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पीएम मोदी के निर्देश पर कोरोना की काट खोजने में लगे देश के वैज्ञानिक, एक महीने में बनाई कोविड कवच एलाइजा किट

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार कोरोना महामारी से लड़ाई में दिन-रात जुटी हुई है। पीएम मोदी के निर्देश पर देश के डॉक्टर और वैज्ञानिक इस जानलेवा वायरस की काट खोजने में जी-जान से लगे हुए हैं। देश के लिए एक अच्छी बात है कि कोरोना वायरस की जांच के लिए भारत के वैज्ञानिकों ने महज एक महीने में ही एलाइजा किट बना दी है। मोदी सरकार ने इस जांच किट को कोविड कवच एलाइजा का नाम दिया है। इस किट का इस्तेमाल एंटीबॉडी जांच में किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि करीब ढाई घंटे में इस किट से 90 सैंपल की जांच की जा सकती है।

अभी मुंबई में दो जगहों पर इसका ट्रायल हो चुका है। आपको बता दें कि पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने इस एंटीबॉडी जांच किट को तैयार किया है। अब इस किट का ज्यादा से ज्यादा निर्माण कराने के लिए दवा कंपनी जायडस से करार किया गया है।

जाहिर है कि अभी तक आरटी पीसीआर के जरिए ही कोरोना वायरस का पता चल रहा है। इस जांच में करीब 2 से तीन घंटे का वक्त लगता है। ऐसे में सर्विलांस के लिए भारतीय वैज्ञानिक एक किट को बनाने में जुटे हुए थे। इस किट के जरिए जिला स्तर पर बड़ी आसानी के साथ संक्रमण की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार यह किट काफी सस्ती भी पड़ेगी। हालांकि अभी इसकी कीमत तय नहीं हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि कोरोना वायरस के सर्विलांस को लेकर यह किट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने इस कामयाबी के लिए नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी यानि एनआईवी और आईसीएमआर की टीम को बधाई भी दी है। इस किट की मदद से कोरोना वायरस के संक्रमण की घनी आबादी में वास्तविक स्थिति पता करने में आसानी होगी। दरअसल एंटीबॉडी रैपिड जांच किट्स को लेकर कुछ समय पहले भी चीन की कंपनियों को लेकर एक विवाद सामने आया था। अब एनआईवी पुणे की ओर से कोविड कवच एलाइजा किट का निर्माण होने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही यह किट राज्यों को उपलब्ध हो सकेगी, जिसके आधार पर यह भी पता चल सकेगा कि भारत में कोरोना वायरस का सामुदायिक फैलाव अब तक हुआ है या नहीं?

आपको बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर किस तरह देश में वैज्ञानिक और डॉक्टर युद्धस्तर पर कोरोना की वैक्सीन और दवाई खोजने में जुटे हुए हैं।-

कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान का असर, 30 से अधिक वैक्सीन ट्रायल स्टेज में
कोरोना संकट काल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान का असर हुआ है। कोरोना वायरस से उपचार के लिए 30 से ज्यादा वैक्‍सीन ट्रायल स्टेज में है। प्रधानमंत्री मोदी ने 5 मई को कोविड-19 कोरोना वायरस के उपचार के लिए वैक्‍सीन निर्माण, दवा की खोज, निदान और परीक्षण की मौजूदा स्थिति की समीक्षा की। समीक्षा बैठक में उन्हें बताया गया कि 30 से अधिक भारतीय वैक्‍सीन विकास के विभिन्‍न चरण में हैं। वैक्सीन विकास में तीन चरणों पर काम हो रहा है जिसमें मौजूदा दवाओं का पुन: संयोजन, नई औषधि पर प्रयोगशाला परीक्षण और सामान्‍य वायरस रोधी गुणों की जांच के लिए पौध उत्‍पाद और तत्‍वों का परीक्षण शामिल है।

इस बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने शोधकार्य, उद्योग और सरकार के समन्वित प्रयासों से कुशल नियामक प्रक्रिया पर विचार किया। प्रधानमंत्री ने जोर दिया कि संकट के इस समय हर संभव उपाय वैज्ञानिक प्रक्रिया का नियमित हिस्‍सा बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि दवा अनुसंधान के लिए जिस तरह से भारतीय वैज्ञानिक और उद्योग साथ आये हैं, वह सराहनीय है।

प्रधानमंत्री मोदी ने दवा, वैक्सीन और जांच से जुड़े मामलों पर एक हैकाथन आयोजित करने का सुभाव किया। उन्होंने कहा कि इसमें सफल उम्मीदवारों को स्टार्टअप कंपनियों द्वारा दवा के विकास कार्यों में लगाया जाना चाहिए।

