ द्वारा विकसित सैनेटाइजिंग उपकरण से 3000 वर्ग मीटर क्षेत्र को संक्रमण मुक्त किया जा सकता है।
- श्री चित्रा तिरुनाल प्रौद्योगिकी संस्थान ने कोरोना परीक्षण के लिए स्वैब और वायरल ट्रांसपोर्ट माध्यम का विकास किया।
- डीआरडीओ ने भारी संक्रमण वाले क्षेत्रों के कीटाणुशोधन के लिए एक अल्ट्रा वॉयलेट (यूवी) डिसइंफेक्शन टॉवर विकसित किया।
- अस्पतालों को प्रभावी ढंग से कीटाणुमुक्त करने के लिए यूवी कीटाणुशोधन ट्रॉली का विकास किया गया।
- कोरोना संक्रमण को रोकने में सीएसआईओ के वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रोस्टेटिक डिसइंफेक्शन मशीन विकसित किया।
- एसआईआर के वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए एक पेपर-स्ट्रिप आधारित परीक्षण किट विकसित किया।
- भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना संक्रमण की त्वरित जांच करने वाली ई-कोव-सेंस नामक इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसिंग डिवाइस तैयार की।
- रेलवे के सोलापुर डिविजन ने स्वास्थ्यकर्मियों और मरीजों की सुविधा के लिए मेडिकल असिस्टेन्ट रोबोट का निर्माण किया।