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घोटालों का ‘राज’ : अखिलेश यादव जब सीएम थे तो 8.84 करोड़ की संपत्ति 37.78 करोड़ हुई, 18 साल में सबसे कम कमाई योगीराज में हुई…सिर्फ 10 प्रतिशत की ग्रोथ

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समाजवादी पार्टी के राज में सपाइयों पर यूं ही भ्रष्टाचार और घोटाले करने आरोप नहीं लगते रहते। भ्रष्टाचार में हिस्सेदारी खजाने में बरक्कत करती रहती है। खुद अखिलेश यादव द्वारा दिए गए आंकड़े बोलते हैं कि उनकी संपत्ति अखिलेश सरकार के दौरान यानि 2012 से 2017 के बीच में चार गुना बढ़ी। पिता मुलायम सिंह की तीसरी सरकार के दौरान अखिलेश यादव की संपत्ति दो-गुना बढ़ी। हां, योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में अखिलेश यादव की संपत्ति ने अजब रिकॉर्ड बनाया। खजाना बढ़ाने के सारे स्कोप खत्म हो जाने के कारण इन पांच सालों में अखिलेश की संपत्ति मात्र दस प्रतिशत ही बढ़ पाई।

सपा कार्यकाल में डिंपल ने लाखों की बनवाई ज्वैलरी, योगीराज में करती रही गहनों का इंतजार
सबसे दिलचस्प बात यह भी है कि अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव के लाखों के गहने भी सपा सरकार के दौरान ही बने। योगी सरकार के दौरान वह ज्वैलरी का इंतजार करते ही रह गई। अखिलेश कन्नौज लोकसभा का चुनाव 2004 में लड़ने उतरे तो उन्होंने अपने एफिडेविट में पत्नी डिंपल के पास 23 लाख की ज्वेलरी बताई थी। 2009 में डिंपल के पास ज्वेलरी भी दोगुनी रफ्तार से बढ़ी और यह 23 लाख से बढ़कर 46 लाख हो गई थी। 2012 तक डिंपल के पास 59 लाख की ज्वेलरी हो चुकी थी। 2022 के शपथपत्र में डिंपल की चल संपत्ति में तो 1 करोड़ का इजाफा हुआ है। लेकिन डिंपल यादव की ज्वेलरी की वैल्यू अभी भी 59 लाख ही बनी है।अखिलेश यादव की 18 साल में संपत्ति हुई 17 गुना
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साल 2000 में कन्नौज लोकसभा सीट पर उपचुनाव जीता था। फिर 2004 में भी वह कन्नौज से ही सांसद का चुनाव लड़े। तब दाखिल किए गए नामांकन पत्र के मुताबिक उनकी संपत्ति 2 करोड़ 31 लाख थी। जबकि अब करहल से उन्होंने जो नामांकन दाखिल किया है, उसमें उनकी संपत्ति 40.4 करोड़ तक पहुंच गई। यानी 18 साल में उनकी संपत्ति 17 गुना बढ़ी है।पिता मुलायम सिंह के कार्यकाल में संपत्ति दो गुना बढ़ी थी
अखिलेश की संपत्ति बढ़ने की रफ्तार अलग-अलग रही है। जैसे जब उनकी सरकार थी तब उनकी संपत्ति करीब 4 गुना रफ्तार से बढ़ी। यह उनकी सबसे ज्यादा ग्रोथ रही है। वहीं, योगी सरकार के शासन में तीन साल में उनकी संपत्ति सबसे कम महज 10% बढ़ी। 2004 से 2009 के बीच दोगुना रफ्तार से बढ़ी संपत्ति। इस बीच उनके पिता मुलायम सिंह की सरकार रही। 2004 में जब अखिलेश कन्नौज लोकसभा का चुनाव लड़ने उतरे तो उन्होंने अपने एफिडेविट में बताया कि उनके पास 2 करोड़ 31 लाख 42 हजार 705 रुपए की संपत्ति थी। इस दौरान अखिलेश ने बताया कि उनके पास उनके नाम पर कोई गाड़ी भी नहीं है। जबकि पत्नी डिंपल के पास 23 लाख की ज्वेलरी जरूर एफिडेविट में बताई गई थी।

अखिलेश ने 2009 से पहले खरीदीं महंगी कारें और मोबाइल सेट
मुलायम सिंह यादव का तीसरा कार्यकाल 2003 से 2007 तक रहा। इसके बाद अखिलेश यादव 2009 में एक बार फिर कन्नौज से चुनावी मैदान में उतरे। तब के उनके शपथपत्र में 4 करोड़ 85 लाख 82 हजार 202 रुपए की संपत्ति अखिलेश के पास दर्शाई गई। यानी 5 साल में दोगुना रफ्तार से उनकी संपत्ति बढ़ी। इन पांच सालों में अखिलेश यादव के पास 19 लाख की पजेरो और डिंपल यादव के पास 6 लाख की कोरोला कार आ चुकी थी। यही नहीं, अखिलेश ने एफिडेविट में अपने पास 89 हजार के मोबाइल सेट और 22 हजार के म्यूजिकल सिस्टम को भी दर्शाया था।