देश में चल रहा वैक्सीन पर शोध और दवा पर ट्रायल
वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ाई में देश के डॉक्टर और शोधकर्ता काफी जोर-शोर से लगे हुए हैं। कई देशों की तरह भारत भी वैक्सीन पर शोध कर रहा है। इसके साथ ही उन दवाओं का भी ट्रायल चल रहा है जो पहले से दूसरी बीमारी में इस्‍तेमाल होती रही हैं। ये वो दवाएं हैं जो वायरस से संक्रमित मरीज को ठीक करने में मददगार साबित हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के लिए वैक्सीन पर भी शोध हो रहा है।

इनोवेशन और रिसर्च हब बना भारत
कोरोना वायरस के इस दौर में भारत नए अनुसंधान का हब बन कर उभरा है, जिस पर पूरे विश्व की नजर है। कोविड19 से मुकाबले के लिए भारत अलग-अलग क्षेत्रों में कई अनुसंधान कर रहा है। जिसमें कम कीमत पर टेस्टिंग की नई तकनीक इजाद करने से लेकर सस्ते वेंटिलेटर तक शामिल हैं।

दस गुणा तेजी से जांच करने वाली डायग्नोस्टिक किट
भारत में काफी तेजी से कोविड-19 की जांच के लिए नई डायग्नोस्टिक किट बनाई गई है। हाल ही में श्री चित्रा तिरुनाल आयुर्विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुवनंतपुरम में एक डायग्नोस्टिक किट बनाई गई। जो दुनिया में एकदम अलग और नए तरीके की है। इस किट का प्रयोग करने की कीमत भी कम होगी और जांच में 10 गुना तेजी आएगी। इससे जब भी हमें बहुत तेज और जल्दी टेस्ट की जरूरत होगी इससे करने में आसानी होगी। इससे टेस्टिंग में काफी फायदा मिलेगा। सबसे अहम बात है कि इसकी मैन्युफैक्चरिंग भारत में होगी। न केवल बनेगा बल्कि आने वाले दिनों में विश्व में भी सप्लाई कर सकेंगे।

बेहतर गुणवत्ता वाला पोर्टेबल वेंटिलेटर भी बनाए
कोरोना वायरस से संक्रमित गंभीर मरीजों को कई बार आईसीयू में वेंटिलेटर पर रखा जाता है। लेकिन अभी जो वेंटिलेटर का प्रयोग कर रहे हैं वो ज्यादातर विदेशी हैं जिनकी कीमत 6-7 लाख रुपये तक है। हालांकि अब देश वासियों को इतना ज्यादा नहीं खर्च करना पड़ेगा। क्योंकि भारत ने खुद अब अच्छी क्वालिटी के पोर्टेबल वेंटिलेटर बनाना शुरू कर दिया है। आईआईटी कानपुर में एक ग्रुप है जिसने कुछ कंपनियों के साथ मिलकर कम कीमत के वेंटिलेटर बनाए हैं। ये वेंटीलेटर कहीं भी हॉस्पिटल में रखे जा सकते हैं। इनकी कीमत 10 हजार रुपए तक है इसे घर पर भी आसानी से रखा जा सकता है। इसके अलावा पुणे में ही बिना लक्षण वाले वायरस से संक्रमितो के लिए एक जांच किट तैयार की गई है।

वेंटिलेटर में ऑक्सीजन के नए सिस्टम पर काम शुरू
कई बार वेंटिलेटर में ऑक्सीजन की जरूरत होती है। उसके लिए पुणे की एक स्टार्टअप ने एक ऐसा सिस्टम बनाया है जो हवा से ऑक्सीजन निकाल कर उसे प्रयोग में लाने का काम करता है और इस तरह के सारे अनुसंधान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत हो रहे हैं। डीएसटी सचिव बताते हैं कि डीएसटी सरकार का सबसे बड़ा विभाग है जो देश के सभी रिसर्च, डेपलपमेंट और इनोवेशन को सपोर्ट करता है। चाहे कोई यूनिवर्सिटी हो, एनजीओ हो, आईआईटी, स्टार्टअप हो या कोई कंपनी हो। जो भी स्वदेशी तकनीक का प्रयोग करके कोई रिसर्च या अनुसंधान करते हैं उन्हें साथ लेकर चलता है। ऐसे बहुत सारे अनुसंधान अभी चल रहे हैं।

पीएम मोदी के निर्देश पर दिन-रात जुटे हैं वैज्ञानिक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जहां एक तरफ देशवासियों को कोरोना से लड़ने के लिए जागरुक कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ डॉक्टरों, वैज्ञानिकों को इस वायरस की काट खोजने के लिए प्रोत्साहित करने में लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी के उत्साहवर्धन और प्रोत्साहन का ही नतीजा है कि इतने कम समय में कोरोना वैक्सीन के लिए भारतीय वैज्ञानिकों का शोध अब जानवरों के ट्रायल के स्तर पर पहुंच चुका है। बताया जा रहा है कि एक या दो सप्ताह में यह परीक्षण शुरू होगा। इसमें सफलता मिलने के बाद इसका इंसानों पर परीक्षण होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार देश के सात से आठ वैज्ञानिक समूह वैक्सीन शोध में आगे चल रहे हैं। आधा दर्जन शैक्षणिक संस्थाओं के वैज्ञानिक भी वैक्सीन के अध्ययन में जुटे हुए हैं।

बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने में भारतीय वैज्ञानिकों को 12 से 18 महीने का वक्त लग सकता है। भारतीय वैज्ञानिकों की तरह की दुनियाभर में वैज्ञानिकों के 75 ग्रुप भी वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक वैक्सीन किसी भी देश में बने, इसका उत्पादन भारत में ही किया जाएगा। जानकारी के अनुसार भारत बायॉटेक, कैडिला, सीरम इंस्टीट्यूट सहित कुछ कंपनियों के वैज्ञानिक जानवरों के ट्रायल तक पहुंच चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर देश में शुरू हुए शोधों की निगरानी जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप कर रही हैं। इस दौरान वायरस के प्रजनन पर भी शोध हो रहा है।

कोरोना की वैक्सीन खोजने में भारत के साथ पूरी दुनिया के वैज्ञानिक भी जुटे हुए हैं। शोध में लगे एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि करीब दो वर्ष पहले दुनियाभर के औद्योगिक व शैक्षणिक वैज्ञानिकों का एक समूह बना गया था, जिसमें भारत की भागीदारी भी है। यह समूह इस तरह की महामारी के आने पर वैक्सीन की तैयारी पर भी काम कर रहा था।

वैक्सीन के लिए आईआईटी गुवाहाटी ने किया करार
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कोरोना की वैक्सीन के लिए आईआईटी गुवाहाटी ने अहमदाबाद की बायोसाइंसेज कंपनी हेस्टर के साथ करार किया है। जल्द जानवरों पर इसका ट्रायल शुरू हो जाएगा। वैक्सीन के लिए रीकॉम्बिनेंट एवियन पैरामाइक्सोवायरस-1 पर काम होगा, जिसमें सार्स-कोविड-2 का प्रोटीन होगा। बायोसाइंसेज एंड बायोइंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर सचिन कुमार ने कहा कि अभी इस वैक्सीन पर कुछ भी कहना ठीक नहीं है। जानवरों पर इसके परीक्षण का परिणाम सामने आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

BCG का भी क्लिनिकल ट्रायल
भारत के कुछ राज्‍यों में प्लाज्मा थेरपी से अच्‍छे नतीजे आए हैं। अब ट्यूबरक्‍यूलोसिस (TB) की दवा BCG यानी Bacillus Calmette-Guerin से कोरोना के इलाज की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। अमेरिका के हॉफकिन रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक महाराष्ट्र के मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट (एमईडी) के साथ मिलकरक्लिनिकल ट्रायल की तैयारी कर रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि शुरुआती टेस्‍ट्स में BCG कॉन्सेप्ट के नतीजे बेहतर आए हैं, इसीलिए इसके परीक्षण की दिशा में कदम आगे बढ़ाए जा रहे हैं।

दवाई और वैक्सीन आने तक विशेष सावधानी बरतें
वैसे तो इस वैश्विक महामारी से निजात दिलाने के लिए हमारे देश के डॉक्टर और शोधकर्ता वैक्सीन की खोज के लिए दिन-रात लगे हुए हैं। दवाइयों का ट्रॉयल भी सफल हो रहा है, फिर भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक ये सारी चीजें बाजार में आ नहीं जातीं तब तक लोगों को खुद भी बाहर जाने के दौरान विशेष सावधानी रखनी चाहिए। जो लोग लॉकडाउन में मिली छूट के बाद काम से या दुकान आदि खोलने के लिए बाहर जा रहे हैं उन्हें विशेष सावधानी रखनी है। सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क का प्रयोग, हैंडवाश आदि नियमित रूप से करना है। बाहर निकलें तो एक निश्चित सुरक्षित दूरी बना कर रखें। ऑफिस या कहीं बाहर जा रहे हैं तो टेबल, कुर्सी, दरवाजे की कुंडी आदि अगर टच करें तो तुरंत हाथ धोएं या फिर सेनिटाइज कर लें।

घर के स्मार्ट फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करें
लॉकडाउन में भले ही ढील दी गई है, लेकिन स्थानीय लोगों को भी इसे गंभीरता से लेना होगा। अभी खतरा खत्म नहीं हुआ है और जो भी प्रशासन के दिशा-निर्देश हैं उसका पालन करें क्योंकि खुद के साथ ही परिवार और जिले को भी सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी हमारी खुद की है। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के साथ ही आरोग्य सेतु ऐप को फोन में रखना जरूरी है। यह वायरस के संक्रमण से बचने में बहुत मददगार है। इससे वायरस से जुड़ी तमाम जानकारी भी मिलती रहती है।

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