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सोनिया गांधी ने चुनावों में हार की हताशा का ठीकरा सोशल मीडिया पर फोड़ा, राहुल गांधी का प्रोफाइल तो डाटा चोरी और डाटा मैन्यूपुलेशन करने वाली कैंम्ब्रिज एनालिटिका से जुड़ा है

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देश में बुरी तरह हार का सामना कर रही कांग्रेस एक बार फिर अपने पुराने ढर्रे पर है। कांग्रेस की कार्यप्रणाली है कि फर्जी, फालतू, गैर-जरूरी और सत्यता के परे मुद्दे उछालकर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स के साथ गठजोड़ के बलबूते पर जनता में भ्रम का माहौल बनाया जाए। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी,  लोकसभा में जब सोशल मीडिया को हैक करने, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियों का गलत इस्तेमाल करने की फर्जी कहानियां बना रहीं थीं, तब वे भूल रहीं थीं कि उनकी ही पार्टी कांग्रेस, उनके ही पुत्र राहुल गांथी के द्वारा क्रैंब्रिज एनालिटिका की सेवाएं ली गईं थीं। यह वही कंपनी है जो चुनाव जीतने के लिए डाटा चोरी या डाटा मैन्यूपुलेशन के लिए कुख्यात है।

कैंम्ब्रिज एनालिटिका से संबंध रखने वालों का आरोप लगाना ही हास्यास्पद
कांग्रेस की स्वयंभू अध्यक्ष सोनिया गांधी को याद रखना चाहिए कि राहुल गांधी का सोशल प्रोफाइल कैंम्ब्रिज एनालिटिका से जुड़ा है। कैंम्ब्रिज एनालिटिका वही कंपनी है जो चुनाव जीतने के लिए डाटा चोरी या डाटा मैन्यूपुलेशन के लिए कुख्यात है। जो पार्टी और उसके बड़े नेता खुद विदेशी कंपनियों की मदद से भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, वे ही संसद में लोकतंत्र को हैक करने का मिथ्या आरोप लगा रहे हैं, यह अपने-आप में ही हास्यास्पद और राजनीतिक पटल पर मजाक का ही विषय है।कांग्रेस के फेक मुद्दों, फर्जी टूलकिट को जनता सिरे से खारिज किया
दरअसल, कांग्रेस की यह कार्यप्रणाली कोई नई नहीं है। हार से बुरी तरह पस्त कांग्रेस पार्टी पहले भी इस तरह की साजिशें कर चुकी है। कांग्रेस के फेक मुद्दों, फर्जी टूलकिट को जब जनता सिरे से खारिज कर देती है तो कांग्रेस नेता इसे मीडिया स्पेस के लिए संसद में उठाने लगते हैं। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स के साथ गठजोड़ का सहारा लेते हैं, लेकिन जो सही तथ्य हैं, वे नहीं बदलते। और वास्तविकता यह है कि कांग्रेस ने कैम्ब्रिज एनालिटिका का इस्तेमाल किया। कांग्रेस ने ही अपने नेता राहुल गांधी को प्रचारित करने के लिए तुर्की और अन्य देशों के बॉट्स का इस्तेमाल किया।

कांग्रेस की नौटंकी : सोनिया ने सोनिया का इस्तीफा अस्वीकार कर दिया
कांग्रेस पार्टी और उसकी अंतरिम अध्यक्ष को पहले अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। पांच राज्यों की जनता द्वारा बुरी तरह नकार दिए जाने का ठीकरा कांग्रेस पार्टी दूसरों पर नहीं फोड़ सकती, क्योंकि यह उसकी खुद की करतूतों और लोकतंत्र में जनता को सर्वोपरि न मानने का ही दुष्परिणाम है। हार के बाद सोनिया गांधी ने कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक में अपने इस्तीफे की नौटंकी तो कर दी। यह कुछ ऐसा ही था मानो…सोनिया गांधी ने सोनिया गांधी को सोनिया गांधी का इस्तीफ़ा पेश किया पर सोनिया गांधी ने सोनिया गांधी से चर्चा के बाद सोनिया गांधी से कहा कि सोनिया गांधी को ही तब तक अध्यक्ष बने रहने की जरूरत है। जब तक कि सोनिया गांधी यह तय नहीं कर लेती कि पार्टी और राहुल गांधी को अब सोनिया गांधी की जरूरत नहीं है।

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षों पर हार की जिम्मेदारी और अपनी बिटिया पाक-साफ
पहले से ही नतमस्तक कांग्रेसी दरबारियों ने इस्तीफा न लेना था और न ही लिया। दिलचस्प तथ्य तो यह है कि सोनिया गांधी का इस्तीफा नाटक खत्म होने के तत्काल बाद ही उन्होंने जहां चुनाव हुए हैं, उन पांचों राज्यों के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्षों का इस्तीफा मांग लिया और उन्हें हार के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। लेकिन यूपी में बड़बोले अंदाज में लड़ रही ‘लड़की’ पर कोई आंच नहीं आई। यूपी में 403 सीटों में चुनाव लड़कर कांग्रेस को सिर्फ 2.33 प्रतिशत वोट के साथ दो सीटें मिल पाईं, लेकिन यूपी की प्रभारी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा हार के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराई गईं।

सन 47 से 90 तक कांग्रेस ने नफरत के कितने माहौल बनाए
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया है कि आज देश में नफरत का माहौल बनाया जा रहा है। देश को नफरत के माहौल से निकालने की जिम्मेदारी हम सभी राजनीतिक दलों की बनती है। सोनिया गांधी भूल रही हैं कि नफरत का माहौल बनाना तो कांग्रेस की पुरानी परिपाटी रही है। देश की आजादी के समय हिंदू-मुस्लिमों के बीच किसने नफरत फैलाने का काम किया ? आपातकाल के समय असीमित यातनाएं देने का श्रेय किसे है ? 1984 में सिखों और हिंदुओं के बीच किसने विषवमन किया ? यह किसने कहा कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो…? और कश्मीरी पंडितों को कत्लेआम किसकी लापरवाही से हुआ? यह द कश्मीर फाइल्स फिल्म में बखूबी देख रहे हैं। सारे देश के सामने सच्चाई अब सामने आ रही है।

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