2012 में बने एमएलसी, 8.84 करोड़ हुई अखिलेश की संपत्ति
2012 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद अखिलेश यादव को कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा देना पड़ा। विधान परिषद के जरिए वह सदन पहुंच गए। सांसद से एमएलसी बनने तक उनकी संपत्ति 1.82 गुना ही बढ़ी। 2012 में दाखिल एफिडेविट के मुताबिक अखिलेश ने 8 करोड़ 84 लाख 83 हजार 492 रुपए की अपनी संपत्ति बताई। 3 साल में उन्होंने डिंपल यादव को 22 लाख का उधार दिया। यही नहीं, अखिलेश ने अपने भाई प्रतीक यादव को भी 1 करोड़ का उधार दिया। जबकि समाजवादी पार्टी को भी 1 लाख का कर्ज दिया। वहीं, डिंपल यादव की ज्वेलरी में और इजाफा हो गया। 2012 तक डिंपल के पास 59 लाख की ज्वेलरी हो चुकी थी।

सात साल बाद फिर पहुंचे लोकसभा, 4 गुना रफ्तार से बढ़ी संपत्ति
अखिलेश यादव के जीवन में सबसे ज्यादा तेज गति से संपत्ति अखिलेश सरकार के दौरान ही बढ़ी। अखिलेश यादव ने 2017 में चुनाव नहीं लड़ा। 2018 में अपना एमएलसी का कार्यकाल पूरा करने के बाद वह 2019 में आजमगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव में उतरे। यहां जब उन्होंने अपना एफिडेविट दाखिल किया तो तब तक उनकी संपत्ति 4.27 गुना की रफ्तार से बढ़कर 37 करोड़ 78 लाख 59 हजार 166 हो चुकी थी। अखिलेश के पास 2012 में 5 करोड़ की चल संपत्ति थी जबकि 2019 में यह बढ़कर 11 करोड़ हो गई। जबकि अचल संपत्ति 2012 में 3.50 करोड़ की थी, लेकिन 2019 में यह 26 करोड़ की हो गई।योगी आदित्यनाथ से राज में सबसे कम वृद्धि, 3 साल में सिर्फ 10% ही बढ़ी संपत्ति
सांसद रहते हुए अखिलेश की संपत्ति 3 साल में सिर्फ 10% ही बढ़ी है। जबकि बतौर सीएम उनकी संपत्ति में 7 साल में 4 गुना का इजाफा हुआ था। अखिलेश की 2019 में चल संपत्ति 7 करोड़ थी तो 2022 में यह बढ़कर 8 करोड़ हो गई। वहीं, डिंपल की भी चल संपत्ति में 1 करोड़ का इजाफा हुआ है। 3 साल के दौरान डिंपल यादव ने कोई भी ज्वेलरी नहीं खरीदी। उसकी वैल्यू अभी भी 59 लाख ही बनी है।

अखिलेश सरकार के प्रमुख घोटाले, CAG का खुलासा – 97 हजार करोड़ का घोटाला
उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार के दौरान सरकारी धन के इस्तेमाल में भारी घपला हुआ। कैग रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि अखिलेश सरकार में सरकारी धन की जमकर लूट हुई। सरकारी योजनाओं के नाम पर फर्जीवाड़ा कर 97 हजार करोड़ रुपए के सरकारी धन का बंदरबांट हुआ। 97 हजार करोड़ की भारी-भरकम धनराशि कहां-कहां और कैसे खर्च हुई, इसका कोई हिसाब-किताब ही नहीं है. कैग की इस रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा घपला समाज कल्याण, शिक्षा और पंचायतीराज विभाग में हुआ है। सिर्फ इन तीन विभागों में 25 से 26 हजार करोड़ रुपये कहां खर्च हुए, विभागीय अफसरों ने हिसाब-किताब की रिपोर्ट ही नहीं दी।पीएफ़ घोटाला: 45,000 कर्मचारियों का पैसा निजी कंपनी में पहुंचा
अखिलेश सरकार में बिजली कर्मचारियों के भविष्य निधि यानी पीएफ़ में घोटाला हुआ। 21 अप्रैल, 2014 को उत्तर प्रदेश स्टेट पावर सेक्टर एम्पलाइज ट्रस्ट के बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की बैठक में कर्मचारियों के जीपीएफ और सीपीएफ का पैसा ज्यादा ब्याज देने वाले फाइनेंशियल कॉरपोरेशन में लगाने का फैसला हुआ है। उस समय एमडी एपी मिश्रा थे। इससे पहले कर्मचारियों के पीएफ़ की राशि का निवेश राष्ट्रीयकृत बैंकों में किया जाता था, बाद में इसे दीवान हाउसिंग फ़ाइनेंस लिमिटेड कंपनी यानी डीएचएफ़एल में किया जाने लगा. इस घोटाले के आरोप में उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन के पूर्व एमडी एपी मिश्र और दो अन्य अधिकारी गिरफ्तार भी हुए।

लखनऊ का गोमती रिवर फ्रंट में करोड़ों रुपये का घोटाला
सपा सरकार ने इसे अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताया था जिसमें करीब 1438 करोड़ खर्च हुए थे, हालांकि इस पर काम शुरू होने के बाद से ही कई बार घोटाले के आरोप लगते रहे हैं। सपा शासन में हुए चर्चित गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में सुबूत जुटाने के लिए सीबीआई ने ताबड़तोड़ छापे मारे। सिंचाई विभाग के इस प्रोजेक्ट से जुड़े रहे तत्कालीन 16 इंजीनियरों समेत 189 फर्म्स और कंपनियों के प्रतिनिधियों के ठिकानों पर छानबीन की गई। यूपी के 13 शहरों के अलावा अलवर (राजस्थान) और कोलकाता में एक साथ 40 जगहों पर सीबीआई की टीमों ने पड़ताल की।

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