देश की राजनीति में गांधी परिवार और मुलायम परिवार ‘परिवारवाद’ के दो प्रमुख झंडाबरदार है। वहीं पंजाब की राजनीति में दशकों से बादल परिवार का दबदबा है। लेकिन इस बार पंजाब के सियासी खेत में ‘परिवारवाद’ की नई फसल भी देखने को मिल रही है। प्रमुख नेताओं की बेटियों के चुनाव प्रचार में उतरने से सियासी संग्राम काफी दिलचस्प हो गया है। इस चुनाव में तीन बेटियों की खूब चर्चा हो रही है। जहां पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की बेटी राबिया सिद्धू और पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर बादल की बेटी हरकीरत कौर बादल अपने पिता की जीत सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है, वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बेटी हर्षिता केजरीवाल भी पंजाब में सक्रिय दिखी।
जिस तरह जवाहर लाल नेहरू इंदिरा गांधी को राजनीति का गुर सीखाने के लिए अपने साथ रखते थे, उसी तरह सिद्धू, बादल और केजरीवाल अपनी बेटियों को रानजीतिक शिक्षा देने में लगे हुए हैं। सिद्धू की बेटी राबिया सिद्धू जिस आक्रामक तरीके से सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के साथ ही सिद्धू के विरोधियों पर निशाना साध रही है, उससे लगता है कि सिद्धू आगे चलकर अपना उत्तराधिकारी राबिया सिद्धू को ही बनाने जा रहे हैं। इसी तरह सुखबीर बादल जलालाबाद सीट से पार्टी के उम्मीदवार है। उनके प्रचार की कमान उनकी बड़ी बेटी हरकीरत कौर ने संभाल रखी है।
सियासी पाठशाला में राबिया और हरकीरत की उपस्थिति देख दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद को नहीं रोक पाएं। वे भी अपनी बेटी को किसी से पीछे नहीं रखना चाहते थे। इसलिए हर्षिता केजरीवाल को धूरी विधानसभा क्षेत्र में भगवंत मान के लिए वोट मांगने के लिए उतार दिया। हर्षिता फ़रवरी 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी ‘आप’ के लिए चुनाव प्रचार कर चुकी हैं। इससे हर्षिता के आगे राजनीति में उतरने की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। अब पंजाब का सियासी संग्राम नेताओं के साथ ही उनकी बेटियों के भविष्य के लिए भी महत्वपूर्ण हो गया है।
लोकतंत्र के लिए खतरा बना ‘परिवारवाद’
देश/राज्य | सियासी परिवार |
भारत | गांधी परिवार |
उत्तर प्रदेश | मुलायम परिवार |
पंजाब | बादल परिवार |
हरियाणा | चौटाला परिवार |
बिहार | लालू परिवार |
झारखंड | सोरेन परिवार |
महाराष्ट्र | ठाकरे और पवार परिवार |
कर्नाटक | देवगौड़ा परिवार |
तमिलनाडु | करुणानिधि परिवार |
जम्मू-कश्मीर | अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार |
‘परिवारवाद’ को चुनौती देता एक परिवार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 20 साल से सत्ता के शिखर पर हैं। 13 साल मुख्यमंत्री और सात साल से देश के प्रधानमंत्री हैं। लेकिन उनका परिवार राजनीति की चकाचौंध से दूर सादगी से जी रहा है। आज उनका परिवार उम्मीदों और आशाओं से भरे भारतीय लोकतंत्र के लिए रोशनी की तरह है। शायद कम ही लोगों को पता हो कि गरीबी में जी रहे प्रधानमंत्री के परिवार के सदस्य मेहनत मजदूरी कर चंद हजार रुपये ही कमाते हों, लेकिन ये भारतीय लोकतंत्र की सत्य की ताकत को प्रदर्शित करते हैं। जाहिर तौर पर मोदी का परिवार हमें देश के बाकी शाही परिवारों को परखने के लिए भी मजबूर करता है। प्रधानमंत्री का साफ मानना है कि सत्ता के साथ परिवार का किसी भी तरह का जुड़ाव उन्हें भ्रष्ट कर सकता है। इसी वजह से परिवार को राजनीति से दूर रखना पड़ता है।